2018-08-26

पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें

पृथ्वी के परमेश्वर को कैसे जानें

      परमेश्वर के सामने तुम सभी लोग पुरस्कार प्राप्त करके और उसकी नज़रों में उसके अनुग्रह की वस्तु बन कर प्रसन्न होते हो। यह हर एक की इच्छा होती है जब वह परमेश्वर पर विश्वास करना प्रारम्भ करता है, क्योंकि मनुष्य सम्पूर्ण हृदय से ऊँची चीज़ों के लिए प्रयास करता है और कोई भी दूसरे से पीछे नहीं रहना चाहता है। यही मनुष्य का तरीका है।
निश्चित रूप से इसी कारण, तुम लोगों में से कई स्वर्ग के परमेश्वर से अनुग्रह प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयास करते रहते हैं, फिर भी वास्तव में, परमेश्वर के प्रति तुम लोगों की वफादारी और निष्कपटता, तुम लोगों की स्वयं के प्रति तुम लोगों की वफादारी और निष्कपटता से बहुत कम है। मैं ऐसा क्यों कहता हूँ? क्योंकि मैं परमेश्वर के प्रति तुम्हारी वफादारी को बिल्कुल भी स्वीकार नहीं करता हूँ, और तुम लोगों के हृदय में विद्यमान परमेश्वर के अस्तित्व को पूरी तरह से नकारता हूँ। अर्थात्, वह परमेश्वर जिसकी तुम लोग आराधना करते हो, वह अज्ञात परमेश्वर जिसकी तुम लोग प्रशंसा करते हो, उसका बिल्कुल भी अस्तित्व नहीं है। मेरे निश्चित तौर पर ऐसा कह सकने का कारण यह है कि तुम लोग सच्चे परमेश्वर से बहुत दूर हो। तुम लोगों की वफादारी तुम्हारे हृदयों में एक प्रतिमा के अस्तित्व के कारण है, और जहाँ तक मेरे बारे में है, परमेश्वर जो तुम लोगों की दृष्टि में प्रतीत होता है न तो महान है और न ही छोटा, तुम बस मुझे केवल वचनों से ही अभिस्वीकृत करते हो। जब मैं तुम लोगों की परमेश्वर से अत्यधिक दूरी के बारे में बोल रहा होता हूँ, तो मैं इस बारे में संकेत कर रहा हूँ कि तुम लोग सच्चे परमेश्वर से कितनी दूर हो, जबकि अज्ञात परमेश्वर नज़दीक ही प्रतीत होता है। जब मैं "महान नहीं" कहता हूँ, तो यह इस संदर्भ में है कि जिस परमेश्वर पर तुम्हें आज के दिन विश्वास है, वह कैसे ब़ड़ी योग्यताओं से रहित मात्र एक साधारण मनुष्य प्रतीत होता है; ऐसा मनुष्य जो बहुत उत्कृष्ट नहीं है। और जब मैं "छोटा नहीं" कहता हूँ, तो इसका अर्थ यह है कि यद्यपि यह मनुष्य हवा को नहीं बुला सकता है और बरसात को आदेश नहीं दे सकता, तब भी वह परमेश्वर के आत्मा को उस कार्य को करने के लिए पुकारने में समर्थ है जो, मनुष्य को पूरी तरह से हैरान करते हुए, स्वर्ग और पृथ्वी को हिला देता है। बाह्यरूप से, तुम सभी लोग पृथ्वी के इस मसीह के प्रति बहुत आज्ञाकारी प्रतीत होते हो, फिर भी सार में न तो उस पर तुम लोगों का विश्वास है और न ही तुम उसे प्रेम करते हो। मेरे कहने का अर्थ यह है कि वह एक जिस पर तुम लोगों को वास्तव में विश्वास है वह तुम्हारी भावनाओं में अज्ञात परमेश्वर है, और वह एक जिसे तुम लोग वास्तव में प्रेम करते हो वह परमेश्वर है जिसकी तुम सभी लोग दिन-रात लालसा करते हो, फिर भी उसे कभी भी व्यक्तिगत रूप से नहीं देखा है। जहाँ तक इस मसीह कि बात है, तुम लोगों का विश्वास मात्र आंशिक है, और उसके लिए तुम लोगों का प्रेम कुछ भी नहीं है। विश्वास का अर्थ भरोसा और ईमान है; प्रेम का अर्थ हृदय में आदर और प्रशंसा, कभी अलग नहीं होना। फिर भी तुम लोगों का मसीह में विश्वास और उससे प्रेम आज इससे बहुत ही कम पड़ता है। जब विश्वास की बात आती है, तो तुम लोग उस पर कैसे विश्वास करते हो? जब प्रेम की बात आती है, तो तुम लोग उसे कैसे प्रेम करते हो? तुम लोगों को उसके स्वभाव के बारे में बस कुछ भी समझ नहीं है, उसके सार के बारे में तो और भी कम ज्ञान है, तो तुम लोगों को उस पर कैसे विश्वास है? उस पर तुम लोगों के विश्वास की वास्तविकता कहाँ है? तुम लोग उसे प्रेम कैसे करते हो? उसके लिए तुम लोगों के प्रेम की वास्तविकता कहाँ है?

