पवित्र आत्मा का काम दिन ब दिन बदलता जाता है, हर एक कदम के साथ ऊँचा उठता जाता है; आने वाले कल का प्रकाशन आज से भी कहीं ज़्यादा ऊँचा हो जाता है, कदम दर कदम और ऊपर चढ़ता जाता है। जिस कार्य के द्वारा परमेश्वर मनुष्य मनुष्य को सिद्ध करता है वह ऐसा ही है। यदि मनुष्य उस गति से चल न पाए, तो उसे किसी भी समय छोड़ा जा सकता है। यदि मनुष्य के पास आज्ञाकारी हृदय न हो, तो वह अंत तक अनुसरण नहीं कर सकता है। पुराना युग गुज़र गया है; अब एक नया युग है। और नए युग में, नया कार्य करना होगा। विशेषकर अंतिम युग में जहाँ मनुष्य को सिद्ध किया जाएगा, परमेश्वर पहले से ज़्यादा तेजी से नया काम करेगा। इसलिए, अपने हृदय में आज्ञाकारिता को धारण किए बिना, मनुष्य के लिए परमेश्वर के कदमों के निशानों के पीछे पीछे चलना कठिन होगा। परमेश्वर नियमों में बना नहीं रहता है, न ही वह अपने कार्य के किसी स्तर को अपरिवर्तनीय मानता है।
बल्कि, परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य हमेशा नया और हमेशा ऊँचा होता है। उसका कार्य हर एक कदम के साथ और भी अधिक व्यावहारिक होता जाता है, और मनुष्य की वास्तविक जरूरतों के और भी अधिक अनुरूप होता जाता है। जब मनुष्य इस प्रकार के कार्य का अनुभव करता है केवल तब ही वह अपने स्वभाव के अंतिम रूपान्तरण को हासिल कर पाता है। जीवन के विषय में मनुष्य का ज्ञान और अधिक ऊँचा होता जाता है, इसलिए परमेश्वर का काम भी और अधिक ऊँचा होता जाता है। केवल इसी तरह से मनुष्य सिद्धता को प्राप्त कर सकता है और परमेश्वर के इस्तेमाल के योग्य हो सकता है। एक ओर, मनुष्य की धारणाओं का सामना करने और उसको बदलने के लिए, और दूसरी ओर, ऊँचे और अधिक वास्तविक स्थिति में, और परमेश्वर पर विश्वास करने के सब से ऊँचे आयाम में मनुष्य की अगुवाई करने के लिए परमेश्वर इस तरह से काम करता है, और परमेश्वर की इच्छा पूरी हो जाती है। वे सभी जो अनाज्ञाकारी स्वभाव के हैं और जिनके पास प्रतिरोध करनेवाला हृदय है उन्हें इस तीव्र और सामर्थी कार्य में छोड़ दिया जाएगा; केवल वही जिनके पास आज्ञाकारी हृदय है और जो दीन होना चाहते हैं वे मार्ग के अंत तक बढ़ते जाएँगे। ऐसे कार्य में, तुम सभी को सीखना चाहिए कि समर्पण कैसे करें और अपनी धारणाओं को कैसे अलग रखें। हर एक कदम सावधानी से उठाना चाहिए। यदि तुम लोग लापरवाह हो, तो तुम लोग वाकई उनमें से एक बन जाओगे जिनसे पवित्र आत्मा घृणा करता है और अस्वीकार करता है और एक ऐसे व्यक्ति बन जाओगे जो परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी डालता है। कार्य के इस स्तर से गुज़रने से पहले, मनुष्य के पुराने समय के नियम और विधियाँ संख्या में इतनी अधिक थी कि उन्हें हटा दिया गया, और परिणामस्वरूप, वे अहंकारी हो गए और अपना स्थान भूल गए। परमेश्वर के नए कार्य को मनुष्य द्वारा स्वीकार करने के मार्ग में ये सभी बाधाएँ हैं और मनुष्य द्वारा परमेश्वर को जानने के विरोधी हैं। जब मनुष्य के हृदय में न तो आज्ञाकारिता है और न ही सत्य के लिए लालसा है तो यह उसके लिए खतरनाक है। यदि तू केवल उसी कार्य और सत्यका पालन करता है जो सरल हैं, और किसी गहरे अर्थ वाले कार्य या वचन को स्वीकार करने में असमर्थ है, तो तू उसके समान है जो पुराने मार्गों को थामें हुए है और पवित्र आत्मा के कार्य के साथ समान गति से नहीं चल सकता है। परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य समय की अलग अलग अवधियों में भिन्न होता है। यदि तू एक पहलु में बड़ी आज्ञाकारिता दिखाता है, फिर भी अगले पहलु में थोड़ी सी आज्ञाकारिता दिखाता है या कुछ भी