2019-01-05

वास्तविकता पर अधिक ध्यान


हर व्यक्ति को परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने की संभावना है, इसलिए सभी को समझना चाहिए कि परमेश्वर की कौन सी सेवा सबसे ज्यादा परमेश्वर के प्रयोजनों के अनुरूप है। अधिकांश लोगों को यह नहीं पता है कि परमेश्वर में विश्वास करने का क्या अर्थ है और उन्हें पता नहीं है कि क्यों परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि अधिकांश लोगों को परमेश्वर के कार्य की या परमेश्वर की प्रबंधन योजना के उद्देश्य की समझ नहीं है।
वर्तमान तक, अधिकांश लोग अभी भी यह सोचते हैं कि परमेश्वर में विश्वास करना स्वर्ग जाने और उनकी अपनी आत्माओं को बचाने के बारे में है। उनको अभी भी परमेश्वर में विश्वास करने के विशेष महत्व के बारे में कुछ पता नहींहै, और इसके अलावा, उन्हें परमेश्वर की प्रबंधन योजना में उनके सबसे महत्वपूर्ण कार्य के बारे में कोई भी समझ नहीं है। अपने स्वयं के सभी प्रकार के कारणों के लिए, लोग परमेश्वर के कार्य में कोई रुचि नहीं लेते हैं और परमेश्वर के प्रयोजनों या परमेश्वर की प्रबंधन योजना के बारे में नहीं सोचते हैं। इस धारा के व्यक्तियों के रूप में, प्रत्येक व्यक्ति को यह जानना चाहिए कि परमेश्वर की संपूर्ण प्रबंधन योजना का उद्देश्य क्या है, वे तथ्य जो परमेश्वर ने पहले ही पूरे कर लिए हैं, परमेश्वर ने लोगों के इस समूह को क्यों चुना है, इसके लक्ष्य और महत्व क्या हैं, और परमेश्वर इस समूह में क्या प्राप्त करना चाहता है। महान लाल अजगर की भूमि में, परमेश्वर लोगों के एक ऐसे अप्रत्यक्ष समूह को बनाने में सक्षम हुआ है, और वह हर प्रकार से प्रयास करते हुए और पूर्णता देते हुए, अनगिनत वचन बोलते हुए, बहुत सारा कार्य और इतनी सेवारत वस्तुओं को भेजते हुए, अब तक कार्य करना जारी रखे हुए है। परमेश्वर द्वारा इतने विशाल कार्य को पूरा करने से, यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर के कार्य का महत्व कितना महान है। तुम लोग अभी तक इसे पूरी तरह से नहीं देख सकते हो। इसलिए, परमेश्वर ने जो कार्य तुम लोगों पर किया है उसे साधारण बात ना समझो; यह एक छोटी बात नहीं है। परमेश्वर ने आज तुम लोगों को जो कुछ दिखाया है, वही बस तुम लोगों के विचार करने और समझने के लिए पर्याप्त है। यदि तुम लोग अच्छी तरह से समझते हो तभी तुम लोग अधिक गहराई से अनुभव कर सकते हो और अपने जीवन में प्रगति कर सकते हो। लोग जो समझते हैं और अभी कर रहे हैं वास्तव में बहुत कम है और पूरी तरह से परमेश्वर के प्रयोजनों को संतुष्ट नहीं कर सकता है। यह मनुष्य की अपर्याप्तता है और अपने कर्तव्य को पूरा करने में विफलता है। यही कारण है कि जो परिणाम प्राप्त होना चाहिए था नहीं किया गया है। पवित्र आत्मा के पास इतने लोगों पर कार्य करने का कोई मार्ग नहीं है क्योंकि उनके पास परमेश्वर के कार्य की इतनी छिछली समझ है और वे परमेश्वर के घर के कार्य को कुछ मूल्यवान के रूप में नहीं मानते हैं। वे हमेशा बिना परिश्रम बस कार्य चलाने के लिए कार्य करते हैं, या नकल करते हैं उसकी जो अधिकांश लोग कर रहे हैं, या सिर्फ लोगों को दिखाते हैं कि वे "कार्य कर रहे हैं।" आज, इस धारा में प्रत्येक व्यक्ति यह याद करेगा कि तुम लोगों ने जो कुछ किया है क्या वह उतना ही है जितना तुम लोग कर सकते थे, और क्या तुम लोगों ने अपना पूरा प्रयास किया है। लोगों ने अपने कर्तव्यों को बिल्कुल भी पूरा नहीं किया है। ऐसा नहीं है कि पवित्र आत्मा परमेश्वर का कार्य नहीं करता है, परन्तु यह कि लोग अपना कार्य नहीं करते हैं, जिससे पवित्र आत्मा के लिये अपना कार्य करना असंभव हो जाता है। परमेश्वर अपने वचनों को व्यक्त करना समाप्त कर चुका है, परन्तु वे साथ नहीं चले हैं और बहुत पीछे छूट गए हैं, हर कदम के साथ पास रहने में असमर्थ हैं, मेमने के नक्शे कदमों का अनुसरण करने में असमर्थ हैं। जिसका उन्हें पालन करना चाहिए उन्होंने उसका पालन नहीं किया है; जिसका उन्हें अभ्यास करना चाहिए था उन्होंने अभ्यास में नहीं डाला है; जो उन्हें प्रार्थना करनी चाहिए थी उन्होंने प्रार्थना नहीं की है; जिसको उन्हें छोड़ देना चाहिए था उन्होंने नहीं छोड़ा है। उन्होंने इन चीजों में से कुछ भी नहीं किया है। इसलिए, भोज में जाने की यह बात खाली है और इसका कोई वास्तविक अर्थ नहीं है। यह लोगों की अपनी कल्पना में है। यह कहा जा सकता है कि वर्तमान में लोगों ने अपना कर्तव्य पूरी तरह से पालन नहीं किया है। सब कुछ परमेश्वर के स्वयं कहने और करने पर निर्भर है, जबकि लोगों का कार्य वास्तव में बहुत छोटा रहा है। वे सभी बेकार कचरा हैं जो परमेश्वर के साथ समन्वय करना नहीं जानते हैं। परमेश्वर ने सैकड़ों हज़ारों वचन कहे हैं, परन्तु लोगों ने उसको अभ्यास में नहीं डाला है, शरीर को त्यागने, विचारों को छोड़ने, सब बातों में आज्ञा का पालन करने, विवेक का विकास करने और साथ ही अंतर्दृष्टि प्राप्त करने से ले कर, अपने हृदय में लोगों की हैसियत को छोड़ने, अपने हृदय पर अधिकार करने वाली उन प्रतिमाओं को नष्ट करने, उन व्यक्तिगत इरादों के खिलाफ विद्रोह करने जो गलत हैं, अपनी भावनाओं के आधार पर कर्म नहीं करने, बिना पक्षपात के कार्य करने, परमेश्वर के हितों और दूसरों पर उनके प्रभाव के बारे में अधिक सोचने जब वे बोलें, परमेश्वर के कार्य को लाभ पहुँचाने वाली चीज़ें अधिक करने, अपने सभी कार्यों में परमेश्वर के घर को लाभान्वित करना ध्यान में रखने, अपनी भावनाओं को अपने व्यवहार को निर्धारित नहीं करने देने, अपने स्वयं के शरीर को संतुष्ट करने वाली वस्तुओं को छोड़ने, स्वार्थी पुरानी अवधारणाओं को दूर करने इत्यादि तक। लोग वास्तव में उन वचनों में से कुछ चीजों को समझते हैं जिनकी अपेक्षा परमेश्वर को उनसे है। परन्तु वे बिलकुल भी उन्हें अभ्यास में नहीं लाना चाहते हैं। और कैसे परमेश्वर उन पर कार्य और उन्हें स्थानांतरित कर सकता है? परमेश्वर की दृष्टि में विद्रोही परमेश्वर के वचनों को लेकर उसकी प्रशंसा करने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं ? वे परमेश्वर के भोजन को खाने की हिम्मत कैसे कर सकते हैं? मनुष्य की अंतरात्मा कहाँ है? उन्होंने अपने न्यूनतम कर्तव्यों को भी पूरा नहीं किया है जो उन्हें करना चाहिये था, इसलिए जो कुछ भी कर सकते हैं उसे करने की बात करना व्यर्थ है। क्या वे सपने देखने वाले नहीं हैं? अभ्यास के बिना वास्तविकता की कोई बात नहीं हो सकती है। यह सीधा-सा तथ्य है!
तुम लोगों को अब और अधिक यथार्थवादी पाठ का अध्ययन करना चाहिए। उस उच्च ध्वनि वाली, खाली बात की कोई आवश्यकता नहीं है जिसकी लोग प्रशंसा करते हैं। जब ज्ञान के बारे में बात करने की बात आती है, तो प्रत्येक व्यक्ति अगले से बढ़कर है, लेकिन अभी भी उनके पास अभ्यास करने का रास्ता नहीं है। कितने लोगों ने किसी भी चीज का अभ्यास किया है? कितने लोगों ने वास्तविक पाठ सीखे हैं? वास्तविकता के बारे में कौन सहभागिता कर सकता है? परमेश्वर के वचनों के ज्ञान की बात करने में सक्षम होना तेरा वास्तविक कद के बराबर होना नहीं है। यह केवल यह दिखाता है कि तू जन्म से चतुर और प्रतिभाशाली था। यह अभी भी व्यर्थ है अगर तू मार्ग नहीं दिखा सकता, और तू बस बेकार कचरा है! यदि तू अभ्यास करने के लिए एक वास्तविक पथ के बारे में कुछ भी नहीं कह सकता है तो क्या तू बहानेबाज़ी नहीं कर रहा है? यदि तू अपने वास्तविक अनुभव दूसरों को नहीं दे सकता है, जिससे उन्हें सबक का पाठ या अभ्यास का मार्ग मिल सके, तो क्या तू जालसाज़ी नहीं कर रहा है? क्या तू सिर्फ नकली नहीं है? तेरा क्या मूल्य है? ऐसा व्यक्ति केवल "समाजवाद के सिद्धांत का आविष्कारक" की भूमिका अदा कर सकता है, "समाजवाद को लाने वाले योगदानकर्ता" की नहीं। वास्तविकता के बिना होना सच्चाई के बिना होना है। वास्तविकता के बिना होना निकम्मा होना है। वास्तविकता के बिना होना चलता फिरता मृत होना है। वास्तविकता के बिना होना संदर्भ के तौर पर मूल्यविहीन "मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारक" होना है। मैं हर व्यक्ति से अनुरोध करता हूँ सिद्धांत की बात छोड़ कर कुछ वास्तविक चीज़ के बारे में बात करें, कुछ असली और ठोस बात, कुछ "आधुनिक कला" का अध्ययन करें, कुछ यथार्थवादी चीज़ के बारे में बोलें, कुछ वास्तविकता का योगदान करें और कुछ निष्ठा की भावना रखें। बोलते समय वास्तविकता का सामना करें और लोगों को खुश करने के लिए या अपने बारे में अलग तरीके से सोच लाने के लिए अवास्तविक और अतिरंजित बातें ना करें। उसका मूल्य क्या है? अपने आप के लिए लोगों में उत्साह पैदा करने का क्या औचित्य है? अपने भाषण में "कलात्मक" बनें, अपने आचरण में निष्पक्ष रहें, अपने कार्य में उचित रहें, लोगों को संबोधित करने में यथार्थवादी रहो, हर कार्य में परमेश्वर के घर को लाभान्वित करने में ध्यान रखें, अपनी अंतरात्मा को अपनी भावनाओं को निर्देशित करने दें, दया के बदले नफरत न करें, या दयालुता की एवज़ में कृतघ्न न हों, और एक ढोंगी ना बनें, ऐसा न हो कि तुम "बुरा प्रभाव" बन जाओ। जब तुम लोग परमेश्वर के वचन को खाते हो और पीते हो, तो उन्हें वास्तविकता के साथ जोड़ो, और जब तुम संवाद करते हो, यथार्थवादी चीज़ों के बारे में और अधिक बोलो और दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास न करो -परमेश्वर उसके विरुद्ध है। अधिक धैर्यवान और सहिष्णु रहो, अधिक स्वीकार करने का अभ्यास करो, लोगों के साथ उदार और खुले रहो, और "उदारवादी व्यक्ति की भावना" से सीखो।[क] जब तुम्हारे पास ऐसे विचार होते हैं जो अच्छे नहीं हैं, तो शरीर को त्याग करने का अधिक अभ्यास करो। जब तुम कार्य कर रहे हो, तो यथार्थवादी पथों के बारे में अधिक बोलो और बहुत घमंडी ना बनो नहीं तो यह लोगों की पहुंच से परे हो जायेगा। कम आनंद, अधिक योगदान-समर्पण की अपनी निस्वार्थ भावना दिखाओ। परमेश्वर के प्रयोजनों के प्रति अधिक ध्यान रखो, अपने विवेक की अधिक सुनो, और अधिक ध्यान रखो और यह ना भूलो कि हर दिन तुम लोगों के लिए चिंतित होकर परमेश्वर कैसे तुम लोगों को डांटता है। "पुराने पंचांग" को अधिक बार पढ़ो। अधिक प्रार्थना करो और अधिक सहभागिता करो। इतना अव्यवस्थित हो कर ना चलो, बल्कि अधिक समझ का प्रदर्शन करो और कुछ अंतर्दृष्टि प्राप्त करो। जब पाप का हाथ फैले तो, इसे वापस खींचो और इसे इतना विस्तार न करने दो। यह किसी कार्य का नहीं है! जो तुमको परमेश्वर से मिलता है वह शाप के अलावा कुछ भी नहीं है; सावधान रहो। अपने हृदय को दूसरों पर दया करने दो और हमेशा हाथों में हथियारों से नहीं मारो। दूसरों की सहायता करने की भावना रखते हुए अधिक दो और जीवन के बारे में और अधिक बात करो। अधिक करो और कम बोलो। खोज और विश्लेषण में कम और अभ्यास में अधिक ध्यान दो। पवित्र आत्मा द्वारा अधिक प्रेरित हो, और अपनी पूर्णता के लिए परमेश्वर को अधिक अवसर दो। अधिक मानव तत्वों को समाप्त करो - अब भी कार्य करने के बहुत सारे मानवीय तरीके हैं। सतही आचरण और व्यवहार अभी भी घृणास्पद हैं। उनको और अधिक समाप्त करो। तुम लोगों की मानसिक स्थिति अभी भी घृणास्पद है। उसे और अधिक सही करो। तुम्हारे हृदय में लोगों ने जो स्थिति बना ली है, वह अब भी बहुत अधिक है। परमेश्वर को अधिक प्रतिष्ठा दो और इतना अनुचित ना बनो। "मंदिर" पहले परमेश्वर की जगह है और उस पर लोगों द्वारा कब्ज़ा नहीं किया जाना चाहिए। संक्षेप में, धार्मिकता पर अधिक ध्यान दो और भावनाओं पर कम, और शरीर को समाप्त करना सबसे अच्छा है; वास्तविकता के बारे में अधिक बात करो और ज्ञान के बारे में कम, और चुप रहना सर्वोत्तम है; अभ्यास के पथ के बारे में और अधिक बोलो और बेकार की बात कम करो, और अब से शुरू करके अभ्यास शुरू करना सबसे अच्छा है।
परमेश्वर की लोगों से अपेक्षाएं बहुत बुलंद नहीं हैं। यदि लोग थोड़ा प्रयास करते हैं तो वे "उत्तीर्ण होने योग्य श्रेणी" प्राप्त कर सकेंगे। असल में, सत्य का अभ्यास करने के मुकाबले सत्य को समझना, जानना और स्वीकार करना अधिक जटिल है; सत्य को जानना और स्वीकार करना सत्य का अभ्यास करने के बाद आता है। यह पवित्र आत्मा के कार्य का चरण और तरीका है। तुम इसका पालन कैसे नहीं कर सकते हो? क्या तुम अपने तरीके से चीजें कर के पवित्र आत्मा का कार्य प्राप्त कर सकोगे? क्या परमेश्वर तुम्हारी इच्छा के आधार पर कार्य करता है, या तुम्हारे परमेश्वर के वचनों से तुलना किए जाने के बाद? यह व्यर्थ है अगर तुम इसे स्पष्ट रूप से नहीं देख सकते हो। ऐसा क्यों है कि अधिकांश लोगों ने परमेश्वर के वचनों को पढ़ने में काफी मेहनत की है लेकिन उनके पास केवल ज्ञान है और बाद में किसी वास्तविक पथ के बारे में कुछ नहीं कह पाते हैं? क्या तुम्हे लगता है कि ज्ञान होने का अर्थ सत्य का होना है? क्या यह एक उलझा हुआ दृष्टिकोण नहीं है? तुम उतना ज्ञान बोलने में सक्षम हो जितना कि समुद्र तट पर रेत है, फिर भी इसमें कोई वास्तविक पथ नहीं है। इस में, क्या तुम लोगों को मूर्ख नहीं बना रहे हो? क्या तुम सिर्फ बड़ी बड़ी बातें नहीं कर रहे हो? इस तरह से कार्य करना लोगों के लिए हानिकारक है! जितना ऊँचा सिद्धांत, उतना ही यह वास्तविकता से रहित है, और उतना अधिक लोगों को वास्तविकता में ले जाने में असमर्थ है; जितना ऊँचा सिद्धांत, उतना अधिक तुमसे परमेश्वर की उपेक्षा और उनका विरोध करवाता है। सबसे महान सिद्धांतों को अनमोल खजाने की तरह न समझो; वे घातक हैं, और किसी कार्य के नहीं है! हो सकता है कि कुछ लोग सबसे महान सिद्धांतों की बात करने में सक्षम हों- लेकिन ऐसे सिद्धांतों में वास्तविकता कुछ भी नहीं है, क्योंकि इन लोगों ने उन्हें व्यक्तिगत रूप से अनुभव नहीं किया है, और इस प्रकार उनके पास अभ्यास करने का कोई मार्ग नहीं है। ऐसे लोग मनुष्य को सही मार्ग पर ले जाने में असमर्थ हैं, और केवल लोगों को पथभ्रष्ट करेंगे। क्या यह लोगों के लिए हानिकारक नहीं है? कम से कम, तुमको वर्तमान परेशानियों को हल करने और लोगों को प्रवेश प्राप्त करने देने में सक्षम होना होगा; केवल यह भक्ति के रूप में मायने रखता है, और उसके बाद ही तुम परमेश्वर के लिए कार्य करने के लिए योग्य होगे। हमेशा भव्य, कल्पित शब्दों में बात न करो, और लोगों को बाध्य न करो और उन्हें अपनी अनुचित प्रथाओं के साथ अपना आज्ञापालन न करवाओ। ऐसा करने से कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, और यह केवल लोगों के भ्रम को बढ़ा सकता है। लोगों का इस तरह से नेतृत्व करने से कई तरह के नियम पैदा हो जायेंगे, जिससे लोग तुमसे घृणा करेंगे। यह मनुष्य की कमी है, और यह वास्तव में असहनीय है। इसलिए, अब मौजूद समस्याओं के बारे में अधिक बात करो। अन्य लोगों के अनुभवों को निजी संपत्ति न समझो और दूसरों को इसकी सराहना करने के लिए बाहर लाओ। तुमको व्यक्तिगत तरीके से कोई मार्ग खोजना होगा। प्रत्येक व्यक्ति को इसी चीज़ का अभ्यास करना चाहिए।
यदि तुम जो कहते हो वह लोगों को चलने का पथ दे सकता है, तो यह तुम्हारे पास वास्तविकता होने के बराबर है। तुम चाहे जो भीकहो, तुमको लोगों को अभ्यास में लाना होगा और उन सभी को मार्ग देना होगा जिसका वे अनुसरण कर सकें। यह केवल इसे ऐसा बनाने के बारे में नहीं है कि लोगों को ज्ञान हो, लेकिन अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि, यह चलने के लिए मार्ग हो। लोगों के परमेश्वर में विश्वास करने के लिए, उन्हें उस मार्ग पर चलना होगा जिस पर उन्हें परमेश्वर का कार्य ले जाता है। अर्थात्, परमेश्वर में विश्वास करने की प्रक्रिया वह पथ चलने की प्रक्रिया है जिस पर पवित्र आत्मा तुमको ले जाता है। तदनुसार, तुम्हारेपास एक ऐसा मार्ग होना चाहिए, जिस पर तुम चल सको चाहे कुछ भी हो, और तुम्हे परमेश्वर द्वारा पूर्ण किये जाने के मार्ग पर चलना होगा। इसे बहुत लंबा नाखींचो, और बहुत अधिक लिप्त न हो। यदि तुम बिना रुकावट के उस मार्ग पर चलते हो जिस पर परमेश्वर ले जाता है, तभी तुम पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त कर सकते हो और प्रवेश का मार्ग प्राप्त कर सकते हो। केवल यह परमेश्वर के प्रयोजनों के साथ ठीक बैठता है और मनुष्य के कर्तव्य को पूरा करने के मायने रखता है। इस धारा के व्यक्तियों के रूप में, प्रत्येक व्यक्ति को अपना कर्तव्य ठीक से पूरा करना चाहिए, वह अधिक करना चाहिए जो लोगों को करना चाहिए, और जानबूझकर कार्य नहीं करना चाहिए। कार्य करने वाले लोगों को अपने शब्दों को स्पष्ट करना चाहिए, अनुसरण करने वाले लोगों को कठिनाइयों का सामना करने और आज्ञापालन करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए, और प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्थान पर रहना चाहिए और कतार से बाहर नहीं जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में स्पष्ट होना चाहिए कि उसे कैसे अभ्यास करना चाहिए और किस कार्य को पूरा करना चाहिए। उस मार्ग पर चलो जिस पर पवित्र आत्मा ले जाता है; पथभ्रष्ट न हो या झूठ न बोलो। तुम लोगों को आज के कार्य को स्पष्ट रूप से देखना होगा। आज की कार्य पद्धति में प्रवेश करने का तुम लोगों को अभ्यास करना चाहिए। यह पहली चीज़ है जहाँ तुम लोगों को प्रवेश करना होगा। अन्य बातों पर और अधिक शब्दों को बर्बाद ना करो। आज परमेश्वर के घर का कार्य करना तुम लोगों की ज़िम्मेदारी है, आज की कार्यप्रणाली में प्रवेश करना तुम लोगों का कर्तव्य है, और आज के सत्य का अभ्यास करना तुम लोगों का भार है।


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