आज तक कई लोगों ने बिना हिचकिचाहट के मेरा अनुसरण किया है, और इन कुछ वर्षों में, तुम सभी लोगों ने अत्यधिक थकान झेली है। मैंने तुम में से प्रत्येक के जन्मजात चरित्र और आदतों को पूरी तरह से समझ लिया है, तुम्हारे साथ बातचीत करना अत्यधिक दुष्कर रहा है। अफ़सोस की बात यह है कि मुझे तुम लोगों के बारे में काफी जानकारी मिल गई है, फिर भी तुम लोगों पास मेरे बार में थोड़ी सी भी समझ नहीं है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि लोग कहते हैं कि तुम लोग भ्रम के किसी क्षण में किसी मनुष्य द्वारा ठगे गए हो। वास्तव में, तुम लोग मेरे स्वभाव के बारे में कुछ भी नहीं समझते हो और मेरे मन में क्या है इसकी तो तुम थाह भी नहीं पा सकते हो। अब मेरे प्रति तुम लोगों की गलतफहमियाँ जले पर नमक हैं, और मुझ पर तुम लोगों का विश्वास भ्रमित ही रहता है। यह कहने की अपेक्षा कि तुम लोगों का मुझ पर विश्वास है, यह कहना और भी अधिक उचित होगा कि तुम सभी लोग मेरे अनुग्रह को प्राप्त करने का प्रयास कर रहे हो और मेरी चापलूसी कर रहे हो। तुम लोगों के इरादे बहुत ही साधारण हैं—जो कोई भी मुझे प्रतिफल दे सकता है, मैं उसका अनुसरण करूँगा और जो कोई भी महान विपदाओं से मुझे बच निकलने में सक्षम बना सकता है, मैं उसमें विश्वास करूँगा, चाहे वह परमेश्वर हो या कोई विशिष्ट परमेश्वर हो। इनमें से कोई भी मेरे किसी प्रयोजन का नहीं है। तुम लोगों में से कई मनुष्य ऐसे ही हैं, और यह स्थिति बहुत गम्भीर है। यदि, किसी दिन, यह देखने के लिए एक परीक्षण किया जाए कि तुम लोगों में से कितने लोग मसीह पर विश्वास करते हैं क्योंकि तुम्हारे पास उसके सार का परिज्ञान है, तो मुझे डर है कि तुम में से एक भी ऐसा करने में समर्थ नहीं होगा जैसा मैं चाहता हूँ। इसलिए तुम लोगों में से हर एक को इस प्रश्न पर विचार करने से पीड़ा नहीं होगी: जिस परमेश्वर पर तुम विश्वास करते हो वह मुझ से अत्यंत भिन्न है, और ऐसा है तो फिर परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का सार क्या है? जितना अधिक तुम लोग अपने तथाकथित परमेश्वर पर विश्वास करोगे, उतना ही अधिक तुम लोग मुझसे दूर भटक जाओगे। तो फिर इस मामले का मर्म क्या है? मुझे विश्वास है कि तुम लोगों में से किसी ने भी कभी भी इस मामले पर विचार नहीं किया होगा, किन्तु क्या इस मुद्दे की गम्भीरता तुम लोगों पर घटित हुई? क्या तुम लोगों ने इस प्रकार के विश्वास को जारी रखने के परिणामों पर विचार किया है?
