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2019-01-27

अंधकार के प्रभाव से बच निकलें और आप परमेश्वर द्वारा जीत लिए जाएँगे

अंधकार का प्रभाव क्या है?
अंधकार का तथा-कथित प्रभाव शैतान का बंधन है, शैतान का प्रभाव है, और यह वह प्रभाव है जिसमें मृत्यु का प्रभामण्डल है।
आपके ईमानदारी से परमेश्वर से प्रार्थना करने के बाद, आप अपना हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की ओर मोड़ दें, इस बिंदु पर, आपका हृदय परमेश्वर की आत्मा से प्रेरित है, आप अपने आप को पूरी तरह से देने के लिए तैयार हैं, और इस क्षण में, आप अंधकार के प्रभाव से बच निकले हैं।

2019-01-25

अध्याय 51

ओह! हे सर्वशक्तिमान परमेश्वर! आमेन! तुम में सब कुछ मुक्त है, सब कुछ स्वतंत्र है, सब कुछ खुला है, सब कुछ प्रकट है, सब कुछ उज्ज्वल है, कुछ भी छिपा हुआ या गुप्त नहीं है। तुम देहधारी सर्वशक्तिमान परमेश्वर हो। तुमने राजा बनकर शासन किया है। तुम खुले तौर पर प्रकट किये गए हो, अब तुम कोई रहस्य नहीं हो बल्कि सदा सर्वदा के लिए पूरी तरह से प्रकट किये गए हो!

2019-01-19

परिशिष्ट 2: द्वितीय कथन

जब लोग व्यवहारिक परमेश्वर को देखते हैं, जब वे व्यक्तिगत रूप से अपना जीवन उसके साथ जीते हैं, उसके साथ-साथ चलते हैं और परमेश्वर स्वयं के साथ ही रहते हैं, तो वे इतने सालों से, अपने दिल में पल रही उत्सुकता को दरकिनार कर देते हैं। परमेश्वर के जिस ज्ञान के बारे में पहले कहा गया था, वह केवल पहला कदम है; हालांकि लोगों को परमेश्वर का ज्ञान है, लेकिन फिर भी उनके हृदय में लगातार संदेह बना रहता है: परमेश्वर कहाँ से आया? क्या परमेश्वर खाता है?

2019-01-17

अनुभव पर

पतरस के सारे अनुभवों के दौरान, उसने सैकड़ों परीक्षाओं को सहन किया। हालांकि लोग अब परीक्षा शब्द के बारे में जानते हैं, लेकिन वे उसके सच्चे अर्थ या परिस्थितियों को बिल्कुल नहीं समझते हैं। परमेश्वर मनुष्य के संकल्प को बेहतर बनाता है, उसके आत्मविश्वास को परिष्कृत करता है, और उसके हर हिस्से को उत्तम बनाता है, और वो ज्यादातर इसे परीक्षाओं के माध्यम से हासिल करता है। परीक्षा,पवित्र आत्माका छिपा कार्य भी है।

2019-01-14

ग्यारहवें कथन की व्याख्या

मनुष्य की नग्न आँखों के लिए, ऐसा प्रतीत होता है कि इस अवधि में परमेश्वर के कथनों में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जो कि इसलिए है क्योंकि लोग उस व्यवस्था को समझने में असमर्थ हैं जिसके द्वारा परमेश्वर बोलता है, और उसके वचनों के संदर्भ को नहीं समझते हैं। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, लोग नहीं मानते कि इन वचनों में कोई नया रहस्य है; इस प्रकार, वे ऐस जीवन जीने में असमर्थ हैं जो असाधारण रूप से नए हैं, और इसके बजाय ऐसे जीवन जीते हैं जो गतिहीन और बेजान हैं। किन्तु परमेश्वर के कथनों में, हम देखते हैं कि इनमें गहरे स्तर का अर्थ है, ऐसा जो मनुष्य के लिए अथाह और अगम्य दोनों है।

2019-01-13

अध्याय 43

क्या मैंने तुम्हें याद नहीं दिलाया है? आशंकित मत हो; तुम सब इतने बेपरवाह हो कि तुम लोगों ने मेरी बात सुनी ही नहीं है! तुम मेरे दिल को कब समझ पाओगे? हर दिन एक नया प्रबोधन होता है, हर दिन नई रोशनी होती है। तुम लोगों ने कितनी बार इसे अपने लिए समझा है? क्या खुद मैंने तुम सभी को नहीं बताया है?

2019-01-11

पतरस ने यीशु को कैसे जाना

सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर कहते हैं:उस समय के दौरान जो पतरस ने यीशु के साथ बिताया, उसने यीशु में अनेक प्यारे अभिलक्षणों, अनेक अनुकरणीय पहलुओं, और अनेक ऐसी चीजों को देखा जिन्होंने उसे आपूर्ति की।
पतरस ने यीशु को कैसे जाना
उस समय के दौरान जो पतरस ने यीशु के साथ बिताया, उसने यीशु में अनेक प्यारे अभिलक्षणों, अनेक अनुकरणीय पहलुओं, और अनेक ऐसी चीजों को देखा जिन्होंने उसे आपूर्ति की। यद्यपि पतरस ने कई तरीकों से यीशु में परमेश्वर के अस्तित्व को देखा, और कई प्यारे गुण देखे, किन्तु पहले वह यीशु को नहीं जानता था। पतरस जब 20 वर्ष का था तब उसने यीशु का अनुसरण करना आरम्भ किया, और छः वर्ष तक वह ऐसा करता रहा।

2019-01-05

वास्तविकता पर अधिक ध्यान


हर व्यक्ति को परमेश्वर द्वारा पूर्ण किए जाने की संभावना है, इसलिए सभी को समझना चाहिए कि परमेश्वर की कौन सी सेवा सबसे ज्यादा परमेश्वर के प्रयोजनों के अनुरूप है। अधिकांश लोगों को यह नहीं पता है कि परमेश्वर में विश्वास करने का क्या अर्थ है और उन्हें पता नहीं है कि क्यों परमेश्वर पर विश्वास करना चाहिए। इसका मतलब यह है कि अधिकांश लोगों को परमेश्वर के कार्य की या परमेश्वर की प्रबंधन योजना के उद्देश्य की समझ नहीं है।

2019-01-04

अध्याय 42


सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कर्म कितने महान हैं! कितने आश्चर्यजनक! कितने अद्भुद! सात तुरहियाँ बजती हैं, सात गर्जनें भेजी जाती हैं, सात कटोरे उंडेले जाते हैं—यह तुरंत खुले तौर पर प्रकट होगा और इसमें कोई भी संदेह नहीं हो सकता है।

2019-01-02

दुष्ट को दण्ड अवश्य दिया जाना चाहिए

इस बात का निरीक्षण करना कि क्या तुम जो कुछ भी करते हो उसमें धार्मिकता का अभ्यास करते हो, और क्या तुम्हारी समस्त क्रियाओं की परमेश्वर द्वारा निगरानी की जाती है, ये परमेश्वर में विश्वास करनेवालों के स्वभावजन्य सिद्धांत हैं। तुम लोग धर्मी कहलाओगे क्योंकि तुम लोग परमेश्वर को संतुष्ट करने में सक्षम हो, और क्योंकि तुम लोग परमेश्वर की देखभाल और सुरक्षा को स्वीकार करते हो। परमेश्वर की नज़र में, वे सब जो परमेश्वर की देखभाल, सुरक्षा और पूर्णता को स्वीकार करते हैं और जो उसके द्वारा प्राप्त कर लिए जाते हैं, वे धर्मी हैं और परमेश्वर द्वारा प्यार से देखे जाते हैं। तुम लोग अभी इसी समय परमेश्वर के वचनों को जितना अधिक स्वीकार करते हो, उतना ही अधिक तुम परमेश्वर की इच्छा को प्राप्त करने और समझने में सक्षम हो जाते हो, और इस प्रकार तुम उतना ही अधिक परमेश्वर के वचनों को जी सकते हो और उसकी अपेक्षाओं को संतुष्ट कर सकते हो।

2019-01-01

अध्याय 41

कलीसिया में उत्पन्न होने वाली समस्याओं के बारे में इतनी सारी गलतफ़हमियां मत रखो। जब कलीसिया का निर्माण होगा, तो गलतियों से बचना असंभव रहेगा, लेकिन जब तुम समस्याओं का सामना करो तो घबराओ मत; शांत और स्थिर रहो। क्या मैंने तुम लोगों को यह नहीं बताया है? अक्सर मुझसे प्रार्थना करो, और मैं स्पष्ट रूप से तुम्हें अपने इरादे दिखाऊंगा।

2018-12-31

पतरस के जीवन पर

पतरस एक उदाहरण है जिसका परिचय परमेश्वर ने मानवजाति से करवाया था, और वह एक सुप्रसिद्ध व्यक्ति है। ऐसा क्यों है कि एक ऐसे साधारण व्यक्ति को परमेश्वर के द्वारा एक उदाहरण के रूप में रखा गया और जिसकी बाद में आने वाली पीढ़ियों के द्वारा प्रशंसा की गई? निस्संदेह, इसका उल्लेख किए जाने की आवश्यकता नहीं है कि यह परमेश्वर के लिए उसके प्रेम की अभिव्यक्ति और संकल्प से अलग नहीं किया जा सकता है। जहाँ कहीं परमेश्वर के लिए पतरस के प्रेमी हृदय को अभिव्यक्त किया गया और जो उसके जीवन भर का अनुभव था, हमें उस समय की संस्कृति पर एक नज़र डालने और उस समय के उस पतरस को देखने के लिए, हमें अनुग्रह के युग में लौटना होगा।
पतरस का जन्म किसानों के एक मध्यम स्तर के यहूदी घराने में हुआ था। उसके माता-पिता कृषि करने के द्वारा सम्पूर्ण परिवार का भरण-पोषण करते थे, और वह बच्चों में ज्येष्ठ था; उसके चार भाई-बहन थे। निस्संदेह, बताने के लिए यह कहानी का मुख्य भाग नहीं है-मात्र पतरस हमारा मुख्य पात्र है। जब वह पाँच वर्ष का था, उसके माता-पिता ने उसे पढ़ने की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। उस दौरान यहूदी लोग ज्ञानी हुआ करते थे-वे कृषि, उद्योग और वाणिज्य जैसे क्षेत्रों में बहुत ही उन्नति कर चुके थे। उस प्रकार के सामाजिक वातावरण के प्रभाव में, पतरस के माता-पिता, दोनों ने उच्चशिक्षा प्राप्त की थी। यद्यपि वे ग्रामीण क्षेत्र से थे, उनके पास ज्ञान का एक भण्डार था जो कि आज के विश्वविद्यालय के औसत विद्यार्थी से तुलनीय है। यह स्पष्ट है कि ऐसी सर्वोत्कृष्ट सामाजिक परिस्थितियों में जन्म लेना पतरस के लिए एक बहुत बड़ी आशिष थी। वह अत्यधिक बुद्धिमान था और नई बातों को बहुत ही सरलता से सीख लेता था। अपने विद्यालय जाना आरम्भ करने के पश्चात, वह बिना कोई प्रयास किए अन्य बातों का अनुमान लगा लेने के योग्य था। ऐसा बुद्धिमान पुत्र होने के कारण उसके माता-पिता गर्व करते थे, इसलिए उन्होंने इस आशा के साथ उसे विद्यालय जाने देने के लिए प्रत्येक प्रयास किया, कि वह आगे बढ़ सके और उस समय के समाज में किसी न किसी प्रकार का एक आधिकारिक पद प्राप्त करने योग्य हो पाए। इस पर ध्यान दिए बिना, पतरस ने परमेश्वर में रुचि को विकसित किया, इसका नतीजा यह हुआ कि जब वह चौदह वर्ष का था और माध्यमिक विद्यालय में था, तो जिस पुरातन यूनानी संस्कृति के पाठ्यक्रम का अध्ययन वह कर रहा था, उससे वह ऊब गया और वह विशेषतः पुरातन यूनानी इतिहास के कल्पित लोगों और वस्तुओं का तिरस्कार करता था। उसी समय से, पतरस, जिसने अपनी युवावस्था में प्रवेश किया ही था, ने मानव-जीवन को जाँचना और समाज के सम्पर्क में आना आरम्भ कर दिया। उसने उन पीड़ाओं का बदला नहीं चुकाया जो उसके माता-पिता ने अपनी अन्तरात्मा में उठाई थी। क्योंकि उसने स्पष्ट रीति से देख लिया था कि समस्त लोग स्वयं को मूर्ख बनाने का और निरर्थक जीवन जी रहे थे, वे प्रसिद्धि और सफलता के लिए लड़ने के द्वारा अपने ही जीवनों को बर्बाद कर रहे थे। उसका यह देखने का कारण मुख्यतः वह सामाजिक वातावरण था, जिसमें वह रह रहा था। लोगों के पास जितना अधिक ज्ञान होता है, उनके व्यक्तिगत सम्बन्ध उतने ही जटिल होते हैं, लोगों की भीतरी दुनिया उतनी ही जटिल होती है, जिससे ये जहाँ लोग होते हैं वहाँ उतना ही खालीपन होता है। इन परिस्थितियों में पतरस ने अपने खाली समय में हर जगह जाँच करनी आरम्भ कर दी, और जिनसे उसने पूछताछ की उनमें अधिक्तर लोग धार्मिक लोग थे। ऐसा प्रतीत हुआ की उसके हृदय में अस्पष्ट विचार था कि मानव संसार की सभी रहस्यमय बातें धार्मिक संसार से स्प्ष्ट की जा सकती हैं, अत: उसने आराधना सभा में भाग लेने के लिए अपने घर के निकट एक उपासनालय में निरन्तर जाना आरम्भ कर दिया‌। उसके माता-पिता इसके बारे में नहीं जानते थे, और बहुत पहले वाला पतरस, जो सर्वदा स्वभाव और पढ़ने में सर्वोत्तम था, उसने विद्यालय जाने से घृणा करना आरम्भ कर दिया। अपने माता-पिता की देखरेख में उसने बड़ी कठिनाई से माध्यमिक शिक्षा पूर्ण की। वह ज्ञान के सागर से तैरकर तट पर आ गया, एक गहरी साँस ली, और तब से उसे किसी ने शिक्षा नहीं दी और न ही उसे रोका।
जब उसने विद्यालय की पढ़ाई समाप्त की तो उसने सभी प्रकार की पुस्तकें पढ़नी आरम्भ कर दीं, परन्तु सत्रह वर्ष की आयु में, उसमें अभी भी सामाजिक अनुभव की कमी थी। जब वह स्नातक हो गया और विद्यालय छोड़ दिया, तो उसने कृषि के द्वारा अपना भरण पोषण किया, जिसके साथ-साथ पुस्तकें पढ़ने और धार्मिक आराधना सभाओं में भाग लेने में जितना समय वह व्यतीत कर सका उतना समय उसने व्यतीत किया। उसके माता-पिता, जिन्हें उससे भरपूर आशा थी, वे इस "विद्रोही पुत्र" के लिए निरन्तर परमेश्वर को कोसते रहते थे। परन्तु इसके बावजूद भी उसके हृदय को, जो धार्मिकता का भूखा और प्यासा था, रोका नहीं जा सका। उसने अनेक असफलताओं का अनुभव किया, परन्तु उसका कभी तृप्त न होने वाला हृदय था, अत: वह वर्षा के पश्चात की घास के समान विकसित हुआ। जल्द ही उसे धार्मिक संसार में उच्च स्तर के लोगों से भेंट करने की आशीष प्राप्त हुई, और क्योंकि उसका तृप्त न होने वाला हृदय इतना सशक्त था, उन लोगों के साथ उसका सम्पर्क और अधिक होता गया और वह निरन्तर उनसे मिलने लगा और वह लगभग अपना सम्पूर्ण समय उनके मध्य ही व्यतीत करता था। जब वह अपनी सन्तुष्ट होने की प्रसन्नता में डूबा हुआ था, उसे अचानक ही ज्ञात हुआ कि उन लोगों के मध्य, अधिक्तर लोगों का विश्वास मात्र शब्दों तक ही था, परन्तु उनमें से कोई भी अपने हृदयों में समर्पित नहीं था। अपने खरे और साधारण हृदय के साथ, पतरस ऐसे प्रहार का सामना कैसे कर सकता था? उसे ज्ञात हो गया कि जिन समस्त लोगों के साथ वह व्यवहार करता था, उनमें से लगभग सब मानवीय वेशभूषा में जानवर थे-मानवीय अभिव्यक्तियों में वे जानवर थे। उस समय पतरस बहुत ही सीधा-सादा व्यक्ति था, अत: अनेक अवसरों पर उसने हृदय से याचना की, परन्तु सम्भवतः धूर्त, कपटी धार्मिक लोग शक्ति और उत्साह से भरपूर एक युवक की याचनाओं को कैसे सुन सकते थे? यही वह समय था जब पतरस ने मानव जीवन के खालीपन को अनुभव किया, और जैसे ही उसने जीवन के इस चरण में पहला कदम उठाया, वह असफल हो गया...। एक वर्ष पश्चात वह उस उपासनालय से निकल गया और अपना स्वतंत्र जीवन आरम्भ कर दिया।
18 वर्षीय पतरस एक असफलता झेलने के बाद, वह और अधिक परिपक्व और परिष्कृत हो गया था। उसकी युवावस्था का समस्त सीधा-सादापन गायब हो गया था, और उसकी युवावस्था की सभी निर्दोषता और सादापन उस असफलता के द्वारा क्रूरतापूर्वक समाप्त कर दी गया था। तभी से उसने एक मछुआरे के समान जीवन जीना आरम्भ कर दिया। उसके पश्चात, कोई भी देख सकता था, कि उसकी नाव पर लोग होते थे, जो उसके उपदेश को सुन रहे होते थे; जो वह उन्हें प्रचार कर रहा था; जीवनयापन के लिए वह मछलियाँ पकड़ता था और सभी स्थानों पर प्रचार करता था। जिस व्यक्ति को वह प्रवचन देता था, वह उसके उपदेश में पूरी तरह लीन हो जाता था, क्योंकि जो वह कहता था वह उस समय के साधारण लोगों के हृदयों के अनुसार ही था। सभी लोग उसकी विश्वासयोग्यता से अत्यधिक प्रभावित थे, और उसने प्राय: लोगों को अन्य लोगों के साथ हृदय से व्यवहार करना और प्रत्येक बात और सभी कार्यों में आकाशमण्डल और पृथ्वी के स्वामी को पुकारना और अपने विवेक को अनदेखा नहीं करना और उन अनाकर्षक कार्यों को न करना, अपितु परमेश्वर को तुष्ट करना सिखाता था, जिसे वे सब बातों में हृदय से प्रेम करते थे...। उसके उपदेशों को सुनने के पश्चात् लोग प्राय: गहराई से प्रभावित होते थे। वे सभी उससे प्रेरित होते थे और प्राय: फूट-फूटकर रोते थे। उस दौरान, प्रत्येक व्यक्ति जो उसका अनुगमन करता था, वह उसके प्रति गहन आदरभाव रखता था। वे सभी दीन-हीन थे, और उस समय के सामाजिक प्रभावों के कारण निस्संदेह उसके कुछ अनुगामी थे; वह भी उस समय के समाज के धार्मिक संसार से उत्पीड़न के अधीन था। नतीजतन वह लगातार इधर-उधर घूम रहा था, और दो वर्ष तक उसने एकाकी जीवनयापन किया था। उन दो वर्षों में असाधारण अनुभवों से उसने काफी परिज्ञान प्राप्त कर लिया था, और उसने अनेक बातें सीख ली थीं, जिन्हें वह पहले नहीं जानता था। जैसा वह 14 वर्ष की आयु में था उससे उस समय का पतरस पूरी तरह से एक भिन्न व्यक्ति था-ऐसा प्रतीत होता था कि उनमें कुछ भी एक समान नहीं था। उन दो वर्षों में उसकी भेंट सभी प्रकार के लोगों से हुई और उसने समाज के विषय में समस्त प्रकार के सत्यों को देखा; तभी से उसने धीरे-धीरे स्वयं को धार्मिक संसार के प्रत्येक प्रकार के रीति-रिवाजों से अलग कर लिया था। उस समय में पवित्र आत्मा के कार्य में झुकाव के कारण वह गहरी रीति से प्रभावित हुआ था। उस समय तक यीशु भी कुछ वर्षों तक कार्य कर चुका था, अत: उस समय उसका कार्य भी पवित्र आत्मा के कार्य के द्वारा प्रभावित था, हालाँकिअभी तक यीशु से उसकी भेंट नहीं हुई थी। इसी कारणवश, जब वह प्रचार कर रहा था, उसे अनेक बातें प्राप्त हुई थीं, जो सन्तों की पीढ़ियों के पास कभी नहीं थीं। निस्संदेह उस दौरान वह यीशु के विषय में थोड़ा बहुत जानता था, परन्तु उसे यीशु से आमने-सामने मिलने का अवसर कभी प्राप्त नहीं हुआ था। उसे अपने हृदय में पवित्र आत्मा से जन्मे उस स्वर्गीय व्यक्ति से मिलने की आशा और प्यास थी।
एक सन्ध्या (उस समय उल्लिखित गलील की झील के तट के निकट) गोधूली के समय वह अपनी नाव में मछलियाँ पकड़ रहा था, और यद्यपि उसके हाथ में मछली पकड़ने की छड़ी थी, उसके मन में दूसरी ही बातें चल रही थी। सन्ध्याकाल के प्रकाश ने फैले हुए सागर में जल की सतह को रक्त के जलाशय के समान जगमगा दिया था। रोशनी पतरस के युवा, परन्तु फिर भी शान्त और स्थिर, मुखमण्डल पर प्रतिबिम्बित हो रही थी, मानो वह गहरी सोच में था। उसी क्षण मन्द हवा चली, और उसे अचानक ही महसूस हुआ कि वह अकेला था, और इस प्रकार अचानक ही उसने अकेलेपन के भाव को अनुभव किया। सागर का जल एक लहर के पश्चात दूसरी लहर से रोशनी को प्रतिबिम्बित कर रहा था, और यह स्पष्ट था कि उसका मछली पकड़ने का मन नहीं था। जिस प्रकार वह सभी प्रकार की बातों के अपने विचारों में खोया हुआ था, उसने अचानक ही अपने पीछे किसी को कहते हुए सुना: "यहूदी शमौन, योना के पुत्र, तुम्हारे जीवन के दिन एकाकी हैं। क्या तुम मेरा अनुगमन करोगे?" जब पतरस ने यह सुना, वह चकित हो गया, और उसने अपने हाथों से मछली पकड़ने की छड़ी को गिरा दिया, और वह अतिशीघ्र जल के तल तक डूब गई। पतरस जल्दी से मुड़ा, और उसने देखा कि एक व्यक्ति उसकी नाव में खड़ा था। उसने उसे उपर से नीचे तक देखा: उसके कन्धे उसके बालों से ढके हुए थे, यह सूर्य के प्रकाश में हल्के स्वर्णिम पीले रंग के थे और उसके वस्त्र श्वेत थे। वह मध्यम लम्बाई का था और उसका पहनावा पूरी तरह से एक यहूदी व्यक्ति का था। सन्ध्याकाल के प्रकाश में उसके श्वेत वस्त्र कुछ काले दिखाई दे रहे थे, और उसके मुखमण्डल पर थोड़ी चमक प्रतीत हो रही थी। पतरस ने कई बार यीशु को देखने की कोशिश की थी, परन्तु हर बार ऐसा करने में अयोग्य रहा था। उस क्षण उसने अपनी आत्मा में विश्वास कर लिया कि वह व्यक्ति निश्चयत: वही पवित्र जन है जो उसके हृदय में था, इसलिए उसने अपनी नाव में ही दण्डवत किया: "क्या ऐसा हो सकता है कि तू वही प्रभु है जो स्वर्ग के राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने आया है? मैंने तेरे अनुभवों के बारे में सुना है, परन्तु मैंने तुझे कभी नहीं देखा था। मैं तेरा अनुगमन करना चाहता था, परन्तु मैं तुझे खोज नहीं पाया था।" यीशु पहले से ही उसकी नाव में आ गया और चुपचाप बैठ गया था। उसने कहा:[क] "उठ और मेरे साथ बैठ। मैं उन्हें खोजने आया हूँ जो मुझ से वास्तव में प्रेम करते हैं, और मैं स्वर्ग के राज्य का सुसमाचार फैलाने आया हूँ। मैं उन्हें खोजने के लिए प्रत्येक स्थान पर जा रहा हूँ, जिनका हृदय मेरे समान है। क्या तू इच्छुक है?" पतरस ने प्रत्युत्तर में कहा "मुझे अवश्य ही उसका अनुगमन करना है जिसे स्वर्गिक पिता के द्वारा भेजा गया है। मुझे अवश्य ही उसे अंगीकार करना है जिसे पवित्र आत्मा के द्वारा चुना गया है। क्योंकि मैं स्वर्गीय पिता से प्रेम करता हूँ, मैं अनुगमन करने का इच्छुक कैसे नहीं हो सकता?" यद्यपि पतरस के शब्दों में धार्मिक धारणाएँ बहुत ही सशक्त थीं, यीशु मुस्कुराया और सन्तुष्टि के साथ अपना सिर हिलाया। उस क्षण, उसके भीतर पतरस के लिए एक पिता के प्रेम की भावनाएँ बढ़ गईं थीं।
पतरस ने कुछ वर्षों तक यीशु का अनुगमन किया और उसने यीशु में अनेक बातों को देखा जो लोगों के पास नहीं थीं। एक वर्ष तक उसका अनुगमन करने के पश्चात, यीशु के द्वारा उसे बारह शिष्यों के मुखिया के रूप में चुना गया था। (निस्संदेह यह यीशु के हृदय की बात थी, और लोग इसे देख पाने में पूरी तरह से अयोग्य थे।) उसके जीवन में यीशु के प्रत्येक कार्य ने उसके लिए एक उदाहरण के रूप में कार्य किया, और विशेषत: यीशु के उपदेश उसके हृदय में बस गये थे। वह यीशु के प्रति अत्यधिक विचारशील और समर्पित था, और उसने यीशु के बारे में कभी शिकायत नहीं की थी। इसीलिए जहाँ कहीं यीशु गया वह यीशु का विश्वासयोग्य सहयोगी बन गया। पतरस ने यीशु की शिक्षाओं, उसके नम्र शब्दों, वह क्या खाता था, क्या पहनता था, उसकी दिनचर्या और उसकी यात्राओं पर ध्यान दिया। उसने प्रत्येक रीति से यीशु के उदाहरणों का अनुगमन किया। वह पाखण्डी नहीं था, परन्तु उसने अपनी सभी पुरानी बातें उतारकर फ़ेंक दी थी और कथनी और करनी में यीशु के उदाहरण का अनुगमन किया था। तभी उसे अनुभव हुआ कि आकाशमण्डल और पृथ्वी और सभी वस्तुएँ सर्वशक्तिमान के हाथों में थीं, और इसी कारण उसकी अपनी कोई पसन्द नहीं थी, परन्तु अपने उदाहरण के रूप में प्रत्येक कार्य उसने वैसे ही किया जैसे यीशु करता था। वह उसके जीवन से देख सका कि, जो यीशु ने किया, उसमें वह पाखण्डी नहीं था, और न ही उसने अपने विषय में डींगें मारी थीं, परन्तु इसके स्थान पर, उसने प्रेम के साथ लोगों को प्रभावित किया था। विभिन्न परिस्थितियों में पतरस देख सका कि यीशु क्या था। इसीलिए यीशु में प्रत्येक बात वह बात बन गयी जिसे बाद में पतरस ने अपने लिए आदर्श बनाया। अपने अनुभवों में, उसने यीशु की मनोरमता को और अधिक अनुभव किया। उसने ऐसा कुछ कहा: "मैंने सर्वशक्तिमान की खोज की और आकाशमण्डल और पृथ्वी और सभी बातों की अद्भुतता को देखा, और इसीलिए मुझ में सर्वशक्तिमान के लिए एक गहन मनोरमता का भाव था। परन्तु मेरे हृदय में वास्तविक प्रेम कदापि नहीं था और मैंने अपनी आँखों से सर्वशक्तिमान की मनोरमता को कभी नहीं देखा था। आज सर्वशक्तिमान की दृष्टि में मुझे उसके द्वारा कृपापूर्वक देखा गया है, और मैंने अन्ततः परमेश्वर की मनोरमता को अनुभव किया है, और अन्ततः जान लिया है कि परमेश्वर के द्वारा सभी वस्तुओं को बना देना ही वह कारण नहीं होगा, जिससे मानवजाति उससे प्रेम करेगी। मेरी दिनचर्या में मैंने उसकी असीमित मनोरमता को पा लिया; आज यह केवल इस स्थिति तक सीमित कैसे हो सकती थी?" जैसे-जैसे समय बीता, पतरस में भी बहुत सी मनोहर बातें पाई गईं। वह यीशु के प्रति अत्यधिक आज्ञाकारी था, और निस्संदेह उसने अनेक असफलताओं का सामना किया। जब यीशु उसे उपदेश के लिए अनेक स्थानों पर ले गया, उसने सर्वदा स्वयं को दीन किया और यीशु के उपदेशों को सुना। अपने अनुगमन किए जाने के वर्षों के कारण वह कभी भी अहंकारी नहीं हुआ। जब यीशु ने उसे अपने आने का कारण बताया कि वह क्रूस पर चढ़ाए जाने और अपने कार्य को पूरा करने आया है, वह निरन्तर बहुत ही उदास रहता और गुप्त स्थान में जाकर अकेले रोता था। परन्तु वह "दुर्भाग्यपूर्ण" दिन आ गया। यीशु के पकड़वाए जाने के पश्चात, पतरस अपनी मछली पकड़ने की नाव में अकेले ही रोता रहा और इसके लिए बहुत प्रार्थनाएँ कीं। परन्तु अपने हृदय में वह जानता था कि यह परमेश्वर पिता की इच्छा थी और इसे कोई नहीं बदल सकता था। प्रेम के कारण वह निरन्तर उदास था और रो रहा था-निस्संदेह यह मानव दुर्बलता है, अत: जब उसे ज्ञात हुआ कि यीशु को क्रूस पर चढ़ा दिया जाएगा, उसने यीशु से पूछा: "तेरे चले जाने के पश्चात क्या तू हमारे मध्य लौटेगा और हमारी देखभाल करेगा? क्या हम तुझे तब भी देख पाएँगे?" यद्यपि ये शब्द सरलमति के शब्द थे, और वे मानवीय भावनाओं से भी भरे हुए थे, यीशु पतरस की पीड़ा के अनुभव को जानता था, अत: अपने प्रेम के द्वारा उसने उसकी दुर्बलता को ध्यान में रखा: "पतरस मैंने तुझ से प्रेम किया है। क्या तू यह जानता है? यद्यपि जो तू कहता है उसमें कोई तर्क नहीं है, पिता ने प्रतिज्ञा की है कि मेरे पुनरुत्थान के पश्चात मैं 40 दिनों के लिए लोगों को दिखाई दूँगा। क्या तू विश्वास नहीं करता कि मेरा आत्मा तुम लोगों पर निरन्तर अनुग्रह करता रहेगा?" उसके पश्चात पतरस को कुछ आराम मिला, उसे सर्वदा यह बोध होता रहा कि जिसे सिद्ध समझा जाता था उसमें एक कमी थी। अत: यीशु के पुनरुत्थान के पश्चात, वह पहली बार उसे स्पष्ट रूप से दिखाई दिया, परन्तु पतरस को उसकी भावनाओं को निरन्तर थामे रखने से बचाने के लिए, यीशु ने उस महंगे भोजन को अस्वीकार कर दिया, जो पतरस ने उसके लिए तैयार किया था और वह पलक झपकते ही गायब हो गया। उस समय पतरस को यीशु की गहन समझ प्राप्त हुई, और उसने प्रभु यीशु को और अधिक प्रेम किया। अपने पुनरुत्थान के पश्चात, यीशु बारम्बार पतरस को दिखाई दिया। 40 दिनों के पश्चात, जब वह स्वर्ग में उठाया गया, वह पतरस को तीन बार दिखाई दिया। हर बार जब वह दिखाई दिया, तब पवित्र आत्मा का कार्य पूर्ण होने वाला और नया कार्य आरम्भ होने वाला था।
अपने सम्पूर्ण जीवनभर पतरस ने अपना जीवनयापन मछली पकड़ने के द्वारा किया, परन्तु इससे भी अधिक, वह सुसमाचार-प्रचार के लिए जीया। अपने अन्तिम दिनों में, उसने पहला और दूसरा पतरस की पत्रियाँ लिखीं, और उसने उस समय के फिलेदिलफिया की कलीसिया को अनेक पत्रियाँ लिखीं। उस समय के लोग उसके द्वारा अत्यधिक प्रभावित थे। उसने अपने विचारों के आधार पर कभी लोगों को उपदेश नहीं दिया, परन्तु उसने उन्हें जीवन की उपयुक्त आपूर्ति उपलब्ध करवाई। अपने जीवनकाल के दौरान वह यीशु की शिक्षाओं को कभी नहीं भूला-वह प्रेरित बना रहा। जब वह यीशु का अनुगमन कर रहा था, तो वह प्रभु के प्रेम का बदला अपनी मृत्यु के साथ चुकाने के लिए कृतसंकल्प था और यह की वह सभी बातों में यीशु के आदर्श का पालन करेगा। यीशु ने उससे इसकी प्रतिज्ञा की थी, अत: जब वह 53 वर्ष का था (यीशु से अलग होने के बीस से अधिक वर्षों के बाद), यीशु उसे उसका कृतसंकल्प याद दिलाने के लिए दिखाई दिया। उसके बाद के सात वर्षों में, पतरस ने अपना जीवन स्वयं को जानने में व्यतीत किया। इन सात वर्षों के पश्चात एक दिन, उसे उल्टा क्रूस पर चढ़ा कर, उसका असाधारण जीवन समाप्त कर दिया गया।

2018-12-30

अध्याय 40

तुम इतने सुस्त क्यों हो? तुम इतने सुन्न क्यों हो? बार-बार याद दिलाने पर भी तुम लोग नहीं जागते हो; यह मुझे परेशान करता है। सच में मेरे पास अपने पुत्रों को इस तरह देखने की भावनात्मक शक्ति नहीं है। मेरा हृदय यह कैसे सहन कर सकता है? आह! मुझे तुम लोगों को खुद अपने हाथ से सिखाना है। मेरी गति लगातार तेज हो रही है। मेरे पुत्रों! जल्दी उठो और मेरे साथ सहयोग करो।

2018-12-29

परमेश्वर के वचन के द्वारा सब कुछ प्राप्त हो जाता है

परमेश्वर भिन्न-भिन्न युगों के अनुसार अपने वचन कहता है और अपना कार्य करता है, तथा भिन्न-भिन्न युगों में, वह भिन्न-भिन्न वचन कहता है। परमेश्वर नियमों से नहीं बँधता है, और एक ही कार्य को दोहराता नहीं है, और न अतीत की बातों को लेकर विषाद करता है; वह ऐसा परमेश्वर है जो सदैव नया है, कभी पुराना नहीं होता है, और वह हर दिन नये वचन बोलता है। जिस चीज का आज पालन किया जाना चाहिए उसका तुम्हें पालन करना चाहिए; यही मनुष्य की जिम्मेवारी और कर्तव्य है। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि अभ्यास परमेश्वर की वर्तमान रोशनी और वास्तविक वचनों के आस-पास केन्द्रित हो।

2018-12-28

छठे कथन की व्याख्या

मानवजाति परमेश्वर के कथनों पर विस्मय से चुप हो जाती है जब उसे पता चलता है कि परमेश्वर ने आत्मा के क्षेत्र में एक महान कर्म किया है, ऐसा कुछ जिसके बारे में मनुष्य अक्षम है और जिसे केवल स्वयं परमेश्वर ही पूरा कर सकता है। इस कारण से, परमेश्वर एक बार पुनः मानवजाति के लिए उदारता के वचनों को प्रस्तुत करता है। जब लोगों के हृदय, यह सोचते हुए कि: "परमेश्वर दया या प्रेम से रहित एक परमेश्वर है, बल्कि ऐसा परमेश्वर जो मानवजाति को मार डालने के लिए समर्पित है; इसलिए उसे हम पर क्षमा क्यों दर्शानी चाहिए?

2018-12-26

अध्याय 39

अपनी आंखें खोलो और देखो और तुम हर जगह मेरी महान शक्ति को देख सकते हो! तुम हर जगह मेरे बारे में निश्चित हो सकते हो। ब्रह्मांड और उसका विस्तार मेरी महान शक्ति को फैला रहे हैं। मैंने जो वचन बोले हैं वे सभी मौसम के गर्म होने, जलवायु परिवर्तन, लोगों की विसंगतियों, सामाजिक गतिकी की अव्यवस्था और लोगों के हृदय की धूर्तता में सच हो गए हैं।

2018-12-24

पाँचवें कथन की व्याख्या

जब परमेश्वर मानवजाति से उन माँगों को करता है जिन्हें उनके लिए समझाना कठिन है, और जब उसके वचन सीधे मानव हृदय में चोट करते हैं और लोग अपने ईमानदार हृदयों को उसके आऩंद के लिए अर्पित करते हैं, तो परमेश्वर लोगों को विचार करने, संकल्प करने, और अभ्यास काएक मार्ग को खोजने का अवसर देता है। इस तरह, वे सभी जो उसके लोग हैं, एक बार फिर से, दृढ़ संकल्प में मुट्ठियाँ भींच कर, अपना पूरा अस्तित्व परमेश्वर को अर्पित कर देंगे। कुछ, संभवतः, कोई योजना तैयार कर सकते हैं और एक दैनिक कार्यक्रम बना सकते हैं, जब इस योजना को महिमान्वित करने और इसके निष्कर्ष में तेजी लाने के लिए, अपने हिस्से की ऊर्जा को परमेश्वर की प्रबंधन योजना के लिए समर्पित करते हुए, वे स्वयं को उत्तेजित करने और काम पर लगने के लिए तैयार करते हैं।

2018-12-23

एक सामान्य आत्मिक जीवन लोगों की सही मार्ग पर अगुवाई करता है

तुम लोग परमेश्वर के विश्वासी होने के मार्ग में बहुत ही थोड़ा चले हो, और तुम लोगों के लिए सही मार्ग पर प्रवेश करना अभी बाकी है, अतः तुम लोग परमेश्वर के स्तर को प्राप्त करने से अभी भी दूर हो।इस समय, तुम लोगों की क्षमता उसकी माँगों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है।तुम लोगोंकी योग्यता और साथ ही साथ तुम लोगों के आंतरिक भ्रष्ट स्वभाव के कारण तुम लोग हमेशा परमेश्वर के कार्य को लापरवाही के साथ देखते हो और इसे गंभीरता से नहीं लेते। यह तुम लोगों की सबसे बड़ी कमी है। इसकेसाथ-साथ, तुम लोग पवित्र आत्मा के मार्ग को ढूँढने में असमर्थ हो।

2018-12-20

केवल परमेश्वर को प्रेम करना ही वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करना है

आज, जैसे तुम लोग परमेश्वर को जानने और प्रेम करने की कोशिश करते हो, एक प्रकार से तुम लोगों को कठिनाई और परिष्करण से होकर जाना होगा और दूसरे में, तुम लोगों को एक मूल्य चुकाना होगा। परमेश्वर को प्रेम करने के सबक से ज्यादा कुछ भी गहरा सबक नहीं है और ऐसा कहा जा सकता है कि सबक जो मनुष्य जीवन भर विश्वास करने से सीखते हैं वह परमेश्वर को किस प्रकार से प्रेम करना होता है। अर्थात् यदि तू परमेश्वर पर विश्वास करता है तो तुझे उसे प्रेम करना होगा।

2018-12-18

सत्य का अभ्यास कीजिए जब एक बार आप लोग उसे समझ जाते हैं

परमेश्वर के कार्य और वचन का अभिप्राय तुम लोगों के स्वभाव में एक परिवर्तन लाना है; उसका उद्देश्य मात्र यह नहीं है कि तुम लोग उन्हें समझो या पहचानो और उन्हें अंत तक रखे रहो। उस व्यक्ति के समान जिसके पास प्राप्त करने की योग्यता है, तुम लोगों को परमेश्वर के वचन को समझने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर के अधिकतर वचन मानवीय भाषा में लिखे गए हैं जो समझने में बहुत आसान हैं। उदाहरण के लिए, तुम लोग जान सकते हो जो परमेश्वर तुमसे चाहता है कि तुम समझो और उसका अभ्यास करो; यह कुछ ऐसा है जिसे एक उचित व्यक्ति, जिसके पास समझने की क्षमता है, उसके करने योग्य होना चाहिए।परमेश्वर अब जो कहता है वह विशेष रूप से स्पष्ट और पारदर्शी है, और परमेश्वर बहुत सी चीज़ों, जिस पर लोगों ने विचार नहीं किया है, या मनुष्य की विभिन्न परिस्थितियों की ओर संकेत करता है