2019-02-16

परमेश्वर उन्हें पूर्ण बनाता है, जो उसके हृदय के अनुसार चलते हैं

परमेश्वर अब लोगों के समूह को जीतना चाहता है—वे ऐसे लोग हैं जो उसके साथ सहयोग करने का प्रयास करते हैं, जो उसके कार्य का पालन कर सकते हैं, जो विश्वास करते हैं कि परमेश्वर द्वारा बोले हुए वचन सत्य हैं, जो परमेश्वर की आवश्यकताओं को अपने अभ्यास में ला सकते हैं। ये वे लोग हैं जिनके हृदयों में सच्ची समझ है। वे उनमें से हैं, जिन्हें पूर्ण बनाया जा सकता है, और वे निःसंदेह पूर्णता के पथ पर चलेंगे।
वे जो परमेश्वर के कार्य की स्पष्ट समझ के बिना हैं, वे जो परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते नहीं हैं, वे जो उसके वचनों की ओर ध्यान नहीं देते, और वे जिनके हृदय में परमेश्वर के लिए कोई प्रेम नहीं है - ऐसे लोग पूर्ण नहीं बनाए जा सकते। वे जो देहधारी परमेश्वर पर संदेह करते हैं, वे जो उसके बारे में अनिश्चित रहते हैं, वे जो उसके वचनों के बारे में कभी भी गंभीर नहीं होते हैं, और वे जो परमेश्वर को हमेशा धोखा देते हैं, वे परमेश्वर का विरोध करते हैं और शैतान के हैं - ऐसे लोगों को पूर्ण बनाने का कोई उपाय नहीं है।
यदि तू पूर्ण बनाया जाना चाहता है, तो पहले तुझे परमेश्वर द्वारा पसंद किया जाना चाहिए, क्योंकि वह उन्हें पूर्ण बनाता है, जिन्हें वह अनुग्रह करता है, जो उसके हृदय के अनुसार चलते हैं। यदि तू परमेश्वर के हृदय के अनुसार चलना चाहता है, तो तेरा हृदय परमेश्वर के कार्यों में अवश्य आज्ञाकारी होना चाहिए, और तुझे सत्य का अनुसरण करने का प्रयास करना चाहिए, और तुझे सभी बातों में परमेश्वर के पर्यवेक्षण को अवश्य स्वीकार करना चाहिए। क्या तुम ने परमेश्वर के पर्यवेक्षण के बारे में सोचा है? क्या तेरा इरादा सही है? यदि तेरा इरादा सही है, तो परमेश्वर तुझे स्वीकार करेगा; यदि तेरा इरादा गलत है, तो यह दिखाता है, कि जिसे तेरा दिल प्यार करता है वह परमेश्वर नहीं है, बल्कि यह देह और शैतान है। इसलिए तुझे सभी बातों में प्रार्थना के माध्यम से परमेश्वर के पर्यवेक्षण को स्वीकार करना चाहिए। जब तू प्रार्थना करता है, हालाँकि मेरा देह तेरे सामने वहाँ नहीं है, लेकिन पवित्र आत्मा तेरे साथ है, और जब तू इस व्यक्ति से प्रार्थना करता है, तो तू परमेश्वर के आत्मा से भी प्रार्थना करता है। तू इस देह पर क्यों भरोसा करता है? क्योंकि उसमें परमेश्वर का आत्मा है। क्या तू परमेश्वर के आत्मा के बिना इस व्यक्ति पर भरोसा करेगा? जब तू इस व्यक्ति पर भरोसा करता है, तो तू परमेश्वर के आत्मा पर भरोसा करता है। जब तू इस व्यक्ति से डरता है, तो तू परमेश्वर के आत्मा से डरता है। परमेश्वर के आत्मा पर भरोसा इस व्यक्ति पर भरोसा करना है, और इस व्यक्ति पर भरोसा करना परमेश्वर के आत्मा पर भरोसा करना है। जब तू प्रार्थना करता है, तू परमेश्वर के आत्मा को अपने साथ महसूस करता है, परमेश्वर तेरे सामने है; इसलिए तू उसके आत्मा से प्रार्थना करता है। आज, अधिकांश लोग अपने कृत्यों को परमेश्वर के सम्मुख लाने से बहुत डरते हैं और जबकि तू परमेश्वर की देह को धोखा दे सकता है, परन्तु उसके आत्मा को घोखा नहीं दे सकता। कोई भी बात, जो परमेश्वर के पर्यवेक्षण का सामना नहीं कर सकती, वे सत्य के अनुरूप नहीं हैं और उसे अलग कर देना चाहिए; अन्यथा यह परमेश्वर के विरूद्ध पाप होता है। इसलिए, इससे फ़र्क नहीं पड़ता कि तू किस समय प्रार्थना करता है, तू कब अपने भाई-बहनों से बातचीत और सहभागिता करता है, या कब तू अपना काम करता है और व्यवसाय का प्रबंधन करता है, तुझे अपना हृदय परमेश्वर के सम्मुख रखना चाहिए। जब तू अपना कार्य पूरा करता है, परमेश्वर तेरे साथ है, और जब तक तेरा इरादा सही है और परमेश्वर के घर के कार्य के लिए है, जो कुछ तू करेगा, परमेश्वर उसे स्वीकार करेगा, इसलिए तुझे अपने कार्य को पूरा करने के लिए अपने आपको ईमानदारी से समर्पित कर देना चाहिए। जब तू प्रार्थना करता है, यदि तेरे हृदय में परमेश्वर के लिए प्रेम है, और यदि तू परमेश्वर की देखभाल, संरक्षण और पर्यवेक्षण की तलाश करता है, यदि ये तेरे इरादे हैं, तो तेरी प्रार्थनाएं प्रभावशाली होंगी। उदाहरण के लिए, जबतू सभाओं में प्रार्थना करता है, यदि तू अपना हृदय खोल देता है और परमेश्वर से प्रार्थना करता है, और बिना झूठ बोले परमेश्वर से बोल देता है कि तेरे हृदय में क्या है — तब तेरी प्रार्थना प्रभावशाली होगी। यदि तू ईमानदारी से अपने दिल में परमेश्वर से प्रेम करता है, तो परमेश्वर से एक प्रतिज्ञा कर: "परमेश्वर जो स्वर्ग और पृथ्वी पर और सब वस्तुओं में है, मैं तेरी शपथ खाता हूं: कि तेरा आत्मा, जो कुछ मैं करता हूं, उसे जांचे और मेरी सुरक्षा करे और हर समय मेरी देखभाल करे। तेरी उपस्थिति में खड़े रहने के लिए मैं जो कुछ करता हूं इसे संभव करता है। यदि कभी भी मेरा हृदय तुझसे प्यार करना बंद कर दे, या तुझे धोखा दे, तो मुझे अपना सबसे गंभीर ताड़ना और श्राप दे। मुझे ना तो इस जगत में और न आगे क्षमा कर!" क्या तू ऐसी शपथ खाने की हिम्मत करेगा? यदि तू नहीं करता है, तो यह दिखाई देता है, कि तू कायर है, और तू अभी भी खुद से ही प्यार करता है। क्या तुम सब के पास इसका संकल्प है? यदि वास्तव में यही तेरा संकल्प है, तो तुझे प्रतिज्ञा लेनी चाहिए। यदि तेरे पास ऐसी प्रतिज्ञा लेने का संकल्प है, तो परमेश्वर तेरा संकल्प को पूरा करेगा। जब तू परमेश्वर की प्रतिज्ञा की शपथ लेता है, वह सुनता है। परमेश्वर तेरी प्रार्थना और व्यवहार से निर्धारित करता है कि तू पापी है या धर्मी। तुम सब को पूर्ण बनाने की प्रक्रिया यही है, और यदि वास्तव में तुझे पूर्ण बनाए जाने पर वास्तव में विश्वास है, तो तुझे वह सब परमेश्वर के सम्मुख लाना पड़ेगा और उसके पर्यवेक्षण को स्वीकार करना पड़ेगा, और यदि तू परमेश्वर को अपमानित करने या धोखा देने के लिए कुछ करेगा, तो परमेश्वर तुझे तेरी प्रतिज्ञा के अनुसार "पूर्ण" बनाएगा, और तब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तेरे साथ क्या होता है, चाहे वह विनाश हो या ताड़ना, यह तेरे स्वयं का सरोकार है। तूने प्रतिज्ञा ली थी, इसलिए तुझे ही इसे पूरा करना चाहिए। यदि तूने प्रतिज्ञा की है, लेकिन उसे पूरा नहीं करता है, तो तुझे विनाश भुगतना होगा। चूंकि तूने एक प्रतिज्ञा की है, परमेश्वर तुझे तेरी प्रतिज्ञा के अनुसार पूर्ण बनाएगा। कुछ लोग प्रार्थना के बाद डरते हैं, और कहते हैं, "अरे नहीं, व्यभिचार का मेरा मौका चला गया; मेरी भ्रष्टता की चीजें करने का मौका चला गया; सांसारिक लालच से तृप्त होने का मेरा मौका चला गया!" ऐसे लोग अभी भी संसार और पाप को ही प्यार करते हैं, और उन्हें निश्चित ही विनाश को भुगतना पड़ेगा।
परमेश्वर में विश्वासी होने का अर्थ है, कि तू जो कुछ भी करे, उसके सम्मुख लाया जाए और उसके पर्यवेक्षण के अधीन बनाया जाए। यदि तू जो कुछ भी परमेश्वर के आत्मा के सम्मुख ला सकते हैं लेकिन परमेश्वर की देह के सम्मुख नहीं ला सकते, यह दिखता है, कि तूने अपने आपको उसके आत्मा के पर्यवेक्षण के अधीन नहीं किया है। परमेश्वर का आत्मा कौन है? कौन व्यक्ति है जिसे परमेश्वर द्वारा गवाही दिया गया है? क्या वह एक और समान नहीं है? अधिकांश उसे दो के रूप में देखते हैं, ऐसा विश्वास करते हैं कि परमेश्वर का आत्मा उनका अपना है, और परमेश्वर द्वारा गवाही दिया गया व्यक्ति मात्र एक मानव है। लेकिन तू गलत है, क्या तू नहीं है? किसकी ओर से यह व्यक्ति काम करता है? जो लोग परमेश्वर के देहधारण को नहीं जानते, उनके पास आध्यात्मिक समझ नहीं है। परमेश्वर का आत्मा और उसका देहधारी देह एक ही है, क्योंकि परमेश्वर का आत्मा देह के रूप में प्रकट हुआ। यदि यह व्यक्ति तेरे प्रति निर्दयी है, तो क्या परमेश्वर का आत्मा दयालु हो जायेगा? क्या तू भ्रमित नही है? आज, जो कोई भी, जो परमेश्वर के पर्यवेक्षण को स्वीकार न कर सकता हो, उसे परमेश्वर नहीं स्वीकार कर सकता है, और कोई जो परमेश्वर के देहधारण को न जानता हो, उसे पूर्ण नहीं बनाया जा सकता। उन सबको देखो और पूछो, जो कुछ तूकरता है वह परमेश्वर के सम्मुख लाया जा सकता है कि नहीं। यदि तू जो कुछ भी करता है, वह परमेश्वर के सम्मुख नहीं ला सकता, यह दर्शाता है, कि तू एक पापी है। क्या पापी को पूर्ण बनाया जा सकता है? तू जो कुछ भी करता है, हर कार्य, हर इरादा, और हर प्रतिक्रया, अवश्य ही परमेश्वर के सम्मुख लाई जानी चाहिए। यहां तक कि, तेरे रोजाना का आध्यात्मिक जीवन भी—तेरी प्रार्थना, परमेश्वर के साथ तेरा सामीप्य, परमेश्वर के वचनों को खाना और पीना, अपने भाई-बहनों के साथ सहभागिता, कलीसिया का जीवन जीना, और तेरी साझेदारी में तेरी सेवा—परमेश्वर के सम्मुख और उसके द्वारा विचार के लिए लाई जानी चाहिए। यह ऐसा अभ्यास है, जो तुझे जीवन में परिपक्व होने में मदद करेगा। परमेश्वर के पर्यवेक्षण को स्वीकार करने की प्रक्रिया शुद्धिकरण की प्रक्रिया है। जितना तू परमेश्वर के पर्यवेक्षण को स्वीकार करता है, उतना ही तू शुद्ध होता जाता है और जितना तू परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलता है, इसलिए तू भ्रष्टता और अपव्यय की बुलाहट को नहीं सुनेगा, और तेरा हृदय उसकी उपस्थिति में रहेगा; जितना तू उसके पर्यवेक्षण को ग्रहण करता है, तू शैतान को उतना ही लज्जित करता है और उतना अधिक देह को त्यागने में सक्षम होता है। इसलिए, परमेश्वर के पर्यवेक्षण को ग्रहण करना एक ऐसा मार्ग है जिसका व्यक्ति को अवश्य अभ्यास करना चाहिए। कोई फर्क नहीं पड़ता कि तू क्या करता है, यहां तक कि तब भी जब तू अपने भाई-बहनों के साथ सहभागिता करता है, यदि तू अपने कर्मों को परमेश्वर के सम्मुख लाता है और उसके पर्यवेक्षण को चाहता है और तेरा इरादा स्वयं परमेश्वर की आज्ञाकारिता का है, तो जो तू अभ्यास करता है वह बहुत सही होगा। यदि केवल तू, सब कुछ परमेश्वर के सम्मुख लाता है जो तू करता है और परमेश्वर के पर्यवेक्षण को स्वीकार करता है, तो वास्तव में तू ऐसा कोई हो सकता है जो परमेश्वर की उपस्थिति में रहता है।
वे परमेश्वर को समझे बिना कभी भी पूरी तरह आज्ञाकारी नहीं हो सकते। ऐसे लोग अनाज्ञाकारिता के पुत्र हैं। वे बहुत महत्वाकांक्षी हैं, और उनमें बहुत अधिक विद्रोह है, इसलिए वे खुद को परमेश्वर से दूर रखते हैं और उसके पर्यवेक्षण को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। ऐसे लोग आसानी से पूर्ण नहीं बनाए जा सकते हैं। कुछ लोग परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने के मामले में, और उनके प्रति अपनी स्वीकृति में चुनाव करते हैं। वे परमेश्वर के वचन के उन भागों को ग्रहण करते हैं जो उनकी धारणा के अनुसार होते हैं जबकि वे ऐसों को अस्वीकार कर रहे होते हैं जो उनके जैसे नहीं हैं। क्या यह परमेश्वर के खिलाफ सबसे स्पष्ट विद्रोह और प्रतिरोध नहीं है? यदि कोई परमेश्वर को थोड़ा सा भी समझे बगैर वर्षों से उस पर विश्वास कर रहा हो, तो वह एक अविश्वासी है। जो लोग परमेश्वर के पर्यवेक्षण को ग्रहण करने के इच्छुक हैं वे परमेश्वर को समझने की कोशिश करते हैं, वे ही उसके वचनों को ग्रहण करना चाहते हैं। ये वे हैं, जो परमेश्वर का उत्तराधिकार और आशीषें प्राप्त करेंगे, और वे सबसे धन्य हैं। परमेश्वर उन्हें श्राप देता है जिनके दिलों में उसके लिए कोई स्थान नहीं है। वे ऐसे लोगों को ताड़ना देता है और त्याग देता है। यदि तू परमेश्वर से प्यार नहीं करता, तो वे तुझे त्याग देगा, और यदि मैं जो कहता हूं तू नहीं सुनता है, तो मैं वादा करता हूं कि परमेश्वर का आत्मा तुझे त्याग देगा। यदि तुझे भरोसा नहीं है, तो कोशिश करके देख ले! आज, मैं तुझे अभ्यास के लिए एक रास्ता बताता हूं, लेकिन तू इसे अभ्यास में लाए या नहीं यह तेरे ऊपर है। यदि तू अविश्वासी है, यदि तू अभ्यास नहीं करता है, तो तू देखेगा कि पवित्र आत्मा तुझमें कार्य करता है या नहीं! यदि तू परमेश्वर को समझने की कोशिश नहीं करता है, तो पवित्र आत्मा तुझमें कार्य नहीं करेगा। परमेश्वर उसमें कार्य करता है जो परमेश्वर के वचनों को संजोए रहते और उसका अनुसरण करते हैं। जितना तू परमेश्वर के वचनों को संजोता है, उतना ही उसका आत्मा तुझमें कार्य करता है। कोई व्यक्ति परमेश्वर के वचन को जितना ज्यादा संजोता है, उसका परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाए जाने का मौका उतना ही ज्यादा होता है। परमेश्वर उसे पूर्ण बनाता है, जो वास्तव में उससे प्यार करता है। वह उसको पूर्ण बनाता है, जिसका हृदय उसके सम्मुख शांत रहता है। यदि तू परमेश्वर के सभी कार्य को संजोए रखता है, यदि तू उसकी प्रबुद्धता को संजोए रखता है, यदि तू परमेश्वर की उपस्थिति को संजोए रखता है, यदि तू परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा को संजोए रखता है, यदि तू इस बात को संजोए रखता है, कि कैसे परमेश्वर के वचन तेरे जीवन की वास्तविकता और प्रावधान बन जाते हैं, तो तू परमेश्वर के दिल के सबसे करीब है। यदि तू परमेश्वर के कार्य को संजोता है, यदि तेरे वे सारे कार्य जो उसने तेरे लिए किया है, उसे संजोए रखता है, तो वह तुझे आशीष देगा और जिसके कारण जो कुछ तेरा है वह बढ़ेगा। यदि तू परमेश्वर के वचनों को नहीं संजोता है, तो परमेश्वर तुम पर कार्य नहीं करेगा, परंतु वह केवल तेरे अपने विश्वास के लिए अनुग्रह के कुछ क्षण की अनुमति देगा, या तुझे कुछ भौतिक धन या तेरे परिवार के लिए सुरक्षा देंगे। तू परमेश्वर के वचनों को अपनी वास्तविकता बना, उन्हें संतुष्ट कर और उसके दिल के करीब रह और तुझे केवल परमेश्वर के अनुग्रह का आनंद लेने का ही प्रयास नहीं करना चाहिए। विश्वासियों के लिए परमेश्वर के कार्य को प्राप्त करने, पूर्णता पाने, और परमेश्वर की इच्छा पूरी करनेवालों में से एक बनन की अपेक्षा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। यह लक्ष्य है जिसका तुझे पीछा करना चाहिए।
अनुग्रह के युग में जिसका मनुष्य ने अनुसरण किया, वह अब पुराना हो गया है, क्योंकि वर्तमान में एक उच्चतर स्तर का लक्ष्य है, एक लक्ष्य उस दोनों चीज़ का गौरवशाली और अधिक व्यावहारिक, एक लक्ष्य जो मनुष्य की भीतरी आवश्यकता को बेहतर ढंग से संतुष्ट कर सकता है। उनके लिए जो पिछले युगों में थे, परमेश्वर ने आज के कार्य उन पर नहीं किए, उसने उससे उतनी बातें नहीं की जितनी बातें आज की, न ही आज के समान इतनी ज्यादा उसको उसकी आवश्यकता थी। जब परमेश्वर इन बातों को तुम लोगों के लिए उठाते हैं, तो यह दिखाता है कि परमेश्वर का खास इरादा तुम लोगों पर ध्यान केन्द्रित करना है, यानि इस समूह पर। यदि तू वास्तव में परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाया जाना चाहता है, तो सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य के रूप में इसका अनुसरण कर। कोई फर्क नहीं पड़ता कि तू उसके ईर्द गिर्द दौड़ता है, स्वयं को खर्च करता है, समारोह में सेवा करता है, या परमेश्वर द्वारा सौंपा जाता है, तुझे पूर्ण बनने और परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट करने के लिए कोशिश करनी चाहिए। तू जो कुछ भी करता है उसमें तुझे इन्हें ढूंढना चाहिए। यदि कोई कहता है, कि वह परमेश्वर द्वारा पूर्णता या जीवन में प्रवेश का अनुसरण नहीं करता है, लेकिन केवल शारीरिक शांति और आनंद का पीछा करता है, तो वह पूरी तरह से अंधा है। जो लोग जीवन की वास्तविकता का अनुसरण नहीं करते लेकिन आने वाली दुनिया में केवल अनन्त जीवन का पीछा करते हैं और इस दुनिया में सुरक्षा चाहते हैं, वे पूरी तरह से अंधे हैं। इसलिए सब कुछ जो तू करता है परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाए जाने और लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए।
परमेश्वर लोगों पर जो कार्य करता है, उनकी विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं के आधार पर उन्हें प्रदान करता है। जितनी ज्यादा एक आदमी की जिन्दगी होती है, उसकी आवश्यकताएं उतनी ही ज्यादा होती हैं, और उतना ही ज्यादा वह उसका अनुसरण करता है। यदि इस चरण में तेरे पास कोई लक्ष्य नहीं हैं, यह साबित करता है, कि पवित्र आत्मा ने तुझे छोड़ दिया है। सभी जो जीवन की तलाश करते हैं, वे कभी भी पवित्र आत्मा के द्वारा नहीं त्यागे जाएंगे, वे हमेशा तलाश करते रहते हैं, हमेशा उम्मीद करते हैं। इस प्रकार के लोग जहां भी हैं, कभी भी आराम से तृप्त नहीं होते। पवित्र आत्मा के कार्यों के प्रत्येक चरण का उदेश्य तुम में एक प्रभाव प्राप्त करना है, लेकिन यदि तुम आत्मसंतुष्टि विकसित करते हो, यदि तुम्हारी आवश्यकता नहीं है, यदि तुम पवित्र आत्मा के कार्य को स्वीकार नहीं करते हैं, तो वह तुम्हें छोड़ देगा। लागों को हर दिन परमेश्वर के पर्यवेक्षण की आवश्यकता होती है, उन्हें परमेश्वर से हर दिन भरपूर मात्रा में प्रावधान की आवश्यकता होती है। क्या लोग परमेश्वर के वचनों को खाए और पीए बिना प्रतिदिन रह सकते हैं? यदि कोई ऐसा हमेशा महसूस करता है, तो वह परमेश्वर के वचनों को पर्याप्त रूप से खा और पी नहीं सकता है, यदि वह इसे हमेशा खोजता है, और इसके लिए भूखा और प्यासा है, तो पवित्र आत्मा हमेशा उस पर कार्य करेगा। जितना ज्यादा कोई उम्मीद करता है, उतना ही ज्यादा व्यवहारिक चीजें सहभागिता से बाहर आसकती हैं। जितनी गहनता से कोई सत्य को खोजता है, उतनी ही तेजी से उसका जीवन बढ़ता है, उसे भरपूर अनुभव देते और परमेश्वर के भवन में उन्हें समृद्ध व्यक्ति बनाते हैं।
Source From:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया--परमेश्वर के प्रेम

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