अब, तुम लोगों के सामने नियत समस्याएँ बहुत सी हैं, और तुम लोगों में से कोई भी समाधान के साथ आने में निपुण नहीं है। यदि ऐसा ही चलता रहा, तो एकमात्र जिसे हानि होगी वह सिर्फ़ तुम लोग ही होगे। मैं समस्याओं को पहचानने में तुम लोगों की सहायता करूँगा, किन्तु समाधान खोजना तुम लोगों के ऊपर है।
मैं उन लोगों की बहुत अधिक सराहना करता हूँ जो दूसरों के बारे में संदेह को आश्रय नहीं देते हैं और उन्हें भी बहुत पसंद करता हूँ जो सहजता से सत्य को स्वीकार करते हैं; इन दो तरह के मनुष्यों के लिए मैं बहुत अधिक परवाह दिखाता हूँ, क्योंकि मेरी दृष्टि में वे ईमानदार मनुष्य हैं। यदि तुम बहुत धोखेबाज हो, तो तुम्हारे पास एक संरक्षित हृदय होगा और सभी मामलों और सभी लोगों के बारे में संदेह के विचार होंगे। इसी कारण से, मुझ में तुम्हारा विश्वास संदेह कि नींव पर बना है। इस प्रकार के विश्वास को मैं कभी भी स्वीकार नहीं करूँगा। सच्चे विश्वास का अभाव होने पर, तुम सच्चे प्रेम से और भी अधिक दूर होगे। और यदि तुम परमेश्वर पर भी संदेह करने और अपनी इच्छानुसार उसके बारे में अनुमान लगाने में समर्थ हो, तो तुम संदेह से परे मनुष्यों में सबसे अधिक धोखेबाज हो। तुम अनुमान लगाते हो कि क्या परमेश्वर मनुष्य के सदृश हो सकता हैः अक्षम्य रूप से पापमय, तुच्छ चरित्र का, निष्पक्षता और समझ से विहीन, न्याय की भावना के अभाव वाला, शातिर, छलपूर्ण, और धूर्त युक्तियों वाला, और साथ ही दुष्टता और अंधकार से खुश रहने वाला, इत्यादि। मनुष्य के ऐसे विचारों का होना इसी कारण से नहीं है क्योंकि मनुष्य को परमेश्वर का थोड़ा सा भी ज्ञान नहीं है? इस ढंग का विश्वास पाप से कम नहीं है! इसके अलावा, यहाँ तक कि कुछ ऐसे भी हैं जो यह विश्वास करते हैं कि जो लोग मुझे प्रसन्न करते हैं वे चाटुकारों और चापलूसों के अलावा अन्य कोई नहीं हैं, और जिनमें इन कौशलों का अभाव है उन्हें नापसंद किया जाएगा और वे परमेश्वर के घर में अपना स्थान खो देंगे। क्या यही वह सब ज्ञान है जो तुम लोगों ने इन कई वर्षों में बटोरा है? क्या यही सब तुम लोगों ने प्राप्त किया है? और मेरे बारे में तुम लोगों का ज्ञान इन गलतफ़हमियों पर रुकता नहीं है; इसके अलावा, परमेश्वर के आत्मा के विरूद्ध में तुम लोगों की ईशनिंदा और स्वर्ग का तिरस्कार तो और भी अधिक ख़राब है। इसलिए मैं कहता हूँ कि जिस ढंग का विश्वास तुम लोगों का है वह तुम लोगों को केवल मुझ से दूर भटकने का तथा मेरे विरुद्ध और अधिक विरोधी होने का ही कारण बनेगा। कार्य के कई वर्षों के दौरान, तुम लोगों ने कई सत्यों को देखा है, किन्तु क्या तुम लोग जानते हो कि मेरे कानों ने क्या सुना है? तुम लोगों में से कितने सत्य को स्वीकार करने को तैयार हैं? तुम सब लोग विश्वास करते हो कि तुम सत्य के लिए कीमत चुकाने को तैयार हो, किन्तु कितनों ने वास्तव में सत्य के लिए दुःख झेला है? तुम लोगों के हृदयों में जो कुछ भी विद्यमान है वह अधर्म है, और इस कारण से तुम लोग विश्वास करते हो कि कोई भी, चाहे वह कोई भी हो, धोखेबाज और कुटिल है। तुम यहाँ तक कि यह विश्वास भी करते हो कि देहधारी परमेश्वर, ठीक एक सामान्य मनुष्य की तरह, बिना दयालु हृदय या कृपालु प्रेम के होगा। इससे भी अधिक, तुम लोग विश्वास करते हो कि एक कुलीन चरित्र और दयालु, कृपालु प्रकृति केवल स्वर्ग के परमेश्वर के भीतर ही विद्यमान होती है। और तुम लोग विश्वास करते हो कि इस प्रकार के संत का अस्तित्व नहीं होता है और केवल अंधकार एवं दुष्टता ही पृथ्वी पर राज्य करते हैं, जब कि परमेश्वर कोई ऐसी चीज़ है जिस पर