2019-01-22

अध्याय 48

मैं चिंतित हूँ, लेकिन तुम में से कितने लोग मेरे साथ एक मन और एक सोच के होने में सक्षम हैं? तुम मेरे वचनों पर कोई ध्यान ही नहीं देते हो, पूरी तरह से उनकी अवहेलना करते हो और उन पर ध्यान केंद्रित करने में विफल रहते हो, बल्कि केवल अपनी सतही चीज़ों पर ही तुम लोग ध्यान केंद्रित करते हो। तुम मेरे द्वारा की गई कष्टप्रद देखभाल और मेरे प्रयास को व्यर्थ मानते हो; क्या तुम्हारा विवेक निकम्मा नहीं है? तुम अज्ञानी और विवेकहीन हो; तुम मूर्ख हो, और मुझे बिल्कुल ही संतुष्ट नहीं कर सकते।
मैं पूरी तरह से तुम सब के लिए हूँ—तुम सब किस हद तक मेरे हो सकते हो? तुमने मेरे इरादे को गलत समझा है, और यह वास्तव में तुम्हारा अंधापन और चीज़ों को देखने में तुम्हारी असमर्थता है, जिससे मुझे हमेशा तुम लोगों के बारे में चिंता करनी पड़ती है और तुम सब पर समय बिताना पड़ता है। अब, तुम लोग अपने समय में से कितना मेरे लिए खर्च कर सकते हो और मुझे समर्पित कर सकते हो? तुम्हें खुद से और अधिक पूछना चाहिए।
मेरा इरादा तुम सब की खातिर है—क्या तुम वास्तव में इसे समझते हो? यदि तुम वास्तव में इसे समझते होते, तो तुम लोग बहुत पहले ही मेरे इरादे को जान चुके होते और मेरे बोझ के प्रति विचारशील हो गये होते। फिर से लापरवाह मत बनो, वर्ना पवित्र आत्मा तुम में कार्य नहीं करेगा, जिससे तुम्हारी आत्मायें मर जाएँगी और नरक में जा गिरेंगीं। क्या यह तुम्हारे लिए बहुत भयावह नहीं है? मेरे लिए तुम्हें फिर से याद दिलाने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम लोगों को अपनी अंतरात्मा में ढूँढना चाहिए और खुद से पूछना चाहिए: क्या मुद्दा यह है कि मुझे तुम सभी के लिए बहुत खेद है, या यह कि तुम सब मेरे प्रति बहुत ऋणी हो? सही और गलत में भ्रम न करो और विवेकहीन न बनो! अब सत्ता और लाभ के लिए लड़ने या साज़िश करने का समय नहीं है, बल्कि तुम्हें जल्द ही इन चीज़ों को, जो जीवन के लिए बहुत हानिकारक हैं, हटा देना चाहिए, और वास्तविकता में प्रवेश करना चाहिए। तुम बहुत लापरवाह हो! तुम न तो मेरे दिल को समझ सकते हो, न ही मेरे इरादे को महसूस कर सकते हो। ऐसी कई चीज़ें हैं जिन्हें मुझे कहने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, लेकिन तुम सब ऐसे भ्रमित लोग हो जो समझ नहीं पाते हो, इसलिए मुझे उन्हें बार-बार कहना पड़ता है, और फिर भी, तुम लोगों ने अभी भी मेरे दिल को संतुष्ट नहीं किया है।
तुम्हें एक-एक करके गिनने लगूँ, तो कितने हैं जो वास्तव में मेरे दिल के प्रति विचारशील हो सकते हैं?
Source From:ईसाई धर्म--सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया--प्रभु यीशु की वापसी--सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें