पाँचवाँ कथन
जब मेरा आत्मा आवाज देता है, तो यह मेरे सम्पूर्ण स्वभाव को व्यक्त करता है। क्या तुम लोग इस बारे में स्पष्ट हो? इस बिंदु पर अस्पष्ट होना प्रत्यक्षतः मेरा विरोध करने के बराबर होगा। क्या तुम लोगों ने इसमें निहित महत्व को वास्तव में देखा है? क्या तुम लोगों को सच में पता है कि मैं तुम पर कितना प्रयास, कितनी ऊर्जा, व्यय करता हूँ? क्या तुम लोगों ने मेरे सामने जो कुछ भी किया है उसे साफ-साफ कहने का तुम लोगों में वास्तव में साहस है? और तुम लोगों में मेरे सामने अपने आप को मेरे लोग कहने की धृष्टता है—तुम लोगों में जरा सा भी शर्म का बोध नहीं है, किसी तर्क-शक्ति की बात तो दूर है! कभी न कभी, इस तरह के लोग मेरे घर से निर्वासित कर दिए जाएँगे। मेरे साथ तुम पुराने सिपाही के जैसे मत आओ, यह सोचते हुए कि तुम ने मेरी गवाही दी थी! क्या यह कुछ ऐसा है जिसे मानवजाति करने में समर्थ है? यदि तुम्हारे अभिप्रायों और तुम्हारे लक्ष्यों का कुछ भी शेष नहीं रहा होता, तो तुम बहुत पहले ही किसी भिन्न रास्ते पर चले गए होते। क्या तुम्हें लगता है कि मुझे पता नहीं है कि मनुष्य का हृदय कितना सँभाल सकता है? अब से आगे, तुम्हें सभी बातों में अभ्यास की वास्तविकता में प्रवेश करना चाहिए; मात्र अपनी बकवास करने से, जैसे कि तुम किया करते थे, अब और काम नहीं चलेगा। अतीत में, तुम लोगों में से अधिकतर मेरी छत के नीचे तुच्छ काम करने में कामयाब रहे; यह तथ्य कि आज तुम अडिग होने में सक्षम हो पूरी तरह से मेरे वचनों ही की तीव्रता के कारण है।