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2019-09-05

अध्याय 114


मैंने ब्रह्मांड की दुनिया बनाई; मैंने पर्वतों, नदियों और सभी चीज़ों को बनाया; मैंने ब्रह्मांड के बिल्कुल अंतिम सिरों को आकार दिया; मैंने अपने पुत्रों और अपने लोगों की अगुआई की; मैंने सभी चीजों और पदार्थों पर शासन किया। अब, मैं अपने ज्येष्ठ पुत्रों को वापस सिय्योन पर्वत पर ले जाऊँगा, जहाँ मैं रहता हूँ वहाँ लौटने के लिए, जो मेरे कार्य का अंतिम कदम होगा। मैंने जो कुछ भी किया है (सृजन से अब तक किया गया सब कुछ) मेरे कार्य के आज के चरण के लिए था, और इसके अलावा यह कल के शासन, कल के राज्य के लिए, और मेरे और मेरे ज्येष्ठ पुत्रों के अनन्त आनंद लेने के लिए है। सभी चीज़ों का सृजन करने में यही मेरा लक्ष्य रहा है और यह सृजन की मेरी अंतिम उपलब्धि होगी। मैं जो कहता हूँ और करता हूँ उसके पीछे उद्देश्य होता है; हर चीज़ की एक योजना होती है और यह बेतरतीबी से नहीं किया जाता है।

2019-08-28

Hindi Christian Song 2019 | "अंतिम दिनों का मसीह लाता है राज्य का युग"


Hindi Christian Song 2019 | "अंतिम दिनों का मसीह लाता है राज्य का युग"


जब मानव जगत में यीशु आया, व्यवस्था के युग को समाप्त कर, अनुग्रह का युग लाया। बना फिर देहधारी अंतिम दिनों में परमेश्वर। अनुग्रह के युग को समाप्त कर, राज्य का युग लाया।

2019-06-04

Hindi Worship Song | परमेश्वर बहाल कर देगा सृजन की पूर्व स्थिति | God's Kingdom Has Come on Earth


Hindi Worship Song | परमेश्वर बहाल कर देगा सृजन की पूर्व स्थिति | God's Kingdom Has Come 

on Earth

अपने गहरे होते वचन के साथ, परमेश्वर की नज़र है कायनात पर। हर सृजन बनता है नया, परमेश्वर के वचनों की बुनियाद पर। स्वर्ग बदल रहा है, धरती बदल रही है, इंसान अपनी असलियत दिखा रहा है। धरती बनाई जब परमेश्वर ने, तो तराशी हर चीज़ उसके स्वभाव के अनुरूप।

2019-06-02

समय जो गँवा दिया कभी वापस न आएगा


Hindi Gospel Song | समय जो गँवा दिया कभी वापस न आएगा | Exhortations of God's Words in the Last 

Days


जागो भाइयो! जागो बहनो! परमेश्वर का दिन विलम्ब नहीं करेगा। वक्त जीवन है, वक्त को पकड़ने से बचता जीवन है। समय अब दूर नहीं है! इम्तहान में गर हो गए नाकाम, रट सकते हो, दे सकते हो तुम फिर इम्तहान।

2019-05-12

अध्याय 72

जैसे ही तुम्‍हें किसी कमी या दुर्बलता का पता चले, उसे दूर करने के लिए तुम्‍हें मुझ पर भरोसा रखना चाहिए। विलम्‍ब न करो; अन्‍यथा पवित्र आत्‍मा का कार्य तुमसे बहुत दूर होगा, और तुम बहुत पीछे रह जाओगे। जो कार्य मैंने तुम्‍हें सौंपा है, वह, तुम्‍हारे, मेरे समीप आने, प्रार्थना करने और मेरी उपस्थिति में सहभागिता करने पर ही पूरा हो सकता है। यदि नहीं, तो कोई परिणाम प्राप्‍त न होंगे, और सब कुछ व्‍यर्थ होगा। मेरा आज का कार्य वैसा नहीं है जैसा वह पूर्व में था। उन लोगों में, जिन्‍हें में प्रेम करता हूँ, जीवन का परिमाण पहले जैसा नहीं है। वे मेरे वचन स्‍पष्‍ट रूप में समझते हैं, और उनके प्रति उनमें कुशाग्र प्रवीणता होती है। यह सर्वाधिक स्‍पष्‍ट पहलू है, यह मेरे कार्य की अद्भुतता को परावर्तित करने मे सबसे अधिक सक्षम है।

2019-05-01

परमेश्वर के कार्य को समर्पित होने को मैं हूँ तैयार



Hindi Christian Song | परमेश्वर के कार्य को समर्पित होने को मैं हूँ तैयार | Thank the Love of God


हे परमेश्वर! मैं तुझसे विनती करती हूँ कि मुझ में न्याय का कार्य कर, मुझे शुद्ध कर और बदल, ताकि पालन करूँ और हर चीज़ में तेरी इच्छा जानूँ। तेरे द्वारा मेरे उद्धार में है, तेरा महान प्रेम और इच्छा तेरी। तेरे द्वारा मेरे उद्धार में है, तेरा महान प्रेम और इच्छा तेरी।

2019-04-08

विजयी कार्यों का आंतरिक सत्य (1)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर कहते हैं:मनुष्यजाति, जो शैतान के द्वारा अत्यधिक भ्रष्ट कर दी गई है, नहीं जानती है कि एक परमेश्वर भी है और इसने परमेश्वर की आराधना करना भी समाप्त कर दिया है।

विजयी कार्यों का आंतरिक सत्य (1)


मनुष्यजाति, जो शैतान के द्वारा अत्यधिक भ्रष्ट कर दी गई है, नहीं जानती है कि एक परमेश्वर भी है और इसने परमेश्वर की आराधना करना भी समाप्त कर दिया है। आरम्भ में, जब आदम और हव्वा को रचा गया था, यहोवा का प्रताप और साक्ष्य सर्वदा उपस्थित था। परन्तु भ्रष्ट होने के पश्चात, मनुष्य ने उस प्रताप और साक्ष्य को खो दिया, क्योंकि सभी ने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया और उसका सम्मान करना पूर्णतया बन्द कर दिया।

2019-03-25

अभ्यास (4)

