आज, अब अनुग्रह का युग नहीं रहा, न ही यह दया का युग है, बल्कि यह राज्य का युग है जिसमें परमेश्वर के लोगों का पता चलता है, वह युग जिसमें परमेश्वर दिव्यता से सीधे कार्य करता है। इस प्रकार, परमेश्वर के वचनों के इस मार्ग पर, परमेश्वर उन सभी को आध्यात्मिक क्षेत्र में ले जाता है जो उसके वचनों को स्वीकार करता है। प्रारंभिक अनुच्छेद में, वह पहले से ही तैयारी करता है, और अगर किसी को परमेश्वर के वचनों का ज्ञान होता है, तो वह तरबूज़ प्राप्त करने के लिए उसकी बेल के पीछे चल पड़ेगा, और सीधे उसे समझ पाएगा जो परमेश्वर अपने लोगों में हासिल करना चाहता है। इससे पहले, लोगों का "सेवाकर्ता" के नाम से परीक्षण किया जाता था और आज, जब वे परीक्षण से गुज़र चुके हैं, तो उनका प्रशिक्षण आधिकारिक तौर पर शुरू हो रहा है।
इसके अलावा, अतीत के शब्दों की नींव के आधार पर लोगों को परमेश्वर के कार्य का अधिक ज्ञान होना चाहिए, और वचनों और व्यक्ति, आत्मा और व्यक्ति, को एक अविभाज्य पूर्ण के रूप में देखना चाहिए—एक मुंह, एक दिल, एक क्रिया, और एक स्रोत के रूप में देखना चाहिए। सृष्टि के बाद से मनुष्य से परमेश्वर द्वारा माँगी गईं आवश्यकताओं में से यह सर्वोच्च आवश्यकता है। इससे देखा जा सकता है कि परमेश्वर अपने प्रयासों के कुछ हिस्से को लोगों पर व्यय करना चाहता है, कि वह उन में कुछ संकेतों और चमत्कारों को प्रदर्शित करना चाहता है, और, सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह चाहता है कि सभी लोग परमेश्वर के कार्य और वचनों का पूर्ण रूप से पालन करें। एक तरह से देखा जाए, तो परमेश्वर स्वयं अपनी गवाही का समर्थन करता है, और दूसरी तरफ़, उसने अपने लोगों के लिए आवश्यकताएं रखी हैं, और लोगों तक सीधे परमेश्वर का प्रशासनिक आदेश पहुँचाया है: इसलिए, चूंकि तुम लोगों को मेरे लोग बुलाया जाता है, चीज़ें अब वैसी नहीं रही जैसी पहली थीं; तुम लोगों को मेरे आत्मा के कथनों को सुनना और उनका पालन करना चाहिए, मेरे कार्य का करीब से अनुसरण करना चाहिए, और मेरे आत्मा और मेरे शरीर को अलग नहीं करना चाहिए, क्योंकि हम स्वाभाविक रूप से एक हैं, अलग नहीं। इसलिए, लोगों को देहधारी परमेश्वर की अवज्ञा करने से रोकने के लिए एक बार फिर ज़ोर दिया गया है कि "क्योंकि हम स्वाभाविक रूप से एक हैं, अलग नहीं"; क्योंकि इस तरह की अवज्ञा मनुष्य की विफलता है, यह एक बार फिर परमेश्वर के प्रशासनिक आदेशों में सूचीबद्ध की गई है। इसके बाद, परमेश्वर लोगों को परमेश्वर के प्रशासनिक निर्णयों के उल्लंघन के परिणाम के बारे में सूचित करता है, कुछ भी छिपाए बिना यह कहकर, " उसे हानि पहुँचेगी, और वह केवल अपने कड़वे प्याले से ही पी पाएगा।" क्योंकि मनुष्य कमज़ोर है, इन वचनों को सुनने के बाद वह अपने दिल में स्वयं को परमेश्वर के विषय में अधिक सतर्क होने से रोक नहीं पाएगा, क्योंकि "कड़वा प्याला" थोड़े समय के लिए लोगों को विचार करने पर मजबूर करने के लिए पर्याप्त है। परमेशवर जिस "कड़वे प्याले" के बारे में बात करता है उसके विषय में लोगों की कई व्याख्याएं हैं: वचनों के आधार पर न्याय या राज्य से निष्कासित किया जाना, या कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दिया जाना, या अपने शरीर का शैतान द्वारा दूषित किया जाना और दुष्ट आत्माओं द्वारा उस पर कब्ज़ा किया जाना, या परमेश्वर के आत्मा द्वारा त्याग दिया जाना, या अपने शरीर का समाप्त किया जाना और उसे अधोलोक में भेज दिया जाना। ये व्याख्याएं लोगों के मस्तिष्क द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं, और इसलिए अपनी कल्पना में लोग उनके आगे जाने में असमर्थ रहते हैं। लेकिन परमेश्वर के विचार मनुष्यों के विचारों की तरह नहीं; इसका अर्थ है कि "कड़वा प्याला" उपरोक्त में से किसी का उल्लेख नहीं करता है, बल्कि परमेश्वर का व्यवहार प्राप्त करने के बाद लोगों के परमेश्वर के बारे में ज्ञान की सीमा को दर्शाता है। इसे अधिक स्पष्ट रूप में समझाया जाए तो, जब कोई व्यक्ति मनमाने ढंग से परमेश्वर के आत्मा और उसके वचनों को अलग करता है, या वचनों और व्यक्ति को अलग करता है, या आत्मा और उस देह को अलग करता है जो उसे ढांकता है, तो यह व्यक्ति न केवल परमेश्वर के वचनों में परमेश्वर को जानने में असमर्थ है, बल्कि इसे परमेश्वर पर थोड़ा संदेह भी है—जिसके बाद वे हर मोड़ पर नेत्रहीन हो जाते हैं। ऐसा नहीं है कि लोग सोचते हैं कि उन्हें सीधे अलग कर दिया गया है; बल्कि, वे धीरे-धीरे परमेश्वर की ताड़ना में आ जाते हैं—जिसका अर्थ है, वे अधिक बड़ी विपत्तियों में उतर जाते हैं, और कोई भी उनके साथ संगत नहीं हो सकता, मानो उन्हें बुरी आत्माओं ने जकड़ लिया हो, और मानो वे एक बिना सिर वाली मक्खी की तरह जहाँ जाएं चीज़ों से टकराते रहते हों। इसके बावजूद, वे फिर भी छोड़ने में असमर्थ रहते हैं। उनके दिल में, चीज़ें अवर्णनीय रूप से कठिन होती हैं, मानो उनके दिल में अकथनीय पीड़ाएं हों—फिर भी वे अपना मुंह नहीं खोल सकते हैं, और वे पूरा दिन मानो एक नशे में बिताते हैं और परमेश्वर को महसूस नहीं कर पाते। इन्हीं परिस्थितियों में परमेश्वर के प्रशासनिक आदेश उन्हें डराते हैं, ताकि वे आनंद न होने के बावजूद कलीसिया छोड़ने की हिम्मत न करें—इसे "आंतरिक और बाह्य आक्रमण" कहा जाता है और लोगों के लिए इसे सहना बहुत कठिन होता है। यहां जो कहा गया है वह लोगों की धारणाओं से अलग है—और यह इसलिए है कि उन परिस्थितियों में भी वे परमेश्वर की तलाश करना जानते हैं, और ऐसा तब होता है जब परमेश्वर उनसे मुँह मोड़ लेता है, और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि एक अविश्वासी के समान, वे पूरी तरह से परमेश्वर को महसूस करने में असमर्थ होते हैं। परमेश्वर ऐसे लोगों को सीधे नहीं बचाता है; जब उनका कड़वा प्याला खाली हो जाता है, उनका अंतिम दिन आ जाता है। लेकिन इस समय में भी वे परमेश्वर की इच्छा की खोज में होते हैं, कुछ और आनंद लेने की इच्छा रखते हैं—लेकिन यह समय अतीत से अलग है, जब तक कि कोई विशेष परिस्थितियां न हों।
इसके बाद, परमेश्वर सभी को सकारात्मक पहलुओं के विषय में भी बताता है, और इस प्रकार वे एक बार और जीवन प्राप्त करते हैं—क्योंकि, अतीत के समय में, परमेश्वर ने कहा कि सेवाकर्ताओं का कोई जीवन नहीं था, लेकिन आज परमेश्वर अचानक "भीतर निहित जीवन" के बारे में बात करता है। केवल जीवन पर चर्चा के साथ ही लोगों को पता चलता है कि उनके भीतर अभी भी परमेश्वर का जीवन हो सकता है। इस तरह, परमेश्वर के लिए उनके प्रेम में कई स्तरों से वृद्धि हो जाती है, और उन्हें परमेश्वर के प्रेम और उनकी दया का अधिक ज्ञान प्राप्त होता है। इसलिए, इन वचनों को समझने के बाद, सभी लोग अपनी पिछली गलतियों पर पश्चाताप करते हैं, और चुपके से पश्चाताप के आँसू बहाते हैं। अधिकांश व्यक्ति चुपचाप अपने मस्तिष्क में यह तय कर लेते हैं कि उन्हें परमेश्वर को संतुष्ट करना होगा। कभी-कभी, परमेश्वर के वचन लोगों के सबसे भीतरी दिल को चीर जाते हैं, जिससे लोगों के लिए उसे स्वीकार करना कठिन हो जाता है, और लोगों के लिए शांति रखना मुश्किल हो जाता है। कभी-कभी, परमेश्वर के वचन नेकनीयत और निष्कपट होते हैं, और लोगों के दिलों में गर्माहट पहुँचाते हैं, इतने कि जब लोग उन वचनों को पढ़ते हैं, तो यह कुछ ऐसा होता है जैसे कई वर्षों के लिए खो जाने के बाद एक मेमना अपनी माँ को देखता है। परमेश्वर के प्रति अपनी निष्ठा दिखाने के लिए उनकी आँखों में आँसू भर आते हैं, भावनाएं उन पर हावी हो जाती हैं, और वे सिसकियों से पीड़ित स्वयं को परमेश्वर के आलिंगन में फेंकने के लिए उत्सुक रहते हैं, उस अवर्णनीय दर्द को मुक्त करते हुए जो उनके दिल में कई वर्षों से रहा है। कई महीनों की परीक्षा के कारण, वे थोड़े अतिसंवेदनशील हो गए हैं, मानो सालों से बिस्तर पर पड़े किसी विकलांग की तरह उन्हें कोई बड़ा आघात लगा हो। उन्हें परमेश्वर के वचनों में अपने विश्वास को दृढ़ करने के लिए कई बार परमेश्वर इस बात पर ज़ोर देता है: "ताकि मेरे कार्य का अगला चरण सुचारू रूप से और बिना किसी बाधा के आगे बढ़ सके, मैं मेरे घर में उपस्थित सभी लोगों की परीक्षा लेने के लिए वचनों के शुद्धिकरण का इस्तेमाल करूँगा।" यहाँ, परमेश्वर कहता है, "मेरे घर में उपस्थित उन सभी लोगों की परीक्षा"; इन वचनों को बारीक़ी से समझा जाए तो पता चलता है कि जब लोग सेवाकर्ताओं के रूप में कार्य करते हैं, तो वे अभी भी परमेश्वर के घर के भीतर उपस्थित लोग होते हैं। इसके अलावा, ये वचन "परमेश्वर के लोगों" के नाम के प्रति परमेश्वर के सत्य पर ज़ोर देते हैं, जिससे उन लोगों के दिल में राहत पहुँचती है। तो ऐसा क्यों हैं कि जिन लोगों ने परमेश्वर के वचनों को पढ़ा है या जब "परमेश्वर के लोगों" का अभी भी प्रकट होना बाकी है, तो परमेश्वर बार-बार लोगों में इन अभिव्यक्तियों की ओर इशारा करता है? क्या यह केवल यह दिखाने के लिए है कि परमेश्वर ही वह परमेश्वर है जो मनुष्य के दिल की गहराई में देख सकता है? यह कारण का एकमात्र हिस्सा है—और यहां, यह केवल अमुख्य रूप से महत्वपूर्ण है। परमेश्वर ऐसा सभी लोगों को पूरी तरह से आश्वस्त करने के लिए करता है, ताकि प्रत्येक व्यक्ति भगवान के वचनों के माध्यम से अपनी अपर्याप्तताओं के बारे में जान सके और जीवन से संबंधित अपनी पिछली कमियों को जान सके, और इससे भी अधिक महत्वपूर्ण कि वह कार्य के अगले चरण की नींव रख सके। लोग केवल परमेश्वर को जानने का और स्वयं को जानने के आधार पर परमेश्वर का अनुसरण करने का प्रयास कर सकते हैं। इन वचनों के कारण, लोग नकारात्मक और निष्क्रिय होने से सकारात्मक और सक्रिय रूप में बदल जाते हैं, और यह परमेश्वर के कार्य के दूसरे भाग के लिए जड़ें उत्पन्न करता है। यह कहा जा सकता है कि नींव के रूप में कार्य के इस चरण के साथ परमेश्वर के कार्य का दूसरा भाग आसान बन जाता है, जिसके लिए कम प्रयास की आवश्यकता होती है।
इसलिए, जब लोग अपने हृदय के भीतर से उदासी को बाहर निकाल फेंकते हैं और सकारात्मक और अग्रसक्रिय बन जाते हैं, तो परमेश्वर इस अवसर का उपयोग अपने लोगों से दूसरी आवश्यकताएँ पूरी करवाने के लिए करता है: "मेरे वचन किसी भी समय या किसी भी स्थान पर जारी और व्यक्त किए जाते हैं, और इसलिए तुम लोगों को भी हर समय मेरे सामने यह पता होना चाहिए। क्योंकि आज का दिन, अंततः, पहले के दिनों के समान नहीं है, और तुम जो चाहते हो वह अब पूरा नहीं कर सकते। इसके बजाय, तुम्हें मेरे वचनों के मार्गदर्शन में, अपने शरीर को नियंत्रित करने में सक्षम होना चाहिए, तुम्हें मेरे वचनों का मुख्य आधार के रूप में उपयोग करना चाहिए, और बेपरवाही से कार्य नहीं करना चाहिए।" इस में, परमेश्वर मुख्यतः "मेरे वचनों" पर ज़ोर देता है; अतीत में भी, उसने कई बार "मेरे वचनों" का उल्लेख किया है, और इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति अपने ध्यान को इस ओर ले जाने से नहीं रोक सकता है। इस प्रकार, परमेश्वर के कार्य के अगले चरण के केंद्र का संकेत मिलता है: सभी लोग परमेश्वर के वचनों की ओर अपना ध्यान ले जाते हैं, और उन्हें किसी भी दूसरी चीज़ से प्रेम नहीं रहता। हर किसी को परमेश्वर के मुख से निकले प्रत्येक वचन को संजो कर रखना चाहिए, और उनसे खेलना नहीं चाहिए, और इस तरह कलीसिया में उपस्थित पिछली परिस्थितियाँ समाप्त हो जाएंगी, जब एक व्यक्ति परमेश्वर के वचनों को पढ़ेगा और कई लोग आमीन कहकर आज्ञाकारी रहेंगे। उस समय, लोगों को परमेश्वर के वचनों का पता नहीं था, परंतु उन्होंने इसे एक हथियार के रूप में स्वंय का बचाव करने के लिए उपयोग किया। इसे विपरीत करने के लिए, पृथ्वी पर परमेश्वर मनुष्य से नई और अधिक ऊँची मांगें करता है। परमेश्वर के उच्च मानकों और उनकी कठोर आवश्यकताओं को देखने के बाद, लोगों को नकारात्मक और निष्क्रिय होने से रोकने के लिए परमेश्वर कई बार यह कहकर प्रोत्साहित करता है: "चूंकि चीज़ें आज यहाँ तक पहुँच गई हैं, इसलिए तुम लोगों को अतीत के अपने कर्मों और कार्यों के विषय में खेदपूर्ण और पश्चातापी महसूस करने की आवश्यकता नहीं है। मेरी उदारता समुद्र और आकाश के समान असीम है—क्या यह हो सकता है कि मेरे बारे में मनुष्य की कार्रवाई और ज्ञान का विस्तार मेरे लिए उतना परिचित नहीं है जैसे कि मेरे अपने हाथों का पीछे का हिस्सा?" ये निष्कपट और ईमानदार वचन अचानक लोगों के मस्तिष्क खोल देते हैं, और तुरंत उन्हें निराशा से परमेश्वर के लिए प्रेम की ओर, सकारात्मक और सक्रिय होने की ओर ले जाते हैं, क्योंकि परमेश्वर लोगों के दिलों के भीतर उपस्थित कमज़ोरियों पर कब्ज़ा करके बात करता है। बिना जाने, लोग अपने पिछले कार्यों की वजह से परमेश्वर के सामने हमेशा शर्मिंदा महसूस करते हैं, और वे बार-बार पछतावा व्यक्त करते हैं। इसलिए, परमेश्वर इन वचनों को विशेष रूप से स्वाभाविक और सामान्य तरह से प्रकट करता है, ताकि लोगों को यह न महसूस हो कि परमेश्वर के वचन कठोर और बेजान हैं, बल्कि उन्हें लगे कि परमेश्वर के वचन कठोर भी हैं और नरम भी, और उज्जवल भी हैं और सजीव भी। सृष्टि से लेकर आज तक, परमेश्वर ने मनुष्य के लिए आध्यात्मिक दुनिया से चुपचाप व्यवस्था की है, और मनुष्य को आध्यात्मिक दुनिया के सत्य का वर्णन कभी नहीं किया। फिर भी, आज, परमेश्वर अचानक उस युद्ध की रूपरेखा करता है जो उसके अंदर चल रहा है, स्वाभाविक है कि इसके कारण लोग अपना सिर खुजाते रह जाते हैं, उनकी इस भावना में वृद्धि होती है कि परमेश्वर गहन और अपरिमेय है, और परमेश्वर के वचनों के स्रोत का पता लगाना उनके लिए अधिक कठिन बना देता है। यह कहा जा सकता है कि आध्यात्मिक दुनिया की युद्ध जैसी स्थिति सभी लोगों को आत्मा के भीतर लेकर आती है। यह भविष्य के कार्य का पहला महत्वपूर्ण हिस्सा है, और यही वह सुराग़ है जिससे लोग आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं। इस से देखा जा सकता है कि परमेश्वर के कार्य का अगला कदम मुख्य रूप से आत्मा पर केंद्रित है, जिसका प्राथमिक उद्देश्य सभी लोगों को देह के भीतर उपस्थित परमेश्वर के आत्मा के चमत्कारी कार्यों का अधिक ज्ञान देना है, और इस प्रकार, परमेश्वर के प्रति निष्ठावान सभी लोगों को शैतान की मूर्खता और शैतान के स्वभाव का अधिक ज्ञान देना है। हालांकि वे आध्यात्मिक क्षेत्र में पैदा नहीं हुए थे, उन्हें लगता है जैसे उन्होंने शैतान को देख लिया है, और एक बार जब वे यह महसूस कर लेते हैं, तो परमेश्वर तुरंत बोलने के दूसरे साधन अपना लेता है—और एक बार जब लोग इस तरह की सोच प्राप्त कर लेते हैं, तो परमेश्वर पूछता है: "मैं ऐसी तात्कालिकता के साथ तुम लोगों क्यों प्रशिक्षित कर रहा हूं? मैं तुम लोगों को आध्यात्मिक दुनिया के तथ्य क्यों बता रहा हूँ? मैं तुम लोगों को बार-बार क्यों याद दिला रहा हूँ और प्रोत्साहित कर रहा हूं?" और प्रश्न जारी रहते हैं—प्रश्नों की एक लंबी श्रृंखला है जो लोगों के मस्तिष्क में कई सवाल उत्पन्न करती है: परमेश्वर इस स्वर में क्यों बात करता है? क्यों वह आध्यात्मिक दुनिया के मामलों की बात करता है, और कलीसिया की इमारत के निर्माण के दौरान लोगों से की गईं अपनी मांगों की नहीं? क्यों परमेश्वर रहस्यों को प्रकट करके लोगों की धारणाओं को गलत प्रमाणित नहीं करता? बस थोड़ा और विचारशील होकर लोग परमेश्वर के कार्यों के चरणों का थोड़ा ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, और इस प्रकार, जब वे भविष्य में प्रलोभन का सामना करते हैं, तो उनके भीतर शैतान के प्रति घृणा की एक वास्तविक भावना पैदा होती है। और यदि वे भविष्य में परिक्षाओं का सामना भी करते हैं, तब भी वे परमेश्वर को जान पाते हैं और शैतान से अधिक गहराई से घृणा कर पाते हैं, और इसलिए शैतान को धिक्कारते हैं।
अंत में, परमेश्वर की इच्छा पूरी तरह से मनुष्य को प्रकट होती है: "मेरे प्रत्येक वचन को स्थापित होने देने की और अपनी आत्माओं में खिलने की, और सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात, अधिक फल उत्पन्न करने की आवश्यकता है। इसका कारण यह है कि मैं उज्ज्वल, रसीले फूल नहीं, बल्कि प्रचुर मात्रा में फल मांगता हूँ—ऐसे फल जो कभी भी खराब नहीं होते हैं।" अपने लोगों से परमेश्वर की बार-बार दोहराई जाने वाली माँगों में, यह सबसे अधिक व्यापक है, यह केंद्र बिंदु है, और इसे सीधे ढंग से सामने रखा गया है। मैंने सामान्य मानवता में कार्य करने से पूर्ण दिव्यता में कार्य करने की ओर कदम बढ़ा लिया है; इसलिए, अतीत में, मेरे सादे सरल वचनों में मुझे अधिक स्पष्टीकरण जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं थी, और अधिकांश लोग मेरे वचनों के अर्थ समझ लेते थे। परिणाम यह था कि उन दिनों, लोगों को केवल मेरे वचनों को जानने और वास्तविकता के बारे में बोल पाने में सक्षम होने की ज़रूरत थी। लेकिन, यह चरण बिल्कुल अलग है। मेरी दिव्यता ने पूरी तरह नियंत्रण ले लिया है, और मानवता के लिए कोई भी भूमिका निभाने की कोई जगह नहीं छोड़ी। इसलिए, यदि मेरे लोग मेरे वचनों के सही अर्थ को समझना चाहते हैं, तो उन्हें बहुत ही कठिनाई होती है। केवल मेरे कथनों के माध्यम से ही वे प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त कर सकते हैं, और यदि यह इस मार्ग के माध्यम से नहीं किया जाता है, तो मेरे वचनों के उद्देश्य को समझने का कोई भी प्रयास केवल बेकार दिन में देखे जाने वाले सपने होते हैं। जब मेरे कथनों को स्वीकार करने के बाद सभी लोगों को मेरे बारे में अधिक ज्ञान प्राप्त होता है, तो यह वह समय होता है जब मेरे लोग मुझे जीते हैं, यही वह समय होता है जब देह में मेरा कार्य पूरा हो जाता है, और यही वह समय होता है जब मेरी दिव्यता पूरी तरह से देह में जीवन व्यतीत कर लेती है। इस समय, सभी लोग मुझे देह में जानने की कोशिश करेंगे, और वास्तव में कह पाएंगे कि परमेश्वर देह में प्रकट होता है, और यही फल होगा। यह इस बात का अधिक प्रमाण है कि परमेश्वर कलीसिया का निर्माण करते हुए थक चुका है—यानी, "हालांकि पौधा घर में फूल सितारों की तरह असंख्य होते हैं, और सभी पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, एक बार जब वे मुरझा जाते हैं, तो वे शैतान की धोखेबाज़ योजनाओं की तरह तितर-बितर हो जाते हैं, और कोई भी उन में कोई रुचि नहीं दिखाता।" हालांकि, कलीसिया के निर्माण के समय परमेश्वर ने भी स्वयं कार्य किया था, क्योंकि यह वह परमेश्वर है जो हमेशा नया रहता है और कभी भी पुराना नहीं होता, और अतीत के मामलों के लिए उस में कोई संस्मरण नहीं होता। लोगों को अतीत के बारे में सोचने से रोकने के लिए, उसने इन वचनों का उपयोग किया "वे शैतान की धोखेबाज़ योजनाओं की तरह तितर-बितर हो जाते हैं", जिससे पता चलता है कि परमेश्वर सिद्धांतों का पालन नहीं करता। कुछ लोग परमेश्वर की इच्छा के बारे में गलत व्याख्या कर सकते हैं और पूछ सकते हैं: क्योंकि यह परमेश्वर द्वारा किया गया कार्य है, वह क्यों कहता है कि, "एक बार जब वे मुरझा जाते हैं, तो कोई भी उन में कोई रुचि नहीं दिखाता"? ये वचन लोगों को एक प्रकाशन देते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे सभी लोगों को एक नया और सही, प्रारंभिक बिंदु रखने देते हैं, और केवल तब ही वे परमेश्वर की इच्छा को पूर्ण कर पाते हैं। अंततः, परमेश्वर के लोग परमेश्वर को वह स्तुति दे पाएंगे जो कि सत्य है, मजबूरी नहीं, और जो उनके दिल से आती है। परमेश्वर के छह हज़ार सालों की प्रबंधन योजना के केंद्र में यही है। छह हज़ार सालों की प्रबंधन योजना का वास्तविकीकरण यही है: सभी लोगों को परमेश्वर के देहधारण का महत्व बताना—उन्हें व्यावहारिक रूप से बताना कि परमेश्वर ने देहधारण किया है, जिसका अर्थ है, देह में परमेश्वर का कार्य—ताकि वे अस्पष्ट परमेश्वर को अस्वीकार करें, और जानें कि आज का परमेश्वर, और बीते कल का भी, और उससे भी अधिक, आने वाले कल का परमेश्वर भी अनंत से अनंत काल तक अस्तित्व में रहा है। केवल तभी परमेश्वर विश्राम करेगा!
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