लोग अच्छे और सुंदर के लिए अपना मनोरथ रखते हैं, मनुष्य के द्वारा बनाया गया एक प्रसिद्ध काल्पनिक रूप है। तुम लोगों के मन में, स्वर्ग का परमेश्वर बहुत ही ईमानदार, धार्मिक और महान, आराधना और श्रद्धा के योग्य है, किन्तु पृथ्वी का यह परमेश्वर, स्वर्ग के परमेश्वर का सिर्फ़ एक प्रतिस्थानिक और साधन है। तुम विश्वास करते हो कि यह परमेश्वर स्वर्ग के परमेश्वर के समकक्ष नहीं हो सकता है, एक ही साँस में उसके जैसा उल्लेख किया जाना तो बिल्कुल नहीं हो सकता है। जब परमेश्वर की महानता और सम्मान की बात आती है, तो वे स्वर्ग के परमेश्वर की महिमा से संबंधित होते हैं, किन्तु जब मनुष्य की प्रकृति और भ्रष्टता की बात आती है, तो वे ऐसे गुण हैं जिनमें पृथ्वी के परमेश्वर का एक अंश है। स्वर्ग का परमेश्वर हमेशा उत्कृष्ट है, जबकि पृथ्वी का परमेश्वर हमेशा ही तुच्छ, कमज़ोर और अक्षम है। स्वर्ग के परमेश्वर में भावना की प्रवृत्ति नहीं है, केवल धार्मिकता होती है, जबकि धरती के परमेश्वर में केवल स्वार्थी नीयत है और वह बिना किसी निष्पक्षता और समझ वाला है। स्वर्ग के परमेश्वर में थोड़ी सी भी कुटिलता नहीं होती है और हमेशा विश्वासयोग्य है, जबकि पृथ्वी के परमेश्वर में हमेशा ही एक बेईमानी का पक्ष होता है। स्वर्ग का परमेश्वर मनुष्यों से बहुत अधिक प्रेम करता है, जबकि पृथ्वी का परमेश्वर मनुष्य की अपर्याप्त परवाह करता है, यहाँ तक कि उसकी पूरी तरह से उपेक्षा करता है। यह त्रुटिपूर्ण ज्ञान तुम लोगों के हृदयों में काफी समय से रखा हुआ है और भविष्य में आगे भी बनाए रखा जा सकता है। तुम लोग अधार्मिकता के दृष्टिकोण से मसीह के सभी कर्मों पर विचार करते हो और उसके सभी कार्यों और साथ ही उसकी पहचान और सार का मूल्यांकन दुष्ट के परिप्रेक्ष्य से करते हो। तुम लोगों ने बहुत अधिक गम्भीर गलती की है और ऐसा किया है जो तुमसे पहले आने वाले लोगों द्वारा कभी नहीं किया गया है। अर्थात्, तुम लोग केवल अपने सिर पर मुकुट वाले स्वर्ग के उत्कृष्ट परमेश्वर की सेवा करते हो और उस परमेश्वर पर ध्यान नहीं देते हो जिसे तुम इतना महत्वहीन समझते हो मानो कि तुम लोगों के लिए अदृश्य हो। क्या यह तुम लोगों का पाप नहीं है? क्या यह परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध तुम लोगों के अपराध का विशिष्ट उदाहरण नहीं है? तुम लोग स्वर्ग के परमेश्वर की आराधना करते हो। तुम अभिमानी छवियों को प्रेम करते हो और उन लोगों का सम्मान करते हो जो अपनी वाक्यपटुता के लिए प्रतिष्ठित हैं। तुम सहर्ष उस परमेश्वर द्वारा नियंत्रित हो जाते हो जो तुम लोगों के हाथों को संपत्ति से भर देता है, और उस परमेश्वर के लिए बहुत अधिक लालायित रहते हो जो तुम्हारी हर इच्छा को पूरा कर सकता है। केवल वह एक जिसकी आराधना तुम नहीं करते हो वह यह परमेश्वर है जो कि अभिमानी नहीं है; एकमात्र चीज़ जिससे तुम घृणा करते हो वह इस परमेश्वर के साथ सम्बद्धता ही है जिसे कोई भी मनुष्य उच्च सम्मान नहीं दे सकता है। एकमात्र चीज़ जिसे करने के तुम अनिच्छुक हो वह इस परमेश्वर की सेवा करना ही है, जिसने तुम्हें कभी भी एक पैसा भी नहीं दिया है, और एकमात्र वह जो तुम्हें उसके लिए लालायित करवाने में असमर्थ है वह यह अनाकर्षक परमेश्वर ही है। इस प्रकार का परमेश्वर तुम्हारे क्षितिज को विस्तृत करने में, तुम्हें खज़ाना मिल गया ऐसा महसूस करने में समर्थ नहीं बना सकता है, तुम्हारी इच्छा पूरी करने में समर्थ तो बिल्कुल नहीं बना सकता है। तो फिर क्यों, तुम उसका अनुसरण करते हो? क्या तुमने कभी इस तरह के प्रश्न पर विचार किया है?