नहीं दिखाता है, तो परमेश्वर तुझे छोड़ देगा। जब परमेश्वर यह कदम उठाता है और यदि तू परमेश्वर के साथ समान गति से चलता है, तो जब वह अगला कदम उठाता है तब तुझे निरन्तर समान गति से चलना होगा। केवल ऐसे ही लोग पवित्र आत्मा के प्रति आज्ञाकारी होते हैं। चूँकि तू परमेश्वर पर विश्वास करता है, तुझे अपनी आज्ञाकारिता में स्थिर बने रहना होगा। तू यूँ ही जब अच्छा लगे तभी आज्ञा नहीं मान सकता है और जब अच्छा न लगे तभी आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता है। इस प्रकार की अनाज्ञाकारिता परमेश्वर को मंजूर नहीं है। यदि तू उस नए कार्य के साथ, जिसके विषय में मैं ने बातचीत किया है, कदम से कदम मिला कर नहीं चल सकता है और लगातार पुरानी कहावतों को थामे रहता है, तो तेरे जीवन में उन्नति कैसे हो सकती है? परमेश्वर के कार्य में, वह अपने वचन के द्वारा तेरी जरूरतें प्रदान करता है। जब तू आज्ञा मानता है और उसके वचन को स्वीकार करता है, तब पवित्र आत्मा निश्चय तुझ में कार्य करेगा। पवित्र आत्मा बिलकुल उसी तरह काम करेगा जिस तरह मैं कहता हूँ। जैसा मैं ने कहा है वैसा कर, और पवित्र आत्मा शीघ्रता से तुझ में कार्य करेगा। मैं तुम लोगों के देखने के लिए एक नया प्रकाश भेजता हूँ और तुम लोगों को वर्तमान प्रकाश में ले आता हूँ। जब तू इस प्रकाश से होकर गुजरेगा, तो पवित्र आत्मा तुरन्त ही तुझ में कार्य करेगा। कुछ लोग अड़ियल हो सकते हैं और बोल सकते हैं, “जैसा तू कहता है मैं मात्र वैसा नहीं करूँगा।” तब मैं तुझे बताऊँगा कि अब यहाँ सड़क खत्म हो गई है। तू मुरझा गया है और तुझ में और जीवन नहीं बचा है। इसलिए, अपने स्वभाव के रूपान्तरण का अनुभव करते हुए, यह बहुत ही ज़्यादा निर्णायक हो जाता है कि तू उपस्थित प्रकाश के साथ कदम मिलाकर चले। पवित्र आत्मा न केवल उन खास मनुष्यों में कार्य करता है जो परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं, बल्कि कलीसिया में कहीं ज़्यादा काम करता है। वह किसी में भी कार्य कर सकता है। वह अभी तुझ में कार्य कर सकता है, और जब तू उसका अनुभव कर ले उसके बाद, वह किसी और में भी कार्य कर सकता है। बारीकी से अनुसरण कर; जितना अधिक तू वर्तमान प्रकाश का अनुसरण करेगा, उतना ही अधिक तेरा जीवन उन्नति करेगा। उनका अनुसरण कर जिनमें पवित्र आत्मा कार्य करता है, वह किसी भी प्रकार का व्यक्ति हो सकता है। उसके अनुभवों को अपने लिए ले, और तुझे उस से भी अधिक ऊँची चीजें प्राप्त होंगी। ऐसा करने से तू तेजी से उन्नति देखेगा। यह मनुष्य के लिए सिद्धता का मार्ग है और ऐसा मार्ग है जिस से होकर जीवन प्रगति करता है। सिद्धता के मार्ग को पवित्र आत्मा के कार्य के प्रति तेरी आज्ञाकारिता के जरिए पाया जाता है। तू नहीं जानता है कि तुझे सिद्ध करने के लिए परमेश्वर किस प्रकार के व्यक्ति के जरिए कार्य करेगा, न ही यह जानता है कि किस व्यक्ति, घटना, चीज़ के जरिए वह तुझे लाभ पहुँचाएगा और तुझे कुछ परिज्ञान प्राप्त करने के योग्य बनाएगा। यदि तू इस सही पथ पर चलने में सक्षम है, तो यह दिखाता है कि परमेश्वर के द्वारा तुझे सिद्ध करने की बड़ी आशा है। यदि तू ऐसा नहीं कर पाता है, तो यह दिखाता है कि तेरा भविष्य आनन्द रहित और एक प्रकार से अंधकारमय है। जब तू सही पथ पर चलता है, तो तुझे सभी चीज़ों में प्रकाशन दिया जाएगा। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पवित्र आत्मा दूसरों को क्या प्रकट करता है, यदि तू उसके ज्ञान के आधार पर अपने अनुभव में निरन्तर बना रहे, तो यह तेरा जीवन बन जाएगा, और इस अनुभव के कारण तू दूसरों की आपूर्ति करने में भी सक्षम होगा। जो वचनों को रटकर दूसरों की आपूर्ति करते हैं वे ऐसे लोग हैं जिनके पास कोई अनुभव नहीं है; तुझे अपने वास्तविक अनुभव और ज्ञान को बताने से पहले, दूसरों के प्रकाशन और ज्ञान के द्वारा, अभ्यास करने के एक तरीके को ढूँढ़ना सीखना होगा। यह स्वयं तुम्हारे जीवन के लिए अधिक लाभकारी होगा। जो कुछ परमेश्वर से आता है उसका पालन करते हुए, तुझे इसी तरह से अनुभव करना चाहिए। सभी चीज़ों में तुझे परमेश्वर की इच्छा को खोजना होगा और सभी चीज़ों में पाठ सीखना होगा, जो तुझे जीवन में उन्नति देगा। ऐसे अभ्यास शीघ्रता से उन्नति प्रदान करते हैं।
बल्कि, परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य हमेशा नया और हमेशा ऊँचा होता है। उसका कार्य हर एक कदम के साथ और भी अधिक व्यावहारिक होता जाता है, और मनुष्य की वास्तविक जरूरतों के और भी अधिक अनुरूप होता जाता है। जब मनुष्य इस प्रकार के कार्य का अनुभव करता है केवल तब ही वह अपने स्वभाव के अंतिम रूपान्तरण को हासिल कर पाता है। जीवन के विषय में मनुष्य का ज्ञान और अधिक ऊँचा होता जाता है, इसलिए परमेश्वर का काम भी और अधिक ऊँचा होता जाता है। केवल इसी तरह से मनुष्य सिद्धता को प्राप्त कर सकता है और परमेश्वर के इस्तेमाल के योग्य हो सकता है। एक ओर, मनुष्य की धारणाओं का सामना करने और उसको बदलने के लिए, और दूसरी ओर, ऊँचे और अधिक वास्तविक स्थिति में, और परमेश्वर पर विश्वास करने के सब से ऊँचे आयाम में मनुष्य की अगुवाई करने के लिए परमेश्वर इस तरह से काम करता है, और परमेश्वर की इच्छा पूरी हो जाती है। वे सभी जो अनाज्ञाकारी स्वभाव के हैं और जिनके पास प्रतिरोध करनेवाला हृदय है उन्हें इस तीव्र और सामर्थी कार्य में छोड़ दिया जाएगा; केवल वही जिनके पास आज्ञाकारी हृदय है और जो दीन होना चाहते हैं वे मार्ग के अंत तक बढ़ते जाएँगे। ऐसे कार्य में, तुम सभी को सीखना चाहिए कि समर्पण कैसे करें और अपनी धारणाओं को कैसे अलग रखें। हर एक कदम सावधानी से उठाना चाहिए। यदि तुम लोग लापरवाह हो, तो तुम लोग वाकई उनमें से एक बन जाओगे जिनसे पवित्र आत्मा घृणा करता है और अस्वीकार करता है और एक ऐसे व्यक्ति बन जाओगे जो परमेश्वर के कार्य में गड़बड़ी डालता है। कार्य के इस स्तर से गुज़रने से पहले, मनुष्य के पुराने समय के नियम और विधियाँ संख्या में इतनी अधिक थी कि उन्हें हटा दिया गया, और परिणामस्वरूप, वे अहंकारी हो गए और अपना स्थान भूल गए। परमेश्वर के नए कार्य को मनुष्य द्वारा स्वीकार करने के मार्ग में ये सभी बाधाएँ हैं और मनुष्य द्वारा परमेश्वर को जानने के विरोधी हैं। जब मनुष्य के हृदय में न तो आज्ञाकारिता है और न ही सत्य के लिए लालसा है तो यह उसके लिए खतरनाक है। यदि तू केवल उसी कार्य और सत्यका पालन करता है जो सरल हैं, और किसी गहरे अर्थ वाले कार्य या वचन को स्वीकार करने में असमर्थ है, तो तू उसके समान है जो पुराने मार्गों को थामें हुए है और पवित्र आत्मा के कार्य के साथ समान गति से नहीं चल सकता है। परमेश्वर के द्वारा किया गया कार्य समय की अलग अलग अवधियों में भिन्न होता है। यदि तू एक पहलु में बड़ी आज्ञाकारिता दिखाता है, फिर भी अगले पहलु में थोड़ी सी आज्ञाकारिता दिखाता है या कुछ भी नहीं दिखाता है, तो परमेश्वर तुझे छोड़ देगा। जब परमेश्वर यह कदम उठाता है और यदि तू परमेश्वर के साथ समान गति से चलता है, तो जब वह अगला कदम उठाता है तब तुझे निरन्तर समान गति से चलना होगा। केवल ऐसे ही लोग पवित्र आत्मा के प्रति आज्ञाकारी होते हैं। चूँकि तू परमेश्वर पर विश्वास करता है, तुझे अपनी आज्ञाकारिता में स्थिर बने रहना होगा। तू यूँ ही जब अच्छा लगे तभी आज्ञा नहीं मान सकता है और जब अच्छा न लगे तभी आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता है। इस प्रकार की अनाज्ञाकारिता परमेश्वर को मंजूर नहीं है। यदि तू उस नए कार्य के साथ, जिसके विषय में मैं ने बातचीत किया है, कदम से कदम मिला कर नहीं चल सकता है और लगातार पुरानी कहावतों को थामे रहता है, तो तेरे जीवन में उन्नति कैसे हो सकती है? परमेश्वर के कार्य में, वह अपने वचन के द्वारा तेरी जरूरतें प्रदान करता है। जब तू आज्ञा मानता है और उसके वचन को स्वीकार करता है, तब पवित्र आत्मा निश्चय तुझ में कार्य करेगा। पवित्र आत्मा बिलकुल उसी तरह काम करेगा जिस तरह मैं कहता हूँ। जैसा मैं ने कहा है वैसा कर, और पवित्र आत्मा शीघ्रता से तुझ में कार्य करेगा। मैं तुम लोगों के देखने के लिए एक नया प्रकाश भेजता हूँ और तुम लोगों को वर्तमान प्रकाश में ले आता हूँ। जब तू इस प्रकाश से होकर गुजरेगा, तो पवित्र आत्मा तुरन्त ही तुझ में कार्य करेगा। कुछ लोग अड़ियल हो सकते हैं और बोल सकते हैं, “जैसा तू कहता है मैं मात्र वैसा नहीं करूँगा।” तब मैं तुझे बताऊँगा कि अब यहाँ सड़क खत्म हो गई है। तू मुरझा गया है और तुझ में और जीवन नहीं बचा है। इसलिए, अपने स्वभाव के रूपान्तरण का अनुभव करते हुए, यह बहुत ही ज़्यादा निर्णायक हो जाता है कि तू उपस्थित प्रकाश के साथ कदम मिलाकर चले। पवित्र आत्मा न केवल उन खास मनुष्यों में कार्य करता है जो परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं, बल्कि कलीसिया में कहीं ज़्यादा काम करता है। वह किसी में भी कार्य कर सकता है। वह अभी तुझ में कार्य कर सकता है, और जब तू उसका अनुभव कर ले उसके बाद, वह किसी और में भी कार्य कर सकता है। बारीकी से अनुसरण कर; जितना अधिक तू वर्तमान प्रकाश का अनुसरण करेगा, उतना ही अधिक तेरा जीवन उन्नति करेगा। उनका अनुसरण कर जिनमें पवित्र आत्मा कार्य करता है, वह किसी भी प्रकार का व्यक्ति हो सकता है। उसके अनुभवों को अपने लिए ले, और तुझे उस से भी अधिक ऊँची चीजें प्राप्त होंगी। ऐसा करने से तू तेजी से उन्नति देखेगा। यह मनुष्य के लिए सिद्धता का मार्ग है और ऐसा मार्ग है जिस से होकर जीवन प्रगति करता है। सिद्धता के मार्ग को पवित्र आत्मा के कार्य के प्रति तेरी आज्ञाकारिता के जरिए पाया जाता है। तू नहीं जानता है कि तुझे सिद्ध करने के लिए परमेश्वर किस प्रकार के व्यक्ति के जरिए कार्य करेगा, न ही यह जानता है कि किस व्यक्ति, घटना, चीज़ के जरिए वह तुझे लाभ पहुँचाएगा और तुझे कुछ परिज्ञान प्राप्त करने के योग्य बनाएगा। यदि तू इस सही पथ पर चलने में सक्षम है, तो यह दिखाता है कि परमेश्वर के द्वारा तुझे सिद्ध करने की बड़ी आशा है। यदि तू ऐसा नहीं कर पाता है, तो यह दिखाता है कि तेरा भविष्य आनन्द रहित और एक प्रकार से अंधकारमय है। जब तू सही पथ पर चलता है, तो तुझे सभी चीज़ों में प्रकाशन दिया जाएगा। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पवित्र आत्मा दूसरों को क्या प्रकट करता है, यदि तू उसके ज्ञान के आधार पर अपने अनुभव में निरन्तर बना रहे, तो यह तेरा जीवन बन जाएगा, और इस अनुभव के कारण तू दूसरों की आपूर्ति करने में भी सक्षम होगा। जो वचनों को रटकर दूसरों की आपूर्ति करते हैं वे ऐसे लोग हैं जिनके पास कोई अनुभव नहीं है; तुझे अपने वास्तविक अनुभव और ज्ञान को बताने से पहले, दूसरों के प्रकाशन और ज्ञान के द्वारा, अभ्यास करने के एक तरीके को ढूँढ़ना सीखना होगा। यह स्वयं तुम्हारे जीवन के लिए अधिक लाभकारी होगा। जो कुछ परमेश्वर से आता है उसका पालन करते हुए, तुझे इसी तरह से अनुभव करना चाहिए। सभी चीज़ों में तुझे परमेश्वर की इच्छा को खोजना होगा और सभी चीज़ों में पाठ सीखना होगा, जो तुझे जीवन में उन्नति देगा। ऐसे अभ्यास शीघ्रता से उन्नति प्रदान करते हैं।
पवित्र आत्मा तेरे व्यावहारिक अनुभवों के जरिए तुझे ज्योतिर्मय करता है और तेरे विश्वास के जरिए तुझे सिद्ध करता है। क्या तू सचमुच में सिद्ध होना चाहता है? यदि तू सचमुच में परमेश्वर के द्वारा सिद्ध होना चाहता है, तो तेरे पास अपने शरीर को अलग रखने का साहस होगा, और जैसा परमेश्वर कहता है वैसा करने में तू योग्य होगा, और निष्क्रिय और कमज़ोर नहीं होगा। जो कुछ परमेश्वर से आता है तू उसका पालन करने के योग्य होगा, और तेरे सभी कार्य, भले ही वे उसकी उपस्थिति में किए गए हों या नहीं, वे परमेश्वर के सामने प्रस्तुत करने के योग्य होंगे। एक ईमानदार इंसान बन और सभी चीज़ों में सत्य का अभ्यास कर, और तू सिद्ध बना दिया जाएगा। वे धोखेबाज लोग जो परमेश्वर के सामने एक प्रकार से काम करते हैं और उसके पीठ के पीछे दूसरे प्रकार के काम करते हैं वे सिद्ध होना नहीं चाहते हैं। वे सब बरबादी और विनाश के पुत्र हैं; वे परमेश्वर के नहीं किन्तु शैतान के हैं। वे ऐसे लोग नहीं हैं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा चुना गया है! यदि तेरे काम और व्यवहार परमेश्वर के सामने प्रस्तुत नहीं किए जा सकते हैं या परमेश्वर के आत्मा के द्वारा देखे नहीं जा सकते हैं, तो यह स्पष्ट करता है कि तुझ में समस्या है। यदि तू केवल परमेश्वर के न्याय और ताड़ना को स्वीकार करे, और अपने स्वभाव के रूपान्तरण पर महत्व दे तो तुझे सिद्धता के मार्ग पर स्थापित कर दिया जाएगा। यदि तू सचमुच में परमेश्वर के द्वारा सिद्ध होना चाहता है और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करना चाहता है, तो तुझे परमेश्वर के सारे कार्यों को मानना चाहिए और कोई भी शिकायत नहीं करना चाहिए, न ही तुझे अपनी इच्छा से परमेश्वर के कार्य का मूल्यांकन और उसका न्याय करना चाहिए। परमेश्वर के द्वारा सिद्ध होने के लिए ये मूल स्थितियाँ हैं। वे जो परमेश्वर के द्वारा सिद्ध होने की कोशिश करते हैं उनसे यह अपेक्षा की जाती हैः सभी चीज़ों को परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम के आधार पर करे। परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम के आधार पर - इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि तेरे सारे कार्यों और आचरण को परमेश्वर के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है। चूँकि तूब सच्चे इरादों को थामे रहता है, भले ही तेरे कार्य सही हों या गलत, तू उन्हें परमेश्वर या अपने भाई या बहन को दिखाने से डरता नहीं है; तू परमेश्वर की शपथ खाने की हिम्मत करता है। तेरे प्रत्येक इरादे, सोच, और विचार जांच के लिए परमेश्वर के सामने प्रस्तुत किए जा सकते हैं। यदि तू इस प्रकार इन बातों को अमल में लाएगा और प्रवेश करेगा, तो जीवन में तेरी प्रगति शीघ्र होगी।
चूँकि तू परमेश्वर पर विश्वास करता है, इसलिए तुझे परमेश्वर के सारे वचनों और कार्यों में विश्वास रखना होगा। दूसरे शब्दों में, चूँकि तू परमेश्वर पर विश्वास करता है, इसलिए तुझे उसकी आज्ञा माननी होगी। यदि तू ऐसा करने में असमर्थ है, तो इस से फर्क नहीं पड़ता है कि तू परमेश्वर पर विश्वास करता है कि नहीं। यदि तूने सालों से परमेश्वर पर विश्वास किया है, फिर भी कभी उसकी आज्ञाओं को नहीं माना है या उसके सारे वचनों को स्वीकार नहीं किया है, और उसके बजाए परमेश्वर से कहा है कि वह तेरे अधीन हो जाए और तेरी धारणाओं का अनुसरण करे, तो तू सब से बड़ा विद्रोही है, और तू एक अविश्वासी है। एक ऐसा व्यक्ति कैसे परमेश्वर के कार्य और वचनों को मानने में सक्षम हो सकता है जो मनुष्य की धारणाओं के समान नहीं है? सब से अनाज्ञाकारी मनुष्य वह है जो जानबूझकर परमेश्वर को अपवित्र करता है और उसका विरोध करता है। वह परमेश्वर का शत्रु है और मसीह विरोधी है। ऐसा मनुष्य परमेश्वर के नए कार्य के प्रति हमेशा शत्रुता रखता है, अधीन होने का कोई इरादा नहीं दिखाता है, और उसने कभी खुशी से आज्ञाओं का पालन नहीं किया है और अपने आपको दीन नहीं किया है। वह दूसरों के सामने अपने आपको ऊँचा करता है और कभी दूसरे के अधीन नहीं होता है। परमेश्वर के सामने, वह अपने आपको “वचन” के प्रचार में सब से ज़्यादा निपुण समझता है और दूसरों पर कार्य करने में अपने आपको सब से अधिक कुशल समझता है। वह उस अनमोल धन को कभी छोड़ना नहीं चाहता है जो पहले से ही उसके अधिकार में है, लेकिन उन्हें अपने परिवार की विरासत मानकर उनकी आराधना करता है, दूसरों से उसका प्रचार करता है, और उन मूर्खों से प्रचार करने के लिए उसका इस्तेमाल करता है जो उसकी प्रशंसा करते हैं। कलीसिया में वास्तव में कुछ ऐसे लोग हैं। ऐसा कहा जा सकता है कि वे “अदम्य नायक” हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी परमेश्वर के घर में बने रहते हैं। वे सोचते हैं कि “वचन” (सिद्धांत) का प्रचार करना उनका सर्वोत्तम कर्तव्य है। एक साल के बाद दूसरे साल और एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी वे अपने पवित्र और शुद्ध कर्तव्य को करते रहते हैं। उन्हें छूने की हिम्मत कोई नहीं करता है और कोई खुलकर उनकी निन्दा करने की हिम्मत नहीं करता है। वे परमेश्वर के घराने में “राजा” बन गए, और युगों से क्रूर कार्य कर रहे हैं। ये दुष्टात्माएँ मिलकर काम करने की कोशिश करते हैं और साथ मिलकर मेरे कार्य को नष्ट करना चाहते हैं; मैं इन जीवित दुष्ट आत्माओं को मेरे सामने मौजूद रहने की अनुमति कैसे दे सकता हूँ? वे लोग जिनका हृदय आधा आज्ञाकारी है वे भी अंत तक चल नहीं सकते हैं, ये सतानेवाले तो बिलकुल भी नहीं चल सकते हैं जिनके हृदय में थोड़ी सी भी आज्ञाकारिता नहीं है। परमेश्वर के कार्य को मनुष्य के द्वारा आसानी से ग्रहण नहीं किया जाता है। भले ही मनुष्य अपनी सारी सामर्थ्य का इस्तेमाल करे, तो भी वह मात्र कुछ अंश ही प्राप्त करने और अंत में सिद्धता हासिल करने के योग्य हो पाएगा। तो प्रधानदूत की सन्तानों का क्या होगा जो परमेश्वर के कार्य को नष्ट करने की कोशिश में लगे रहते हैं? क्या उनमें और भी कम आशा नहीं होगी कि वे परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाएँगे? मेरे विजयी होने के कार्य का उद्देश्य महज विजय के लिए नहीं है, बल्कि मैं धार्मिकता और अधार्मिकता को प्रकट करने, मनुष्य के दण्ड के लिए प्रमाण प्राप्त करने, और दुष्ट को दोषी ठहराने के लिए विजयी होता हूँ, और उस से बढ़कर, जिनके पास आज्ञाकारिता का हृदय है उन्हें सिद्ध करने के लिए मैं विजयी होता हूँ। अंत में, सभी अपनी अपनी प्रकृति के अनुसार अलग किए जाएँगे, और वे सभी जिन्हें सिद्ध किया गया है उन्होंने अपने विचारों को आज्ञाकारिता से भर लिया है। यह अंतिम कार्य पूरा कर लिया जाएगा। वे जो विद्रोह से भरे हुए हैं उन्हें दण्डित किया जाएगा, उन्हें आग में जलने के लिए भेज दिया जाएगा और वे हमेशा हमेशा के लिए शापित हो जाएँगे। जब वह समय आएगा, वे पहले के “महान और अदम्य नायक” सब से नीच और परित्यक्त “कमज़ोर और निकम्मे कायर” बन जाएँगे। मात्र यह ही परमेश्वर की संपूर्ण धार्मिकता की व्याख्या कर सकता है और यह कि परमेश्वर का स्वभाव किसी अपराध की अनुमति नहीं देता है। केवल यही मेरे हृदय की नफरत को शांत कर सकता है। क्या तुम लोग सहमत नहीं हो कि यह बहुत ही उचित है।
जो पवित्र आत्मा के कार्य का अनुभव करते हैं उन में से सभी जीवन को प्राप्त नहीं कर सकते हैं, और जो इस धारा में हैं उन में से सभी जीवन को हासिल नहीं कर सकते हैं। जीवन कोई साधारण विशेषता नहीं है जिसे सभी लोग आपस में बाँटते हैं, और सभी के द्वारा स्वभाव के रूपान्तरण को आसानी से हासिल नहीं किया जाता है। परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण को वास्तविक होना होगा और उसे जीवन में पूरा करना होगा। ऊपरी तौर पर समर्पण करके परमेश्वर की स्वीकृति को प्राप्त नहीं किया जा सकता है, और अपने स्वभाव में रूपान्तरण का प्रयास किए बिना परमेश्वर के वचन को मात्र सतही तौर पर मानने के द्वारा परमेश्वर के हृदय को प्रसन्न नहीं किया जा सकता है। परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पण समान और अभिन्न हैं। वे जो केवल परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हैं लेकिन परमेश्वर के कार्य के प्रति समर्पित नहीं होते हैं उन्हें आज्ञाकारी नहीं माना जा सकता है, और निश्चित रूप से उन्हें भी नहीं जो सचमुच में समर्पण नहीं करते हैं, और बाहरी तौर पर वे चापलूस हैं। जो सचमुच में परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं वे उस कार्य से लाभ प्राप्त करते हैं और परमेश्वर के स्वभाव और कार्य की समझ हासिल करते हैं। केवल ऐसे ही लोग वास्तव में परमेश्वर के प्रति समर्पण करते हैं। ऐसे लोग नए कार्य से नया ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम हैं और उस से नए परिवर्तनों का अनुभव कर सकते हैं। केवल ऐसे ही मनुष्यों को परमेश्वर की स्वीकृति प्राप्त होती हैः केवल इस प्रकार का मनुष्य ही सिद्ध किया जाता है और वह अपने स्वभाव में रूपान्तरण से गुज़र चुका है। जिन्हें परमेश्वर के द्वारा स्वीकार किया गया है वे ऐसे लोग हैं जो खुशी से परमेश्वर को समर्पित होते हैं, साथ ही साथ उसके वचन और उसके कार्य के प्रति भी समर्पित होते हैं। केवल इस प्रकार का मनुष्य ही सही मार्ग में है; केवल इस प्रकार का मनुष्य ही सचमुच में परमेश्वर की मनोकामना और खोज करता है। और वे जो मात्र परमेश्वर पर अपने विश्वास के बारे में बात करते हैं, फिर भी वास्तव में उसे कोसते हैं, वे ऐसे हैं जो मुखौटा पहने हुए हैं। वे ज़हरीले हैं, मनुष्यों के सब से बड़े विश्वासघाती हैं। इन नीच लोगों के बुरे मुखौटे को एक दिन निकाल दिया जाएगा। क्या यह वह कार्य नहीं है जिसे आज किया जा रहा है? वे जो दुष्ट हैं वे हमेशा दुष्ट बने रहेंगे और दण्ड के दिन से नहीं बच पाएँगे। वे जो भले हैं वे हमेशा भले बने रहेंगे और जब कार्य समाप्त हो जाएगा तब उन्हें प्रकट किया जाएगा। दुष्टों में से किसी को भी धर्मी नहीं माना जाएगा, न ही धर्मियों में से किसी को भी दुष्ट गिना जाएगा। क्या मैं किसी पर भी ग़लत तरीके से दोष लगने दूँगा?
जब तेरा जीवन प्रगति करता है, तेरे पास हमेशा नई बातें और नया ऊँचा परिज्ञान होना चाहिए, जो हर एक कदम के साथ और गहरा होता जाता है। यह वह चीज़ है जिस में सभी मनुष्यों को प्रवेश करना चाहिए। वार्तालाप करने, सन्देश को ध्यान से सुनने, परमेश्वर का वचन पढ़ने, या किसी मसले को संभालने के द्वारा तुझे नई प्रबुद्धता और नया प्रकाशन प्राप्त होगा। तू पुराने समयों और पुराने नियमों के अंतर्गत नहीं जीता है। तू हमेशा नई ज्योति के अंतर्गत जीता है, और परमेश्वर के वचन से दूर नहीं जाता है। इसे कहते हैं सही पथ पर आगे बढ़ना। मात्र सतही तौर पर कीमत चुकाने से काम नहीं चलेगा। परमेश्वर का वचन और ऊँचा हो जाता है और दिन ब दिन नई चीज़ें प्रकट होती हैं। यह मनुष्य के लिए भी जरूरी है कि वह हर दिन नई बातों को सीखे। परमेश्वर उस बिन्दु तक सिद्ध करता है जिसके बारे में उसने बोला है; यदि तू समान गति से नहीं चलेगा, तो तू पीछे रह जाएगा। तेरी प्रार्थनाएँ और गहरी होनी चाहिए; तुझे परमेश्वर के वचन से और अधिक खाना और पीना होगा, और उन प्रकाशनों को और गहरा करना होगा जिन्हें तू प्राप्त करता है, और नकारात्मकता को घटाना होगा। तुझे अपने न्याय को और मज़बूत करना होगा ताकि तू परिज्ञान प्राप्त करने में समर्थ हो सके, और जो कुछ आत्मा में है उसे समझने के द्वारा, बाहरी चीज़ों में परिज्ञान प्राप्त करना होगा और किसी भी मुद्दे के केन्द्र को समझना होगा। यदि तुझमें ऐसी विशेषताएँ नहीं हैं, तो तू कलीसिया की अगुवाई कैसे कर सकता है? यदि तू बिना किसी वास्तविकता और बिना किसी अभ्यास करने के तरीके के केवल पत्रों और सिद्धांतों की ही बात करेगा, तो तू केवल थोड़े समय के लिए ही कार्य कर पाएगा। यह नए विश्वासियों के लिए अत्यल्प ही स्वीकार्य होगा, किन्तु कुछ समय के बाद, जब नए विश्वासी वास्तविक अनुभव प्राप्त कर लेते हैं, तो तू आगे से उनकी आपूर्ति नहीं कर पाएगा। तब तू परमेश्वर के उपयोग के काबिल कैसे हो सकता है? तू नई प्रबुद्धता के बिना काम नहीं कर सकता है। जो बिना प्रबुद्धता के हैं वे ऐसे लोग हैं जो अनुभव करने में असफल रहते हैं, और ऐसे मनुष्य कभी नया ज्ञान या अनुभव प्राप्त नहीं कर सकते हैं। और वे जीवन की आपूर्ति करने के लिए अपने कार्य को कभी नहीं कर सकते हैं, न ही वे परमेश्वर के उपयोग के काबिल होते हैं। इस प्रकार का मनुष्य व्यर्थ और बेकार है। सच में, ऐसे मनुष्य उस कार्य में अपनी भूमिका को निभाने में बिलकुल असमर्थ होते हैं और वे सभी किसी काम के लायक नहीं होते हैं। न केवल वे अपने कार्य को करने में असफल होते हैं, बल्कि वे वास्तव में कलीसिया के ऊपर अनावश्यक तनाव लेकर आते हैं। मैं इन “बूढ़े मनुष्यों” को प्रोत्साहित करता हूँ कि जल्दी कर और कलीसिया को छोड़ दे ताकि दूसरों को आगे से उन्हें देखना न पड़े। ऐसे मनुष्यों को नए कार्य की कोई समझ नहीं है परन्तु वे धारणाओं से भरे हुए हैं। वे कलीसिया में कोई कार्य नहीं करते हैं; बल्कि, वे भड़काते हैं और नकारात्मकता फैलाते हैं, और कलीसिया में हर प्रकार के दुर्व्यवहार और अशांति में संलग्न होते हैं, इसके द्वारा भेद नहीं करने वालों को भ्रमित करते हैं और बिगाड़ते हैं। इन जीवित दुष्ट आत्माओं, और इन बुरे आत्माओं को जितना जल्दी हो सके कलीसिया छोड़ देना चाहिए, ऐसा न हो कि इनके कारण कलीसिया को नुकसान पहुँचे। शायद तू आज के काम को लेकर भयभीत न हो, लेकिन क्या तू आने वाले कल के सच्चे दण्ड से भयभीत नहीं होता है? कलीसिया में बहुत सारे लोग हैं जो मुफ्तखोर हैं, साथ ही बहुत सारे भेड़िए हैं जो परमेश्वर के स्वाभाविक कार्य को तहस नहस करना चाहते हैं। ये सभी वे दुष्ट आत्माएँ हैं जिन्हें शैतान के द्वारा भेजा गया है और दुष्ट भेड़िए हैं जो निर्दोष मेमनों को निगल जाना चाहते हैं। यदि इन तथा कथित मनुष्यों को निकाला नहीं जा सकता है, तो वे कलीसिया के लिए परजीवी और कीड़े मकौड़े बन जाते हैं जो भेंटों को खाकर जीते हैं। इन घृणित, अबोध, नीच, और विरोधी कीड़ों को जल्द ही एक दिन दण्ड दिया जाएगा!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें