भाइयों और बहनों के बीच जो हमेशा अपनी नकारात्मकता का गुबार निकालते रहते हैं, वे शैतान के अनुचर हैं और वे कलीसिया को परेशान करते हैं। ऐसे लोगों को अवश्य ही एक दिन निकाल और हटा दिया जाना चाहिए। परमेश्वर में अपने विश्वास को लेकर, अगर लोगों के अंदर परमेश्वर के प्रति श्रद्धा-भाव से भरा दिल नहीं है, अगर ऐसा दिल नहीं है जो परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी है, तो ऐसे लोग न सिर्फ परमेश्वर के लिये कोई कार्य कर पाने में असमर्थ होंगे, बल्कि वे ऐसे लोग बन जायेंगे जो परमेश्वर के कार्य में बाधा उपस्थित करते हैं और उनकी उपेक्षा करते हैं।
जब कोई परमेश्वर में विश्वास करने वाला व्यक्ति परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं करता या उसके प्रति श्रद्धा-भाव व्यक्त नहीं करता, बल्कि उसकी उपेक्षा करता है, तो एक विश्वासी या आस्तिक के लिये इससे अधिक कलंक की बात और क्या हो सकती है। यदि किसी विश्वासी की वाणी और आचरण में हमेशा एक अविश्वासी की तरह लापरवाही हो और नियंत्रण न हो, तो ऐसा विश्वासी एक अविश्वासी से भी अधिक दुष्ट है; ये प्रतीकात्मक राक्षस हैं। जो कलीसिया में रहते हुए विष-वमन करते हैं, भाईयों और बहनों के बीच से ऐसे जो अफवाह फैलाते हैं, सौहार्द खराब करते हैं और गुटबाजी करते हैं, उन्हें कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिये था। लेकिन, चूँकि अब परमेश्वर के काम का नया युग है ऐसे लोगों पर पाबंदी लगा दी गई है, क्योंकि ऐसे लोगों का हटाया जाना तय है। शैतान के द्वारा दूषित लोगों का स्वभाव भी दूषित हो गया है। जहां कुछ लोग ऐसे हैं जिनका स्वभाव-मात्र ही दूषित हुआ है, वहां ऐसे लोग भी हैं, जो न केवल दूषित शैतानी स्वभाव के हैं, बल्कि उनकी प्रकृति में भी चरम विद्वेष समा गया है। ऐसे लोग जो कुछ भी करते हैं और जो कुछ कहते हैं, उससे न केवल उनका दूषित शैतानी स्वभाव ही उजागर होता है, बल्कि वे स्वयं साक्षात दुष्ट शैतान ही हैं। ऐसे लोग बस परमेश्वर के कार्य में बाधा डालते हैं, भाइयों और बहनों के जीवन प्रवेश में व्यवधान उपस्थित करते हैं और कलीसिया के सामान्य कार्यकलापों को नष्ट करते हैं। भेड़ की खाल में छिपे ऐसे भेड़ियों का कभी न कभी अवश्य ही सफाया किया जाना चाहिए, और शैतान के इन अनुचरों के प्रति एक सख्त रवैया अपनाना होगा; इनका पूरी तरह से परित्याग करना होगा। ऐसा करके ही परमेश्वर के पक्ष में खड़ा रहा जा सकता है और जो ऐसा नहीं कर सकते, अवश्य ही उनकी सांठ-गांठ शैतान से है। जो सच्चे मन से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, परमेश्वर उनके हृदय में बसता है और ऐसे ही लोगों के मन में परमेश्वर के लिये श्रद्धा और प्रेम है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें सावधानी और समझदारी भरे दिल से अपने कार्य करने चाहिये। और वे जो कुछ भी करें वह परमेश्वर की अपेक्षा के अनुरूप होना चाहिये और परमेश्वर के मन को संतोष देने वाला होना चाहिये। वे दुराग्रही बनकर मनमाने ढंग से कार्य न करें; ऐसा व्यवहार पुण्यात्माओं को शोभा नहीं देता। ऐसा नहीं हो सकता कि परमेश्वर के नाम का ध्वज थामे लोग अहंकार और मद में चूर होकर हर ओर प्रवंचना और छल करें; इस प्रकार का आचरण अत्यधिक विद्रोही है। परिवारों के नियम और राष्ट्रों के कानून होते हैं, तो परमेश्वर के परिवार के अपने और कितने कड़े मानक हैं? क्या उसके प्रशासनिक आदेशों में ऐसा और भी अधिक नहीं है? लोग जो चाहें कर सकते हैं, परन्तु परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों को इच्छानुसार नहीं बदला जा सकता है। परमेश्वर आखिर परमेश्वर है जो लोगों को अपनी आज्ञा के उल्लंघन की छूट नहीं देता - परमेश्वर आखिर परमेश्वर है जो लोगों को मृत्यु-शैया पर सुला देता है - क्या लोग वास्तव में यह सब पहले से ही नहीं जानते हैं?
जब कोई परमेश्वर में विश्वास करने वाला व्यक्ति परमेश्वर की आज्ञा का पालन नहीं करता या उसके प्रति श्रद्धा-भाव व्यक्त नहीं करता, बल्कि उसकी उपेक्षा करता है, तो एक विश्वासी या आस्तिक के लिये इससे अधिक कलंक की बात और क्या हो सकती है। यदि किसी विश्वासी की वाणी और आचरण में हमेशा एक अविश्वासी की तरह लापरवाही हो और नियंत्रण न हो, तो ऐसा विश्वासी एक अविश्वासी से भी अधिक दुष्ट है; ये प्रतीकात्मक राक्षस हैं। जो कलीसिया में रहते हुए विष-वमन करते हैं, भाईयों और बहनों के बीच से ऐसे जो अफवाह फैलाते हैं, सौहार्द खराब करते हैं और गुटबाजी करते हैं, उन्हें कलीसिया से निकाल दिया जाना चाहिये था। लेकिन, चूँकि अब परमेश्वर के काम का नया युग है ऐसे लोगों पर पाबंदी लगा दी गई है, क्योंकि ऐसे लोगों का हटाया जाना तय है। शैतान के द्वारा दूषित लोगों का स्वभाव भी दूषित हो गया है। जहां कुछ लोग ऐसे हैं जिनका स्वभाव-मात्र ही दूषित हुआ है, वहां ऐसे लोग भी हैं, जो न केवल दूषित शैतानी स्वभाव के हैं, बल्कि उनकी प्रकृति में भी चरम विद्वेष समा गया है। ऐसे लोग जो कुछ भी करते हैं और जो कुछ कहते हैं, उससे न केवल उनका दूषित शैतानी स्वभाव ही उजागर होता है, बल्कि वे स्वयं साक्षात दुष्ट शैतान ही हैं। ऐसे लोग बस परमेश्वर के कार्य में बाधा डालते हैं, भाइयों और बहनों के जीवन प्रवेश में व्यवधान उपस्थित करते हैं और कलीसिया के सामान्य कार्यकलापों को नष्ट करते हैं। भेड़ की खाल में छिपे ऐसे भेड़ियों का कभी न कभी अवश्य ही सफाया किया जाना चाहिए, और शैतान के इन अनुचरों के प्रति एक सख्त रवैया अपनाना होगा; इनका पूरी तरह से परित्याग करना होगा। ऐसा करके ही परमेश्वर के पक्ष में खड़ा रहा जा सकता है और जो ऐसा नहीं कर सकते, अवश्य ही उनकी सांठ-गांठ शैतान से है। जो सच्चे मन से परमेश्वर में विश्वास करते हैं, परमेश्वर उनके हृदय में बसता है और ऐसे ही लोगों के मन में परमेश्वर के लिये श्रद्धा और प्रेम है। जो लोग परमेश्वर में विश्वास करते हैं, उन्हें सावधानी और समझदारी भरे दिल से अपने कार्य करने चाहिये। और वे जो कुछ भी करें वह परमेश्वर की अपेक्षा के अनुरूप होना चाहिये और परमेश्वर के मन को संतोष देने वाला होना चाहिये। वे दुराग्रही बनकर मनमाने ढंग से कार्य न करें; ऐसा व्यवहार पुण्यात्माओं को शोभा नहीं देता। ऐसा नहीं हो सकता कि परमेश्वर के नाम का ध्वज थामे लोग अहंकार और मद में चूर होकर हर ओर प्रवंचना और छल करें; इस प्रकार का आचरण अत्यधिक विद्रोही है। परिवारों के नियम और राष्ट्रों के कानून होते हैं, तो परमेश्वर के परिवार के अपने और कितने कड़े मानक हैं? क्या उसके प्रशासनिक आदेशों में ऐसा और भी अधिक नहीं है? लोग जो चाहें कर सकते हैं, परन्तु परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों को इच्छानुसार नहीं बदला जा सकता है। परमेश्वर आखिर परमेश्वर है जो लोगों को अपनी आज्ञा के उल्लंघन की छूट नहीं देता - परमेश्वर आखिर परमेश्वर है जो लोगों को मृत्यु-शैया पर सुला देता है - क्या लोग वास्तव में यह सब पहले से ही नहीं जानते हैं?
ऐसा कोई कलीसिया नहीं है जहां लोग कलीसिया को परेशान न करते हों, जहां लोग परमेश्वर के कार्य में बाधा न उपस्थित करते हों। ऐसे लोग परमेश्वर के परिवार में छ्द्म वेष में शैतान का ही रूप हैं। ऐसे लोग छ्द्म वेष धारण करने में निपुण होते हैं, मेरे समक्ष विनीत भाव से आकर, नमन करते हुए, नत-मस्तक होते हैं, खुजली वाले कुत्ते की तरह व्यवहार करते हैं, अपने निहित मंसूबों को साधने के लिये अपना "सर्वस्व" न्योछावर करने को तत्पर रहते हैं, लेकिन भाइयों और बहनों के समक्ष अपना घिनौना रूप प्रकट कर देते हैं। ऐसे लोग जब किसी को सत्य का अनुपालन करते देखते हैं तो उस पर आक्रमण करते हैं, उसे अलग-थलग कर देते हैं, और जब किसी ऐसे व्यक्ति को देखते हैं जो उनसे भी अधिक भयंकर अवस्था में हो तो फिर उसकी चाटुकारिता करने लगते हैं, प्रेम प्रदर्शित करने लगते हैं, और कलीसियामें किसी तानाशाह की तरह पेश आने लगते हैं। अधिकतर कलीसियाओं में इसी प्रकार के "स्थानीय दुर्जन नाग", और "पालतू कुत्तों" की पैठ है। ऐसे लोग मिलकर आस-पास मुखबिरी करते हैं, आंखों से और हाव-भाव से एक-दूसरे को इशारे करते हैं, और इनमें से सत्य का पालन कोई भी नहीं करता। जिसमें सबसे अधिक विष होता है वह इन "राक्षसों का मुखिया" होता है, और जिसकी इनमें सबसे अधिक प्रतिष्ठा होती है, वह इनका नेतृत्व करता है और इनका परचम बुलंद करके रखता है। ऐसे लोग कलीसियामें उपद्रव करते हैं, नकारात्मकता फैलाते हुए, मौत का तांडव करते हैं, मनमर्जी करते हैं, जो चाहे बकते हैं, और किसी की हिम्मत नहीं होती कि इन्हें कुछ कहे। इनका आचरण और स्वभाव पूरी तरह से शैतानी होता है। जैसे ही ये लोग परेशानियां खड़ी करने लगते हैं, कलीसिया में जैसे मौत की घुटन-सी छाने लगती है। जो लोग सत्य के मार्ग पर चल रहे थे, वे परित्यक्त से हो जाते हैं और अपनी सामर्थ्य का उपयोग नहीं कर पाते, और जो कलीसिया में परेशानियां खड़ी करते हैं और जिनसे मौत पसरती है, वे कलीसिया में बेख़ौफ़ घूमते हैं। और अधिकतर लोग उनका अनुसरण भी करते हैं। ऐसे चर्चों पर शैतान का कब्ज़ा है और राक्षस ही उनका सम्राट है। यदि कलीसिया के लोग ऐसे मुखिया राक्षसों के खिलाफ़ खड़े होकर उन्हें बहिष्कृत नहीं करेंगे, तो वे आकर देर-सवेर उन्हें भी बर्बाद कर देंगे। ऐसे कलीसियाओं के ख़िलाफ़ कड़े कदम उठाये जाने चाहिए। यदि ऐसे लोग जो थोड़ा-बहुत सत्य का पालन करने के योग्य हैं, वे खोज में नहीं जुटते हैं, तो फिर इस तरह के कलीसिया पर पाबंदी लगा दी जायेगी। यदि कलीसिया में ऐसे लोग नहीं हैं जो सत्य का पालन करने के इच्छुक हों, जो परमेश्वर की गवाही दे सकते हों, तो कलीसिया को पूरी तरह से बहिष्कृत कर दिया जाना चाहिये और अन्य कलीसियाओं के साथ उनके सम्बंध विच्छेद कर दिये जाने चाहिये। इसे मृत्यु को दफ़्न करना और शैतान को बहिष्कृत करना कहते हैं। यदि किसी कलीसिया में दुर्जन नागों और उनका अनुसरण करने वाले कीड़े-मकौड़ों का बाहुल्य है और उनमें किसी तरह का कोई विवेक नहीं रह गया है, और यदि सत्य देख लेने के बाद भी ऐसे कलीसिया इन सांपों की जकड़न और कपट से मुक्त नहीं हो पा रहे हैं, ऐसे मूर्खों का अंत में सफाया कर दिया जायेगा। हालांकि ऐसे कीड़े-मकौड़ों ने भले ही कोई खौफ़नाक हरकत न की हो, लेकिन ये ज़्यादा धूर्त, शातिर और बहानेबाज़ होते हैं। इसलिये ऐसे तमाम लोगों का सफाया हो जायेगा। इनमें से बचेगा कोई नहीं! जो शैतान के साथ हैं, वे शैतान के पास ही वापिस चले जायेंगे और जो परमेश्वर के साथ हैं, वे सत्य के अन्वेषण में लग जायेंगे; यह उनकी प्रकृति के अनुसार तय होगा। शैतान का अनुसरण करने वालों को नष्ट हो जाने दो! ऐसे लोगों के प्रति कोई दया-भाव नहीं दिखाया जायेगा। और जो सत्य के खोजी हैं, उनके लिये पूर्ण व्यवस्था की जाये और उन्हें परमेश्वर के वचनों का भरपूर आनंद प्राप्त करने की अनुमति दी जाये। परमेश्वर न्यायी है और वो किसी के साथ भी अन्याय नहीं करता। यदि तुम दुर्जन हो तो तुम सत्य का अभ्यास नहीं कर पाओगे। और यदि तुम सत्य की खोज करते हो तो यह तय है कि तुम शैतान के चंगुल में नहीं फंस सकते – इसमें किसी प्रकार का कोई संदेह नहीं है।
जो स्वयं आगे नहीं बढ़ना चाहते, वे हमेशा चाहते हैं कि दूसरे भी उन्हीं की तरह नकारात्मक और अकर्मण्य बने रहें, जो स्वयं सत्य का अनुपालन नहीं करते, वे उनसे ईर्ष्या रखते हैं जो सत्य का अभ्यास करते हैं। जो सत्य का पालन नहीं करते, वे हमेशा ऐसे लोगों के साथ कपट करते हैं जो नासमझ हैं और जिनमें विवेक की कमी है। ऐसे लोग जो कुछ उगलते हैं, वह तुम्हारे पतन का कारण बन सकता है, गर्त में धकेल सकता है, असामान्य परिस्थितियां पैदा करता और अंतर्मन को अंधकार से भर सकता है; ऐसे लोग तुम्हें परमेश्वर से दूर कर देते हैं और ऐसा बना देते हैं कि तुम देह को और स्वयं को चाहने लगते हो। जो सत्य प्रेमी नहीं हैं, जो सदा परमेश्वर के साथ यंत्रवत पेश आते हैं, वे आत्म-ज्ञान से शून्य हैं और वे अपने स्वभाव के कारण लोगों को पाप करने और परमेश्वर की अवहेलना के लिये फुसलाते हैं। वे न तो स्वयं सत्य का अनुसरण करते हैं और न दूसरों को करने देते हैं। उन्हें पाप भले प्रतीत होते हैं और स्वयं से कोई जुगुप्सा नहीं होती। ऐसे लोग न तो स्वयं को जानते हैं और न ये चाहते हैं कि दूसरे अपने आपको जानें तथा दूसरों में सत्य की ललक को जागने से रोकते हैं। जो कपट करते हैं वे दिव्य प्रकाश को नहीं देख पाते और अंधेरों में गुम हो जाते हैं; वे स्वयं को नहीं जान पाते और सत्य के प्रति उनकी कोई धारणा नहीं बन पाती तथा परमेश्वर से उनकी दूरी बढ़ती चली जाती है। वे न तो स्वयं सत्य का पालन करते हैं और न दूसरों को करने देते हैं और उन नासमझ लोगों को अपने साथ कर लेते हैं। बजाय यह कहने के कि वे परमेश्वर में विश्वास करते हैं, यह कहना अधिक उपयुक्त होगा कि वे अपने पूर्वजों में विश्वास करते हैं, वे अपने मन में स्थापित प्रतिमाओं में विश्वास करते हैं। ऐसे लोगों के लिये, जो यह कहते हैं कि वे परमेश्वर को मानते हैं, यह बेहतर होगा कि वे अपनी आंखें खोलें और देखें कि दरअसल विश्वास किस में करते हैं: तुम दरअसल परमेश्वर में विश्वास करते हो या शैतान में? यदि तुम्हें यह पता चल जाये कि तुम परमेश्वर में नहीं अपनी प्रतिमाओं में विश्वास करते हो, तो फिर बेहतर यही होगा कि तुम न कहो कि तुम विश्वासी हो। यदि तुम्हें पता ही नहीं की तुम किस में विश्वास करते हो तो फिर से, बेहतर होगा कि तुम न कहो कि तुम विश्वासी हो। वैसा कहना ईश-निंदा होगी! तुमसे कोई ज़बर्दस्ती नहीं कह रहा कि तुम परमेश्वर में विश्वास करो। मत कहो कि तुम लोग मुझमें विश्वास करते हैं, क्योंकि मैं यह सब पहले बहुत सुन चुका हूं और कोई इच्छा नहीं है कि फिर से सुनूं, क्योंकि तुम जिसमें विश्वास करते हो वे तुम लोगों के मन की प्रतिमाएं और तुम सबके मध्य स्थानीय दुर्दांत सांप हैं। वे जो सच्चाई सुनकर अपनी गर्दन न में हिलाते हैं, जो मौत की बातें सुनकर अत्यधिक मुस्कराते हैं, वे शैतान की संतान हैं, और नष्ट कर दी जाने वाली वस्तुएं हैं। ऐसे लोग कलीसिया में मौजूद हैं, जिनमें विवेक की कमी होती है, जब कुछ कपटपूर्ण घटित होता है, तो वे शैतान के साथ जा खड़े होते हैं। जब उन्हें शैतान का अनुचर कहा जाता है तो उन्हें लगता है कि उनके साथ अन्याय हुआ है। और कोई कोई कह सकता है कि उनमें विवेक नहीं है, लेकिन वे हमेशा उस पक्ष में खड़े होते हैं जहां सत्य नहीं है, ऐसा एक बार भी नहीं हुआ कि नाज़ुक समय पर वे कभी सत्य के पक्ष में खड़े हुए हों, ऐसा एक बार भी नहीं हुआ कि कभी सत्य के पक्ष में खड़े होकर दलील पेश की हो, तो क्या वाकई उनमें विवेक नहीं है? वे हमेशा शैतान के पक्ष में ही क्यों खड़े जाते हैं? वे कभी एक भी शब्द ऐसा क्यों नहीं बोलते जो सत्य के पक्ष में सही और उचित हो? ऐसी स्थिति क्या वाकई उनकी क्षणिक दुविधा के कारण पैदा होती है? जिस व्यक्ति में विवेक की जितनी कमी होगी, वह सत्य के पक्ष में उतना ही कम खड़ा हो पायेगा। इससे क्या ज़ाहिर होता है? क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होता कि विवेकशून्य व्यक्ति बुराई को गले लगाता है? क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होता कि विवेकशून्य लोग शैतान की निष्ठावान संतान हैं? वे शैतान के पक्ष में खड़े होकर उसी की भाषा क्यों बोलते हैं? उनका हर शब्द, हर कार्य, हर हाव-भाव पूरी तरह सिद्ध करता है कि वे कोई सत्य के प्रेमी नहीं हैं, बल्कि वे सत्य से घृणा करने वाले लोग हैं। शैतान के साथ उनका खड़ा होना पूरी तरह यह सिद्ध करता है कि ये लोग जो आजीवन शैतान की खातिर लड़ते रहते हैं, ऐसे तुच्छ राक्षस हैं जिन्हें शैतान वाकई चाहता है। क्या ये तथ्य पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं? यदि तुम वाकई सत्य प्रेमी हो, तो फिर तुम्हारे मन में ऐसे लोगों के लिये सम्मान क्यों नहीं है जो सत्य का अनुसरण कर रहे हैं,तो फिर तुम तुरंत ऐसे लोगों के पीछे क्यों भागने लगते हो जो किंचित-मात्र हाव-भाव बदलते ही सत्य का परित्याग कर देते हैं? यह समस्या क्या है? मुझे परवाह नहीं कि तुम में विवेक है या नहीं, मुझे परवाह नहीं कि तुमने कितनी बड़ी कीमत चुकाई है, मुझे परवाह नहीं कि तुम्हारी शक्तियां कितनी प्रबल हैं और न ही मुझे इस बात की परवाह है कि तुम स्थानीय दुर्जन सांप हो या ध्वज-धारी अगुआ हो। यदि तुम्हारी शक्ति अधिक है तो वह शैतान की ताकत की मदद से है; यदि तुम प्रतिष्ठावान हो तो वह महज़ इसलिये कि तुमतुम्हारे आस-पास ऐसे लोगों का जमावड़ा है जो सत्य का अनुसरण नहीं करते; यदि तुम निष्कासित नहीं किये गये हो तो वह इसलिये कि अभी निष्कासन का समय नहीं है, बल्कि अभी यह समय सफाया करने का है। तुम्हें निष्कासित करने की कोई जल्दी नहीं है। मुझे केवल उस दिन के आने की प्रतीक्षा करनी है जब तुम्हें दंडित करने के लिये हटा दिया जायेगा। जो कोई भी सत्य का पालन नहीं करता है, वह हटा दिया जायेगा!
जो लोग परमेश्वर में सच्चे मन से विश्वास करते हैं, वे लोग हैं जो परमेश्वर के वचनों को आत्मसात करने को तत्पर रहते हैं, और ये वे लोग हैं जो सत्य का पालन करने को तत्पर हैं। जो लोग सच्चे मन से परमेश्वर की गवाही देने को तैयार हैं, वे लोग हैं जो उनके वचनों का पालन करने को तत्पर हैं, और ये वे लोग हैं जो सच्चे मन से सत्य के पक्ष में खड़े हो सकते हैं। जो लोग चालबाज़ियों का सहारा लेते हैं और अन्याय करते हैं, उनमें लेश-मात्र भी सत्य नहीं होता और ऐसे लोग परमेश्वर को लज्जित करते हैं। जो लोग कलीसिया में रहकर वाद-विवाद करते हैं, वे शैतान के अनुचर हैं और उसी के मूर्तरूप हैं। इस प्रकार का व्यक्ति द्वेष से भरा होता है। जिन लोगों में विवेक नहीं होता और सत्य के पक्ष में खड़े होने का सामर्थ्य नहीं होता, उन सब के अंदर बुराई पल रही होती है और ऐसे लोग सत्य को कलंकित करते हैं। ऐसे ही लोग शैतान के खास नुमाइंदे होते हैं; ऐसे लोगों का कभी उद्धार नहीं होता और कहना न होगा कि ऐसे लोगों का सफाया हो जाता है। जो लोग सत्य का अनुसरण नहीं करते, और जो जानबूझकर कलीसियाओं को ध्वस्त करते हैं, उन्हें परमेश्वर के परिवार में बने रहने की अनुमति नहीं होनी चाहिये। लेकिन अभी निष्कासन के कार्य का समय नहीं है। अंतत: ऐसे लोगों का पर्दाफ़ाश होगा और वे हटा दिये जायेंगे। इन लोगों पर व्यर्थ का कार्य करने की आवश्यकता नहीं है; जिनका सम्बंध शैतान से है, वे सत्य के पक्ष में खड़े रहने के काबिल नहीं हैं, लेकिन जो सत्य की खोज में लगे हैं, वे सत्य के पक्ष में खड़े रह सकते हैं। जो सत्य का अनुसरण नहीं करते, वे सत्य वचन को सुनने और सत्य के लिये गवाही देने के काबिल नहीं हैं। सत्य उनके कानों के लिये नहीं है, बल्कि उनके सुनने के लिये है जो सत्य का पालन करते हैं। जब हर व्यक्ति का अंत उजागर किया जायेगा, तो उससे पूर्व उन लोगों को पहले किनारे कर दिया जायेगा जो कलीसियाको परेशान करते हैं और कार्य में बाधा उपस्थित करते हैं। एक बार कार्य पूरा हो गया तो उनको हटाने से पहले एक-एक करके ऐसे लोगों का पर्दाफ़ाश किया जायेगा। सत्य प्रदान करते समय, कुछ वक्त के लिये उन लोगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। जब इंसान के समक्ष पूर्ण सत्य प्रकाशित कर दिया जाये, तो उन लोगों को हटा दिया जाना चाहिये, क्योंकि यही वह समय होगा जब लोगों को उनके अनुरूप वर्गीकृत भी किया जायेगा। जो लोग विवेकशून्य होंगे, वे अपनी तुच्छ चालाकी के कारण दुष्ट लोगों के हाथों विनाश को प्राप्त होंगे और ऐसे लोग दुष्ट लोगों के द्वारा पथभ्रष्ट कर दिये जायेंगे तथा उनके लिये फिर लौटकर आना संभव न होगा। ऐसे लोगों के साथ इसी प्रकार पेश आना चाहिये, क्योंकि इन्हें सत्य से प्रेम नहीं है, क्योंकि ये सत्य के पक्ष में खड़े रहने के योग्य नहीं हैं, क्योंकि ये दुष्ट लोगों का अनुसरण करते हैं, ये दुष्ट लोगों के पक्ष में खड़े होते हैं, क्योंकि ये दुष्ट लोगों के साथ सांठ-गांठ करते हैं और परमेश्वर की अवमानना करते हैं। वे अच्छी तरह से जानते हैं कि दुष्ट लोगों के अंदर से दुष्टता प्रसारित होती है लेकिन वे अपना हृदय कड़ा कर लेते हैं और उन्हीं का अनुसरण करते हैं और सत्य के विपरीत चलते हैं। क्या ये तमाम लोग जो सत्य अनुसरण नहीं करते लेकिन विनाशकारी और घृणास्पद कार्यों में लगे हुए हैं, निंदनीय कार्य नहीं कर रहे हैं? हालांकि उनमें से कुछ ऐसे हैं जो "शासकों" की तरह पेश आते हैं और कुछ ऐसे हैं जो उनके पीछे चलते हैं, क्या परमेश्वर की अवमानना करने कि उनकी प्रवृत्ति एक-सी नहीं है? उनके पास यह कहने का क्या बहाना है कि परमेश्वर उनकी रक्षा नहीं करता? उनके पास यह कहने का क्या बहाना है कि परमेश्वर धर्मी नहीं है? क्या उनकी अपनी बुराई नहीं जो उनका विनाश कर देगी? क्या उनके खुद के विद्रोही तेवर ही उन्हें नरक में नहीं धकेल देंगे? जो सत्य का अभ्यास करते हैं, उन्हें अंत में बचा लिया जायेगा और सत्य के द्वारा उन्हें पूर्णता प्रदान कर दी जायेगी। जो सत्य का पालन नहीं करते, वे अंत में सत्य के द्वारा ही अपने विनाश को प्राप्त होंगे। जो सत्य का अनुसरण करते हैं और जो नहीं करते, इस प्रकार का अंत उनकी प्रतीक्षा कर रहा है। तो जो सत्य का अनुसरण करने की कोई योजना नहीं बना रहे, ऐसे लोगों को मेरी सलाह है कि वे यथाशीघ्र कलीसिया छोड़ दें ताकि उनके हाथों और अधिक पाप न हों। जब समय आयेगा तो पश्चाताप का अवसर भी हाथ से निकल चुका होगा, तथा ऐसे लोग तो और भी जल्दी छोड़कर चले जायें जो कलीसियामें रहकर गुटबाज़ी करते हैं और लोगों को बांटने का काम करते हैं तथा जो कलीसिया के अंदर दुर्जन नाग हैं। दुष्ट भेड़िये की प्रकृति के ऐसे लोग जो स्वयं को बदलने में असमर्थ हैं, बेहतर होगा वे कलीसिया से तुरंत चले जायें और फिर कभी भाई-बहनों के यथोचित जीवन में बाधा उपस्थित न करें और परमेश्वर के दंड से बचें। तुम में से जो लोग उनके साथ चले गये थे, वे आत्म-मंथन के लिए इस अवसर का प्रयोग करें। क्या तुम ऐसे दुष्टों के साथ कलीसिया से बाहर जाओगे या कलीसिया में रहकर पूरे समर्पण के साथ अनुसरण करोगे? इस बात पर तुम्हें बहुत गम्भीरता से सोचना है। मैं तुम सभी को एक और अवसर दे रहा हूं। मुझे तुम लोगों के उत्तर की प्रतीक्षा है।
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