तुम जो करते हो वह केवल इस मसीह को अपमानित ही नहीं करता है, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से, यह स्वर्ग के परमेश्वर का अपमान करता है। मैं सोचता हूँ कि परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का यह उद्देश्य नहीं है! तुम परमेश्वर से बहुत अधिक इच्छा रखते हो कि वह तुम लोगों में चमक उठे, मगर तुम लोग परमेश्वर से बहुत अधिक दूर हो। यहाँ पर मामला क्या है? तुम लोग केवल उसके वचनों को ग्रहण करते हो, किन्तु उसके व्यवहार करने या अनावश्यक हिस्से की काट-छाँट करने को ग्रहण नहीं करते हो, उसके प्रत्येक प्रबंध को स्वीकार करने, उस पर पूर्ण विश्वास करने में तो तुम बिल्कुल भी समर्थ नहीं हो। तो फिर यहाँ पर क्या मामला है? अंतिम विश्लेषण में, तुम लोगों का विश्वास एक अंडे के खाली खोल के समान है जो कभी भी किसी चूज़े को पैदा नहीं कर सकता है। क्योंकि तुम लोगों का विश्वास तुम लोगों को सत्य तक लेकर नहीं आया है या इसने तुम्हें जीवन प्राप्त नहीं कराया है, बल्कि इसके बजाय तुम लोगों तक जीवनाधार और आशा की एक भ्रामक भावना लाया है। परमेश्वर पर विश्वास करने में तुम लोगों का उद्देश्य, सत्य और जीवन के बजाय, इस आशा और जीवनाधार की भावना के वास्ते है। इसलिए, मैं कहता हूँ कि परमेश्वर पर विश्वास का तुम लोगों का मार्ग, जीहुज़ूरी और बेशर्मी से केवल परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त करने के अलावा और कुछ नहीं है, और किसी भी तरह से इसे सच्चा विश्वास नहीं माना जा सकता है। कैसे इस प्रकार के विश्वास से चूज़ा प्रकट हो सकता है? दूसरे शब्दों में, इस ढंग के विश्वास से कैसा फल प्राप्त हो सकता है? परमेश्वर पर तुम लोगों के विश्वास का प्रयोजन, तुम लोगों के लक्ष्यों को पूर्ण करने के लिए, परमेश्वर का उपयोग करना है। क्या यह तुम्हारे द्वारा परमेश्वर के स्वभाव के अपमान का एक और तथ्य नहीं है? तुम लोग स्वर्ग के परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हो परन्तु पृथ्वी के परमेश्वर के अस्तित्व से इनकार करते हो। हालाँकि, मैं तुम लोगों के विचारों का अनुमोदन नहीं करता हूँ। मैं केवल उन लोगों की सराहना करता हूँ जो अपने पैरों को ज़मीन पर रखते हैं और पृथ्वी के परमेश्वर की सेवा करते हैं, किन्तु उनकी कभी भी नहीं करता हूँ जो पृथ्वी के मसीह को स्वीकार नहीं करते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस प्रकार के लोग स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति कितने वफादार हैं, अंत में, वे मेरे हाथ से बच कर नहीं निकल सकते हैं जो दुष्टों को दण्ड देता है। इस प्रकार के लोग दुष्ट हैं; ये मनुष्य दुष्ट हैं; ये दुष्ट लोग हैं जो परमेश्वर का विरोध करते हैं और जिन्होंने कभी भी खुशी से मसीह का आज्ञापालन नहीं किया है। निस्संदेह, उनकी संख्या में वे सम्मिलित हैं जो मसीह को नहीं जानते हैं, और उसके अलावा, उसे अभिस्वीकृत नहीं करते हैं। तुम विश्वास करते हो कि तुम मसीह के प्रति जैसा चाहो वैसा व्यव्हार कर सकते हो जब तक कि तुम स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति वफादार हो। गलत! मसीह के बारे