सभी लोगों को परमेश्वर के वचनों के कारण शुद्ध किया गया है। यदि देह-धारी परमेश्वर ना होता तो मानव जाति उस तरह से पीड़ित होने के लिए धन्य नहीं होती। इसे इस तरीके से भी देखा जा सकता है-वे लोग जो कि परमेश्वर के वचनों की परीक्षाओं को स्वीकार करने में सक्षम हैं, वे धन्य लोग हैं। लोगों की मूल क्षमता, उनके व्यवहार और परमेश्वर के प्रति उनकी अभिवृत्ति के आधार पर, वे इस प्रकार की शुद्धता प्राप्त करने के योग्य नहीं हैं। क्योंकि उनका उत्थान परमेश्वर द्वारा किया गया है, इसलिए उन्होंने इस आशीर्वाद का आनंद लिया है। लोग कहते थे कि वे परमेश्वर के चेहरे को देखने या उसके वचनों को सुनने के योग्य नहीं थे। आज यह पूरी तरह से परमेश्वर के उत्थान और उसकी दया के कारण है कि लोगों ने उसके वचनों की शुद्धि प्राप्त की है। यह हर एक व्यक्ति को आशीर्वाद है जो अंत के दिनों में रह रहा है—क्या तुम लोगों ने इसका व्यक्तिगत अनुभव किया है? किन पहलुओं पर लोगों को पीड़ित होना चाहिए और असफलताओं का सामना करना चाहिए यह परमेश्वर द्वारा नियत किया गया है, और यह लोगों की अपनी आवश्यकताओं पर आधारित नहीं है। यह बिल्कुल सत्य है। हर आस्तिक को परमेश्वर के वचनों की परीक्षाओं से गुजरने की और उसके वचनों के भीतर पीड़ित होने की क्षमता होनी चाहिए। क्या यह ऐसा कुछ है जिसे तुम लोग स्पष्ट रूप से देख सकतेहो? तो तुम्हारेद्वारा उठायी गयी पीड़ाएं आज के आशीर्वाद के साथ बदल दी गयी हैं; अगर तुम परमेश्वर के लिए पीड़ित नहीं होतेहो, तो तुम उसकी प्रशंसा प्राप्त नहीं कर सकते हो। हो सकता है तुमने अतीत में शिकायत की हो, परन्तु तुमने चाहे कितनी ही शिकायत की हो परमेश्वर को तुम्हारे बारे में वह याद नहीं है। आज आ गया है और कल के मामलों को देखने का कोई कारण नहीं है।
कुछ लोग कहते हैं कि वे परमेश्वर से प्रेम करने की कोशिश करते हैं लेकिन नहीं कर पाते हैं, और जब वे सुनते हैं कि परमेश्वर विदा होने वाला है तब उनके पास उसके लिए प्रेम होता है। कुछ लोग आम तौर पर सत्य को अभ्यास में नहीं डालते हैं, और जब वे यह सुनते हैं कि परमेश्वर क्रोध में विदा होने वाला है तो वे उसके सामने आते हैं और प्रार्थना करते हैं: "हे परमेश्वर! कृपया ना जाओ। मुझे एक मौकादो! परमेश्वर! मैंने तुमको अतीत में संतुष्ट नहीं किया है; मैं तुम्हारा ऋणी रहा हूँ और तुम्हारा विरोध किया है। आज मैं पूरी तरह से अपना शरीर और हृदय अर्पण करने के लिए तैयार हूँ ताकि मैं अंततः तुमको संतुष्ट और तुमसे प्रेम कर सकूं। मुझे फिर से ऐसा अवसर नहीं मिलेगा।" क्या तूने इस तरह की प्रार्थना की है? जब कोई इस तरह से प्रार्थना करता है, तो इसका कारण यह है कि उसकी अंतरात्मा परमेश्वर के वचनों से जागृत हुई है। मनुष्य सभी सुन्न और मंद बुद्धि हैं। वे ताड़ना और परिशोधन के अधीन हैं, फिर भी वे नहीं जानते कि परमेश्वर क्या पूरा कर रहा है। यदि परमेश्वर ऐसे कार्य नहीं करता, तो लोग अभी भी उलझे हुए होते; कोई भी लोगों के हृदय में आध्यात्मिक भावनाओं को प्रेरित नहीं कर पाता। यह केवल परमेश्वर के वचनों द्वारा लोगों को पहचानना और उन्हें उजागर करना है जिससे यह फल प्राप्त हो सकता है। इसलिए, सभी चीजें परमेश्वर के वचनों के कारण प्राप्त होती हैं और पूरी होती हैं, और यह केवल उसके वचनों के कारण है कि मानवता का परमेश्वर के प्रति प्रेम जागृत हुआ है। यदि लोग केवल अपने विवेक के आधार पर परमेश्वर से प्रेम करते तो उन्हें कोई परिणाम नहीं दिखाई देता। क्या अतीत में लोगों ने अपने विवेक के आधार पर परमेश्वर से प्रेम नहीं किया था? क्या कोई एक भी व्यक्ति ऐसा था जिसने परमेश्वर से प्रेम करने की पहल की थी? वे केवल परमेश्वर के वचनों के प्रोत्साहन के माध्यम से परमेश्वर से प्रेम करते थे। कुछ लोग कहते हैं: "मैंने इतने सालों से परमेश्वर का अनुसरण किया है और उसके अनुग्रह का इतना आनंद उठाया है, इतने सारे आशीर्वाद प्राप्त किये हैं। मैं उसके वचनों द्वारा शुद्धता और न्याय के अधीन रहा हूं। तो मैं बहुत कुछ समझ गया हूँ, और मैंने परमेश्वर के प्रेम को देखा है। मुझे उसका धन्यवाद करना चाहिए, मुझे उसका अनुग्रह चुकाना चाहिए। मैं मृत्यु से परमेश्वर को संतुष्ट करूंगा, और मैं अपने विवेक पर उसके लिए अपना प्रेम आधारित करूंगा।" यदि लोग केवल अपने विवेक की भावनाओं पर भरोसा करते हैं, तो वे परमेश्वर की सुंदरता को महसूस नहीं कर सकते हैं; अगर वे सिर्फ अपने विवेक पर भरोसा करते हैं, तो परमेश्वर के लिए उनका प्रेम कमजोर होगा। यदि तू केवल परमेश्वर का अनुग्रह और प्रेम चुकाने की बातकरता है, तो तेरे पास उसके लिए अपने प्रेम में कोई भी जोर नहीं होगा; उससे अपने विवेक की भावनाओं के आधार पर प्रेम करना एक निष्क्रिय दृष्टिकोण है। मैं यह क्यों कहता हूं कि यह एक निष्क्रिय दृष्टिकोण है? यह एक व्यावहारिक मुद्दा है। यह किस तरह का प्रेम है? क्या वह परमेश्वर को मूर्ख बनाने की कोशिश नहीं है और सिर्फ उसके लिए दिखावा नहीं है? अधिकांश लोगों का मानना है कि परमेश्वर से प्रेम करने के लिए कोई पुरस्कार नहीं है, और उससे प्रेम नहीं करने के लिए सभी को ताड़ना दी जाएगी, इसलिए कुल मिलाकर पाप न करना ही काफी अच्छा है। तो परमेश्वर से प्रेम करना और अपने विवेक की भावनाओं के आधार पर उसके प्रेम को चुकाना एक निष्क्रिय दृष्टिकोण है, और यह परमेश्वर के लिए किसी के हृदय से निकला स्वाभाविक प्रेम नहीं है। परमेश्वर के लिए प्रेम किसी व्यक्ति के हृदय की गहराई से एक वास्तविक मनोभाव होना चाहिए। कुछ लोग कहते हैं: "मैं स्वयं परमेश्वर के पीछे जाने और उसका अनुसरण करने के लिए तत्पर हूँ। अब परमेश्वर मुझे त्याग देना चाहता है लेकिन मैं अभी भी उसका अनुसरण करना चाहता हूं। वह मुझे चाहे या ना चाहे, मैं तब भी उससे प्रेम करता रहूंगा, और अंत में मुझे उसे प्राप्त करना होगा। मैं अपना हृदय परमेश्वर को अर्पण करता हूं, और चाहे वह कुछ भी करे, मैं अपने पूरे जीवन उसका अनुसरण करूंगा। चाहे कुछ भी हो, मुझे परमेश्वर से प्रेम करना होगा और उसे प्राप्त करना होगा; मैं तब तक आराम नहीं करूंगा जब तक मैं उसे प्राप्त नहीं कर लेता हूँ।" क्या तू इस तरह की इच्छारखता है?
परमेश्वर पर विश्वास करने का मार्ग उससे प्रेम करने का मार्ग है। यदि तू उस पर विश्वास करता है तो तुझको उससे प्रेम करना चाहिए; हालांकि, उससे प्रेम करना केवल अपने प्रेम का प्रतिदान करने या अपने विवेक की भावनाओं के आधार पर उससे प्रेम करने को संदर्भित नहीं करता है-यह परमेश्वर के लिए एक शुद्ध प्रेम है। ऐसे समय होते हैं जब लोग सिर्फ अपने विवेक पर भरोसा करते हैं और वे परमेश्वर के प्रेम को महसूस करने में सक्षम नहीं होते हैं। मैंने हमेशा क्यों कहा: "परमेश्वर की आत्मा हमारी आत्माओं को प्रेरित करे"? मैंने परमेश्वर से प्रेम करने के लिए लोगों के विवेक को प्रेरित करने की बात क्यों नहीं की? इसका कारण यह है कि लोगों का विवेक परमेश्वर की सुंदरता महसूस नहीं कर सकता है। यदि तू उन वचनों से आश्वस्त नहीं है, तो तू अपने विवेक का उपयोग उसके प्रेम को महसूस करने के लिए करसकता है, और उस पल में तेरे पास कुछ प्रबल प्रेरणा होगी, लेकिन फिर यह गायब हो जाएगी। यदि तू परमेश्वर की सुंदरता को महसूस करने के लिए केवल अपने विवेक का उपयोगकरता है, तो तेरे पास प्रार्थना करते समय प्रबल प्रेरणा होती है, लेकिन उसके बाद यह चली जाती है, बस गायब हो जाती है। इसका क्या अर्थ है? यदि तू केवल अपने विवेक का उपयोग करता है तो तू परमेश्वर के लिए अपने प्रेम को जागृत करने में असमर्थहोगा; जब तू वास्तव में अपने हृदय में उसकी सुंदरता महसूस करेगा तो तेरी आत्मा उसके द्वारा प्रेरित होगी, और केवल उसी समय तेरा विवेक अपनी मूल भूमिका निभाने में सक्षम होगा। इसका मतलब यह है कि जब लोग परमेश्वर द्वारा अपनी आत्माओं में प्रेरित हुए हैं और जब उनके हृदय ने ज्ञान और प्रोत्साहन प्राप्त किया है, यानी अनुभव प्राप्त करने के बाद ही, वे अपने विवेक के साथ परमेश्वर से प्रभावी रूप से प्रेम करने में सक्षम होंगे। अपने विवेक के साथ परमेश्वर से प्रेम करना गलत नहीं है—यह परमेश्वर को प्रेम करने का सबसे निम्न स्तर है। परमेश्वर के अनुग्रह के साथ नाममात्र को न्याय करने वाले मानव के न्यायोचित प्रेम करने का तरीका बिलकुल भी उसके सक्रिय प्रवेश को प्रेरित नहीं कर सकता है। जब लोग पवित्र आत्मा का कुछ कार्य प्राप्त करते हैं, यानी, जब वे अपने व्यावहारिक अनुभव में परमेश्वर का प्रेम देखते हैं और स्वाद लेते हैं, जब उन्हें परमेश्वर का कुछ ज्ञान होता है और वास्तव में देखते हैं कि परमेश्वर मानव जाति के प्रेम के कितने योग्य है और वह कितना प्यारा है, केवल तभी लोग परमेश्वर को सच्चाई से प्रेम करने में सक्षम होते हैं।
जब लोग अपने हृदय से परमेश्वर से संपर्क करते हैं, जब उनके हृदय पूरी तरह से उसकी ओर मुड़ने में सक्षम होते हैं, तो यह परमेश्वर के प्रति मानव प्रेम का पहला कदम है। यदि तू परमेश्वर से प्रेम करना चाहता है, तो तुझे सबसे पहले उसकी ओर अपना हृदय मोड़ने में सक्षम होना होगा। परमेश्वर की ओर अपना हृदय मोड़ना क्या है? ऐसा तब होता है जब तेरे हृदय में चल रही सभी चीज़ें परमेश्वर से प्रेम करने और उसे प्राप्त करने के लिए होती हैं, तो इससे पता चलता है कि तूने पूरी तरह से अपना हृदय परमेश्वर की ओर मोड़ लिया दिया है। परमेश्वर और उसके वचनों के अलावा, तेरे हृदय में लगभग और कुछ भी नहीं है (परिवार, धन, पति, पत्नी, बच्चे या अन्य चीज़ें)। अगर हैं भी, तो वे तेरे हृदय पर अधिकार नहीं कर सकती हैं, और तू अपने भविष्य की संभावनाओं के बारे में नहीं सोचता है, तू केवल परमेश्वर प्रेम के पीछे जाता है। उस समय तूने पूरी तरह से अपना हृदय परमेश्वर की ओर मोड़ दिया होगा। मान ले कि तू हमेशा यह सोचते हुए, अपने हृदय में अपने लिए योजना ही बना रहा है और हमेशा अपने निजी लाभ का पीछा कर रहा है कि: "मैं कब परमेश्वर से एक छोटा सा अनुरोध कर सकता हूं? कब मेरा परिवार धनी बन जाएगा? मैं कैसे कुछ अच्छे कपड़े प्राप्त कर सकता हूँ? ..." यदि तू उस स्थिति में रह रहा है तो यह दर्शाता है कि तेरा हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की ओर नहीं मुड़ा है। यदि तेरे हृदय में केवल परमेश्वर के वचन होते हैं और तू परमेश्वर से प्रार्थना कर सकता है और हर समय उसके करीब हो सकता है, जैसे कि वह तेरे बहुत करीब हो, जैसे परमेश्वर तेरे भीतर हो और तू उसके भीतर हो, यदि तू उस तरह की अवस्था में है, तो इसका मतलब है कि तेरा हृदय परमेश्वर की उपस्थिति में रहा है। यदि तू हर दिन परमेश्वर से प्रार्थना करता है और उसके वचनों को खाता और पीता है, हमेशा कलीसिया के कार्य के बारे में सोचता रहता है, यदि तू परमेश्वर के प्रयोजनों के प्रति विचार करता है, अपने हृदय का उससे सच्चा प्रेम करने और उसके हृदय को संतुष्ट करने के लिए उपयोग करता है, तो तेरा हृदय परमेश्वर का होगा। यदि तेरा हृदय अन्य कई चीजों में लिप्त है, तो इस पर अभी भी शैतान का कब्ज़ा है और यह वास्तव में परमेश्वर की ओर नहीं गया है। जब किसी का हृदय वास्तव में परमेश्वर की ओर चला गया है, तो उसके पास उसके लिए वास्तविक, स्वाभाविक प्रेम होगा और वह परमेश्वर के कार्य पर विचार करने में सक्षम होगा। यद्यपि वे अभी भी मूर्खता पूर्ण और विवेकहीन अवस्था में होंगे, वे परमेश्वर के घर के हितों के बारे में, उसके कार्य के लिए, और उसके स्वभाव में बदलाव के लिए विचार करने में सक्षम होंगे। उनका हृदय पूरी तरह से सही होगा। कुछ लोग हमेशा कलीसिया के ध्वज को लहराते रहते हैं चाहे वे कुछ भी करें; सच्चाई यह है कि यह उनके अपने फायदे के लिए है। उस तरह के व्यक्ति के पास सही तरह का उद्देश्य नहीं है। वह कुटिल और धोखेबाज है और वह जो कुछ भी करता है अपने निजी लाभ के लिए करता है। उस तरह का व्यक्ति परमेश्वर के प्रेम का अनुसरण नहीं करता है; उसका हृदय अब भी शैतान के अधीन है और परमेश्वर की ओर नहीं जा सकता है। परमेश्वर के पास उस तरह के व्यक्ति को प्राप्त करने का कोई मार्ग नहीं है।
परमेश्वर से वास्तव में प्रेम करने और उसके द्वारा प्राप्त किये जाने का पहला चरण है कि अपना हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की तरफ मोड़ दो। हर एक चीज़ में जो तू करता है, आत्म निरीक्षण कर और पूछ: "क्या मैं यह परमेश्वर के लिए प्रेम के हृदय के आधार पर कर रहा हूँ? क्या इसमें कोई निजी इरादा है? ऐसा करने में मेरा वास्तविक लक्ष्य क्या है?" यदि तू अपना हृदय परमेश्वर को सौंपना चाहता है तो तुझे पहले अपने हृदय को वश में करना होगा, अपने सभी प्रयोजनों को छोड़ देना होगा, और पूरी तरह से परमेश्वर के लिए समर्पित होना होगा। यह अपने हृदय को परमेश्वर को देने के अभ्यास का मार्ग है। अपने स्वयं के हृदय को वश में करने का क्या अभिप्राय है? यह अपने शरीर की ख़र्चीली इच्छाओं को छोड़ देना है, रुतबे के आशीर्वाद का लालच या सुविधाओं का लालच नहीं करना है, परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए कुछ करना है, और यह कि उनका हृदय पूरी तरह से उसके लिए हो, स्वयं के लिए नहीं। इतना काफी है।
परमेश्वर के लिए वास्तविक प्रेम हृदय के भीतर की गहराई से आता है; यह एक ऐसा प्रेम है जो केवल मानव जाति के परमेश्वर के ज्ञान के आधार पर ही मौजूद है। जब किसी का हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की ओर मुड़ जाता है तब उसके पास परमेश्वर के लिए प्रेम होता है, लेकिन ज़रूरी नहीं कि यह प्रेम शुद्ध हो और जरूरी नहीं कि यह पूरा हो। यह इसलिए है कि एक व्यक्ति के हृदय का परमेश्वर की तरफ पूरी तरह से मुड़ जाने में और उस व्यक्ति में परमेश्वर की वास्तविक समझ और उसके लिए एक वास्तविक श्रद्धा होने के बीच एक निश्चित दूरी है। किसी के लिए परमेश्वर के प्रति सच्चे प्रेम को प्राप्त करने और परमेश्वर के स्वभाव को जानने का तरीका अपने हृदय को परमेश्वर की ओर मोड़ना है। अपने सच्चे हृदय को परमेश्वर को दे देने के बाद, वो जीवन के अनुभव में प्रवेश करना शुरू कर देगा, और इस तरह से उसका स्वभाव बदलना शुरू हो जाएगा, परमेश्वर के लिए उसका प्रेम धीरे-धीरे बढ़ेगा, और परमेश्वर के बारे में उसका ज्ञान भी धीरे-धीरे बढ़ेगा। इसलिए जीवन के अनुभव के सही मार्ग पर आने के लिए परमेश्वर की तरफ अपना हृदय मोड़ना एक ज़रूरी शर्त है। जब लोग परमेश्वर के सामने अपने हृदय को रख देते हैं, तो उनके पास केवल उसके लिए लालसा का हृदय है परन्तु उसके लिए प्रेम का नहीं है, क्योंकि उनके पास उसकी समझ नहीं है। हालांकि इस परिस्थिति में उनके पास उसके लिए कुछ प्रेम है, यह स्वाभाविक नहीं है और यह सच्चा नहीं है। यह इसलिए है कि मनुष्य की देह से आने वाली कोई भी चीज एक भावनात्मक प्रभाव है और वास्तविक समझ से नहीं आती है। यह सिर्फ एक क्षणिक आवेग है और यह लंबे समय तक चलने वाली श्रद्धा नहीं हो सकती है। जब लोगों को परमेश्वर की समझ नहीं होती है, तो वे केवल अपनी पसंद और अपनी व्यक्तिगत धारणाओं के आधार पर उससे प्रेम कर सकते हैं; उस प्रकार के प्रेम को स्वाभाविक प्रेम नहीं कहा जा सकता है, न ही इसे वास्तविक प्रेम कहा जा सकता है। जब किसी का हृदय वास्तव में परमेश्वर की ओर मुड़ जाता है, तो वो सब कुछ में परमेश्वर के हितों के बारे में सोचने में सक्षम होता है, लेकिन अगर उसे परमेश्वर की कोई समझ नहीं हो तो वो सच्चा स्वाभाविक प्रेम करने में सक्षम नहीं होता है। वो बस सक्षम होता है कलीसिया के लिए कुछ कार्य को पूरा करने में और अपने कर्तव्य का थोड़ा पालन करने में, लेकिन यह आधार के बिना होता है। उस तरह के व्यक्ति का एक स्वभाव होता है जिसे बदलना मुश्किल है; यह वे सभी लोग हैं जो या तो सच्चाई का अनुसरण नहीं करते हैं, या उसे समझते नहीं हैं। यहां तक कि अगर कोई व्यक्ति पूरी तरह से अपने हृदय को परमेश्वर की तरफ मोड़ लेता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि उसका परमेश्वर से प्रेम का हृदय पूरी तरह से शुद्ध है, क्योंकि जिन लोगों के पास हृदय में परमेश्वर है, ज़रूरी नहीं है कि उनके हृदय में परमेश्वर के लिए प्रेम हो। इसका संबंध उन दोनों के बीच के अंतर से है जो परमेश्वर की समझ का अनुसरण करता है या जो नहीं करता है। एक बार किसी व्यक्ति को उसके बारे में समझ हो जाती है, तो यह दर्शाता है कि उसका हृदय पूरी तरह से परमेश्वर की तरफ मुड़ गया है, इससे पता चलता है कि उसके हृदय में परमेश्वर के लिए उसका सच्चा प्रेम स्वाभाविक है। केवल उस तरह का व्यक्ति ही है जिसके हृदय में परमेश्वर है। परमेश्वर के प्रति अपना हृदय मोड़ना सही मार्ग पर जाने के लिए, परमेश्वर को समझने के लिए और परमेश्वर के प्रति प्रेम को प्राप्त करने के लिए एक ज़रूरी शर्त है। यह परमेश्वर से प्रेम करने के अपने कर्तव्य को पूरा करने का एक चिह्नक नहीं है, न ही यह उसके लिए वास्तविक प्रेम रखने का एक चिह्नक है। किसी के लिए परमेश्वर के प्रति वास्तविक प्रेम को प्राप्त करने का एकमात्र तरीका है उसकी तरफ अपने हृदय को मोड़ना, जो कि पहली चीज़ है जो उसकी रचनाओं को करनी चाहिए। जो लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं वे सभी लोग हैं जो जीवन की खोज करते हैं, अर्थात्, जो लोग सच्चाई का अनुसरण करते हैं और जो लोग वास्तव में परमेश्वर को चाहते हैं; उन सभी को पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता प्राप्त हुई है और उसके द्वारा प्रेरित किये गए हैं। वे सब परमेश्वर द्वारा निर्देशित होने में सक्षम हैं।
जब कोई यह महसूस कर सकता है कि वह परमेश्वर का ऋणी हैं तो यह इसलिए है क्योंकि वह आत्मा द्वारा प्रेरित हुआ होता है; अगर उसे ऐसा महसूस होता है तो उसके पास लालसा का हृदय होगा और जीवन में प्रवेश करने का अनुसरण करने में सक्षम होगा। लेकिन यदि तू एक निश्चित चरण पर रुक जाता है, तो तू गहराई तक नहीं जा पायेगा; अभी भी शैतान की जाल में फंसने का जोखिम है, और एक निश्चित बिंदु तक पहुँचने के बाद तुझको शैतान द्वारा बंदी बना लिया जाएगा। परमेश्वर की रोशनी लोगों को स्वयं को जानने की अनुमति देती है, तत्पश्चात उन्हें परमेश्वर के प्रति अपना ऋण और उसके साथ सहयोग करने की तत्परता को महसूस करने देती है, और जो उसे पसंद नहीं हैं उन चीजों को त्यागने देती है। यह परमेश्वर के कार्य का सिद्धांत है। तुम सभी लोग अपने-अपने जीवन में बढ़ने को और परमेश्वर से प्रेम करने को तैयारहो, तो क्या तुमने अपने सतही तरीकों से छुटकारा पा लिया है? यदि तू केवल उन तरीकों से स्वयं को छुटकारा दिलाता है और तू किसी भी रुकावट का कारण नहीं बनता है या अपने आप दिखावा नहींकरता है, क्या यह वास्तव में तेरे अपने जीवन में बढ़ना है? यदि तेरे पास कोई सतही व्यवहार नहीं है लेकिन तू परमेश्वर के वचनों में प्रवेश नहीं करता है, तो इसका मतलब है कि तू ऐसा व्यक्ति है जिसके पास कोई सक्रिय प्रगति नहीं है। सतही व्यवहार को अपनाने की जड़ क्या है? क्या तेरे कार्य अपने जीवन में बढ़ने के लिए हैं? क्या तू परमेश्वर के लोगों में से एक होने के योग्य बनने का अनुसरण कररहा है? जिस पर भी तू ध्यान केंद्रित करेंगे वैसा ही जीवन जीएगा; यदि तू सतही तरीकों पर ध्यान केंद्रित करता है तो तेरा हृदय बाहर से केंद्रित होता है, और तेरे पास अपने जीवन में आगे बढ़ने का कोई मार्ग नहीं होगा। परमेश्वर स्वभाव में बदलाव की अपेक्षा रखता है, लेकिन तू हमेशा बाहरी चीजों का अनुसरण करता है; इस प्रकार के व्यक्ति के पास उसके स्वभाव को बदलने का कोई मार्ग नहीं होगा! अपने जीवन में परिपक्व होने से पहले हर किसी का एक निश्चित तरीका होता है और वह यह है कि उसे परमेश्वर के वचनों का न्याय, ताड़ना और पूर्णता स्वीकार करना होगा। यदि तेरे पास परमेश्वर के वचन नहीं हैं लेकिन तू केवल अपने आत्मविश्वास और इच्छा शक्ति पर भरोसा करता है, तो तू जो कुछ करता है वह सिर्फ उत्साह पर आधारित है। मतलब, यदि तू अपने जीवन में विकास चाहता है, तो तुझको परमेश्वर के वचनों को और अधिक खाना और पीना और अधिक समझना चाहिए। जो भी लोग उसके वचनों से पूर्ण हुए हैं वे उससे जीवन जीने में सक्षम हैं; जो लोग उसके वचनों की शुद्धि से नहीं गुज़रते हैं, जो उसके वचनों के न्याय से नहीं गुज़रते हैं, उसके उपयोग के लिए उपयुक्त नहीं हो सकते हैं। तो तुम लोग किस स्तर तक उसके वचनों का पालन करतेहो? अगर तुम लोग परमेश्वर के वचनों को खाते हो और पीते हो और अपनी स्वयं की स्थिति के साथ उसकी तुलना करने में सक्षम होतेहो, और मेरे उठाये गए मुद्दों के प्रकाश में अभ्यास का रास्ता खोजते हो, तो केवल तभी तुम लोगों का अभ्यास सही होगा। यह परमेश्वर के हृदय के अनुकूल भी होगा। केवल ऐसा कोई व्यक्ति जिसका इस प्रकार का अभ्यास है, वही है जिसकी परमेश्वर से प्रेम करने की इच्छा है।
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