परमेश्वर और मनुष्य के बीच सबसे बड़ा अंतर यह है कि परमेश्वर के वचन हमेशा सटीक सच्चाई बताते हैं, और कुछ भी छुपा नहीं है। इसलिए परमेश्वर के स्वभाव के इस पहलू को आज के प्रथम वचनों में देखा जा सकता है। एक पहलू यह है कि वे मनुष्य के सच्चे रंगों को उजागर करते हैं, और एक अन्य पहलू यह है कि वे स्पष्ट रूप से परमेश्वर के स्वभाव को प्रकट करते हैं।
ये इस बात के कुछ स्रोत हैं कि कैसे परमेश्वर के वचन परिणामों को प्राप्त करने में सक्षम हैं। हालाँकि, लोगों को यह समझ नहीं आता है, उन्हें परमेश्वर के वचनों में हमेशा बस स्वयं का पता चलता है, लेकिन उन्होंने परमेश्वर का "विश्लेषण" नहीं किया है। ऐसा लगता है मानो कि वे उसका अपमान करने से अत्यधिक डरते हैं, कि परमेश्वर उन्हें उनकी "सतर्कता" के कारण मार डालेगा। वास्तव में, जब अधिकांश लोग परमेश्वर के वचन को खाते और पीते हैं, तो यह एक नकारात्मक पहलू से है, एक सकारात्मक पहलू से नहीं है। यह कहा जा सकता है कि लोगों ने उसके वचनों के मार्गदर्शन के अधीन अब "विनम्रता और आज्ञाकारिता पर ध्यान केंद्रित करना" आरंभ कर दिया है। इससे यह देखा जा सकता है कि लोगों ने, उसके वचनों पर बिल्कुल ध्यान न देने से उसके वचनों की ओर अतिशय ध्यान देने तक, एक चरम से दूसरे पर जाना शुरू कर दिया है। फिर भी ऐसा कोई व्यक्ति कभी भी नहीं हुआ है, जो एक सकारात्मक पहलू से प्रवेश कर चुका हो, और कभी भी ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ है जिसने मनुष्य को परमेश्वर के वचनों पर ध्यान दिलवाने में परमेश्वर के लक्ष्य को सच में समझा हो। परमेश्वर जो कहता है उससे पता चलता है कि, उसे कलीसिया में सभी लोगों की वास्तविक स्थितियों को शुद्धता से, और बिना त्रुटि के समझने में समर्थ होने के लिए, कलीसिया की जिंदगी का व्यक्तिगत रूप से अनुभव करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि एक नई पद्धति अभी-अभी आरंभ की गई है, इसलिए सभी लोगों को अभी अपने नकारात्मक तत्वों से पूरी तरह पीछा छुड़ाना बाकी है; लाशों की गंध अभी भी पूरे कलीसिया में फैली हुई है। ऐसा लगता है मानो कि लोगों ने अभी-अभी दवा ली है और अभी भी भ्रम में हैं, और उन्हें अभी तक पूरी तरह से होश नहीं आया है। ऐसा लगता है मानो कि वे अभी भी मौत से डरे हुए हैं, जिसकी वजह से वे अभी भी अपने ख़ौफ़ के बीच में हैं और वे अपने आप को पार नहीं कर सकते हैं। "मनुष्य एक आत्मज्ञान रहित प्राणी है": यह वक्तव्य अभी भी कलीसिया निर्माण की पद्धति के आधार पर कहा जाता है। कलीसिया में, यद्यपि हर कोई परमेश्वर के वचनों पर ध्यान देता है, फिर भी उनके स्वभाव अभी भी गहराई से जड़ जमाए हुए हैं और वे स्वयं को मुक्त करने में असमर्थ हैं। यही कारण है कि लोगों का न्याय करने के लिए परमेश्वर अंतिम चरण से बोलने की पद्धति का उपयोग करता है ताकि वे परमेश्वर के वचनों की मार को स्वीकार कर लें, जबकि वे अत्यधिक अहँकारी हैं। भले ही लोग अथाह गड्ढे में पाँच महीनों के परिशोधन से गुज़रे, किन्तु उनकी वास्तविक स्थिति अब भी परमेश्वर को नहीं जानने वाले की है। वे अभी भी आत्मा में जंगली हैं—उन्होंने सिर्फ परमेश्वर की ओर अपनी संरक्षितता कुछ-कुछ बढ़ा ली है। केवल इस कदम में ही लोग परमेश्वर के वचनों को जानने के मार्ग में प्रवेश करना आरंभ करते हैं, इसलिए परमेश्वर के वचनों के सार के साथ संबंध बनाते समय, यह देखना कठिन नहीं है कि कार्य के पिछले चरण ने आज के लिए मार्ग प्रशस्त किया, और केवल आज ही सब कुछ सामान्यीकृत किया जा रहा है। लोगों की घातक कमजोरी, परमेश्वर के आत्मा को उसकी दैहिक अस्मिता से पृथक करने की चाह है ताकि वे, हमेशा विवश किए जाने से बच सकें, व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें। यही कारण है कि परमेश्वर मनुष्य का खुशी से इधर-उधर उड़ते हुए पक्षियों के रूप में वर्णन करता है। समस्त मानवजाति की यही वास्तविक स्थिति है। यही वह है जो समस्त मानवजाति को गिराना सबसे आसान बनाता है, जो खो जाना उनके लिए सबसे आसान बनाता है। इससे यह देखा जा सकता है कि शैतान मानवजाति में जो कार्य करता है वह इससे अधिक कुछ नहीं है। शैतान लोगों में जितना अधिक ऐसा करता है, उतनी ही अधिक सख्त उनसे परमेश्वर की अपेक्षाएँ होती हैं। वह आवश्यक बनाता है कि लोग उसके वचनों पर ध्यान दें और शैतान इसे नष्ट करने के लिए कड़ी मेहनत करता है। हालाँकि, परमेश्वर ने अपने वचनों पर अधिक ध्यान देने की लोगों को हमेशा याद दिलायी है; यह आध्यात्मिक दुनिया के युद्ध का शिखर है। इसे इस तरह से प्रस्तुत किया जा सकता है: परमेश्वर इंसानों में जो करना चाहता है बिल्कुल उसे ही शैतान नष्ट करना चाहता है, और शैतान जो नष्ट करना चाहता है, वह बिल्कुल भी छुपे बिना मनुष्य के माध्यम से व्यक्त होता है। परमेश्वर लोगों में जो करता है उसका स्पष्ट प्रदर्शन होता है—उनकी स्थिति बेहतर और बेहतर हो रही है। मानवजाति में शैतान का विध्वंस भी स्पष्ट रूप से प्रस्तुत होता है—वे अधिकाधिक भ्रष्ट हो रहे हैं तथा उनकी स्थिति नीचे और नीचे डूबती रही है। यदि यह पर्याप्त भयानक होती है, तो उन्हें शैतान के द्वारा कब्जे में लिया जा सकता है। यह कलीसिया की वास्तविक स्थिति है जिसे परमेश्वर के वचनों में प्रस्तुत किया गया है, और यह आध्यात्मिक दुनिया की भी वास्तविक स्थिति है। यह आध्यात्मिक दुनिया की गतिकी का एक प्रतिबिंब है। यदि लोगों को परमेश्वर के साथ सहयोग करने का विश्वास नहीं है, तो वे शैतान द्वारा कब्जा किए जाने के खतरे में हैं। यह एक तथ्य है। यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर के रहने के लिए अपने हृदय को पूरी तरह से अर्पित करने में सच में समर्थ हो सकता है, तो यह ठीक ऐसा है जैसा कि परमेश्वर ने कहा है: "मेरे सामने, मेरे आलिंगन की गर्माहट का स्वाद लेते हुए, मेरे आलिंगन में लेटा हुआ प्रतीत होता है।" यह दर्शाता है कि मानवजाति के बारे में परमेश्वर की अपेक्षाएँ ऊँची नहीं हैं—उसे सिर्फ इतनी ही आवश्यकता है कि वे उठें और उसके साथ सहयोग करें। क्या यह एक आसान और खुशी की बात नहीं है? और सिर्फ इस एक चीज ने सभी नायकों को चकरा दिया है? ऐसा लगता है मानो कि युद्धक्षेत्र के जनरलों को कशीदाकारी करने के लिए किसी ज़ियू लू[क] के पास बैठा दिया गया हो—ये "नायक" कठिनाई द्वारा गतिहीन हो गए हैं और उन्हें पता नहीं है कि उन्हें क्या करना चाहिए।
ये इस बात के कुछ स्रोत हैं कि कैसे परमेश्वर के वचन परिणामों को प्राप्त करने में सक्षम हैं। हालाँकि, लोगों को यह समझ नहीं आता है, उन्हें परमेश्वर के वचनों में हमेशा बस स्वयं का पता चलता है, लेकिन उन्होंने परमेश्वर का "विश्लेषण" नहीं किया है। ऐसा लगता है मानो कि वे उसका अपमान करने से अत्यधिक डरते हैं, कि परमेश्वर उन्हें उनकी "सतर्कता" के कारण मार डालेगा। वास्तव में, जब अधिकांश लोग परमेश्वर के वचन को खाते और पीते हैं, तो यह एक नकारात्मक पहलू से है, एक सकारात्मक पहलू से नहीं है। यह कहा जा सकता है कि लोगों ने उसके वचनों के मार्गदर्शन के अधीन अब "विनम्रता और आज्ञाकारिता पर ध्यान केंद्रित करना" आरंभ कर दिया है। इससे यह देखा जा सकता है कि लोगों ने, उसके वचनों पर बिल्कुल ध्यान न देने से उसके वचनों की ओर अतिशय ध्यान देने तक, एक चरम से दूसरे पर जाना शुरू कर दिया है। फिर भी ऐसा कोई व्यक्ति कभी भी नहीं हुआ है, जो एक सकारात्मक पहलू से प्रवेश कर चुका हो, और कभी भी ऐसा व्यक्ति नहीं हुआ है जिसने मनुष्य को परमेश्वर के वचनों पर ध्यान दिलवाने में परमेश्वर के लक्ष्य को सच में समझा हो। परमेश्वर जो कहता है उससे पता चलता है कि, उसे कलीसिया में सभी लोगों की वास्तविक स्थितियों को शुद्धता से, और बिना त्रुटि के समझने में समर्थ होने के लिए, कलीसिया की जिंदगी का व्यक्तिगत रूप से अनुभव करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि एक नई पद्धति अभी-अभी आरंभ की गई है, इसलिए सभी लोगों को अभी अपने नकारात्मक तत्वों से पूरी तरह पीछा छुड़ाना बाकी है; लाशों की गंध अभी भी पूरे कलीसिया में फैली हुई है। ऐसा लगता है मानो कि लोगों ने अभी-अभी दवा ली है और अभी भी भ्रम में हैं, और उन्हें अभी तक पूरी तरह से होश नहीं आया है। ऐसा लगता है मानो कि वे अभी भी मौत से डरे हुए हैं, जिसकी वजह से वे अभी भी अपने ख़ौफ़ के बीच में हैं और वे अपने आप को पार नहीं कर सकते हैं। "मनुष्य एक आत्मज्ञान रहित प्राणी है": यह वक्तव्य अभी भी कलीसिया निर्माण की पद्धति के आधार पर कहा जाता है। कलीसिया में, यद्यपि हर कोई परमेश्वर के वचनों पर ध्यान देता है, फिर भी उनके स्वभाव अभी भी गहराई से जड़ जमाए हुए हैं और वे स्वयं को मुक्त करने में असमर्थ हैं। यही कारण है कि लोगों का न्याय करने के लिए परमेश्वर अंतिम चरण से बोलने की पद्धति का उपयोग करता है ताकि वे परमेश्वर के वचनों की मार को स्वीकार कर लें, जबकि वे अत्यधिक अहँकारी हैं। भले ही लोग अथाह गड्ढे में पाँच महीनों के परिशोधन से गुज़रे, किन्तु उनकी वास्तविक स्थिति अब भी परमेश्वर को नहीं जानने वाले की है। वे अभी भी आत्मा में जंगली हैं—उन्होंने सिर्फ परमेश्वर की ओर अपनी संरक्षितता कुछ-कुछ बढ़ा ली है। केवल इस कदम में ही लोग परमेश्वर के वचनों को जानने के मार्ग में प्रवेश करना आरंभ करते हैं, इसलिए परमेश्वर के वचनों के सार के साथ संबंध बनाते समय, यह देखना कठिन नहीं है कि कार्य के पिछले चरण ने आज के लिए मार्ग प्रशस्त किया, और केवल आज ही सब कुछ सामान्यीकृत किया जा रहा है। लोगों की घातक कमजोरी, परमेश्वर के आत्मा को उसकी दैहिक अस्मिता से पृथक करने की चाह है ताकि वे, हमेशा विवश किए जाने से बच सकें, व्यक्तिगत स्वतंत्रता प्राप्त कर सकें। यही कारण है कि परमेश्वर मनुष्य का खुशी से इधर-उधर उड़ते हुए पक्षियों के रूप में वर्णन करता है। समस्त मानवजाति की यही वास्तविक स्थिति है। यही वह है जो समस्त मानवजाति को गिराना सबसे आसान बनाता है, जो खो जाना उनके लिए सबसे आसान बनाता है। इससे यह देखा जा सकता है कि शैतान मानवजाति में जो कार्य करता है वह इससे अधिक कुछ नहीं है। शैतान लोगों में जितना अधिक ऐसा करता है, उतनी ही अधिक सख्त उनसे परमेश्वर की अपेक्षाएँ होती हैं। वह आवश्यक बनाता है कि लोग उसके वचनों पर ध्यान दें और शैतान इसे नष्ट करने के लिए कड़ी मेहनत करता है। हालाँकि, परमेश्वर ने अपने वचनों पर अधिक ध्यान देने की लोगों को हमेशा याद दिलायी है; यह आध्यात्मिक दुनिया के युद्ध का शिखर है। इसे इस तरह से प्रस्तुत किया जा सकता है: परमेश्वर इंसानों में जो करना चाहता है बिल्कुल उसे ही शैतान नष्ट करना चाहता है, और शैतान जो नष्ट करना चाहता है, वह बिल्कुल भी छुपे बिना मनुष्य के माध्यम से व्यक्त होता है। परमेश्वर लोगों में जो करता है उसका स्पष्ट प्रदर्शन होता है—उनकी स्थिति बेहतर और बेहतर हो रही है। मानवजाति में शैतान का विध्वंस भी स्पष्ट रूप से प्रस्तुत होता है—वे अधिकाधिक भ्रष्ट हो रहे हैं तथा उनकी स्थिति नीचे और नीचे डूबती रही है। यदि यह पर्याप्त भयानक होती है, तो उन्हें शैतान के द्वारा कब्जे में लिया जा सकता है। यह कलीसिया की वास्तविक स्थिति है जिसे परमेश्वर के वचनों में प्रस्तुत किया गया है, और यह आध्यात्मिक दुनिया की भी वास्तविक स्थिति है। यह आध्यात्मिक दुनिया की गतिकी का एक प्रतिबिंब है। यदि लोगों को परमेश्वर के साथ सहयोग करने का विश्वास नहीं है, तो वे शैतान द्वारा कब्जा किए जाने के खतरे में हैं। यह एक तथ्य है। यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर के रहने के लिए अपने हृदय को पूरी तरह से अर्पित करने में सच में समर्थ हो सकता है, तो यह ठीक ऐसा है जैसा कि परमेश्वर ने कहा है: "मेरे सामने, मेरे आलिंगन की गर्माहट का स्वाद लेते हुए, मेरे आलिंगन में लेटा हुआ प्रतीत होता है।" यह दर्शाता है कि मानवजाति के बारे में परमेश्वर की अपेक्षाएँ ऊँची नहीं हैं—उसे सिर्फ इतनी ही आवश्यकता है कि वे उठें और उसके साथ सहयोग करें। क्या यह एक आसान और खुशी की बात नहीं है? और सिर्फ इस एक चीज ने सभी नायकों को चकरा दिया है? ऐसा लगता है मानो कि युद्धक्षेत्र के जनरलों को कशीदाकारी करने के लिए किसी ज़ियू लू[क] के पास बैठा दिया गया हो—ये "नायक" कठिनाई द्वारा गतिहीन हो गए हैं और उन्हें पता नहीं है कि उन्हें क्या करना चाहिए।
जिस किसी भी पहलू में मानवजाति से परमेश्वर की अपेक्षाएँ सबसे अधिक हैं, तो इसका अर्थ है कि मानवजाति पर शैतान के हमले उस पहलू में सबसे गंभीर होंगे, और सभी लोगों की स्थितियाँ इस माध्यम से प्रकट होती हैं। "… मेरे सामने खड़े, तुम लोगों में से कौन, शुद्ध बर्फ के जैसा गोरा, शुद्ध हरिताश्म के जैसा बेदाग़ होता?" सभी लोग अभी भी परमेश्वर को धोखा दे रहे हैं और उससे कुछ छुपा रहे हैं; वे अभी भी अपने अनूठे संदेहपूर्ण व्यापार को कर रहे हैं। उन्होंने परमेश्वर को संतुष्ट करने के लिए अपने हृदय को पूरी तरह से परमेश्वर के हाथों में नहीं सौंपा है, किन्तु वे अपने उत्साह के माध्यम से उसका पारितोषिक प्राप्त करना चाहते हैं। जब लोगों के पास स्वादिष्ट भोजन होता है, तो वे परमेश्वर को एक तरफ खड़ा करवाते हैं, उसे अपनी दया पर छोड़ देते हैं। जब लोगों के पास खूबसूरत कपड़े होते हैं, तो वे अपनी स्वयं की सुंदरता का आनंद उठाते हुए दर्पण के सामने खड़े होते हैं, और अपने हृदय की गहराई से परमेश्वर को संतुष्ट नहीं करते हैं। जब उनकी प्रतिष्ठा होती है, जब उनके पास विलासितापूर्ण आनंद होते हैं, तो वे बस अपनी हैसियत में बैठते हैं और इसका आनंद लेना शुरू कर देते हैं, लेकिन वे परमेश्वर द्वारा उन्नति की वजह से स्वयं को विनम्र नहीं करते हैं। इसके बजाए, वे अपने आडंबरी वचनों का उपयोग करके ऊँचे स्थान पर खड़े हो जाते हैं और परमेश्वर की उपस्थिति पर ध्यान नहीं देते हैं, न ही वे परमेश्वर की बहुमूल्यता को जानने की खोज करते हैं। जब लोगों के हृदय में एक मूर्ति होती हैं या जब उनके हृदय अन्य के द्वारा अधिकार में ले लिए जाते हैं, तब वे पहले से ही परमेश्वर की उपस्थिति से इनकार कर चुके होते हैं, और ऐसा लगता है मानो कि परमेश्वर उनके हृदय में एक घुसपैठिया है। वे बहुत डरते हैं कि परमेश्वर उनके लिए अन्य लोगों के प्यार को चुरा लेगा और वे एकाकी महसूस करेंगे। परमेश्वर के इरादे के अनुसार, पृथ्वी पर ऐसा कुछ भी नहीं होगा जो लोगों से परमेश्वर को अनदेखा करवाएगा; यहाँ तक कि लोगों के बीच का प्यार भी परमेश्वर को उस "प्रेम" से दूर करने में सक्षम नहीं होगा। सभी पार्थिव चीजें खोखली हैं, यहाँ तक कि लोगों के बीच की भावनाएँ भी जिन्हें देखा नहीं जा सकता है या स्पर्श नहीं किया जा सकता है। परमेश्वर के अस्तित्व के बिना, सभी प्राणी समाप्त हो जाएँगे। पृथ्वी पर, सभी लोगों की अपनी स्वयं की चीजें हैं जिनसे वे प्रेम करते हैं, लेकिन एक भी ऐसा व्यक्ति कभी भी नहीं हुआ है जिसने परमेश्वर के वचनों को वह चीज़ बना दिया हो जिससे वह प्रेम करता हो। यह परमेश्वर के वचनों के बारे में लोगों की समझ का स्तर निर्धारित करता है। यद्यपि उसके वचन कठोर हैं, तब भी लोग घायल नहीं होते हैं क्योंकि वे असल में उसके वचनों पर ध्यान नहीं देते हैं, इसके बजाय वे इसे एक फूल की तरह देखते हैं। वे उसे स्वयं स्वाद लेने के लिए एक फल की तरह इसे नहीं मानते हैं, इसलिए वे परमेश्वर के वचनों के सार को नहीं जानते। "यदि मानवजाति वास्तव में मेरी तलवार की धार को देखने में सक्षम होती, तो वह चूहों की तरह तेजी से दौड़ कर अपने बिलों में घुस जाती।" एक सामान्य व्यक्ति की स्थिति के आधार पर बोलते हुए, परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद वे दंग रह जाएँगे, शर्म से भर जाएँगे, और दूसरों का सामना करने में असमर्थ होंगे। किन्तु अभी लोग ठीक विपरीत हैं—वे दूसरों के खिलाफ़ वार करने के लिए एक हथियार के रूप में परमेश्वर के वचनों का उपयोग करते हैं। उन्हें वास्तव में कोई शर्म नहीं आती है!
हमें परमेश्वर के इन वचनों के साथ इस स्थिति में लाया गया है: "राज्य के भीतर, न केवल कथन मेरे मुख से निकलते हैं बल्कि मेरे पाँव भी ज़मीन पर हर जगह औपचारिक रूप से चलते हैं।" परमेश्वर और शैतान के बीच युद्ध में, परमेश्वर मार्ग के हर कदम को जीत रहा है। वह संपूर्ण ब्रह्मांड भर में बड़े पैमाने पर अपने कार्य का विस्तार कर रहा है, और यह कहा जा सकता है कि उसके पदचिन्ह हर जगह हैं, और उसकी जीत के चिन्ह हर जगह देखे सकते हैं। शैतान की योजनाओं में, वह देशों को तोड़ कर अलग करने के द्वारा परमेश्वर के प्रबंधन को नष्ट करना चाहता है, किन्तु परमेश्वर ने पूरे ब्रह्मांड के पुनर्गठन के लिए इसका उपयोग किया है, किन्तु इसे मिटाने के लिए नहीं। परमेश्वर हर दिन कुछ नया करता है किन्तु लोग इसके बारे में अवगत नहीं रहते हैं। लोग आध्यात्मिक दुनिया की गतिकी पर ध्यान नहीं देते हैं, इसलिए वे परमेश्वर के नये कार्य को देखने में असमर्थ हैं "ब्रह्माण्ड के भीतर, हर चीज, हृदयस्पर्शी पहलू प्रस्तुत करते हुए जिससे इंद्रियाँ मुग्ध हो जाती हैं और आत्माओं का उत्थान हो जाता है, मेरी महिमा के तेज से नयी हो जाती है, मानो कि अब मनुष्य स्वर्ग से परे स्वर्ग में विद्यमान हो, शैतान से बाधारहित, बाहरी शत्रुओं के हमलों से मुक्त, जैसा कि मानवीय कल्पना में समझा जाता है।" यह पृथ्वी पर मसीह के राज्य के आनंदपूर्ण दृश्य की भविष्यवाणी करता है, और यह मानवजाति को तीसरे स्वर्ग की स्थिति का भी परिचय देता है: वहाँ शैतान की सेनाओं के किसी भी प्रकार के आक्रमण के बिना केवल परमेश्वर की पवित्र चीजों का अस्तित्व है। लेकिन जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह है लोगों को परमेश्वर स्वयं का पृथ्वी पर कार्य की परिस्थितियों को देखने की अनुमति देना: स्वर्ग एक नया स्वर्ग है, और उसके बाद पृथ्वी के पुरानेपन को बदल कर नया किया जाता है। क्योंकि यह परमेश्वर के स्वयं के मार्गदर्शन के अधीन जीवन है, इसलिए सभी लोग असीमित रूप से खुश हैं। लोगों की जानकारी में, शैतान मानवजाति का कैदी है और वे उसके अस्तित्व की वजह से बिल्कुल भी डरपोक या भयभीत नहीं हैं। दिव्य से सीधे निर्देश और मार्गदर्शन की वजह से, शैतान की सभी योजनाएँ शून्य हो गई हैं, जो यह भी साबित करता है कि यह अब और विद्यमान नहीं है, कि इसे परमेश्वर के कार्य द्वारा मिटा दिया गया है। यही कारण है कि यह कहा जाता है कि मनुष्य स्वर्गों से परे स्वर्ग में विद्यमान है। जो परमेश्वर ने कहा: "कभी भी कोई बाधा खड़ी नहीं हुई, न ही कभी ब्रह्माण्ड की एकता खंडित हुई है," वह आध्यात्मिक दुनिया की स्थिति के बारे में था। यही वह सबूत है जिससे परमेश्वर शैतान पर विजय की घोषणा करता है, और यह परमेश्वर की अंतिम जीत का चिन्ह है। कोई भी मनुष्य परमेश्वर का मन नहीं बदल सकता है, और कोई इसे जान नहीं सकता है। यद्यपि लोगों ने परमेश्वर के वचनों को पढ़ लिया है और उन्होंने इस पर सावधानीपूर्वक गंभीरता से विचार कर लिया है, चाहे जो भी हो, वे यह कहने में असमर्थ हैं कि इसका सार क्या है। उदाहरण के लिए, परमेश्वर ने कहा: "मैं तारों के ऊपर से उड़ती हुई छलांग लगाता हूँ, और जब सूर्य अपनी किरणों की बौछार करता है तो मैं हंस के पंखों जितने बड़े हिमकणों के झौंकों को अपने हाथों से नीचे बहाते हुए उसकी गर्मी को मिटा देता हूँ। परंतु जब मैं अपना मन बदलता हूँ, तो सारा बर्फ पिघल कर एक नदी बन जाता है। एक ही पल में, आकाश के नीचे सब ओर बसंत फूट पड़ता है, और हरित-मणी जैसी हरियाली समस्त पृथ्वी के भूदृश्य को रूपान्तरित कर देती है।" यद्यपि लोग इन वचनों की अपने मन में कल्पना करने में समर्थ हैं, किन्तु परमेश्वर का इरादा इतना सरल नहीं है। जब स्वर्ग के नीचे हर कोई उलझन में होता है, तो परमेश्वर, लोगों के हृदय को जागृत करते हुए, उद्धार की वाणी कथन करता है। किन्तु क्योंकि सभी प्रकार की आपदाएँ पड़ रही हैं, इसलिए वे दुनिया की उदासीनता को महसूस करते हैं इसलिए वे सभी मौत की तलाश करते हैं और ठंडी, बर्फीली गुफाओं में हैं। वे बड़े बर्फीले तूफ़ान की ठंड से इस स्थिति तक जम गए हैं कि वे जीवित नहीं रह सकते हैं क्योंकि पृथ्वी पर कोई गर्मी नहीं है। यह लोगों की भ्रष्टता की वजह से है कि लोग एक दूसरे को अधिक से अधिक निर्दयता से मार रहे हैं। और कलीसिया में, अधिसंख्य लोग बड़े लाल अजगर द्वारा एक ही घूँट में निगल लिए जाएँगे। सभी परीक्षणों के गुज़र जाने के बाद, शैतान का व्यवधान हटा दिया जाएगा। रूपांतरण के बीच में, पूरी दुनिया में, इस प्रकार वसंत व्याप्त हो जाएगा और गर्मजोशी से दुनिया आवृत हो जाएगी। दुनिया ऊर्जा से भरी होगी। ये सभी समस्त प्रबंधन योजना के कदम हैं। "रात" का अर्थ जो परमेश्वर ने कहा था उस बात को संदर्भित करता है जब शैतान का पागलपन अपने चरम पर पहुँचता है, जो कि रात के दौरान होगा। क्या यह वर्तमान स्थिति नहीं है? यद्यपि सभी लोग परमेश्वर के प्रकाश के मार्गदर्शन के अधीन जीवित रहते हैं, फिर भी वे रात के अँधेरे के दुःख से गुजर रहे हैं। यदि वे शैतान के बंधन से बच कर नहीं निकल सकते हैं, तो वे अनंतकाल तक अँधेरी रात के बीच रहेंगे। फिर पृथ्वी पर देशों को देखो: परमेश्वर के कार्य के कदमों के कारण, पृथ्वी पर स्थित देश "इधर उधर भाग रहे हैं," और वे सभी अपने स्वयं की उपयुक्त मंजिल की तलाश कर रहे हैं। क्योंकि परमेश्वर का दिन अभी तक नहीं आया है, इसलिए पृथ्वी पर सब कुछ अभी भी गंदी अशांति की स्थिति में हैं। जब परमेश्वर स्पष्ट रूप से पूरे ब्रह्मांड में प्रकट होगा, तो उसकी महिमा से सिय्योन पर्वत भर जाएगा और सभी चीजें उसके हाथों की व्यवस्था के अधीन व्यवस्थित और स्वच्छ हो जाएँगी। परमेश्वर के वचन न केवल आज की बात करते हैं बल्कि कल की भविष्यवाणी भी करते हैं। आज कल की नींव है, इसलिए इस वर्तमान स्थिति में लोग परमेश्वर के वचनों को पूरी तरह से समझने में असमर्थ हैं। केवल उसके वचनों के पूरी तरह से सम्पूर्ण होने के बाद ही वे उन्हें उनकी समग्रता से समझने में सक्षम होंगे।
परमेश्वर का आत्मा ब्रह्मांड में सभी जगह भरा हुआ है किन्तु वह सभी लोगों के भीतर भी कार्य करता है। इस तरह, ऐसा लगता है मानो कि लोगों के हृदय में परमेश्वर की आकृति हर जगह है, और हर स्थान में उसके आत्मा का कार्य समाविष्ट है। निस्संदेह, देह में परमेश्वर का प्रकटन शैतान के इन उदाहरणों को जीतना और अंत में उनको प्राप्त करना है। लेकिन देह में कार्य करते हुए, इन लोगों को रूपांतरित करने के लिए आत्मा भी देह के साथ सहयोग कर रहा है। यह कहा जा सकता है कि परमेश्वर के कार्य पूरे विश्व में फैले हुए हैं और कि उसके आत्मा से पूरा ब्रह्मांड भरा हुआ है, किन्तु उसके कार्य के कदमों के कारण, जो बुरा करते हैं उन्हें दंडित नहीं किया गया है, जबकि जो अच्छा करते हैं उन्हें पुरस्कृत नहीं किया गया है। इसलिए, उसके कर्मों की पृथ्वी पर सभी लोगों के द्वारा स्तुति नहीं की गई है। परमेश्वर सभी चीज़ों से ऊपर और उनके भीतर दोनों है, और उससे भी अधिक, वह सभी लोगों के बीच है। यह परमेश्वर के वास्तविक अस्तित्व को दर्शाने के लिए पर्याप्त है। क्योंकि वह स्पष्टरूप से मानवजाति के सामने प्रकट नहीं हुआ है, इसलिए लोगों ने भ्रम विकसित कर लिया है जैसे कि: "जहाँ तक मानवजाति का संबंध है, ऐसा प्रतीत होता है कि मेरा अस्तित्व वास्तविक है, और फिर भी ऐसा भी प्रतीत होता है कि मेरा व्यक्तित्व नहीं है।" अब तक, परमेश्वर पर विश्वास करने वाले सभी लोगों में से, कोई भी, एक सौ प्रतिशत निश्चित नहीं है कि परमेश्वर सच में विद्यमान है। वे सभी तीन हिस्सा संदेह और दो हिस्सा विश्वास करते हैं। यह मानवजाति की वास्तविक स्थिति है। अब सभी लोग निम्नलिखित परिस्थितियों में होते हैं: वे विश्वास करते हैं कि एक परमेश्वर है, किन्तु उन्होंने उसे नहीं देखा है। या, वे यह विश्वास नहीं करते हैं कि एक परमेश्वर है, लेकिन कई कठिनाइयाँ हैं जिन्हें मानवजाति द्वारा हल नहीं किया जा सकता है। ऐसा प्रतीत होता है कि वहाँ हमेशा उन्हें उलझन में डालने वाला कुछ है जिससे वे बच कर नहीं निकल सकते हैं। भले ही वे परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, ऐसा प्रतीत होता है कि वे हमेशा थोड़ी सी अस्पष्टता महसूस करते हैं। किन्तु यदि वे विश्वास नहीं करते हैं, तो उन्हें इसे खोने का भय होगा यदि यह वास्तव में सच होगा। यह उनकी दुविधा है।
"मेरे नाम के वास्ते, मेरे आत्मा के वास्ते, मेरी समस्त प्रबंधन योजना के वास्ते—कौन अपने शरीर की समस्त ताकत समर्पित करने में सक्षम है?" और उसने यह भी कहा: "आज, जब राज्य मनुष्यों के संसार में है, यही वह समय है कि मैं व्यक्तिगत रूप से मनुष्यों के संसार में आया हूँ। क्या कोई है जो, बहादुरी से, मेरी ओर से युद्ध क्षेत्र में जाता?" परमेश्वर के वचनों का लक्ष्य यह है: यदि देह में परमेश्वर सीधे उसका दिव्य कार्य नहीं करता, या यदि देहधारी परमेश्वर द्वारा नहीं, किन्तु वह मंत्रियों के माध्यम से कार्य करता, तो परमेश्वर बड़े लाल अजगर को जीतने में कभी भी समर्थ नहीं होता, और वह मानव जाति के बीच राजा के रूप में शासन करने में सक्षम नहीं होता। मानव जाति वास्तविकता में परमेश्वर स्वयं को जानने में समर्थ नहीं होगी, इसलिए यह अभी भी शैतान का शासन होगा। इस प्रकार, कार्य के इस चरण को परमेश्वर के देहधारी देह के माध्यम से अवश्य व्यक्तिगत रूप से किया जाना चाहिए। यदि देह बदल जाता तो योजना के इस चरण को कभी भी पूरा नहीं किया जा सकता था क्योंकि भिन्न-भिन्न देहों का महत्व और सार एक सा नहीं है। लोग इन वचनों के केवल शाब्दिक अर्थ को ही समझ सकते हैं क्योंकि परमेश्वर मूल को पकड़ता है। परमेश्वर ने कहा: "किंतु, हर चीज पर विचार किए जाने पर, कोई भी ऐसा नहीं है जो समझता हो कि क्या यह पवित्रात्मा का कार्य है, या देह की क्रिया है। यही अकेली बात एक जीवनकाल के दौरान मनुष्य के लिए सूक्ष्म विस्तार में अनुभव पाने हेतु पर्याप्त है।" लोगों को कई वर्षों तक लगातार शैतान द्वारा भ्रष्ट किया गया है, और उन्होंने आध्यात्मिक मामलों की धारणा को बहुत पहले ही खो दिया है। इस कारण से परमेश्वर के वचनों का सिर्फ एक वाक्य ही लोगों की आँखों के लिए दावत की तरह है। पवित्रात्मा और आत्माओं के बीच की दूरी के कारण, परमेश्वर पर विश्वास करने वाले सभी के पास उसके लिए लालसा की भावना है, और वे सभी करीब आने और अपने दिलों को उड़ेलने के इच्छुक हैं, फिर भी वे उसके संपर्क में आने का साहस नहीं करते हैं, और वे सिर्फ अचरज में रहते हैं। यह पवित्रात्मा के आकर्षण की सामर्थ्य है। क्योंकि परमेश्वर लोगों के प्यार करने के लिए एक परमेश्वर है, और उसमें उनके प्यार करने के लिए अनन्त तत्व हैं, इसलिए सभी लोग उसे प्यार करते हैं और वे सभी उस पर विश्वास करना चाहते हैं। वास्तव में, हर किसी के पास परमेश्वर के लिए प्रेम का हृदय है, यह केवल शैतान का व्यवधान है जिसने सुस्त, मंदबुद्धि, दयनीय लोगों को परमेश्वर को जानने में असमर्थ बना दिया है। यही कारण है कि परमेश्वर ने परमेश्वर की ओर मानवजाति की सच्ची भावनाओं को बताया: "मनुष्य ने अपने हृदय की अंतर्तम गहराईयों में मुझे कभी भी तिरस्कृत नहीं किया है, बल्कि, वह अपनी आत्मा की गहराई में मुझसे लिपटा रहता है। … मेरी वास्तविकता मनुष्य को अनिश्चित, अवाक् और व्यग्र कर देती है, और फिर भी वह सब स्वीकार करने के लिये तैयार है।" यह उन लोगों के हृदय की गहरी वास्तविक स्थिति है जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। जब लोग परमेश्वर को वास्तव में जान जाएँगे तो उनका उसके प्रति स्वाभाविक रूप से एक अलग रवैया होगा, और आत्मा की भूमिका के कारण वे अपने हृदय में गहराई से स्तुतियाँ कहने में समर्थ होंगे। परमेश्वर सभी लोगों की आत्माओं में गहरा है, किन्तु शैतान की भ्रष्टता के कारण उन्होंने भ्रमवश शैतान को परमेश्वर मान लिया है। आज परमेश्वर इसी पहलू से कार्य करता है, और यही आध्यात्मिक दुनिया की लड़ाई का शुरू से अंत तक केन्द्र बिन्दु रहा है।
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