में तुम्हारी अज्ञानता स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति अज्ञानता है। इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता है कि तुम स्वर्ग के परमेश्वर के प्रति कितने वफादार हो, यह मात्र खोखली बात और दिखावा है, क्योंकि पृथ्वी का परमेश्वर न केवल सत्य और अधिक गहरे ज्ञान को प्राप्त करने का मनुष्यों में साधन है, बल्कि मनुष्यों की भर्त्सना करने के लिए और उसके बाद दुष्टों को दंडित करने के लिए तथ्यों पर कब्ज़ा करने में और भी बड़ा साधक है। क्या तुमने यहाँ लाभदायक और हानिकारक परिणामों को समझ लिया है? क्या तुमने उनका अनुभव किया है? मैं चाहता हूँ कि तुम लोग शीघ्र ही एक दिन इस सत्य को समझो: परमेश्वर को जानने के लिए, तुम्हें न केवल स्वर्ग के परमेश्वर को अवश्य जानना चाहिए बल्कि, इससे भी अधिक महत्वपूर्ण रूप से, पृथ्वी के परमेश्वर को भी अवश्य जानना चाहिए। अपनी प्राथमिकताओं को भ्रमित मत करवाओ या गौण को मुख्य से आगे निकलने की अनुमति मत दो। केवल इसी प्रकार से तुम परमेश्वर के साथ वास्तव में एक अच्छा सम्बन्ध बना सकते हो, परमेश्वर के नज़दीक हो सकते हो, और अपने हृदय को उसके और अधिक निकट ला सकते हो। यदि तुम काफी वर्षों से विश्वास में रहे हो और मेरे साथ बहुत समय तक सम्बद्ध रहे हो, फिर भी मुझ से दूर रहे हो, तो मैं कहता हूँ कि ऐसा अवश्य है कि तुम प्रायः परमेश्वर के स्वभाव का अपमान करते हो, और तुम्हारे अंत का अनुमान लगाना बहुत ही मुश्किल होगा। यदि मेरे साथ कई वर्षों की सम्बद्धता तुम्हें न केवल ऐसा मनुष्य बनाने में असफल हुई है जिसमें मानवता और सत्यता हो, बल्कि इसके बजाय तुम्हारे दुष्ट तौर-तरीके तुम्हारे स्वभाव में अंतर्निहित हो गए हैं, तुममें बडप्पन के मति-भ्रम न केवल दुगुने हुए हैं बल्कि मेरे बारे में तुम्हारी गलतफहमियाँ भी कई गुना बढ़ गई हैं, इतनी कि तुम मुझे अपना छोटा सा सहअपराधी मान लेते हो, तो मैं कहता हूँ कि तुम्हारा मनस्ताप अब ऊपर-ऊपर नहीं है, बल्कि एकदम तुम्हारी अस्थियों तक घुस गया है। और तुम्हारे लिए जो शेष बचा है वह है कि किए जाने वाले अंतिम संस्कार की व्यवस्थाओं की प्रतीक्षा करो। तब तुम्हें मुझसे याचना करने की आवश्यकता नहीं है कि मैं तुम्हारा परमेश्वर बनूँ, क्योंकि तुमने मृत्यु के योग्य पाप, एक अक्षम्य पाप किया है। भले ही मैं तुम्हारे ऊपर दया कर सकूँ, तब भी स्वर्ग का परमेश्वर तुम्हारा जीवन लेने पर जोर देगा, क्योंकि परमेश्वर के स्वभाव के विरुद्ध तुम्हारा अपराध कोई साधारण समस्या नहीं है, बल्कि अत्यंत गम्भीर प्रकृति का है। जब समय आएगा, तो तुम्हें पहले से ही नहीं बताने के लिए मुझे दोष मत देना। यह सब वापस इस पर आता है कि: जब तुम एक साधारण मनुष्य के रूप में मसीह—पृथ्वी के परमेश्वर—से सम्बद्ध होते हो, अर्थात् जब तुम विश्वास करते हो कि यह परमेश्वर कुछ नहीं बल्कि एक साधारण मनुष्य है, तभी ऐसा होता है कि तुम तबाह हो जाओगे। तुम सब के लिए मेरी यही एकमात्र चेतावनी है।
Source From:चमकती पूर्वी बिजली,सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया

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