तुम परमेश्वर में विश्वास क्यों करते हो? अधिकांश लोग इस प्रश्न से हैरान हैं। उनके पास व्यावहारिक परमेश्वर और स्वर्ग के परमेश्वर के बारे में हमेशा से बिलकुल दो भिन्न दृष्टिकोण रहे हैं, जो दिखाता है कि वे आज्ञापालन के लिए नहीं, बल्कि कुछ निश्चित लाभों को प्राप्त करने, या विपत्तियों के कष्ट से बच निकलने के लिए परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। केवल तभी वे थोड़ा बहुत आज्ञाकारी होते हैं, किन्तु उनकी आज्ञाकारिता सशर्त है, यह उनकी स्वयं की व्यक्तिगत भावी संभावनाओं के वास्ते है, और जो उन पर जबरदस्ती डाली जाती है। इसलिए: तुम परमेश्वर पर विश्वास क्यों करते हो? यदि यह केवल तुम्हारी संभावनाओं, और तुम्हारे भाग्य के लिए है, तो बेहतर है कि तुम विश्वास ही मत करो। इस प्रकार का विश्वास आत्म-वंचना, आत्म-आश्वासन, और आत्म-प्रशंसा है। यदि तुम्हारा विश्वास परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता की नींव पर नहीं बना है, तो अंततः तुम्हें परमेश्वर का विरोध करने के परिणामस्वरूप दण्डित किया जाएगा। वे सभी जो अपने विश्वास में परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता की खोज नहीं करते हैं परमेश्वर का विरोध करते हैं। परमेश्वर कहता है कि लोग सत्य की खोज करें, कि वे परमेश्वर के वचन के लिए प्यासे हों, और परमेश्वर के वचनों को खाएँ एवं पीएँ, और उन्हें अभ्यास में लाएँ, ताकि वे परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता को प्राप्त कर सकें।
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