2017-11-21

जब तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देख रहे होगे ऐसा तब होगा जब परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नये सिरे से बना चुका होगा

सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर कहते हैं:क्या तुम यीशु को देखना चाहते हो? क्या तुम यीशु के साथ रहना चाहते हो? क्या तुम यीशु के द्धारा कहे गए वचनों को सुनना चाहते हो? यदि ऐसा है, तो तुम यीशु के लौटने का कैसे स्वागत करेंगे?

जब तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देख रहे होगे ऐसा तब होगा जब परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नये सिरे से बना चुका होगा

क्या तुम यीशु को देखना चाहते हो? क्या तुम यीशु के साथ रहना चाहते हो? क्या तुम यीशु के द्धारा कहे गए वचनों को सुनना चाहते हो? यदि ऐसा है, तो तुम यीशु के लौटने का कैसे स्वागत करेंगे? क्या तुम पूरी तरह से तैयार हो? किस ढंग से तुम यीशु के लौटने का स्वागत करेंगे? मुझे लगता है कि प्रत्येक भाई और बहन जो यीशु का अनुसरण करतें हो यीशु का अच्छी तरह से स्वागत करना चाहेंगे।परन्तु क्या तुम लोगों ने विचार किया है कि जब यीशु वापस आएगा तो क्या तुम सचमुच में उसे पहचान लेंगे? क्या तुम लोग सचमुच में वह सब कुछ समझ जाएँगे जो वह कहेगा? क्या तुम लोग वे सब कार्य जो यीशु करेगा, उन्हें, बिना किसी शर्त के, सचमुच में स्वीकार कर लेंगे? वे सब जिन्होंने बाइबल पढ़ी है, यीशु के लौटने के बारे में जानते हो, और वे सब जिन्होंने बाइबल को अभिप्राय से पढ़ी है, उसके आगमन की प्रतीक्षा करते हो। तुम सब लोग उस क्षण के आने के ऊपर ग्रस्त हो गए हो, और तुम लोगों की ईमानदारी प्रशंसनीय है, तुम लोगों का विश्वास वास्तव में स्पृहणीय है, परन्तु क्या तुम लोग यह एहसास करते हो कि तुम लोगों ने एक गंभीर त्रुटी की है?
यीशु किस ढंग से वापस आएगा? तुम लोग विश्वास करते हो कि यीशु श्वेत बादल पर वापस आएगा, परन्तु मैं तुम लोगों से पूछता हूँ: यह श्वेत बादल किस चीज का संकेत करता है? यीशु के कई अनुयायी उसके आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनमें से किन लोगों के बीच वह उतरेगा? यदि तुम लोग उन प्रथम में से हो जिनके मध्य में यीशु उतरेगा, तो क्या अन्य लोग इसे बुरी तरह से अनुचित नहीं समझेंगे? मैं जानता हूँ कि तुम लोगों की यीशु के प्रति बड़ी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा है, परन्तु क्या तुम लोग कभी यीशु से मिले हो? क्या तुम लोग उसके स्वभाव को जानते हो? क्या तुम लोग कभी उसके साथ रहे हो? तुम लोग उसके बारे में वास्तव में कितना समझते हो? कुछ कहेंगे कि ये वचन उन्हें एक फूहड़ अवस्था में डाल देते हैं। वे कहेंगे, "मैंने बाइबल को शुरू से लेकर अंत तक बहुत बार पढ़ा है। मैं यीशु को कैसे समझ नहीं सकता हूँ? यीशु के स्वभाव की तो बात ही छोड़ो–मैं तो उसके कपड़ों का रंग भी जानता हूँ जिन्हें वह पहनना पसंद करता है। जब तुम यह कहते हो कि मैं उसे नहीं समझता हूँ तो क्या तुम मेरा अपमान नहीं कर रहे हो?" मैं सुझाव देता हूँ कि तुम इन मुददों पर विवाद न करो; और यह बेहतर रहेगा कि शांत हो जाओ और निम्नलिखित प्रश्नों के बारे में संगति करो: सबसे पहले, क्या तुम जानते हो कि वास्तविकता क्या है और सिद्धांत क्या है? दूसरा, क्या तुम जानते हो कि अवधारणा क्या है, और सत्य क्या है? तीसरा, क्या तुम जानते हो कि कल्पित क्या है और वास्तविक क्या है? कुछ लोग इस तथ्य से इनकार करते हो कि वे यीशु को नहीं समझते हैं। और फिर भी मैं कहता हूँ कि तुम लोग यीशु के बारे में थोड़ा भी नहीं जानते हो, और यीशु के एक भी वचन को नहीं समझते हो। ऐसा इसलिए है क्योंकि तुम लोगों में से हर एक बाइबल के विवरणों के कारण, दूसरों के द्धारा जो कहा गया है उसकी वजह से, उसका अनुसरण करता है। उसके साथ रहना तो दूर, तुम लोगों ने यीशु को कभी देखा भी नहीं है, और यहाँ तक कि थोड़े से समय के लिए भी उसके साथ नहीं रहे हो। वैसे तो, क्या यीशु के बारे में तुम लोगों की समझ सिद्धान्त के अलावा और कुछ नहीं है? क्या यह वास्तविकता से विहीन नहीं है? शायद कुछ लोगों ने यीशु का चित्र देखा होगा, या कुछ ने व्यक्तिगत रूप से यीशु के घर को देखा होगा। हो सकता है कि कुछ ने यीशु के कपड़ों को छुआ होगा। फिर भी उसके बारे में तुम्हारी समझ सैद्धांतिक है और व्यवहारिक नहीं है, भले ही तुमने यीशु द्वारा खाए गए भोजन को व्यक्तिगत रूप से चखा हो। चाहे जो भी मामला हो, तुमने यीशु को कभी भी नहीं देखा है, और दैहिक रूप में कभी भी उसके साथी नहीं रहे हो, इसलिए यीशु के बारे में तुम्हारी समझ हमेशा खोखला सिद्धांत ही होगी जो सच्चाई से विहीन है। शायद मेरे वचन तुम्हारे लिए थोड़ी रूचि के हों, परन्तु मैं तुमसे यह पूछता हूँ: यद्यपि तुमने अपने पसंदीदा लेखक की कई पुस्तकों को पढ़ा होगा, फिर भी क्या तुम कभी उसके साथ समय बिताये बिना उसे पूरी तरह समझ सकते हो? क्या तुम जानते हो कि उसका व्यक्तित्व कैसा है? क्या तुम जानते हो कि वह किस प्रकार का जीवन जीता है? क्या तुम उसकी भावनात्मक स्थिति के बारे में कुछ भी जानते हो? तुम तो उस व्यक्ति को भी पूरी तरह से नहीं समझ सकते हो जिसका तुम आदर करते हो, तो तुम यीशु मसीह को संभवतः कैसे समझ सकते हो? प्रत्येक चीज जो तुम यीशु के बारे में समझते हो कल्पना और अवधारणा से भरपूर होती है, और इसमें सत्य या वास्तविकता नहीं होती है। इससे दुर्गंध आती है, यह मांस से भरा हुआ है। कैसे इस तरह की कोई समझ तुम्हें यीशु के लौटने का स्वागत करने के योग्य बनाती है? यीशु उन्हें स्वीकार नहीं करेंगे जो देह की कल्पनाओं और अवधारणाओं से भरे हुए हैं। वे जो यीशु को नहीं समझ पाते हैं कैसे उसका विश्वासी होने के योग्य हैं?

फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया, क्या तुम लोग उसका कारण जानना चाहते हो? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे ज्यादा और क्या, उन्होंने केवल इस बात पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, मगर जीवन के इस सत्य की खोज नहीं की। और इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं, क्यों उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग कैसे कहते हो कि ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर के आशीष प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? वे यीशु का विरोध करते थे क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा को नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु के द्धारा कहे गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे, और, ऊपर से, क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और क्योंकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था, और कभी भी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने सिर्फ़ मसीहा के नाम को खोखली श्रद्धांजलि देने की गलती की जबकि किसी न किसी ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी सार रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का पालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत है: इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, तुम मसीह नहीं हो जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता। क्या ये दृष्टिकोण हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण नहीं हैं? मैं तुम लोगों से पुनः पूछता हूँ: मान लीजिए कि तुम लोगों में यीशु के बारे में थोड़ी सी भी समझ नहीं है, तो क्या तुम लोगों के लिए उन गलतियों को करना अत्यंत आसान नहीं है जो बिल्कुल आरंभ के फरीसियों ने की थी? क्या तुम सत्य के मार्ग को जानने के योग्य हो? क्या तुम सचमुच में यह विश्वास दिला सकते हो कि तुम ईसा का विरोध नहीं करोगे? क्या तुम पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने के योग्य हो? यदि तुम नहीं जानते हो कि क्या तुम ईसा का विरोध करोगे, तो मेरा कहना है कि तुम पहले से ही मौत के कगार पर जी रहे हो। जो लोग मसीहा को नहीं जानते थे वे सभी यीशु का विरोध करने में, यीशु को अस्वीकार करने में, उन्हें बदनाम करने में सक्षम थे। जो लोग यीशु को नहीं समझते हैं वे सब उसे अस्वीकार करने एवं उन्हें बुरा भला कहने में सक्षम हैं। इसके अलावा, वे यीशु के लौटने को शैतान के द्वारा दिए जाने वाले धोखे के समान देखने में सक्षम हैं और अधिकांश लोग देह में लौटने की यीशु की निंदा करेंगे। क्या इस सबसे तुम लोगों को डर नहीं लगता है? जिसका तुम लोग सामना करते हो वह पवित्र आत्मा के विरोध में ईशनिंदा होगी, कलीसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचनों का विनाश होगा और यीशु के द्वारा व्यक्त किए गए समस्त को ठुकराना होगा। यदि तुम लोग इतने संभ्रमित हो तो यीशु से क्या प्राप्त कर सकते हो? यदि तुम लोग हठधर्मिता से अपनी गलतियों को मानने से इनकार करते हो, तो श्वेत बादल पर यीशु के देह में लौटने पर तुम लोग यीशु के कार्य को कैसे समझ सकते हो? यह मैं तुम लोगों को बताता हूँ: जो लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं, मगर अंधों की तरह यीशु के श्वेत बादलों पर आगमन का इंतज़ार करते हैं, निश्चित रूप से पवित्र आत्मा के विरोध में ईशनिंदा करेंगे, और ये वे प्रजातियाँ हैं जो नष्ट कर दी जाएँगीं। तुम लोग सिर्फ़ यीशु के अनुग्रह की कामना करते हो, और सिर्फ़ स्वर्ग के सुखद राज्य का आनंद लेना चाहता हो, मगर जब यीशु देह में लौटा, तो तुमने यीशु के द्वारा कहे गए वचनों का कभी भी पालन नहीं किया, और यीशु के द्वारा व्यक्त किये गए सत्य को कभी भी ग्रहण नहीं किया है। यीशु के एक श्वेत बादल पर वापस आने के तथ्य के बदले में तुम लोग क्या थामें रखना चाहोगे? क्या वही ईमानदारी जिसमें तुम लोग बार-बार पाप करते रहते हो, और फिर बार-बार उनकी स्वीकारोक्ति करते हो? एक श्वेत बादल पर वापस आने वाले यीशु के लिए तुम बलिदान में क्या अर्पण करोगे? क्या कार्य के वे वर्ष जिनकी तुम लोग स्वयं सराहना करते हो? लौट कर आये यीशु को तुम लोगों पर विश्वास कराने के लिए तुम लोग किस चीज को थाम कर रखोगे? क्या अपने अभिमानी स्वभाव को, जो किसी भी सत्य का पालन नहीं करता है?

तुम लोगों की सत्यनिष्ठा सिर्फ़ वचनों में है, तुम लोगों का ज्ञान सिर्फ़ बौद्धिक और वैचारिक है, तुम लोगों की मेहनत सिर्फ स्वर्ग की आशीषें पाने के लिए है, और इसलिए तुम लोगों का विश्वास अवश्य ही किस प्रकार का हो सकता है? आज भी, तुम लोग सत्य के प्रत्येक वचन को एक बहरे कान से ही सुनते हो। तुम लोग नहीं जानते हो कि परमेश्वर क्या है, तुम लोग नहीं जानते हो कि ईसा क्या है, तुम लोग नहीं जानते हो कि यहोवा का आदर कैसे करें, तुम लोग नहीं जानते हो कि कैसे पवित्र आत्मा के कार्य में प्रवेश किया जाए, और तुम लोग नहीं जानते हो कि परमेश्वर के स्वंय के कार्य और मनुष्य के धोखे के बीच कैसे भेद करें। तुम परमेश्वर के द्वारा व्यक्त किये गए किसी सत्य के वचन की केवल निंदा करना ही जानते हो जो तुम्हारे विचार के अनुरूप नहीं होता है। तुम्हारी विनम्रता कहाँ है? तुम्हारी आज्ञाकारिता कहाँ है? तुम्हारी सत्यनिष्ठा कहाँ है? सत्य को खोजने की तुम्हारी इच्छा कहाँ है? परमेश्वर के बारे में तुम्हारा आदर कहाँ है? मैं तुम लोगों बता दूँ, कि जो परमेश्वर में संकेतों की वजह से विश्वास करते हैं वे निश्चित रूप से उस श्रेणी के होंगे जो विनाश को झेलेगी। वे जो देह में लौटे यीशु के वचनों को स्वीकार करने में अक्षम हैं वे निश्चित रूप से नरक के वंशज, महान फ़रिश्ते के वंशज हैं, उस श्रेणी के हैं जो अनंत विनाश के अधीन की जाएगी। कई लोग मैं क्या कहता हूँ इसकी परवाह नहीं करते हैं, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को बताना चाहता हूँ जो यीशु का अनुसरण करते हैं, कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते हुए अपनी आँखों से देखो, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते हुए देखोगे तो यही वह समय भी होगा जब तुम दण्ड दिए जाने के लिए नीचे नरक चले जाओगे। यह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति की घोषणा होगी, और यह तब होगा जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और दुष्ट को दण्ड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के संकेतों को देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब वहाँ सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति ही होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं तथा संकेतों की खोज नहीं करते हैं और इस प्रकार शुद्ध कर दिए जाते हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे ही जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि "यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता है एक झूठा मसीह है" अनंत दण्ड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेतों को प्रदर्शित करता है, परन्तु उस यीशु को स्वीकार नहीं करते हैं जो गंभीर न्याय की घोषणा करता है और जीवन में सच्चे मार्ग को बताता है। और इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटें तो वे उसके साथ व्यवहार करें। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं? यीशु का लौटना उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, परन्तु उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं यह निंदा का एक संकेत है। तुम लोगों को अपना स्वयं का रास्ता चुनना चाहिए, और पवित्र आत्मा के विरोध में ईशनिंदा नहीं करनी चाहिए और सत्य को अस्वीकार नहीं करना चाहिए। तुम लोगों को अज्ञानी और अभिमानी व्यक्ति नहीं बनना चाहिए, बल्कि ऐसा बनना चाहिए जो पवित्र आत्मा के मार्गदर्शन का पालन करता हो और सत्य की खोज करने के लिए लालायित हो; सिर्फ़ इसी तरीके से तुम लोग लाभान्वित होगे। मैं तुम लोगों को परमेश्वर में विश्वास के रास्ते पर सावधानी से चलने की सलाह देता हूँ। निष्कर्ष तक न पहुँचें; इससे ज्यादा और क्या, परमेश्वर में अपने विश्वास में लापरवाह और निश्चिन्त न बनें। तुम लोगों को जानना चाहिए, कि कम से कम, जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें विनम्र और श्रद्धावान होना चाहिए। जिन्होंने सत्य को सुन लिया है और फिर भी इस पर अपनी नाक भौं सिकोड़ते हैं वे मूर्ख और अज्ञानी हैं। जिन्होंने सत्य को सुन लिया है और फिर भी लापरवाही के साथ निष्कर्षों तक पहुँचते हैं या सकी निंदा करते हैं ऐसे लोग अभिमान से घिरे हुए हैं। जो कोई भी यीशु पर विश्वास करता है वह दूसरों को श्राप देने या दूसरों की निंदा करने के योग्य नहीं है। तुम सब लोगों को एक ऐसा होना चाहिए जो तर्कसंगत हो और सत्य को स्वीकार करता हो। शायद, सत्य के मार्ग को सुन कर और जीवन के वचन को पढ़ कर, तुम विश्वास करते हो कि इन 10,000 वचनों में से सिर्फ़ एक ही वचन है जो तुम्हारे दृढ़ विश्वास के अनुसार और बाइबल के समान है, और फिर तुम्हें उसमें इन वचनों में से 10,000वें वचन की खोज करते रहना चाहिए। मैं अब भी तुम्हें सुझाव देता हूँ कि विनम्र बनो, अति-आत्मविश्वासी न बनो, और अपने आप को बहुत ऊँचा न उठाओ। परमेश्वर के लिए अपने हृदय में इतना थोड़ा सा आदर रखकर, तुम बड़े प्रकाश को प्राप्त करोगे। यदि तुम इन वचनों की सावधानी से जाँच करो और इन पर बार-बार मनन करो, तब तुम समझोगे कि वे सत्य हैं या नहीं, वे जीवन हैं या नहीं। शायद, केवल कुछ वाक्यों को पढ़ कर, कुछ लोग इन वचनों की बिना देखे ही यह कहते हुए निंदा करेंगे, "यह पवित्र आत्मा की कुछ प्रबुद्धता से अधिक कुछ नहीं है," अथवा "यह एक झूठा मसीह है जो लोगों को धोखा देने के लिए आया है।" जो लोग ऐसी बातें कहते हैं वे अज्ञानता से अंधे हो गए हैं! तुम परमेश्वर के कार्य और बुद्धि को बहुत कम समझते हो और मैं तुम्हें पुनः आरंभ से शुरू करने की सलाह देता हूँ! अंत के दिनों में झूठे मसीहों के प्रकट होने की वजह से परमेश्वर द्वारा व्यक्त किये गए वचनों की तुम लोगों को निंदा अवश्य नहीं करनी चाहिए, और क्योंकि तुम लोग धोखे से डरते हो इसलिए तुम लोगों को ऐसा अवश्य नहीं बनना चाहिए जो पवित्र आत्मा के विरोध में ईशनिंदा करे। क्या यह एक बड़ी दया नहीं होगी? यदि, बहुत जाँच के बाद, अब भी तुम्हें लगता है कि ये वचन सत्य नहीं हैं, मार्ग नहीं हैं, और परमेश्वर की अभिव्यक्ति नहीं हैं, तो फिर अंततः तुम दण्डित किए जाओगे, और आशीषों के बिना होगे। यदि तुम ऐसे सत्य को जो साफ़-साफ़ और स्पष्ट रूप से कहा गया है स्वीकार नहीं कर सकते हो, तो क्या तुम परमेश्वर के उद्धार के अयोग्य नहीं हो? क्या तुम कोई ऐसे नहीं हो जो परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौटने के लिए पर्याप्त सौभाग्यशाली नहीं है? इस बारे में विचार करें! उतावले और अविवेकी न बनें, और परमेश्वर में विश्वास को एक खेल की तरह न समझें। अपनी मंजिल के लिए, अपनी संभावनाओं के लिए, अपने जीवन के लिए विचार करें, और अपने स्वंय के साथ ऊपरी तौर से दिलचस्पी न लें। क्या तुम इन वचनों को स्वीकार कर सकते हो?

Source From:चमकती पूर्वी बिजली -सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया -सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें