2019-02-18

राज्य का युग वचन का युग है

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन:राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरूआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने और संपूर्ण युग के लिये काम करने की ख़ातिर अपने वचन का उपयोग करता है।
राज्य का युग वचन का युग है
राज्य के युग में, परमेश्वर नए युग की शुरूआत करने, अपने कार्य के साधन बदलने और संपूर्ण युग के लिये काम करने की ख़ातिर अपने वचन का उपयोग करता है। वचन के युग में यही वह सिद्धांत है जिसके द्वारा परमेश्वर कार्य करता है। वह देहधारी हुआ ताकि विभिन्न दृष्टिकोणों से बातचीत कर सके, मनुष्य वास्तव में परमेश्वर को देख सके, जो देह में प्रकट होने वाला वचन है, उसकी बुद्धि और चमत्कार को जान सके।
उसने यह कार्य इसलिए किये ताकि वह मनुष्यों को जीतने, उन्हें पूर्ण बनाने और ख़त्म करने के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से हासिल कर सके। वचन के युग में वचन को उपयोग करने का यही वास्तविक अर्थ है। वचन के द्वारा परमेश्वर के कार्यों को, परमेश्वर के स्वभाव को मनुष्य के सार और इस राज्य में प्रवेश करने के लिए मनुष्य को क्या करना चाहिए, यह जाना जा सकता है। वचन के युग में परमेश्वर जिन सभी कार्यों को करना चाहता है, वे वचन के द्वारा संपन्न होते हैं। वचन के द्वारा ही मनुष्य की असलियत का पता चलता है, उसे नष्ट किया जाता है और परखा जाता है। मनुष्य ने वचन देखा है, सुना है और वचन के अस्तित्व को जाना है। इसके परिणाम स्वरूप वह परमेश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करता है, मनुष्य परमेश्वर के सर्वशक्तिमान होने और उसकी बुद्धि पर, साथ ही साथ मनुष्यों के लिये परमेश्वर के हृदय के प्रेम और मनुष्यों का उद्धार करने की उसकी अभिलाषा पर विश्वास करता है। यद्यपि "वचन" शब्द सरल और साधारण है, देहधारी परमेश्वर के मुख से निकला वचन संपूर्ण ब्रह्माण्ड को कंपाता है; और उसका वचन मनुष्य के हृदय को रूपांतरित करता है, मनुष्य के सभी विचारों और पुराने स्वभाव और समस्त संसार के पुराने स्वरूप में परिवर्तन लाता है। युगों-युगों से केवल आज के दिन का परमेश्वर ही इस प्रकार से कार्य करता है और केवल वही इस प्रकार से बोलता और मनुष्य का उद्धार करता है। इसके बाद मनुष्य वचन के मार्गदर्शन में, उसकी चरवाही में और उससे प्राप्त आपूर्ति में जीवन जीता है। वह वचन के संसार में जीता है, परमेश्वर के वचन के कोप और आशीषों में जीता है और उससे भी अधिक वह परमेश्वर के वचन के न्याय और ताड़ना के अधीन जीता है। ये वचन और यह कार्य सब कुछ मनुष्य के उद्धार, परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने और पुरानी सृष्टि के संसार के मूल रूप रंग को बदलने के लिये है। परमेश्वर ने संसार की सृष्टि वचन से की, वह समस्त ब्रह्माण्ड में मनुष्य की अगुवाई वचन के द्वारा करता है, उन्हें वचन के द्वारा जीतता और उनका उद्धार करता है। अंत में, वह इसी वचन के द्वारा समस्त प्राचीन जगत का अंत कर देगा। तभी उसके प्रबंधन की योजना पूरी होगी। राज्य के युग के शुरू से अंत तक, परमेश्वर अपना काम करने और अपने कामों का परिणाम प्राप्त करने के लिये वचन का उपयोग करता है। वह अद्भुत काम या चमत्कार नहीं करता, वह अपने कार्य को केवल वचन के द्वारा संपन्न करता है। वचन के कारण मनुष्य पोषण और आपूर्ति पाता है। वचन के कारण मनुष्य ज्ञान और वास्तविक अनुभव प्राप्त करता है। वचन के युग में मनुष्य ने वास्तव में अति विशेष आशीषें पाई हैं। मनुष्य को शरीर में कोई कष्ट नहीं होता और वह परमेश्वर के वचन की भरपूर आपूर्ति का आनंद उठाता है; उन्हें प्रयास करने या यात्रा करने की आवश्यकता नहीं और बड़ी आसानी से वे परमेश्वर के मुख को निहारते हैं, उसे व्यक्तिगत रूप में बातें करते हुए सुनते हैं, उसके द्वारा आपूर्ति पाते हैं; और उसे व्यक्तिगत रूप में अपना काम करते हुए देखते हैं। बीते दिनों में मनुष्य को इन सब बातों का आनंद प्राप्त नहीं था और वे इन आशीषों को कभी प्राप्त नहीं कर सकते थे।
परमेश्वर ने निश्चय ही मनुष्यों को पूर्ण करने का निर्णय कर लिया है। वह चाहे किसी भी दृष्टिकोण से कहे, सब बातें इन लोगों को पूर्ण बनाने के लिये हैं। आत्मा के दृष्टिकोण से कहे गये वचन मनुष्यों के समझने में कठिन होते हैं और मनुष्यों को उन पर अमल करने का मार्ग नहीं मिलता, क्योंकि मनुष्य की ग्रहण करने की क्षमता सीमित है। परमेश्वर के कार्य के विभिन्न प्रभाव होते हैं और उसके कार्य के प्रत्येक चरण का एक उद्देश्य है। साथ ही मनुष्यों को पूर्ण बनाने के लिये उसे अलग-अलग दृष्टिकोण से बात करनी होगी। यदि वह केवल पवित्रात्मा के ही दृष्टिकोण से बातचीत करे, तो परमेश्वर के कार्य का यह चरण पूरा नहीं हो सकता है। उसके बात करने के ढंग से तुम जान सकते हो कि वह इस जनसमूह के लोगों को पूर्ण करने के लिये दृढ़ संकल्पित है। यदि तुम परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाए जाने की इच्छा रखते हो, तो तुम्हें पहला कदम क्या लेना चाहिये? सबसे पहले तुम्हें परमेश्वर के काम के बारे में जानना चाहिये। क्योंकि नये-नये साधनों का उपयोग किया जा रहा है, एक युग एक दूसरे युग में बदल गया है, परमेश्वर जिन साधनों के द्वारा काम करता है वे भी बदल गये हैं और परमेश्वर जैसे बोलता है, उसमें भी बदलाव आया है। अब न केवल परमेश्वर के कार्य के साधन बदले हैं, बल्कि युग भी बदल गया है। पूर्व में यह राज्य का युग था, इसमें जो कार्य था वह परमेश्वर से प्रेम करना था। अब यह सहस्राब्दिक राज्य का युग है—वचन का युग—अर्थात वह युग जिसमें परमेश्वर मनुष्यों को पूर्ण बनाने के लिए बहुत तरीकों से बोलता है और मनुष्य को आपूर्ति करने के लिए विभिन्न दृष्टिकोणों से बोलता है। जैसे-जैसे समय सहस्राब्दिक राज्य के युग में बदला, परमेश्वर ने मनुष्यों को पूर्ण बनाने के लिये वचन का उपयोग करना आरंभ कर दिया, मनुष्यों को जीवन की वास्तविकता में प्रवेश करने के लिये योग्य बनाने लगा और सही मार्ग पर उनकी अगुवाई करने लगा। मनुष्यों ने परमेश्वर के कार्य के बहुत से चरणों का अनुभव किया है और यह देखा है कि परमेश्वर का कार्य बिना बदले नहीं रहता। बल्कि यह कार्य लगातार बढ़ता और गहरा होता जाता है। इतने लंबे समय तक अनुभव करने के बाद, परमेश्वर का कार्य बदला है और बार-बार बदला है, परंतु परिवर्तन चाहे जो भी हो, वह मनुष्यों में कार्य करने के परमेश्वर के उद्देश्य से अलग नहीं हुआ। यहां तक कि दस हजार परिवर्तनों के बाद भी उसका मूल उद्देश्य नहीं बदला और वह सत्य या जीवन से कभी अलग नहीं हुआ। जिन साधनों से काम किया जाता है, उनसे भी केवल कार्य के प्रारूप और बोलने के तरीके या दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है, उसके कार्य के केन्द्रीय उद्देश्य में परिवर्तन नहीं आया है। बोलने के स्वर और कार्य के माध्यम या साधनों में परिवर्तन का उद्देश्य कार्य में प्रभावशीलता लाना है। आवाज़ के स्तर पर परिवर्तन का अर्थ कार्य के उद्देश्य या सिद्धांत में परिवर्तन करना नहीं है। परमेश्वर में विश्वास रखने में मनुष्य का मूल उद्देश्य जीवन खोजना है। यदि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो परंतु जीवन या सत्य या परमेश्वर के ज्ञान की खोज नहीं करते, तब परमेश्वर में तुम्हारा विश्वास नहीं है! क्या यह यथार्थवादी सोच है कि तुम राज्य में राजा बनने के लिये प्रवेश करना चाहते हो? जीवन खोजने के द्वारा परमेश्वर के लिये सच्चे प्रेम को प्राप्त करना ही वास्तविकता है; सत्य का अनुसरण करना और सत्य पर अमल करना सब वास्तविकता है। परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय उसके वचनों का अनुभव करो; ऐसा करने पर तुम वास्तविक अनुभव के द्वारा परमेश्वर के ज्ञान को प्राप्त करोगे। यही वास्तव में सच्चा अनुसरण है।
सहस्राब्दिक राज्य के युग में, क्या तुमने इस नये युग में प्रवेश किया है, यह इस बात से तय होगा कि क्या तुमने वास्तव में परमेश्वर के वचनों की वास्तविकता में प्रवेश किया है या नहीं और उसके वचन तुम्हारे जीवन में वास्तविकता बन चुके हैं या नहीं। परमेश्वर का वचन सभी को बताया गया है ताकि सभी लोग अंत में, वचन के संसार में जिएँ और परमेश्वर का वचन प्रत्येक व्यक्ति को भीतर से प्रबुद्ध और रोशन कर देगा। यदि इस कालखण्ड के दौरान, तुम परमेश्वर के वचन को पढ़ने में जल्दबाज और लापरवाह हो और उसके वचन में तुम्हारी रुचि नहीं है तो यह दर्शाता है कि तुम्हारी स्थिति में कहीं कुछ गड़बड़ है। यदि तुम वचन के युग में प्रवेश करने में असमर्थ हो तो पवित्र आत्मा तुम में कार्य नहीं करता है; यदि तुम इस युग में प्रवेश कर चुके हो तो वह तुम में अपना काम करेगा। तुम इस समय क्या कर सकते हो, जबकि वचन के युग का आरंभ हुआ है ताकि तुम पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त कर सको? इस युग में परमेश्वर इसे तुम्हारे बीच वास्तविकता बनाएगा कि प्रत्येक व्यक्ति परमेश्वर के वचन को जियेगा, सत्य पर अमल करने योग्य बनेगा और ईमानदारीपूर्वक परमेश्वर से प्रेम करेगा; कि सभी लोग परमेश्वर के वचन को नींव के रूप में और उनकी वास्तविकता के रूप में ग्रहण करें, उनके हृदय में परमेश्वर के प्रति आदर हो और परमेश्वर के वचन पर अमल करके मनुष्य परमेश्वर के साथ मिलकर राज्य करे। परमेश्वर अपने इस कार्य को संपन्न करेगा। क्या तुम परमेश्वर के वचन को पढ़े बिना रह सकते हो? ऐसे बहुत से लोग हैं जो महसूस करते हैं कि वे एक दिन या दो दिन भी परमेश्वर के वचन को बिना पढ़े नहीं रह सकते। उन्हें परमेश्वर का वचन प्रतिदिन अवश्य पढ़ना चाहिये और यदि समय न मिले तो वचन को सुनना ही काफी है। यही भाव मनुष्य को पवित्र आत्मा की ओर से मिलता है। इस प्रकार वो मनुष्य को प्रेरित करता है, अर्थात पवित्र आत्मा वचन के द्वारा मनुष्य को नियंत्रित करता है ताकि मनुष्य परमेश्वर के वचन की वास्तविकता में प्रवेश करे। यदि परमेश्वर के वचन को खाए-पिए बिना बस एक ही दिन में तुम्हें अंधकार और प्यास का अनुभव हो, तुम्हें यह अस्वीकार्य लगता है, तब ये बातें दर्शाती हैं कि पवित्र आत्मा तुम्हें प्रेरित कर रहा है और वह तुमसे अलग नहीं हुआ है। तब तुम इस धारा में हो। किंतु यदि परमेश्वर के वचन को खाए-पिए बिना एक या दो दिन के बाद, तुम में कोई भाव पैदा न हो या तुम्हें भूख-प्यास न लगे, तुम द्रवित महसूस न करो तो यह दर्शाता है कि पवित्र आत्मा तुम से दूर जा चुका है। इसका अर्थ है कि तुम्हारी भीतरी दशा सही नहीं है; तुमने वचन के युग में प्रवेश नहीं किया है और तुम पीछे छूट गये हो। परमेश्वर मनुष्यों को नियंत्रित करने के लिये वचन का उपयोग करता है; तुम जब वचन को खाते-पीते हो तो तुम्हें अच्छा महसूस होता है, यदि अच्छा महसूस नहीं होता, तब तुम्हारे पास कोई मार्ग नहीं है। परमेश्वर का वचन मनुष्यों का भोजन और उन्हें संचालित करने वाली शक्ति बन जाता है। बाइबल में लिखा है, "मनुष्य केवल रोटी से ही नहीं बल्कि हर उस एक वचन से जीवित रहेगा जो परमेश्वर के मुख से निकलता है" यही वह कार्य है जो परमेश्वर आज संपन्न करेगा। वह तुम लोगों को इस सत्य का अनुभव करायेगा। ऐसा कैसे होता था कि प्राचीन समय में लोग परमेश्वर का वचन बिना पढ़े बहुत दिन रहते थे, पर खाते-पीते और काम करते थे? अब ऐसा क्यों नहीं होता? इस युग में परमेश्वर सब मनुष्यों को नियंत्रित करने के लिए मुख्य रूप से वचन का उपयोग करता है। परमेश्वर के वचन के द्वारा मनुष्य का न्याय किया जाता है, पूर्ण बनाया जाता है और तब अंत में राज्य में ले जाया जाता है। केवल परमेश्वर का वचन मनुष्यों को जीवन दे सकता है, केवल परमेश्वर का वचन ही मनुष्यों को ज्योति और अमल करने का मार्ग दे सकता है, विशेषकर राज्य के युग में। यदि तुम परमेश्वर के वचन को खाते-पीते हो और परमेश्वर के वचन की वास्तविकता को नहीं छोड़ते तो परमेश्वर तुम्हें पूर्ण बनाने का कार्य कर पाएगा।
जीवन की खोज करते हुये कोई सफल होने के लिये जल्दबाजी नहीं कर सकता, जीवन में उन्नति या विकास एक या दो दिन में नहीं आता। परमेश्वर का कार्य सामान्य और व्यवहारिक है और इसे एक आवश्यक प्रक्रिया से गुजरना होता है। यीशु के देहधारण करने के बाद क्रूस पर अपने कार्य को समाप्त करने में यीशु को 33.5 वर्ष लगे, मनुष्य के जीवन की तो बात ही न करो। एक सामान्य व्यक्ति के लिये परमेश्वर को प्रकट करना आसान काम नहीं है। यह विशेष रूप से बड़े लाल अजगर के देशवासियों के लिये और भी कठिन है। उनकी क्षमता कम है, उन्हें लंबे समय तक परमेश्वर के वचन और कार्य की आवश्यकता है। इसलिये परिणाम पाने के लिये जल्दबाजी न करो। परमेश्वर के वचनों को खाने-पीने के लिये तुम्हें पहले से ही सक्रिय होना होगा और परमेश्वर के वचनों पर अधिक से अधिक परिश्रम करना होगा। उसके वचनों को पढ़ने के बाद, तुम्हें इस योग्य हो जाना चाहिये कि तुम वास्तव में उन पर अमल करो, परमेश्वर के वचनों में तब तुम्हें ज्ञान, अंर्तदृष्टि, परख और बुद्धि प्राप्त होगी। और इनके द्वारा तुम समझ भी नहीं पाओगे परंतु तुम बदलते जाओगे। यदि तुम परमेश्वर के वचनों को खाना-पीना और पढ़ने का सिद्धांत बना लो, उसे जानने लगो, अनुभव करने लगो, अमल में लाने लगो तो तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और तुम उन्नति करने लगोगे। कुछ लोग कहते हैं कि वे परमेश्वर का वचन पढ़ने के बाद भी उस पर अमल नहीं कर पाते! तुम किस जल्दबाजी में हो? जब तुम एक निश्चित स्थिति तक पहुंच जाओगे तो तुम परमेश्वर के वचन पर अमल करने योग्य बन जाओगे। क्या चार या पांच वर्ष का बालक कहेगा कि वह अपने माता-पिता का सहयोग या आदर करने में असमर्थ है? तुम्हें जान लेना चाहिये कि तुम्हारी वर्तमान स्थिति क्या है, तुम जिन पर अमल कर सकते हो, अमल करो और परमेश्वर के प्रबंधन को बिगाड़ने वाले न बनो। केवल परमेश्वर के वचनों को खाओ-पीओ और आगे बढ़ते हुए उन्हें अपना सिद्धांत बना लो। इस बारे में चिन्ता न करो कि परमेश्वर तुम्हें पूर्ण कर सकता है या नहीं। अभी इस विषय में सोच-विचार न करो। केवल परमेश्वर के वचनों का खान-पान करो, जब वह तुम्हारे सामने आएगा तो यह बात निश्चित है कि परमेश्वर तुम्हें अवश्य पूरा करेगा। हालांकि, परमेश्वर के वचन को खाने-पीने का एक नियम है। आंखें मूंद करके यह न करो। बल्कि उन शब्दों को खोजो जिन्हें तुम्हें जानना चाहिये। अर्थात वे जिनका संबंध दर्शन से है। दूसरा एक पहलू जिसे खोजना चाहिये, वह है उन वचनों पर वास्तव में अमल करना, अर्थात वे बातें जिन में तुम्हें प्रवेश करना चाहिये। एक पहलू ज्ञान का है और दूसरा उसमें प्रवेश करने का है। जब तुम इन दोनों को पा लेते हो, अर्थात जब तुम समझ लेते हो कि तुम्हें क्या जानना चाहिये और किस बात पर अमल करना चाहिए, तब तुम सीख लेते हो कि परमेश्वर के वचन को कैसे खाया और पिया जाता है।
आगे बढ़ने पर, परमेश्वर के वचन के बारे में बात करना वह सिद्धांत है जिसके द्वारा तुम्हें बोलना चाहिये। आमतौर पर, जब तुम लोग आपस में मिलते हो, तब तुम लोगों को परमेश्वर के वचन के बारे में सहभागिता करनी चाहिये, उसी के विषय पर बातचीत करनी चाहिये; इस बारे में बात करो कि परमेश्वर के वचन के बारे में तुम लोग क्या जानते हो, तुम सब उसके वचन को अभ्यास में कैसे लाते हो और पवित्र आत्मा कैसे काम करता है। यदि तुम परमेश्वर के वचन के बारे में सहभागिता करते हो तो पवित्र आत्मा तुम्हें प्रकाशित करेगा। यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारे आसपास परमेश्वर के वचन का संसार बने तो तुम्हें भी सहयोग करना चाहिये। यदि तुम इसमें प्रवेश नहीं करते हो तो परमेश्वर तुम में अपना काम नहीं कर सकता। यदि तुम अपना मुँह बंद रखोगे और परमेश्वर के वचन के बारे में बातचीत नहीं करोगे तो वह तुम्हें रोशन नहीं कर सकता है। जब भी तुम खाली हो, परमेश्वर के वचन के बारे में बात करो। व्यर्थ बातें न करो! अपने जीवन को परमेश्वर के वचन से भर जाने दो; तभी तुम एक समर्पित विश्वासी होते हो। भले ही तुम्हारी सहभागिता सतही हो, सब ठीक है। यदि सतही नहीं होगी तो गहराई भी नहीं होगी। एक प्रक्रिया है जिससे अवश्य गुजरना होगा। तुम्हारे अभ्यास करने पर तुम पवित्र आत्मा द्वारा तुम्हें दी गई रोशनी को समझने की अंर्तदृष्टि प्राप्त करते हो और यह भी सीखते हो कि परमेश्वर के वचन को प्रभावशाली रूप में कैसे खाएं-पिएं। इस प्रकार खोजबीन में कुछ समय देने के बाद तुम परमेश्वर के वचन की वास्तविकता में प्रवेश कर जाओगे। केवल जब तुम सहयोग करने का संकल्प करते हो तभी पवित्र आत्मा का कार्य तुम में होगा।
परमेश्वर के वचन को खाने-पीने के सिद्धांत के दो पहलू हैं: एक का संबंध ज्ञान से है और दूसरे का संबंध प्रवेश करने से है। तुम्हें कौन से वचन जानने चाहिये? तुम्हें दर्शन से जुड़े वचन जानने चाहिये (अर्थात परमेश्वर अब किस युग में प्रवेश कर चुका है, अब परमेश्वर क्या प्राप्त करना चाहता है, देहधारण क्या है और ऐसी अन्य बातें, ये सभी बातें दर्शन से संबंधित हैं)। उस मार्ग के क्या मायने हैं जिसमें मनुष्य को प्रवेश करना चाहिये? यह परमेश्वर के उन वचनों का उल्लेख करता है जिन पर मनुष्य को अमल करना और चलना चाहिये। परमेश्वर के वचन को खाने और पीने के ये दो पहलू हैं। अब से, तुम परमेश्वर के वचन को इसी तरह खाओ-पियो। यदि तुम्हें दर्शन के बारे में वचनों की स्पष्ट समझ है तो अधिक पढ़ने की आवश्यकता नहीं है। मुख्य बात है प्रवेश करने से संबंधित वचनों को अधिक खाना और पीना, जैसे कि किस प्रकार परमेश्वर की ओर अपने हृदय को मोड़ना है, किस प्रकार परमेश्वर के समक्ष अपने हृदय को शांत करना है, कैसे शरीर का परित्याग करना है। यही सब है जिस पर तुम्हें अमल करना है। परमेश्वर के वचन को कैसे खाये-पियें यह जाने बिना असली सहभागिता संभव नहीं है। जब एक बार तुम जान लेते हो कि परमेश्वर के वचन को कैसे खाएं-पियें और तुम समझ जाते हो कि कुंजी क्या है तो सहभागिता तुम्हारे लिये आसान होगी। जो भी मसले उठेंगे, तुम उनके बारे में सहभागिता कर पाओगे और वास्तविकता को समझ लोगे। बिना वास्तविकता के परमेश्वर के वचन से सहभागिता करने का अर्थ है, तुम यह समझ पाने में असमर्थ हो कि कुंजी क्या है, यह बात दर्शाती है कि तुम परमेश्वर के वचन को खाना-पीना नहीं जानते। कुछ लोग परमेश्वर का वचन पढ़ते समय थकान का अनुभव करते हैं। यह दशा सामान्य नहीं है। वास्तव में सामान्य बात यह है कि परमेश्वर का वचन पढ़ते हुए तुम कभी थकते नहीं, सदैव उसकी भूख-प्यास बनी रहती है, तुम सदैव सोचते हो कि परमेश्वर का वचन भला है। और वह व्यक्ति जो सचमुच प्रवेश कर चुका है वह परमेश्वर के वचन को ऐसे ही खाता-पीता है। जब तुम अनुभव करते हो कि परमेश्वर का वचन सचमुच व्यवहारिक है और मनुष्य को इसमें प्रवेश करना ही चाहिये; जब तुम महसूस करते हो कि परमेश्वर का वचन मनुष्य के लिये बहुत ही अधिक सहायक और लाभदायक है, यह मनुष्य को जीवन देता है, यह भावना तुम्हें पवित्र आत्मा देता है, तुम्हारे पवित्र आत्मा द्वारा प्रेरित किये जाने के माध्यम से। यह बात साबित करती है कि पवित्र आत्मा तुम्हारे भीतर कार्य कर रहा है और परमेश्वर ने तुमसे मुख नहीं मोड़ा है। यह जानकर कि परमेश्वर सदैव बातचीत करता है, कुछ लोग उसके वचनों से थक जाते हैं, वे सोचते हैं कि परमेश्वर के वचन को पढ़ने या न पढ़ने का कोई परिणाम नहीं होता। यह सामान्य दशा नहीं है। उनका हृदय वास्तविकता में प्रवेश करने की इच्छा नहीं करता, ऐसे लोगों में पूर्ण बनाए जाने की भूख-प्यास नहीं होती और न ही वे इसे महत्वपूर्ण मानते हैं। जब भी तुम्हें लगता है कि तुम में परमेश्वर के वचन की प्यास नहीं है तो यह संकेत है कि तुम्हारी दशा सामान्य नहीं है। अतीत में, परमेश्वर तुमसे कहीं विमुख तो नहीं हो गया है, उसका पता इस बात से चलता था कि तुम्हारे भीतर शांति है या नहीं और तुम आनंद का अनुभव कर रहे हो या नहीं। अब यह इस बात से पता चलता है कि तुममें वचन की प्यास है या नहीं। क्या उसके वचन तुम्हारी वास्तविकता हैं, क्या तुम निष्ठावान हो और क्या तुम वह करने योग्य हो जो तुम परमेश्वर के लिये कर सकते हो। दूसरे शब्दों में, मनुष्य को परमेश्वर के वचन की वास्तविकता के द्वारा जांचा-परखा जाता है। परमेश्वर अपने वचनों को सभी मनुष्यों की ओर भेजता है। यदि तुम उसे पढ़ने के लिये तैयार हो तो वह तुम्हें रोशन करेगा, यदि तुम तैयार नहीं हो तो वह तुम्हें रोशन नहीं करेगा। परमेश्वर उन्हें रोशनी देता है जो धार्मिकता के भूखे-प्यासे हैं और परमेश्वर को खोजते हैं। कुछ लोग कहते हैं कि परमेश्वर ने वचन पढ़ने के बाद भी उन्हें रोशन नहीं किया। परमेश्वर के वचनों को तुमने कैसे पढ़ा था? यदि तुमने उसके वचनों को इस ढंग से पढ़ा जैसे किसी घुड़सवार ने घोड़े पर बैठे-बैठे फूलों को देखा और वास्तविकता को कोई महत्व नहीं दिया तो परमेश्वर कैसे तुम्हें रोशन कर सकता है? कैसे वह व्यक्ति जो परमेश्वर के वचन को संजो कर नहीं रखता परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाया जा सकता है? यदि तुम परमेश्वर के वचन को संजो कर नहीं रखते, तब तुम्हारे पास न तो सत्य होगा और न ही वास्तविकता होगी। यदि तुम उसके वचन को संजो कर रखते हो, तब तुम सत्य का अभ्यास कर पाओगे; और तब ही तुम वास्तविकता को पाओगे। इसलिये स्थिति चाहे जो भी हो, तुम्हें परमेश्वर के वचन को खाना और पीना चाहिये, तुम चाहे व्यस्त हो या न हो, परिस्थितियां विपरीत हों या न हों, चाहे तुम परखे जा रहे हो या नहीं परखे जा रहे हो। कुल मिलाकर परमेश्वर का वचन मनुष्य के अस्तित्व का आधार है। कोई भी उसके वचन से विमुख नहीं हो सकता, उसके वचन को ऐसे खाना होगा मानो वे दिन में तीन बार भोजन करते हैं। क्या परमेश्वर के द्वारा पूर्ण बनाया जाना और प्राप्त किया जाना इतना आसान हो सकता है? अभी तुम इसे समझो या न समझो, तुम्हारे भीतर परमेश्वर के कार्य को समझने की अंर्तदृष्टि हो या न हो, तुम्हें परमेश्वर के वचन को अधिक से अधिक खाना और पीना चाहिये। यह तत्परता और क्रियाशीलता के साथ प्रवेश करना है। परमेश्वर के वचन को पढ़ने के बाद, जिसमें प्रवेश कर सको उस पर अमल करने की तत्परता दिखाओ, तुम जो नहीं कर सकते, उसे कुछ समय के लिये दरकिनार कर दो। आरंभ में हो सकता है, परमेश्वर के बहुत से वचन तुम समझ न पाओ, पर दो या तीन माह बाद या फिर एक वर्ष के बाद तुम समझने लगोगे। ऐसा क्यों है? ऐसा इसलिये है क्योंकि परमेश्वर एक या दो दिन में मनुष्य को पूर्ण नहीं कर सकता। अधिकतर समय, जब तुम परमेश्वर का वचन पढ़ते हो, तुम उस समय उसे नहीं समझ पाओगे। उस समय वह तुम्हें लिखित पाठ से अधिक प्रतीत नहीं होगा; केवल कुछ समय के अनुभव के बाद ही तुम उसे समझने योग्य बन जाओगे। परमेश्वर ने बहुत कुछ कहा है इसलिए उसके वचन को खाने-पीने के लिये तुम्हें अधिक से अधिक प्रयास करना चाहिये। तुम्हें पता भी नहीं चलेगा और तुम समझने लगोगे, पवित्र आत्मा तुम्हें रोशन करेगा। जब पवित्र आत्मा मनुष्य को रोशन करता है, तब अक्सर मुनष्य को उसका ज्ञान नहीं होता। वह तुम्हें रोशन करता है और मार्गदर्शन देता है जब तुम उसके प्यासे होते हो, उसे खोजते हो। पवित्र आत्मा जिस सिद्धांत पर कार्य करता है वह परमेश्वर के वचन पर केंद्रित होता है जिसे तुम खाते और पीते हो। वे सब जो परमेश्वर के वचन को महत्व नहीं देते और उसके प्रति सदैव एक अलग तरह का दृष्टिकोण रखते हैं, लापरवाही का और यह विश्वास करते हैं कि वे वचन को पढ़ें या न पढ़ें कुछ फर्क नहीं पड़ता, वे हैं जो वास्तविकता नहीं जानते। उन व्यक्तियों में न तो पवित्र आत्मा का कार्य और न ही उसके द्वारा की गई रोशनी दिखाई देती है। ऐसे व्यक्ति बस साथ-साथ चलते हैं, वे बिना उचित योग्यताओं के मात्र दिखावा करने वाले लोग हैं, जैसे कि एक दृष्टांत में नैनगुओ थे।
परमेश्वर के वचन को अपने जीवन की वास्तविकता बनाए बिना तुम्हारा कोई वास्तविक कद नहीं होता। जब परीक्षा का समय आयेगा, तुम निश्चय ही असफल होगे और तब तुम्हारा वास्तविक कद प्रकट हो जाएगा। परंतु उस समय वे जो नियमित रूप में वास्तविकता में प्रवेश करने की खोज में लगे होते हैं, वे परमेश्वर के कार्य के उद्देश्य को समझेंगे। वे जो सचेत हैं और परमेश्वर के लिये प्यास रखते हैं, उन्हें परमेश्वर के प्रेम का प्रतिदान करने के लिये व्यवहारिक रूप में प्रयत्न करना चाहिये। वे जिनमें वास्तविकता नहीं है, वे छोटी-छोटी बातों का भी सामना नहीं कर सकते। जिनका कुछ वास्तविक कद है, उनमें और जिनका कोई कद नहीं है, उनमें एक अंतर है। क्यों दोनों ही परमेश्वर के वचन को खाते पीते हैं, परंतु कुछ परीक्षाओं के समय दृढ़ रहते हैं जबकि दूसरे उससे भाग जाते हैं? स्वाभाविक है कि जो भागते हैं, उनका वास्तव में कोई कद नहीं है; परमेश्वर का वचन उनकी वास्तविकता नहीं है; और परमेश्वर के वचन ने उनमें जड़ें नहीं जमाई हैं। जैसे ही उनकी परीक्षा होती है, उनके पास कोई मार्ग नहीं रहता। क्यों, तब दूसरे लोग इस बारे में दृढ़ बने रहते हैं? ऐसा इसलिये है क्योंकि उनका दर्शन बड़ा है या फिर परमेश्वर का वचन उनके भीतर उनका अनुभव बन गया है और उन्होंने वास्तव में जो देखा-समझा, वह उनके अस्तित्व का आधार बन गया है। इस कारण वे परीक्षाओं के बीच दृढ़ बने रह पाते हैं। यही वास्तविक कद है और जीवन भी यही है। कुछ लोग परमेश्वर का वचन पढ़ते हैं परंतु उस पर कभी अमल नहीं करते या उसके प्रति ईमानदार भी नहीं हैं। वे जो ईमानदार या गंभीर नहीं हैं कभी अमल करने को महत्व नहीं देते। वे जो परमेश्वर के वचन को अपनी वास्तविकता नहीं बनाते वे बिना कद के हैं। ऐसे लोग परीक्षाओं के बीच स्थिर या दृढ़ नहीं रह सकते।
जब परमेश्वर बोलता है तब तुम्हें तुरंत उसके वचनों को स्वीकार करना और उन्हें खाना चाहिये। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितना समझे, इस विचारधारा को अपनाओ कि तुम वचन को खाने, उसे जानने और उसके वचन पर अमल करने पर अपना ध्यान केंद्रित करोगे। तुम्हें यही करना चाहिये। इस बात की चिंता न करो कि तुम्हारा कद कितना बड़ा हो जायेगा; केवल परमेश्वर के वचन को खाने पर ध्यान केंद्रित करो। इसी तरह से मनुष्यों को परमेश्वर का सहयोग करना चाहिये। तुम्हारा आत्मिक जीवन मुख्यतः उस वास्तविकता में प्रवेश करना है, जहां तुम परमेश्वर के वचनों को खाओ पीओ और उन पर अमल करो। तुम्हें अन्य किसी बात पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिये। कलीसिया के अगुवाओं को इस बारे में सभी भाई-बहनों की अगुवाई करने में सक्षम होना चाहिए कि वे परमेश्वर के वचन को कैसे खाएं-पियें। यह सभी कलीसियाई अगुवाओं की जिम्मेवारी है। वे चाहे युवा हों या वृद्ध, सभी को परमेश्वर के वचन को खाने-पीने को महत्व देना चाहिये और उन वचनों को अपने हृदय में रखना चाहिये। यदि तुम इस वास्तविकता में प्रवेश कर लेते हो तो तुम राज्य के युग में प्रवेश कर लोगे। आजकल बहुत से हैं जो महसूस करते हैं कि वे परमेश्वर के वचन को खाए-पिए बिना नहीं रह सकते और समय चाहे जैसा भी हो, वे महसूस करते हैं कि परमेश्वर का वचन नया है। इसके मायने हैं कि मनुष्य सही मार्ग पर चलना आरंभ कररहा है। परमेश्वर मनुष्यों में काम करने और उनकी आपूर्ति करने के लिये वचन का उपयोग करता है। जब सब लोग परमेश्वर के वचन की लालसा और प्यास रखते हैं तो वे परमेश्वर के वचन के संसार में प्रवेश करेंगे।
परमेश्वर बहुत बातें कह चुका है। तुमने कितना ज्ञान पाया है? तुमने कितने में प्रवेश पाया है? यदि कलीसिया के अगुवाओं ने भाइयों और बहनों को परमेश्वर के वचन की वास्तविकता में अगुवाई नहीं की है तो वे अपने कर्तव्य पालन में चूक गये हैं और अपनी जिम्मेवारियों को पूरा करने में असफल हुये हैं! परमेश्वर के वचन को खाने पीने में तुम्हारी कितनी भी गहराई हो या तुम कितना भी अधिक ग्रहण कर सकते हो, उसके बावजूद तुम्हें परमेश्वर के वचन को खाना-पीना आना चाहिये; तुम्हें परमेश्वर के वचन का महत्व मानना चाहिये और परमेश्वर के वचन को खाने-पीने की आवश्यकता को समझना चाहिये और उसका महत्व समझना चाहिये। परमेश्वर ने बहुत कुछ कह दिया है। यदि तुम उसके वचन को नहीं खाते-पीते, उसे खोजते नहीं या उस पर अमल नहीं करते तो यह नहीं माना जा सकता कि तुम परमेश्वर में विश्वास रखते हो। क्योंकि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, तुम्हें उसके वचन को खाना-पीना चाहिये, उसका अनुभव करना चाहिये और उसे जीना चाहिये। केवल यही परमेश्वर पर विश्वास करना है! यदि तुम कहते हो कि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, परंतु उसके किसी वचन को बोल नहीं सकते या उन पर अमल नहीं कर सकते तो यह नहीं माना जा सकता कि तुम परमेश्वर में विश्वास करते हो। ऐसा करना भूख शांत करने के लिये रोटी की खोज करने जैसा है। केवल छोटी-छोटी बातों की गवाही, अनुपयोगी मसले और सतही मुद्दों के बारे में बातें करना, उनमें लेशमात्र भी वास्तविकता न होना, परमेश्वर पर विश्वास नहीं है। उसी तरह, तुमने परमेश्वर पर विश्वास करने के सही तरीके को नहीं समझा है। तुम्हें परमेश्वर के वचनों को क्यों अधिक खाना-पीना चाहिये? यदि तुम परमेश्वर के वचनों को खाते पीते नहीं और केवल स्वर्ग पर उठाये जाने की खोज में रहो तो क्या यह विश्वास माना जायेगा? परमेश्वर में विश्वास रखने वाले का पहला कदम क्या होता है? परमेश्वर किस मार्ग से मनुष्यों को पूर्ण बनाता है? क्या परमेश्वर के वचन को बिना खाए-पिए तुम पूर्ण बनाए जा सकते हो? क्या परमेश्वर के वचन को बिना अपनी वास्तविकता बनाये, तुम परमेश्वर के राज्य के व्यक्ति माने जा सकते हो? परमेश्वर में विश्वास रखना वास्तव में क्या है? परमेश्वर में विश्वास रखने वालों का कम से कम बाहरी तौर पर आचरण अच्छा होना चाहिये और सबसे महत्वपूर्ण बात परमेश्वर का वचन रखना है। तब चाहे कुछ भी हो तुम उसके वचन से भी दूर नहीं जा सकते। परमेश्वर के प्रति तुम्हारा ज्ञान और उसकी इच्छा को पूरा करना, सब उसके वचन के द्वारा हासिल किया जाता है। सभी देश, सम्प्रदाय, धर्म और प्रदेश भी भविष्य में वचन के द्वारा जीते जायेंगे। परमेश्वर सीधे बात करेगा, सभी लोग अपने हाथों में परमेश्वर का वचन थामकर रखेंगे; इसके द्वारा लोग पूर्ण बनाए जाएंगे। परमेश्वर का वचन सब तरफ फैलता जायेगा: इंसान परमेश्वर के वचन बोलेगा, परमेश्वर के वचन के अनुसार आचरण करेगा, और अपने हृदय में परमेश्वर का वचन रखेगा, भीतर और बाहर दोनों तरफ परमेश्वर के वचन में डूबा रहेगा। इस प्रकार इन्सान को पूर्ण बनाया जाएगा। परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने वाले और वे जो उसकी गवाही देते हैं, वे हैं जिन्होंने परमेश्वर के वचन को वास्तविकता बनाया है।
वचन के युग अर्थात् सहस्राब्दिक राज्य के युग में प्रवेश करना वह कार्य है जो अभी पूरा किया जा रहा है। अब से वचन की सहभागिता करने का अभ्यास करो। केवल परमेश्वर के वचन को खाने-पीने और अनुभव करने से ही तुम परमेश्वर के वचन को प्रदर्शित कर सकते हो। केवल तुम्हारे अनुभव के वचनों के द्वारा दूसरे लोग तुम्हारे कायल हो सकते हैं। यदि तुम्हारे पास परमेश्वर का वचन नहीं है तो कोई भी कायल नहीं होगा! परमेश्वर द्वारा उपयोग किये जाने वाले सब लोग परमेश्वर का वचन बोलने में सक्षम होते हैं। यदि तुम परमेश्वर का वचन नहीं बोल सकते तो यह दर्शाता है कि पवित्र आत्मा ने तुममें काम नहीं किया है और तुम पूर्ण नहीं बनाए गये हो। यह परमेश्वर के वचन का महत्व है। क्या तुम्हारे पास ऐसा हृदय है जो परमेश्वर के वचन की प्यास रखता हो? वे जो परमेश्वर के वचन के प्यासे हैं, वे सत्य के लिये प्यासे हैं और केवल ऐेसे ही लोग परमेश्वर के द्वारा अशीषित हैं। भविष्य में, परमेश्वर सभी पंथों और संप्रदायों से बहुत-सी अन्य बातें भी कहेगा। वह सबसे पहले तुम लोगों के बीच बोलता और अपनी वाणी सुनाता है और तुम्हें पूरा करता है और उसके बाद अन्य अन्य-जाति राष्ट्रों से बातें करेगा, उन तक अपनी वाणी पहुँचाएगा और उन्हें जीतेगा। वचन के द्वारा सभी लोग ईमानदारी से और पूरी तरह से कायल किये जायेंगे। परमेश्वर के वचन के द्वारा और उसके प्रकाशनों के द्वारा मनुष्य का भ्रष्ट स्वभाव घटता है, उसमें इंसानियत का प्रकटन होता है और मनुष्य का विद्रोही स्वभाव भी कम होता है। वचन मनुष्यों में अधिकार के साथ काम करता है और परमेश्वर की ज्योति में मनुष्यों को जीतता है। परमेश्वर वर्तमान युग में जो कार्य करेगा, उसके कार्य का निर्णायक मोड़, सभी कुछ परमेश्वर के वचन के भीतर मिल सकता है। यदि तुम उसके वचन को नहीं पढ़ते तो तुम कुछ नहीं समझोगे। उसके वचन को खाने-पीने से, भाइयों और बहनों के साथ सहभागिता करके और अपने वास्तविक अनुभव से परमेश्वर के वचन का तुम्हारा ज्ञान व्यापक हो जाएगा। केवल इसी प्रकार से तुम सचमुच वास्तविक जीवन में उसे जी सकते हो।
Source From:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया--परमेश्वर का प्रेम

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