पन्द्रहवाँ कथन
मनुष्य एक आत्मज्ञान रहित प्राणी है। फिर भी, स्वयं को जानने में असमर्थ वह इसके बावजूद अपनी हथेली के समान अन्य हर किसी को जानता है, मानो कि कुछ भी कहने या करने से पूर्व अन्य सभी उसके "निरीक्षण" से गुजरते हों या उसका अनुमोदन प्राप्त करते हों, इस प्रकार से मानो कि, उसने अन्य सभी की उनकी मनोवैज्ञानिक अवस्था तक पूर्ण रूप से माप ले ली हो। सभी मनुष्य इसी प्रकार के हैं। आज मनुष्य परमेश्वर के राज्य के युग में प्रवेश कर चुका है, परंतु उसका स्वभाव अपरिवर्तित रहा है।