जिस शांति और आनंद के बारे में आज मैं बोलता हूँ, वह उनके समान नहीं है जिनमें तुम विश्वास करते हो और समझते हो। तुम सोचा करते थे कि शांति और आनंद का अर्थ था दिन भर प्रसन्न रहना, तुम्हारे परिवार में बीमारी या दुर्भाग्य की अनुपस्थिति होना, अपने हृदय में सदैव खुश रहना, दु:ख की कोई भावना न होना, और तुम्हारे स्वयं के जीवन की सीमा के बावजूद तुम्हारे अंदर एक अवर्णनीय आनंद का होना। यह तुम्हारे वेतन में वृद्धि और तुम्हारे बेटे के हाल ही में विश्वविद्यालय में दाखिला मिलने के अतिरिक्त था। इन बातों को दिमाग में लिए, तुमने परमेश्वर से प्रार्थना की, और देखा कि परमेश्वर का अनुग्रह इतना अधिक था, कि तुम बहुत खुश हो गये और बड़ी मुस्कुराहट तुम्हारे चेहरे पर आ गयी, और तुम परमेश्वर का धन्यवाद देने से नहीं रुक पा रहे थे। ऐसी शांति और आनन्द पवित्र आत्मा की उपस्थिति पाने की शांति और आनन्द नहीं है। बल्कि, यह तुम्हारी देह की संतुष्टि की शांति और आनन्द है। तुम्हें समझना चाहिए कि आज यह कौन सा युग है; अब यह अनुग्रह का युग नहीं है, तथा अब और वह समय नहीं है जब तुम रोटी से अपना पेट भरने की माँग करते हो। तुम अत्यंत आनंदित हो सकते हो क्योंकि तुम्हारे परिवार के साथ सब ठीक चल रहा होता है, किन्तु तुम्हारा जीवन हाँफ कर अपनी आखिरी साँस ले रहा है—और इस प्रकार, चाहे तुम्हारा आनन्द कितना ही बड़ा हो, पवित्र आत्मा तुम्हारे साथ नहीं है। पवित्र आत्मा की उपस्थिति को पाना सरल है तुम्हें जो चाहिये उसे ठीक से करें, मनुष्य के कर्तव्य और कार्य को अच्छी तरह से करें, अपनी आवश्यकता की चीजों से स्वयं को सज्जित करने और अपनी कमियों को पूरा करने में सक्षम बनें। यदि तुम सदैव अपने जीवन के लिए बोझ ढोते हो, और खुश रहते हो क्योंकि आज तुमने सत्य को समझ लिया है या परमेश्वर के आज के कार्य को समझ लिया है, तो यह वास्तव में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का होना है। या, कभी तुम बहुत व्यग्र हो जाते हो क्योंकि तुम्हारा सामना किसी ऐसी चीज़ से होता है जिसे तुम नहीं जानते हो कि कैसे अनुभव करना है, या क्योंकि तुम किसी ऐसी सच्चाई को समझने में असमर्थ होते हो जिसकी संगति की जाती है—यह साबित करता है कि पवित्र आत्मा तुम्हारे साथ है। यह जीवन के अनुभव की सामान्य अवस्थाएं हैं। तुम्हें पवित्र आत्मा की उपस्थिति के होने और पवित्र आत्मा की उपस्थिति के न होने के बीच के अंतर को अवश्य समझना चाहिए, और इस बारे में अपने दृष्टिकोण में बहुत ज्यादा एकांगी नहीं होना चाहिए।
पहले, यह कहा जाता था कि पवित्र आत्मा की उपस्थिति का होना और पवित्र आत्मा का कार्य पाना भिन्न-भिन्न हैं। पवित्र आत्मा की उपस्थिति होने की साधारण अवस्था सामान्य विचार, सामान्य तर्कसंगतता और सामान्य मानवता होने में व्यक्त होती है। एक व्यक्ति का चरित्र वैसा ही रहेगा जैसा कि यह हुआ करता था, किन्तु उनके भीतर शांति होगी, और बाह्य रूप से उनमें संत की शिष्टता होगी। यह तब होगा जब पवित्र आत्मा उनके साथ होगा। जब पवित्र आत्मा उनके साथ होता है, तो लोगों के सामान्य विचार होते हैं। जब वे भूखे होते हैं तो वे खाना चाहते हैं, जब वे प्यासे होते हैं तो वे पानी पीना चाहते हैं ... सामान्य मानवता की ये साधारण अभिव्यक्तियाँ पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता नहीं हैं, ये लोगों के सामान्य विचार हैं और पवित्र आत्मा की उपस्थिति होने की सामान्य अवस्था है। कुछ लोग गलत तरीके से मानते हैं कि जिनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति होती है, वे भूख नहीं जानते, उन्हें कोई थकान महसूस नहीं होती है, वे परिवार के बारे में सोचते हुए प्रतीत नहीं होते, अपने आप को देह से लगभग पूरी तरह से अलग कर दिए हुए होते हैं। वास्तव में, जितना अधिक पवित्र आत्मा लोगों के साथ होता है, उतना अधिक वे सामान्य होते हैं। वे परमेश्वर के लिए पीड़ित होना और चीज़ों को त्यागना, स्वयं को परमेश्वर के लिए व्यय करना, और परमेश्वर के प्रति निष्ठावान बनना जानते हैं और इसके अलावा, वे खाना और कपड़े पहनना जानते हैं। दूसरे शब्दों में, उन्होंने सामान्य मानवता का ऐसा कुछ भी नहीं खोया है जो कि मनुष्य के पास और उन्हें होना चाहिए और इसके बजाय, विशेष रूप से तर्कसंगतता से सम्पन्न हैं। कभी-कभी, वे परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं और परमेश्वर के कार्य पर विचार करते हैं, और उनके हृदय में विश्वास होता है और वे सच्चाई का अनुसरण करने के इच्छुक होते हैं। बेशक, पवित्र आत्मा का कार्य इसी बुनियाद पर आधारित है। यदि लोग बिना सामान्य विचारों वाले होते हैं, तो उनके पास कोई तर्कसंगतता नहीं होती है, जो कि एक सामान्य अवस्था नहीं है। जब लोगों के विचार सामान्य होते हैं और पवित्र आत्मा उनके साथ होता है, तो वे अनिवार्य रूप से एक सामान्य व्यक्ति की तर्कसंगतता से सम्पन्न होते हैं, अर्थात् उनकी एक सामान्य अवस्था होती है। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने में, पवित्र आत्मा के कार्य के लिए निश्चित समय होते हैं, जबकि पवित्र आत्मा की उपस्थिति प्रायः हर समय रहती है। जब तक लोगों की तर्कसंगतता और विचार सामान्य होते हैं, और जब तक उनकी अवस्थाएं सामान्य होती हैं, तब पवित्र आत्मा निश्चित रूप से उनके साथ होता है। जब लोगों की तर्कसंगतता और विचार सामान्य नहीं होते हैं, तो उनकी मानवता सामान्य नहीं होती है। यदि, इस पल में, पवित्र आत्मा का कार्य तुम में है, तो पवित्र आत्मा भी निश्चित रूप से तुम्हारे साथ होगा। किन्तु यदि पवित्र आत्मा तुम्हारे साथ है, तो आवश्यक नहीं कि तुम्हारे भीतर पवित्र आत्मा का कार्य हो, क्योंकि पवित्र आत्मा विशेष समयों पर कार्य करता है। पवित्र आत्मा की उपस्थिति का होना केवल लोगों के सामान्य जीवन के तरीके को बनाए रख सकता है, किन्तु पवित्र आत्मा केवल निश्चित समयों पर ही कार्य करता है। उदाहरण के लिए, यदि तुम कोई कार्यकर्ता या अगुवा होते, तो जब तुम कलीसिया को आपूर्ति और सिंचन प्रदान करते तब पवित्र आत्मा तुम्हें कुछ वचनों से प्रबुद्ध करेगा जो दूसरों के लिए शिक्षाप्रद होगा और जो तुम्हारे भाइयों-बहनों की कुछ व्यावहारिक समस्याओं का समाधान कर सकता—हैयही है जब पवित्र आत्मा कार्य कर रहा है। कभी-कभी तुम परमेश्वर के वचनों को खा-पी रहे होते हो, और पवित्र आत्मा तुम्हें प्रबुद्ध कर देता है और तुम स्वयं को अपने अनुभवों के विरुद्ध उन्हें सँभालने में विशेष रूप से सक्षम पाते हो, और तुम को अपनी अवस्था का अधिक ज्ञान प्रदान करता है; यह भी पवित्र आत्मा का कार्य है। कभी-कभी, जैसे मैं बोलता हूँ, तुम लोग सुनते हो, और अपनी स्वयं की अवस्था को मेरे वचनों से मापने में सक्षम होते हो और कभी-कभी तुम लोग द्रवित या प्रेरित हो जाते हो, और यह पवित्र आत्मा का कार्य है। कुछ लोग कहते हैं कि पवित्र आत्मा हर समय उनमें कार्य कर रहा है। यह असंभव है। यदि वे कहते कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके साथ है, तो यह यथार्थ पर आधारित होता। यदि वे कहते कि उनकी सोच और उनका बोध हर समय सामान्य है, तो यह भी यथार्थ पर आधारित होता और यह दिखाता कि पवित्र आत्मा उनके साथ है। यदि वे कहते हैं कि पवित्र आत्मा हमेशा उनके भीतर कार्य कर रहा है, कि वेपरमेश्वर द्वारा प्रबुद्ध किए गए हैं और हर पल पवित्र आत्मा द्वारा स्पर्श किए जाते हैं, और हर समय नया ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो यह सामान्य नहीं है। यह नितान्त अलौकिक है! बिना किसी संदेह के, ऐसे लोग बुरी आत्माएँ हैं! यहाँ तक कि जब परमेश्वर का आत्मा देह में आता है, तब ऐसे समय होते हैं जब उसे भी अवश्य भोजन करना चाहिए और आराम करना चाहिए—मनुष्य की तो बात ही छोड़ो। जो लोग बुरी आत्माओं द्वारा ग्रस्त हो गए हैं, वे भावनाओं और देह की कमजोरी से रहित प्रतीत होते हैं। वे सब कुछ त्यागने और छोड़ने में सक्षम हैं, वे यातना को सहने में सक्षम होते हैं और जरा सी भी थकान महसूस नहीं करते हैं, मानो कि वे देहातीत हैं चुके हों। क्या यह नितान्त अलौकिक नहीं है? दुष्ट आत्मा का कार्य अलौकिक है, और ये चीजें मनुष्य के द्वारा अप्राप्य हैं। जो लोग विभेद नहीं कर सकते हैं वे जब ऐसे लोगों को देखते हैं, तो ईर्ष्या करते हैं, और कहते हैं कि परमेश्वर पर उनका विश्वास बहुत मजबूत है, और बहुत अच्छा है, और कहते हैं कि वे कभी कमजोर नहीं पड़ते हैं। वास्तव में, यह दुष्ट आत्मा के कार्य की अभिव्यक्ति है। इसका कारण यह है कि एक सामान्य अवस्था के लोगों में अनिवार्य रूप से मानवीय कमजोरियाँ होती हैं; यह उन लोगों की सामान्य अवस्था है जिनमें पवित्र आत्मा की उपस्थिति होती है।
किसी की गवाही में अडिग रहने का क्या अर्थ है? कुछ लोग कहते हैं कि वे बस इस तरह से अनुसरण करते हैं और स्वयं को इस चिंता में नहीं डालते हैं कि क्या वे जीवन प्राप्त करने में सक्षम हैं; वे जीवन की खोज नहीं करते हैं, किन्तु वे पीछे भी नहीं पलटते हैं। वे केवल यह स्वीकार करते हैं कि कार्य का यह चरण परमेश्वर द्वारा किया जाता है। इस सब में, क्या वे अपनी गवाही में विफल नहीं हुए हैं? ऐसे लोग जीत लिए जाने की गवाही भी नहीं देते हैं। जिन लोगों पर विजय प्राप्त की जा चुकी है वे अन्य सभी की परवाह किए बिना अनुसरण करते हैं और जीवन की खोज करने में सक्षम होते हैं। वे न केवल व्यावहारिक परमेश्वर में विश्वास करते हैं, बल्कि परमेश्वर के सभी व्यवस्थापनों का पालन करना भी जानते हैं। ऐसे ही लोग गवाही देते हैं। जो लोग गवाही नहीं देते हैं उन्होंने कभी भी जीवन की खोज नहीं की है और अभी भी अस्पष्टता के साथ अनुसरण कर रहे हैं। तुम अनुसरण कर सकते हो, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम पर विजय प्राप्त की जा चुकी है, क्योंकि तुम परमेश्वर के आज के कार्य के बारे में कुछ नहीं जानते हो। जीत लिया जाना सशर्त है। सभी अनुसरण करने वाले जीते नहीं गए हैं, क्योंकि अपने हृदय में तुम इस बारे में कुछ भी नहीं समझते हो कि क्यों तुम्हें आज के परमेश्वर का अनुसरण करना चाहिए, न ही तुम यह जानते हो कि तुम आज तक सफल कैसे रहे, किसने आज तक तुम्हारा समर्थन किया है। परमेश्वर में अपने विश्वास में, कुछ लोग पूरा दिन भ्रम में व्यय कर देते हैं; इस प्रकार, अनुसरण करने का आवश्यक रूप से यह अर्थ नहीं है कि तुम गवाही दे रहे हो। वास्तव में सच्ची गवाही क्या है? यहाँ कही गई गवाही के दो हिस्से हैं: एक जीत लिए जाने की गवाही है, और दूसरी पूर्ण बना दिए जाने की गवाही है (जो, स्वाभाविक रूप से, भविष्य की बड़ी परीक्षाओं और क्लेशों के बाद की गवाही है)। दूसरे शब्दों में, यदि तुम क्लेशों और परीक्षाओं के दौरान अडिग रहने में सक्षम हो, तो तुमने गवाही के दूसरे कदम को पेश किया है। आज जो महत्वपूर्ण है वह है गवाही का पहला कदम: ताड़ना और न्याय की परीक्षाओं की हर घटना के दौरान अडिग रहने में सक्षम होना। यह विजय प्राप्त कर लिए जाने की गवाही है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आज विजय का समय है। (तुम्हें पता होना चाहिए कि आज पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य का समय है; पृथ्वी पर देहधारी परमेश्वर का मुख्य कार्य पृथ्वी पर उसका अनुसरण करने वाले लोगों के इस समूह को जीतने के लिए ताड़ना और न्याय का उपयोग करना है)। तुम जीत लिए जाने की गवाही देने में सक्षम हो या नहीं यह न केवल इस बात पर निर्भर करता है कि तुम बिल्कुल अंत तक अनुसरण कर सकते हो या नहीं, बल्कि, इससे भी महत्वपूर्ण रूप से, इस बात पर निर्भर करता है, कि, जब तुम परमेश्वर के कार्य के प्रत्येक चरण का अनुभव करते हो, तो तुम परमेश्वर के ताड़ना और न्याय के सच्चे ज्ञान में सक्षम होते हो या नहीं, और इस बात पर कि तुम इस समस्त कार्य को वास्तव में समझते हो या नहीं। यह ऐसा मामला नहीं है कि यदि तुम बिल्कुल अंत तक अनुसरण करोगे, तो तुम सफल होने में सक्षम हों जाओगे। तुम्हें ताड़ना और न्याय की हर घटना के दौरान स्वेच्छा से समर्पण करने में सक्षम अवश्य होना चाहिए, तुम जिस कार्य का अनुभव करते हो तुम्हें उसके प्रत्येक चरण के बारे में सच्चे ज्ञान में सक्षम अवश्य होना चाहिए, और परमेश्वर के स्वभाव का ज्ञान प्राप्त करने और आज्ञापालन करने में सक्षम अवश्य होना चाहिए। यह जीत लिए जाने की अंतिम गवाही है जो तुमसे अपेक्षित है। जीत लिए जाने की गवाही मुख्य रूप से परमेश्वर के देहधारण के बारे में तुम्हारे ज्ञान के संदर्भ में है। महत्त्वपूर्ण रूप से, गवाही का यह कदम परमेश्वर के देहधारण के लिए है। दुनिया के लोगों या सामर्थ्य का उपयोग करने वालों के सामने तुम क्या करते हो या कहते हो यह मायने नहीं रखता है; सर्वोपरि जो मायने रखता है वह यह है कि तुम परमेश्वर के मुँह के सभी वचनों और उसके सभी कार्यों का पालन करने में सक्षम हो या नहीं। इसलिए, गवाही का यह कदम शैतान और परमेश्वर के सभी दुश्मनों—राक्षसों और बैरियों पर निर्देशित है जो विश्वास नहीं करते हैं कि परमेश्वर दूसरी बार देह बनेंगे तथा और भी बड़े कार्य करने के लिए आएँगे, और इसके अतिरिक्त, परमेश्वर के देह में वापस आने के तथ्य पर विश्वास नहीं करते हैं। दूसरे शब्दों में, यह सभी ईसा मसीह के शत्रुओं—उन सभी दुश्मनों पर निर्देशित किया जाता है जो परमेश्वर के देहधारण में विश्वास नहीं करते हैं।
परमेश्वर की कमी महसूस करना और परमेश्वर के लिए तड़पना यह साबित नहीं करता है कि तुम परमेश्वर द्वारा जीते जा चुके हो; वह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या तुम मानते हो कि वह वचन देह बन जाता है, कि क्या तुम मानते हो कि वचन देह बन गया है, और कि क्या तुम मानते हो कि पवित्रात्मा वचन बन गया है और वचन देह में प्रकट हुआ है। यही मूल गवाही है। यह मायने नहीं रखता है कि तुम किस तरह से अनुसरण करते हो, न ही तुम अपने आप को कैसे व्यय करते हो; महत्वपूर्ण यह है कि क्या तुम इस सामान्य मानवता से पता लगाने में सक्षम हो कि वचन देह बन गया है और सत्य का आत्मा देह में प्रत्यक्ष हुआ है—समस्त सत्य, मार्ग और जीवन देह में आ गया है, और परमेश्वर का आत्मा का वास्तव में पृथ्वी पर आगमन हो गया है और आत्मा देह में आ गया है। यद्यपि, सतही तौर पर, यह पवित्र आत्मा की सहायता से गर्भधारण से भिन्न प्रतीत होता है, किन्तु इस कार्य से तुम लोग और अधिक स्पष्टता से देखने में सक्षम होते हो कि पवित्रात्मा पहले से ही देह में प्रत्यक्ष हो गया है इसके अतिरिक्त, वचन देह बन गया है, और वचन देह में प्रकट हो गया है, और तुम इन वचनों के वास्तविक अर्थ को समझने में सक्षम हो: आदि में वचन था, और वचन परमेश्‍वर के साथ था, और वचन परमेश्‍वर था। इसके अलावा, तुम्हें यह भी अवश्य समझना चाहिए कि आज के वचन परमेश्वर हैं, और तुम्हें अवश्य देखना चाहिए कि वचन देह बनता है। यह सर्वोत्तम गवाही है जो तुम दे सकते हो। यह साबित करता है कि तुम देहधारी परमेश्वर के सच्चे ज्ञान से सम्पन्न हो—तुम न केवल उसे जानने में सक्षम हो, बल्कि यह भी जानते हो कि जिस मार्ग पर तुम आज चलते हो वही जीवन का मार्ग है, और सत्य का मार्ग है। यीशु ने कार्य का एक चरण किया, जिसने केवल "वचन परमेश्वर के साथ था" के सार पूरा किया, सत्य परमेश्वर के साथ था और परमेश्वर का आत्मा देह के साथ था और उससे अभिन्न था, अर्थात, देहधारी परमेश्वर का देह परमेश्वर के आत्मा के साथ था, जो कि एक अधिक बड़ा प्रमाण है कि देहधारी यीशु परमेश्वर का प्रथम देहधारण था। कार्य के इस चरण ने "वचन देह बनता है" के आंतरिक अर्थ को पूरा किया, "वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था", को और गहन अर्थ प्रदान किया और तुम्हें इन वचनों पर दृढ़ता से विश्वास करने की अनुमति देता है, कि "आरंभ में वचन था"। कहने का अर्थ है, कि सृजन के समय परमेश्वर वचन से सम्पन्न था, उसके वचन उसके साथ थे और उससे अभिन्न थे, और अंतिम युग उसके वचनों की सामर्थ्य और उसके अधिकार को और भी अधिक स्पष्ट करता है, और मनुष्य को परमेश्वर के सभी वचनों को देखने की—उसके सभी वचनों को सुनने की अनुमति देता है। ऐसा है अंतिम युग का कार्य। तुम्हें इन चीजों को हर पहलू से जान लेना चाहिए। यह देह को जानने का नहीं, बल्कि देह और वचन को जानने का प्रश्न है। यह वह है जिसकी तुम्हें गवाही देनी चाहिए, जिसका हर किसी को ज्ञान अवश्य होना चाहिए। क्योंकि यह दूसरे देहधारण का कार्य है—और आख़िरी बार जब परमेश्वर देह बनता है—यह उसके देहधारण के महत्व को पूर्णतः पूरा कर देता है, देह में परमेश्वर के समस्त कार्य को पूरी तरह से कार्यान्वित करता और प्रकट करता है, और परमेश्वर के देह में होने के युग का अंत करता है। इस प्रकार, तुम्हें देहधारण के अर्थ को अवश्य जानना चाहिए। यह मायने नहीं रखता है कि तुम इधर-उधर कितना दौड़ते हो, या क्या तुम अन्य बाहरी मामलों को कितनी अच्छी तरह से करते हो; जो मायने रखता है वह है कि तुम वास्तव में देहधारी परमेश्वर के सामने वास्तव में झुकने में और अपना पूरा अस्तित्व परमेश्वर के प्रति अर्पित करने, और उसके मुँह से आने वाले सभी वचनों का पालन में सक्षम हो। यही वह है जो तुम्हें करना चाहिए, और जिसका तुम्हें पालन करना चाहिए।
गवाही का आखिरी चरण इस बात की गवाही है कि क्या तुम पूर्ण बनाए जाने में सक्षम हो या नहीं—जिसका अर्थ है कि अंतिम गवाही यह है कि, देहधारी परमेश्वर के मुँह से बोले गए सभी वचनों को समझ करके, तुमनेपरमेश्वर के ज्ञान को पाया और उसके बारे में निश्चित हो गये, तुम परमेश्वर के मुँह के सभी वचनों को जीते हो और उन शर्तों को प्राप्त करते हो जो परमेश्वर तुमसे माँगता है—पतरस की शैली और अय्यूब की आस्था—इस तरह से कि तुम मृत्यु तक पालन कर सको, अपने आप को पूरी तरह से उसे सौंप दो, और अंत में मनुष्य की एक छवि प्राप्त करो जो मानक के स्तर का हो, जिसका अर्थ है कि किसी ऐसे व्यक्ति की छवि जिसे परमेश्वर की ताड़ना और न्याय का अनुभव करने के बाद, जीता, और पूर्ण बनाया जा चुका हो। यही वो गवाही है जिसे किसी ऐसे व्यक्ति के द्वारा दी जानी चाहिए जिसे अंतत: पूर्ण बना दिया गया है। ये गवही के दो कदम हो जो तुम लोग को उठाना चाहिए और ये परस्पर संबंधित हैं, प्रत्येक अपरिहार्य है। किन्तु एक बात तुम्हें अवश्य जननी चाहिए: आज जिस गवाही की मैं तुमसे अपेक्षा करता हूँ वह न तो दुनिया के लोगों पर, न ही किसी एक व्यक्ति पर निर्देशित है बल्कि उस पर है जो मैं तुमसे मांगता हूँ। यह इस बात के द्वारा मापी जाती है कि क्या तुम मुझे संतुष्ट करने में सक्षम हो या नहीं, और क्या तुम मेरी उन अपेक्षाओं के मानकों को पूर्णतः पूरा करने में समर्थ हो जो मैं तुम लोगों में से प्रत्येक से करता हूँ। यही वह है जिसे तुम लोगों को समझना चाहिए।
स्रोत: यीशु मसीह का अनुसरण करते हुए

2019-03-24

अध्याय 19

ज्यों-ज्यों पवित्र आत्मा का कार्य आगे बढ़ रहा है, परमेश्वर ने एक बार फिर हमें पवित्र आत्मा के कार्य की एक नई पद्धति में प्रवेश कराया है। परिणामस्वरूप, यह अपरिहार्य है कि कुछ लोगों ने मुझे गलत समझा और मुझसे शिकायतें की है। कुछ लोगों ने मेरा प्रतिरोध और मेरा सामना किया है, और मेरी जाँच-पड़ताल की है। हालांकि, मैं अभी भी अनुग्रहपूर्वक तुम लोगों के पश्चाताप करने और सुधरने की प्रतीक्षा कर रहा हूँ।

2019-03-23

अभ्यास (3)

तुम लोगों में स्वतंत्र रूप से रहने, अपने आप परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने, स्वयं के दम पर परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने, और दूसरों की अगुआई के बिना एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन जीने की क्षमता अवश्य होनी चाहिए; जीने के लिए, सच्चे अनुभव में प्रवेश करने के लिए, और असल अंतर्दृष्टि पाने के लिए तुम्हें आज के परमेश्वर के वचनों पर निर्भर रहने में सक्षम होना चाहिए। केवल इसी प्रकार तुम अडिग रह पाओगे। आज, बहुत से लोग भविष्य के क्लेशों और परीक्षणों को पूरी तरह से नहीं समझते हैं। भविष्य में, कुछ लोगों को क्लेशों का अनुभव होगा, और कुछ लोगों को दण्ड का अनुभव होगा। यह दण्ड अधिक कठोर होगा; यह तथ्यों का आना होगा। आज, तुम जो अनुभव करते हो, अभ्यास करते हो, और प्रकट करते हो, वे सब भविष्य के परीक्षणों के लिए नींव डालते हैं, और कम से कम, तुम्हें स्वतंत्र रूप से जीने में सक्षम अवश्य होना चाहिए। आज, कलीसिया में कई लोगों की स्थिति आम तौर पर निम्नानुसार है: यदि कार्य करने के लिए अगुआ और कार्यकर्ता हैं, तो वे प्रसन्न हैं, और यदि ये लोग नहीं हैं, तो वे अप्रसन्न हैं वे कलीसिया के कार्य पर कोई ध्यान नहीं देते हैं, और न ही अपने स्वयं के आध्यत्मिक जीवनों पर ध्यान देते हैं, और उन्हें थोड़ी सी भी ज़िम्मेदारी नहीं हैं—वे एक हैनहाओ पक्षी की तरह भ्रमित होकर साथ चलते हैं।[क] स्पष्ट रूप से हें तो, तो बहुत से लोगों पर मैंने जो कार्य किया है वह केवल जीतने का कार्य है, क्योंकि कई लोग मूलतः पूर्ण बनाए जाने के अयोग्य हैं। केवल लोगों के एक छोटे से हिस्से को ही पूर्ण बनाया जा सकता है। यदि, इन वचनों को सुनकर, तुम सोचते हो "चूँकि परमेश्वर द्वारा किया गया कार्य केवल लोगों को जीतने के लिए ही है, और इसलिए मैं केवल लापरवाही से अनुसरण करूँगा," तो इस तरह का कोई दृष्टिकोण कैसे स्वीकार्य हो सकता है? यदि तुम्हारे पास वास्तव में विवेक है, तो तुम्हारे पास बोझ और उत्तरदायित्व की भावना अवश्य होनी चाहिए। तुम्हें अवश्य कहना चाहिए: "चाहे मुझे जीता जाये या पूर्ण बनाया जाए, मुझे इस गवाही देने के कदम को अवश्य सही ढंग से करना चाहिए।" परमेश्वर के एक प्राणी के रूप में, किसी भी व्यक्ति को परमेश्वर द्वारा सर्वथा जीता जा सकता है, और अंततः, वह परमेश्वर से प्रेम रखने वाले दिल से परमेश्वर के प्रेम को चुकाते हुए और पूरी तरह से परमेश्वर के प्रति समर्पित होते हुए, परमेश्वर को संतुष्ट करने में सक्षम हो जाता है। यह मनुष्य का उत्तरदायित्व है, यह वह कर्तव्य है जिसे मनुष्य को अवश्य करना चाहिए, और वह बोझ है जिसे मनुष्य द्वारा अवश्य वहन किया जाना चाहिए, और मनुष्य को इस आदेश को अवश्य पूरा करना चाहिए। केवल तभी वह वास्तव में परमेश्वर पर विश्वास करता है। आज, तुम कलीसिया में जो करते हो क्या वह तुम्हारे उत्तरदायित्व की पूर्ति है? यह इस बात पर निर्भर करता है कि क्या तुम पर बोझ है, और क्या तुम अपने ज्ञान पर हो। इस कार्य का अनुभव करने में, यदि मनुष्य जीत लिया जाता है और उसे सच्चा ज्ञान हो जाता है, तो वह अपनी स्वयं की संभावनाओं या भाग्य की परवाह किए बिना आज्ञाकारिता में सक्षम हो जाएगा। इस तरह से, परमेश्वर का महान कार्य अपनी संपूर्णता में साधित होगा, क्योंकि तुम लोग इससे अधिक किसी चीज में सक्षम नहीं हैं, और किसी भी उच्च माँग को पूरा करने में असमर्थ हैं। फिर भी भविष्य में, कुछ लोगों को पूर्ण बनाया जाएगा। उनकी क्षमता में सुधार होगा, उनकी आत्माओं में उन्हें गहरा ज्ञान होगा, उनका जीवन विकसित होगा...। मगर कुछ लोग इसे प्राप्त करने में पूरी तरह से असमर्थ हैं, और इसलिए बचाए नहीं जा सकते हैं। इसका कारण है कि मैं क्यों कहता हूँ कि उन्हें बचाया नहीं जा सकता है। भविष्य में, कुछ को जीत लिया जाएगा, कुछ को मार दिया जाएगा, कुछ को पूर्ण बना दिया जाएगा, और कुछ का उपयोग किया जाएगा—और इसलिए कुछ लोग क्लेशों का अनुभव करेंगे, कुछ लोग दण्ड (प्राकृतिक आपदाओं और मानव निर्मित दुर्भाग्य दोनों) का अनुभव करेंगे, कुछ को मार दिया जाएगा, और कुछ जीवित रहेंगे। इस में, प्रत्येक को किस्म के अनुसार वर्गीकृत किया जाएगा, जिसमें प्रत्येक समूह व्यक्ति की एक किस्म का प्रतिनिधित्व करेगा। सभी लोगों को नहीं मारा जाएगा, न ही सभी लोगों को पूर्ण बनाया जाएगा। इसका कारण यह है कि चीनी लोगों की क्षमता इतनी ख़राब है, और उन में केवल एक छोटी सी संख्या ऐसी है जिनमें वह आत्म-जागरूकता है जो पौलुस में थी। तुम लोगों में से, कुछ लोगों में परमेश्वर को प्यार करने का वही दृढ़ संकल्प है जो पतरस में था, या उसी प्रकार का विश्वास है जैसा अय्यूब में था। तुम लोगों में मुश्किल से ही कोई ऐसा है जो यहोवा के वैसे सेवा करे जैसे दाऊद ने की थी। तुम लोग कितने दयनीय हो!
आज, पूर्ण बनाए जाने की बात मात्र एक पहलू है। इस बात की परवाह किए बिना कि क्या होता है, तुम लोगों को गवाही देने के इस कदम को सही ढंग से करना चाहिए। यदि तुम लोगों से मंदिर में परमेश्वर की सेवा करने के लिए कहा जाता, तो तुम ऐसा कैसे करते? यदि तुम याजक नहीं होते, और परमेश्वर के ज्येष्ठ पुत्रों या बेटों की हैसियत के न होते, तो क्या तुम तब भी वफादारी के लिए सक्षम होते? क्या तुम तब भी राज्य को फैलाने के लिए वह सब कुछ कर पाते जो तुम कर सकते हो? क्या तुम तब भी परमेश्वर के आदेश के कार्य को ठीक से करने में सक्षम होते? इस बात की परवाह किए बिना कि तुम्हारी ज़िंदगी कितनी विकसित हुई है, आज का कार्य तुम्हें अंदर से पूरी तरह से आश्वस्त होने और अपनी सभी अवधारणाओं को अलग करने के लिए प्रेरित करेगा। चाहे तुम्हारे पास वह है या नहीं जो जीवन का अनुसरण करने के लिए चाहिए, कुल मिलाकर, परमेश्वर का कार्य तुम्हें पूरी तरह से आश्वस्त करेगा। कुछ लोग कहते हैं: मैं बस परमेश्वर पर विश्वास करता हूँ, और मैं यह नहीं समझता हूँ कि जीवन का अनुसरण करने का क्या अर्थ है। और कुछ कहते हैं: मैं परमेश्वर में अपने विश्वास में पूर्ण रूप से उलझन में हूँ। मैं जानता हूँ कि मुझे पूर्ण नहीं बनाया जा सकता है, और इसलिए मैं ताड़ित किए जाने के लिए तैयार हूँ। यहाँ तक कि इस तरह के लोगों को भी, जो ताड़ित या नष्ट किए जाने के लिए तैयार हैं, यह स्वीकार करवाया जाना चाहिए कि आज का कार्य परमेश्वर द्वारा किया जाता है। कुछ लोग यह भी कहते हैं: मैं पूर्ण बनाए जाने के लिए नहीं कहता हूँ, लेकिन आज, मैं परमेश्वर के समस्त प्रशिक्षण को स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ, और सामान्य मानव स्वभाव जीने, अपनी क्षमता को सुधारने और परमेश्वर के सभी व्यवस्थाओं का पालन करने के लिए तैयार हूँ...। इस में, उन्हें भी जीत लिया गया है और गवाही दिलवाई गई है, जो साबित करती है कि इन लोगों के भीतर परमेश्वर के कार्य का कुछ ज्ञान है। कार्य का यह चरण बहुत शीघ्रता से किया गया है, और भविष्य में, यह विदेशों में और भी तीव्रता से किया जाएगा। आज, विदेशों में लोग शायद ही प्रतीक्षा कर सकते हैं, वे सब चीन की ओर दौड़ रहे हैं—और इसलिए यदि तुम लोगों को पूर्ण नहीं किया जा सकता है, तो तुम लोग विदेश में लोगों को रोकोगे। उस समय, चाहे तुम लोगों ने कितने भी अच्छे ढंग से प्रवेश किया हो या तुम कैसे भी हो, जब समय आएगा तो मेरा कार्य समाप्त और पूरा हो जाएगा! मेरे सारे कार्य तुम लोगों के द्वारा नहीं रोके जा सकते हैं। मैं समस्त मानव जाति का कार्य करता हूँ, और मुझे तुम लोगों पर और अधिक समय लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है! तुम लोग अत्यधिक अनुत्साही हो, तुम लोगों में आत्म-जागरूकता की अत्यधिक कमी है! तुम लोग पूर्ण बनाए जाने के योग्य नहीं हो—तुम लोगों में मुश्किल से ही कोई संभावना है! भविष्य में, भले ही लोग इतने ढीले और आलसी बने रहें, और अपनी क्षमताओं को सुधारने में असमर्थ बने रहें, इससे समस्त ब्रह्मांड का कार्य बाधित नहीं होगा। जब परमेश्वर के कार्य के पूरा होने का समय आएगा, तो यह पूरा हो जाएगा, और जब लोगों को मारे जाने का समय आएगा है, तो वे मारे जाएँगे। निस्संदेह, जिन लोगों को पूर्ण किया जाना चाहिए, और जो पूर्ण होने के योग्य हैं, वे भी पूर्ण किए जाएँगे—लेकिन यदि तुम लोगों के पास कोई आशा नहीं है, तो परमेश्वर का कार्य तुम्हारी प्रतीक्षा नहीं करेगा! अंततः, यदि तुम जीत लिए जाते हो, तो यह भी गवाही देना माना जा सकता है। इस बात की सीमाएँ हैं कि परमेश्वर तुम लोगों से क्या कहता है; मनुष्य जितनी ऊँची कद-काठी प्राप्त करने में सक्षम होता है, उतनी ही ऊँची गवाही की अपेक्षा उससे की जाती है। यह ऐसा नहीं है जैसी मनुष्य कल्पना करता है कि इस तरह की गवाही बहुत उच्चतम सीमाओं तक पहुँच जाएगी और कि यह ज़बर्दस्त होगी—ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे कि इसे तुम चीनी लोगों द्वारा प्राप्त किया जा सके। मैं इस पूरे समय तुम लोगों के साथ व्यस्त हूँ, और तुम लोग स्वयं इसे देख चुके हो: मैं तुम लोगों से प्रतिरोधन नहीं करने, विद्रोही न होने, मेरी पीठ के पीछे ऐसी चीजों को न करने के लिये कह चुका हूँ जो बाधा डालती हैं या परेशान करती हैं। मैंने कई बार इस पर सीधे तौर पर लोगों की आलोचना की है, लेकिन यह भी पर्याप्त नहीं है—जैसे ही जिस क्षण वे घूमते हैं, वे बदल जाते हैं, और कुछ लोग, बिना मलाल के, गुप-चुप तरीके से मेरा प्रतिरोध करते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि मुझे इसका कुछ भी पता नहीं है? क्या तुम्हें लगता है कि तुम मेरे लिए परेशानी पैदा कर सकते हो और इससे कुछ नहीं होगा? क्या तुम्हें लगता है कि जब तुम मेरी पीठ के पीछे मेरे कार्य को तबाह करने का प्रयास करते हो तो मुझे पता नहीं चलता है? क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारी छोटी-मोटे चालें तुम्हारे चरित्र का स्थान ले सकती हैं? तुम प्रकट रूप से हमेशा आज्ञाकारी हो, लेकिन गुप्त रूप से विश्वासघाती हो, तुम अपने दिल में भयावह विचारों को छिपाते हो, और यहाँ तक कि तुम जैसे लोगों के लिए मृत्यु भी पर्याप्त दण्ड नहीं है। क्या तुम्हें लगता है कि पवित्र आत्मा द्वारा तुम में कुछ मामूली कार्य मेरे प्रति तुम्हारे सम्मान का स्थान ले सकता है? क्या तुम्हें लगता है कि तुमने स्वर्ग को पुकार कर प्रबुद्धता प्राप्त कर ली है? तुम्हें कोई शर्म नहीं है! तुम बहुत बेकार हो! क्या तुम्हें लगता है कि तुम्हारे "अच्छे कर्मों" ने स्वर्ग को स्पर्श किया है, जिसने एक अपवाद बनाया है और प्राकृतिक उपहार प्रदान किए हैं, जिसने तुम्हें दूसरों को धोखा देने और मुझे धोखा देने कि अनुमति देते हुए, तुम्हें वाक्पटु बना दिया है? तुममें तर्कसंगतता की कितनी कमी है! क्या तुम जानते हो कि तुम्हारी प्रबुद्धता कहाँ से आती है? क्या तुम नहीं जानते कि तुम किसका भोजन खा कर बड़े हुए हो? तुम कितने निर्लज्ज हो! तुम लोगों के बीच में से कुछ लोग चार या पाँच साल तक व्यवहार किये जाने के बाद भी नहीं बदले हैं और तुम इन मामलों के बारे में स्पष्ट हो। तुम्हें अपने स्वभाव के बारे में स्पष्ट होना चाहिए और जब किसी दिन तुम्हें त्याग दिया जाता है, तो आपत्ति नहीं करो। कुछ को, जो अपनी सेवा में अपने ऊपर और नीचे वाले दोनों को धोखा देते हैं, उनके साथ अत्यधिक व्यवहार किया जाता है; कुछ को, धन के लोभी होने की वजह से, व्यवहार के अत्यधिक अधीन किया गया है; कुछ को, पुरुषों और महिलाओं के बीच स्पष्ट सीमाओं को नहीं बनाए रखने की वजह से, इसके अत्यधिक अधीन किया गया है; कुछ को, क्योंकि वे आलसी हैं, केवल शरीर के प्रति सचेत हैं, और जब वे कलीसिया में आते हैं तो सिद्धांतों के अनुसार अभ्यास नहीं करते हैं, इसलिए अत्यधिक व्यवहार के अधीन किया गया है; कुछ को, क्योंकि वे जहाँ भी जाते हैं गवाही देने में विफल रहते हैं, और जानबूझकर पाप और दुर्व्यवहार करते हैं, इसलिए कई बार याद दिलाया गया है; कुछ लोग जब कलीसिया में आते हैं, वचनों और सिद्धांतों की बात करते हैं, वे दूसरों से श्रेष्ठतर होने का दिखावा करते हैं, और उनमें सत्य की थोड़ी सी भी वास्तविकता नहीं होती है, और वे भाइयों-बहनों के साथ संघर्ष करते हैं, एक दूसरे के साथ स्पर्द्धा करते हैं—वे प्रायः इसी वजह से उजागर किए गए हैं। मैंने ये वचन तुम लोगों को कई बार बोले हैं, और आज, मैं इस बारे में ज्यादा नहीं बोलूँगा—तुम जो चाहे करो! अपने निर्णय स्वयं लो! कई लोग न सिर्फ एक या दो वर्ष तक इस तरह के व्यवहार किये जाने के अधीन किए गए हैं, कुछ के लिए यह तीन या चार वर्ष रहा है, और कुछ ने विश्वासी बन जाने पर व्यवहार किये जाने के के अधीन होने का एक दशक से अधिक समय तक इसका अनुभव किया है, किंतु आज के दिन तक उनमें थोड़ा सा ही बदलाव हुआ है। तुम क्या कहते हो, क्या तुम सूअरों की तरह नहीं हो? क्या ऐसा हो सकता है कि परमेश्वर तुम्हारे प्रति अनुचित है? ऐसा न सोचो कि यदि तुम लोग एक निश्चित स्तर तक पहुँचने में असमर्थ हो, तो परमेश्वर का कार्य समाप्त नहीं होगा। यदि तुम लोग उसकी अपेक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ हो, तो क्या परमेश्वर तब भी तुम्हारी प्रतीक्षा करेगा? मैं तुम्हें स्पष्ट रूप से बताता हूँ—ऐसा नहीं है! चीजों का इस तरह का एक चित्ताकर्षक दृष्टिकोण मत रखो! आज के कार्य के लिए एक समय सीमा है, परमेश्वर यूँ ही तुम्हारे साथ खेल नहीं रहा है! पहले, जब सेवा करने वालों के परीक्षण का अनुभव करने की बात आयी, तो लोगों ने सोचा कि यदि उन्हें परमेश्वर की अपनी गवाही में दृढ़ता से खड़े होना और उसके द्वेअ जीत लिए जाना हैं, तो उन्हें एक निश्चित अवस्था तक पहुंचना होगा—उन्हें स्वेच्छा से और खुशी से एक सेवा करने वाला होना था, और उन्हें हर दिन परमेश्वर की स्तुति करनी थी, और थोड़ा सा भी ढीला या जिद्दी नहीं होना था। उन्होंने सोचा कि केवल तभी वे वास्तव में सेवा करने वाले होते, लेकिन क्या यह वास्तव में ऐसा ही मामला है? उस समय, लोगों में सभी तरह की अभिव्यक्तियाँ थीं। कुछ भाग गए, कुछ ने परमेश्वर का विरोध किया, कुछ ने कलीसिया के पैसे को गँवा दिया, और भाइयों और बहनों ने एक-दूसरे के खिलाफ साजिश की। यह वास्तव में एक महान मुक्ति थी, लेकिन इसके बारे में एक बात अच्छी थी: कोई भी पीछे नहीं हटा। यह सबसे मुख्य बात है। इसकी वजह से उन्होंने शैतान के सामने गवाही का एक चरण पेश किया, और बाद में परमेश्वर के लोगों के रूप में पहचान प्राप्त की और आज तक पहुंच पाए हैं। परमेश्वर का कार्य उस तरह से नहीं किया जाता है जैसा कि तुम कल्पना करते हो, इसके बजाय जब समय समाप्त हो जाता है, तो चाहे तुम किसी भी भी बिंदु पर क्यों न पहुँचो कार्य समाप्त हो जाएगा। कुछ लोग कह सकते हैं: इस तरह का दिखावा करके तुम लोगों को बचाते, या प्यार नहीं करते हो—तुम धर्मी परमेश्वर नहीं हो। मैं तुम्हें स्पष्ट रूप से बताता हूँ: आज मेरे कार्य का मर्म है तुम्हें जीतना और तुमसे गवाही दिलवाना है। तुम्हें बचाना तो सिर्फ उससे जुड़ा हुआ एक कार्य है; तुम को बचाया जा सकता है या नहीं यह तुम्हारी स्वयं की खोज पर निर्भर करता है, और मुझसे सम्बद्ध नहीं है। फिर भी मुझे तुम्हें अवश्य जीतना चाहिए; हमेशा मुझे ज़बरदस्ती रास्ता दिखाने का प्रयास मत करो—आज तुम नहीं बल्कि मैं तुम पर कार्य करता हूँ और बचाता हूँ!
आज, तुम लोगों ने जो समझा है, चाहे वो परीक्षणों का तुम्हारा ज्ञान हो या परमेश्वर में विश्वास का ज्ञान, वह इतिहास के ऐसे किसी भी व्यक्ति की तुलना में अधिक है जिसे पूर्ण नहीं बनाया गया था। जिन चीजों को तुम लोग समझे हो ये वे हैं जिन्हें तुम लोग पर्यावरण के परीक्षणों से गुजरने से पहले जान गए हो, लेकिन तुम्हारी वास्तविक कद-काठी उनके साथ पूरी तरह से असंगत हैं। तुम लोग जो जानते हो वह उससे अधिक है जो तुम लोग अभ्यास में लाते हो। यद्यपि तुम लोग कहते हो कि जो लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, उन्हें परमेश्वर से प्रेम करना चाहिए, और आशीषों के लिए नहीं बल्कि केवल परमेश्वर की इच्छा पूरी करने के लिए प्रयत्न करना चाहिए, तुम्हारे जीवन में जो अभिव्यक्त होता है, वह इससे एकदम अलग है, और बहुत दूषित हो गया है। अधिकांश लोग शांति और अन्य लाभों के लिए परमेश्वर पर विश्वास करते हैं। जब तक यह तुम्हारे लाभ के लिए न हो, तब तक तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हो, और यदि तुम परमेश्वर के अनुग्रह प्राप्त नहीं कर सकते हो, तो तुम खीज जाते हो। तुमने जो कहा वो तुम्हारी असली कद-काठी कैसे हो सकती है? जब अनिवार्य पारिवारिक की घटनाओं (जैसे कि बच्चों का बीमार पड़ना, प्रियजनों का अस्पताल जाना, ख़राब फसल पैदावार, परिवार के सदस्यों द्वारा उत्पीड़न) की बात आती है, तो तुम इन्हें चीजों को भी नहीं झेल पाते हो जो प्रायः दिन-प्रतिदिन जीवन में होती हैं। जब ऐसी चीजें होती हैं, तो तुम घबरा जाते हो, तुम्हें पता नहीं होता कि क्या करना है—और अधिकांश समय, तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो। तुम शिकायत करते हो कि परमेश्वर के वचनों ने तुम्हारे साथ चालाकी की है, कि परमेश्वर के कार्य ने तुम्हें परेशानी में डाल दिया है। क्या तुम लोगों के ऐसे विचार नहीं हैं? क्या तुम्हें लगता है कि ऐसी चीजें कभी-कभार ही तुम लोगों के बीच में होती हैं? तुम लोग इस तरह की घटनाओं के बीच रहते हुए हर दिन बिताते हो। तुम लोग परमेश्वर में अपने विश्वास की सफलता के बारे में और कैसे परमेश्वर की इच्छा को पूरा करें, इस बारे में जरा सा भी विचार नहीं करते हो। तुम लोगों की असली कद-काठी बहुत छोटी है, यहाँ तक कि चूजे से भी छोटी है। जब तुम लोगों के परिवार के व्यवसाय में नुकसान होता है तो तुम परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो, जब तुम लोग स्वयं को परमेश्वर की सुरक्षा के बिना किसी वातावरण में पाते हो तब भी तुम लोग परमेश्वर के बारे में शिकायत करते हो, यहाँ तक कि तुम तब भी शिकायत करते हो जब तुम्हारे चूजे मर जाते हैं या तुम्हारी बूढ़ी गाय बाड़े में बीमार पड़ जाती है, तुम तब शिकायत करते हो जब तुम्हारे बेटे का शादी करने करने का समय आता है लेकिन तुम्हारे परिवार के पास पर्याप्त धन नहीं होता है, और जब कलीसिया के कार्यकर्ता तुम्हारे घर पर कुछ भोजन खाते हैं, लेकिन कलीसिया तुम्हें प्रतिपूर्ति नहीं करती है या कोई भी तुम्हें कोई सब्ज़ी नहीं भेजता है, तब भी तुम शिकायत करते हो। तुम्हारा पेट शिकायतों से भरा है, और इस वजह से तुम कभी-कभी सभाओं में नहीं जाते हो या परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते नहीं हो, लंबे समय तक तुम्हारे नकारात्मक हो जाने की संभावना हो जाती है। आज तुम्हारे साथ जो भी कुछ भी होता है उसका तुम्हारी संभावनाओं या भाग्य से कोई संबंध नहीं है; ये चीजें तब भी होती जब तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं भी करते, मगर आज तुम उनका उत्तरदायित्व परमेश्वर पर डाल देते हो और यह कहने पर जोर देते हो कि परमेश्वर ने तुम्हें हटा दिया है। परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास का क्या, क्या तुमने अपना जीवन सचमुच अर्पित किया है? यदि तुम लोगों ने अय्यूब के समान परीक्षणों का सामना किया होता, तो परमेश्वर का अनुसरण करने वाले तुम लोगों में से ऐसा कोई भी आज डटा नहीं रह पाता, तुम सभी लोग नीचे गिर जाते। और, निस्संदेह, तुम लोगों के और अय्यूब के बीच ज़मीन-आसमान का अंतर है। आज, यदि तुम लोगों की आधी संपत्ति जब्त कर ली जाए तो तुम लोग परमेश्वर के अस्तित्व को अस्वीकार करने की हिम्मत करोगे; यदि तुम्हारे बेटे या बेटी को तुम से ले लिया जाए, तो तुम चिल्लाते हुए सड़कों पर दौड़ेंगे कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है; यदि तुम्हारे पास आजीविका कमाने का कोई रास्ता न बचे, तो तुम परमेश्वर से चर्चा करने की कोशिश करोगे; तुम पूछोगे कि मैंने तुम्हें डराने के लिए शुरुआत में इतने सारे वचनों को क्यों कहा। ऐसा कुछ नहीं है जिसे तुम लोग ऐसे समय में करने की हिम्मत नहीं करोगे। यह दर्शाता है कि तुम लोगों ने वास्तव में कोई सच्ची अंतर्दृष्टि नहीं पायी है, और तुम लोगों की कोई वास्तविक कद काठी नहीं है। इस प्रकार, तुम लोगों में परीक्षण अत्यधिक बड़े हैं, क्योंकि तुम लोग बहुत ज्यादा जानते हो, लेकिन तुम लोग वास्तव में जो समझते हो वह उसका हज़ारवाँ अंश भी नहीं है जिससे तुम लोग अवगत हो। मात्र समझ और ज्ञान पर मत रुको; सबसे अच्छा रहता कि तुम लोग यह देखते कि तुम लोग वास्तव में कितना अभ्यास में ला सकते हो, पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता और रोशनी में कितनी है जो तुम्हारे कठोर परिश्रम के पसीने से अर्जित की गयी है, और तुम लोगों ने अपने कितने अभ्यासों में अपने स्वयं के संकल्प को समझा है। तुम्हें अपनी कद-काठी पर विचार करना चाहिए और गंभीरतापूर्वक अभ्यास करना चाहिए। परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास में, तुम्हें किसी के लिए भी मात्र ढोंग करने का प्रयास नहीं करना चाहए—अंतत: तुम सत्य और जीवन प्राप्त कर सकते हो या नहीं यह तुम्हारी स्वयं की खोज पर निर्भर करता है।
स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया

2019-03-16

अध्याय 13

अपनी वर्तमान स्थिति में, तुम लोग स्वयं की धारणाओं का अत्यधिक पालन करते हो, और तुम्हारा धार्मिक व्यवधान काफ़ी गंभीर है। तुम आत्मा में कार्य करने में असमर्थ हो, तुम पवित्र आत्मा के काम को समझ नहीं सकते हो, और तुम नए प्रकाश को अस्वीकार करते हो। तुम दिन का सूरज नहीं देखते हो क्योंकि तुम अंधे हो। तुम लोगों को नहीं समझ पाते हो, तुम अपने माता-पिता को छोड़ नहीं पाते हो, तुम में आध्यात्मिक समझ की कमी है, तुम पवित्र आत्मा के काम को नहीं जानते, और तुम्हें बिल्कुल नहीं पता कि मेरे वचनों को कैसे खाना और पीना चाहिए। यह एक समस्या है कि तुम्हें नहीं पता कैसे स्वयं खाना और पीना चाहिए।

2019-03-14

कार्य और प्रवेश (10)



सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया--सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर कहते हैं: परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का प्रवेश कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ते हैं, और इस प्रकार परमेश्वर का कार्य भी एक शानदार मौका है जो बेमिसाल है।

मानवता का इतनी दूरी तक प्रगति कर लेना एक ऐसी स्थिति है जिसका कोई पूर्व उदाहरण नहीं। परमेश्वर का कार्य और मनुष्य का प्रवेश कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ते हैं, और इस प्रकार परमेश्वर का कार्य भी एक शानदार मौका है जो बेमिसाल है। मनुष्य का आज तक का प्रवेश एक ऐसा आश्चर्य है जिसकी किसी मानव ने पहले कभी कल्पना नहीं की थी। परमेश्वर का कार्य अपने शिखर पर पहुँच गया है—और, बाद में, मनुष्य का "प्रवेश"[1] भी अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया है। परमेश्वर ने अपने आप को इतना नीचे उतारा है जितना कि वह संभवतः उतार सकता था, और कभी भी उसने मानव जाति या विश्व की सारी चीजों के सामने विरोध नहीं किया।

2019-03-10

कार्य और प्रवेश (8)

मसीह के कथन--सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन:परमेश्वर के कार्य के रास्ते में बाधाएं कितनी बड़ी हैं? क्या कभी किसी को पता चला है? गहरे बैठे अंधविश्वासी रंगों से घिरे लोगों में से कौन परमेश्वर के सच्चे चेहरे को जानने में सक्षम है?

कार्य और प्रवेश (8)

मैंने कई बार कहा है कि परमेश्वर के अंतिम दिनों के कार्य का उद्देश्य है प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा को बदलना, प्रत्येक व्यक्ति की रूह को बदलना, ताकि उनके दिल में, जिसने अत्यंत आघात को सहा है, सुधार लाया जा सके, जिससे उनकी उस आत्मा को बचाया जा सके जिसे गंभीर रूप से बुराई द्वारा हानि पहुंचाई गई है; इसका उद्देश्य लोगों की आत्माओं को जगाना है, उनके बर्फ़ जैसे जमे हुए दिलों को पिघलाना है, और उनका जीर्णोद्धार करना है। यही है परमेश्वर की महानतम इच्छा। मनुष्य का जीवन और उसके अनुभव कितने ऊँचे या गहरे हैं, उनकी बातें करना बंद करो; जब लोगों के दिलों को जागृत किया जाता है, जब उन्हें अपने सपनों से जगा दिया जाता है और बड़े लाल अजगर द्वारा पहुँचाई गई हानि के बारे में वह पूरी तरह अवगत हो जाते हैं, तो परमेश्वर की सेवा का काम पूरा हो जाएगा।

2019-03-04

कार्य और प्रवेश (1)

जब से लोगों ने जीवन के सही मार्ग पर चलना शुरू किया, ऐसी कई चीजें हैं जिनके बारे में वे अस्पष्ट रहे हैं। वे परमेश्वर के कार्य के विषय में तथा उन्हें कितना कार्य करना चाहिए, इस विषय में पूर्ण रीति से भ्रम में हैं। एक ओर, यह उनके अनुभव की कमी के कारण और उनकी ग्रहण करने की क्षमता सीमित होने के कारण है; दूसरी ओर, यह इसलिए है कि परमेश्वर के कार्य ने लोगों को अभी तक इस अवस्था में नहीं पहुँचाया है। इसलिए, हर कोई अधिकांश आत्मिक विषयों के बारे में अस्पष्ट है।

2019-02-20

पूर्ण बनाए जाने वालों को शुद्धिकरण से अवश्य गुज़रना चाहिए

तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो तो तुम्हें अवश्य परमेश्वर की आज्ञा पालन करनी चाहिए, सत्य को अभ्यास में लाना चाहिए और अपने सभी कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए। इसके अलावा, तुम्हें अनुभव की जाने वाली बातों को अवश्य समझना चाहिए। यदि तुम केवल व्यवहार किए जाने, अनुशासित किए जाने और न्याय का ही अनुभव करते हो, यदि तुम केवल परमेश्वर का आनन्द लेने में ही समर्थ हो, परन्तु जब परमेश्वर तुम्हें अनुशासित कर रहा हो या तुम्हारे साथ व्यवहार कर रहा हो तो तुम उसका अनुभव करने में असमर्थ हो, तो यह स्वीकार्य नहीं है।

2019-02-10

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?

I. परमेश्वर के देह-धारण से सम्बंधित सत्य के पहलू पर हर किसी को गवाही देनी चाहिए

I. परमेश्वर के देह-धारण से सम्बंधित सत्य के पहलू पर हर किसी को गवाही देनी चाहिए

7. यह क्यों कहा जाता है कि परमेश्वर का दो बार देहधारी होना देह-धारण की महत्ता को पूरा करता है?

संदर्भ के लिए बाइबल के पद:
"वैसे ही मसीह भी बहुतों के पापों को उठा लेने के लिये एक बार बलिदान हुआ; और जो लोग उसकी बाट जोहते हैं उनके उद्धार के लिये दूसरी बार बिना पाप उठाए हुए दिखाई देगा" (इब्रानियों 9:28)।

2019-02-09

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?

I. परमेश्वर के देह-धारण से सम्बंधित सत्य के पहलू पर हर किसी को गवाही देनी चाहिए

6. यह क्यों कहा जाता है कि भ्रष्ट मानव जाति को देह बने परमेश्वर के उद्धार की अधिक आवश्यकता है?
(परमेश्वर के वचन का चुना गया अवतरण)

भ्रष्ट मानवजाति को देह धारण किए हुए परमेश्वर के उद्धार की अत्यधिक आवश्यकता है

परमेश्वर ने देहधारण किया क्योंकि शैतान का आत्मा, या कोई अभौतिक चीज़ उसके कार्य का विषय नहीं है, परन्तु मनुष्य है, जो शरीर से बना है और जिसे शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया है। निश्चित रूप से चूँकि मनुष्य की देह को भ्रष्ट किया गया है इसलिए परमेश्वर ने हाड़-मांस के मनुष्य को अपने कार्य का विषय बनाया है; इसके अतिरिक्त, क्योंकि मनुष्य भ्रष्टता का विषय है, उसने मनुष्य को अपने उद्धार के कार्य के समस्त चरणों के दौरान अपने कार्य का एकमात्र विषय बनाया है। मनुष्य एक नश्वर प्राणी है, और वह हाड़-मांस एवं लहू से बना हुआ है, और एकमात्र परमेश्वर ही है जो मनुष्य को बचा सकता है।

2019-01-18

अध्याय 46

तुम में से यदि कोई भी ईमानदारी से खुद को मेरे लिए खपाता और समर्पित करता है, तो मैं निश्चित रूप से तुम्हें अंत तक सुरक्षित रखूँगा; मेरा हाथ निश्चित रूप से तुमको थामे रहेगा ताकि तुम हमेशा शांति से रहो, हमेशा खुश रहो और हर दिन तुम्हारे पास मेरा प्रकाश और प्रकटीकरण हो। मैं निश्चित रूप से अपने आशीर्वादों को तुम्हारे लिए दुगुना कर दूँगा, ताकि जो कुछ मेरे पास है वह तुम्हारे पास हो, और जो कुछ मैं हूँ, तुम उसे धारण करो। जो तुम्हारे भीतर दिया गया है, वह तुम्हारा जीवन है, और कोई भी इसे तुमसे ले नहीं सकता है।

2019-01-12

सात गर्जनाएँ – भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य के सुसमाचार पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाएंगे

सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर कहते हैं:मेरी महिमा पूरे ब्रह्माण्ड में चमकती है; मेरी इच्छा कुछ यत्र-तत्र फैले लोगों में समाहित है, सब मेरे हाथ के इशारों पर चलते हैं और उन कामों को प्रचारित करते हैं जो मैंने उन्हें सौंपे हैं।

सात गर्जनाएँ—भविष्यवाणी करती हैं कि राज्य के सुसमाचार पूरे ब्रह्माण्ड में फैल जाएंगे

मैं अपना कार्य अन्यजाति देशों में फैला रहा हूँ। मेरी महिमा पूरे ब्रह्माण्ड में चमकती है; मेरी इच्छा कुछ यत्र-तत्र फैले लोगों में समाहित है, सब मेरे हाथ के इशारों पर चलते हैं और उन कामों को प्रचारित करते हैं जो मैंने उन्हें सौंपे हैं। इस बिंदु से आगे, सभी लोगों को एक दूसरे विश्व में लाते हुए, मैंने एक नए युग में प्रवेश किया है। जब मैं अपनी "मातृभूमि" लौटा तो मैंने अपनी मूल योजना के कार्य का एक और भाग आरम्भ किया, ताकि इंसान मुझे और गहराई से जान जाए। मैं दुनिया को पूरी समग्रता में देखता हूं और सोचता हूं कि यह मेरे कार्य के लिए अनुकूल समय है, इसलिए इधर-उधर जाता हूं और इंसान पर अपना नया कार्य करता हूं।

2018-12-21

चौथे कथन की व्याख्या

सभी लोगों को उनके नकारात्मक से सकारात्मक में संक्रमण के बाद उनका ध्यान आकृष्ट होने और उन्हें आवेश में बह जाने से रोकने के लिए, परमेश्वर के कथन के अंतिम अंश में, एक बार परमेश्वर ने अपने लोगों से अपनी उच्चतम अपेक्षाओं के बारे में कहा है—एक बार परमेश्वर ने अपनी प्रबंधन योजना के इस चरण में अपनी इच्छा के बारे में लोगों को बताया है—परमेश्वर अपने वचनों पर विचार करने, अंत में परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए अपना मन बनाने में उनकी सहायता करने का उन्हें अवसर प्रदान करता है।जब लोगों की स्थितियाँ सकारात्मक होती हैं, तो परमेश्वर तुरंत लोगों से इस मुद्दे के दूसरे पक्ष के बारे में प्रश्न पूछना शुरू कर देता है।