मेरे जीवन सिद्धांतों ने मेरा अहित किया
2017-12-21
चैंगकाई बेंग्ज़ी शहर, लियाओनिंग प्रांत
एक सामान्य वाक्यांश "अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं", ऐसी बात है जिससे मैं निजी रूप से बेहद परिचित हूँ। मैं और मेरा पति विशेष रूप से निष्कपट लोग थे: जब ऐसे मामलों की बात आती जिनमें हमारा खुद का निजी लाभ या हानि शामल हो, तो हम दूसरों के साथ बखेड़ा या झंझट वाले लोगों में से नहीं थे। हम जहाँ धीरज रख सकते थे हम धीरज रखते थे, हम जहाँ समझौतापरक हो सकते थे, वहाँ हम समझौतापरक होने की पूरी कोशिश करते थे। परिणामस्वरूप, अक्सर ही हम अपने को दूसरों के द्वारा धोखा दिया जाता हुआ और हमें अपमानित किया जाता हुआ पाते थे। वाकई ऐसा लगता था कि जीवन में, "अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं"—अगर तुम्हारे दिल में बहुत ज्यादा अच्छाई हो, अगर तुम अपने मामलों में बहुत समझौतापरक और शालीन हो, तो तुम छले जाने के लिए काफी ज़िम्मेदार हो।
मन में इन विचारों के साथ, मैंने खुद को इन सभी शोषणों के अधीन न होने और निराशा में और न जीने का संकल्प लिया: भविष्य के मामलों में और दूसरों के साथ व्यवहार में, मैं बहुत समझौतापरक न होने का संकल्प लेती हूँ। यहाँ तक कि मेरे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लेने के बाद भी, मैं अभी भी अपने आचरण और दूसरों के साथ अपनी बातचीत में इस सिद्धांत को लागू करती थी।
मन में इन विचारों के साथ, मैंने खुद को इन सभी शोषणों के अधीन न होने और निराशा में और न जीने का संकल्प लिया: भविष्य के मामलों में और दूसरों के साथ व्यवहार में, मैं बहुत समझौतापरक न होने का संकल्प लेती हूँ। यहाँ तक कि मेरे सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कार्य को स्वीकार कर लेने के बाद भी, मैं अभी भी अपने आचरण और दूसरों के साथ अपनी बातचीत में इस सिद्धांत को लागू करती थी।
एक समय, मैं अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए एक बहन के साथ काम कर रही थी। यह बहन अक्सर ही मेरी अपर्याप्तताओं और कमियों पर अँगुली उठाती थी; मुझे ऐसा लगता था कि वह हर तरीके में मुझे दबा रही थी। आरंभ में मैं सोचती थी कि: खुद के दम पर घर से दूर होना, कुछ सहनशीलता का उपयोग करने की कोशिश करना आसान नहीं है। बाद में, हालाँकि, उस बहन के अपनी आलोचनाओं में निर्दयी साबित होने के बाद, मैंने अंतत: उस "अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं" वाक्यांश के बारे में सोचा। मुझे ऐसा लगा कि वह बहन जरूरत यह जान गई होगी कि मैं बहुत ज्यादा अच्छी हूँ और इसलिए एक आसान लक्ष्य हूँ और उसने छोटे—मोटे और महत्वहीन मामलों का भी छिद्रान्वेषण करके मेरे लिए चीज़ों को मुश्किल बनाना तय कर लिया था। मैंने तय कर लिया कि मैं और ज्यादा अनुकूल बनने या उसका बर्ताव सहने वाली नहीं थी, इसलिए मैं अपने अंदर दबी हुई उजड्ड ऊर्जा को इकट्ठा करती और आगबबूला हो कर उसकी निंदा करती, और तभी रुकती थी जब वह बहन एक भी शब्द कहने की हिम्मत न कर पाती। बाद में, उस बहन ने मुझे उसके साथ संवाद करने के लिए कहा और भरोसा दिलाया कि उसे एहसास हो गया है कि जिस ढंग से उसने बात और व्यवहार किया था वह काफी अमानवीय था और उसने आशा की थी कि मैं उसे माफ कर सकती हूँ। उसने यह भी कहा कि परमेश्वर ने यह परिस्थिति आयोजित की थी और उसने उससे निपटने के लिए मुझे एक माध्यम के रूप में उपयोग किया था। जब मैंने यह सुना, तो तुम सोच सकते हो कि मैं इतनी खुश हुई, मानो कि मैं एक युद्धक्षेत्र से जीतकर आयी कोई चार सितारा सेनानायक हूँ। इसके अलावा, मैं यहाँ तक मानने लगी थी कि "अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं" वाक्यांश में बहुत सी खूबियाँ हैं।
केवल हाल ही में, कलीसिया द्वारा जारी "शैतान की 100 सूक्तियाँ जिन पर भ्रष्ट मनुष्य अस्तित्व के लिए भरोसा करते हैं" को पढ़ते हुए, मैंने एक अंश को देखा जिसमें कहा गया था कि: "'अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं।' … शैतान द्वारा हज़ारों सालों से मानवजाति को भ्रष्ट किया गया है और ऐसी अनगिनत धोखे हैं जिनका उपयोग शैतान लोगों का मन परिवर्तन करने के लिए करता है। यहाँ हमने ऐसे 100 धोखों का वर्णन किया है जिन्हें मानवजाति जीवन में उनका मार्गदर्शन करने के लिए बहुमूल्य उसूलों के रूप में महत्व देती है। ये धोखे मनुष्य के दिल की गहनतम गहराई में पहले से ही जड़ जमा चुके हैं; अगर सत्य से सज्जित न हों, तो मनुष्य इन धोखों की सच्ची प्रकृति का अनावरण करने में ज्यादा असक्षम हैं। अगर मनुष्य जीने के लिए सूक्तियों और सिद्धांतों के रूप में शैतान के इन धोखों को थामना जारी रखेगा, तो भ्रष्ट मानवजाति को कभी भी उद्धार प्राप्त नहीं होगा।" संगति में इस अंश को पढ़ने के बाद, अचानक ही मेरी समझ में आ गया, मानो कि लंबे सपने से जागी हूँ: "अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं" वाक्यांश मानवजाति को राज़ी और भ्रष्ट करने के लिए शैतान द्वारा निर्मित एक धोखा है। परमेश्वर कहता है कि दूसरों के साथ हमारे वार्तालापों में, हमें स्वीकार करने वाला, धैर्यवान, सहिष्णु और क्षमाशील होना चाहिए। हमें दूसरों के प्रति विचारशील, आदरणीय और प्रेममय होना चाहिए। इसके विपरीत, शैतान का जीवन सिद्धांत "अच्छे लोग पीछे रहते हैं", हमें बड़ी चालाकी से अच्छाई से दूर और बुराई की ओर ले जाता है, हमें दूसरों के साथ निपटने में बहुत ज्यादा अच्छा और समझौताकारी न होना सिखाता है। खुद को बचाने के लिए, हमें अवश्य "आँख के बदले आँख, दाँत के बदले दाँत" लेना चाहिए, हमें कठोर, बर्बर और बुरा बनना अवश्य सीखना चाहिए। मैंने जाना कि "अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं" एक धोखे का प्रतिनिधित्व करता है, जो सत्य के बिल्कुल विपरीत है—यह शैतान का तर्क है, यह शैतान की नकारात्मकता से संबंध रखता है, जो बड़े लाल अजगर का एक ज़हर है। शैतान इन दिखावटी 'सिद्धांतों' के माध्यम से कार्य करता है, ताकि मनुष्य एक-दूसरे के विरुद्ध षड़यंत्र रचने के लिए जबरदस्ती मजबूर हो जाएँ, निर्दयता से कत्ल करें और जिद्दी और अंतहीन प्रतिस्पर्धा में शामिल हों, और जब तक उनमें बिल्कुल भी मानवता न रह जाए तब तक किसी के भी समक्ष समर्पण न करें। इस तरह से मनुष्य खुद शैतान जैसा ही भ्रष्ट हो जाता है, बलिदान की वस्तुएँ इसके साथ दफ़न हो जाती हैं, और शैतान संपूर्ण मानवजाति को भ्रष्ट करने और खा जाने के अपने लक्ष्य को हासिल कर लेता है। मैं इस धोखे की वास्तविक प्रकृति को समझ नहीं सकी थी और "अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं" को स्वीकार करने और सम्मान देने वाले सत्य के रूप में लेती थी। मैं सोचती थी कि मैं बहुत ज्यादा अच्छी या मिलनसार नहीं बन सकती थी, और कि दूसरों के साथ निपटने में धैर्यवान या सहिष्णु होना मूर्खों और अज्ञानियों का तरीका है और इससे मैं केवल धोखे और दुर्व्यवहार का आसान शिकार बन जाऊँगी। क्योंकि मैंने इस धोखे को हमेशा ही जीने का उसूल बनाया हुआ था, इसलिए जब वह बहन मेरी कमियों को पहचानने और बेहतरी के लिए बदलाव लाने में मेरी मदद करने के लिए मुझे वे कमियाँ बताती थी, तो मैं न केवल उसकी टिप्पणियों को स्वीकार नहीं करती थी, बल्कि मैं असल में सोचती थी कि वह मुझे तंग कर रही है और छोटी-छोटी बातों का छिद्रान्वेषण कर रही थी। परिणामस्वरूप, मैंने एक दानव जैसा बर्ताव करते हुए अपने अंदर के पशु को खोल दिया। यहाँ तक कि जब उस बहन ने खुद को अपमानित किया और मुझसे माफी माँगी, तब भी मैंने खुद में परिज्ञान अर्जित नहीं किया या शर्मिंदगी महसूस नहीं की, बल्कि इसके बजाय यह सोचते हुए एक जीत जैसी खुशी जाहिर की, कि उस बहन ने अंतत: "हार स्वीकार" कर ली थी क्योंकि मैं "अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं" के अपने उसूल पर अटल थी। "इस जीत" को पाकर, मैं शैतान की इस सूक्ति का समर्थन और इसकी प्रशंसा करने की ओर और भी अधिक प्रेरित महसूस करती थी। मैं कितनी बेहूदा, कितनी हास्यास्पद थी! मैं अच्छाई के बदले बुराई को चुनने की ग़लती करते हुए, चीजों को पूरी तरह से पीछे की ओर ले गई थी; मेरे साथ बस तर्क-वितर्क नहीं किया जा सकता था! परमेश्वर का अंतिम कार्य मानवजाति को शैतान के ज़हर से शुद्ध करना, और उनके भ्रष्ट स्वभाव को बदलने के लिए सत्य का उपयोग करना है। हालाँकि, मेरे खुद के मामले में, मैंने सत्य की खोज नहीं की थी, या मेरे अंदर मौजूद शैतान के ज़हर को पहचानने का प्रयत्न नहीं किया था, न ही मैंने खुद को बदलने के लिए सत्य का अभ्यास किया था। इसके बजाय, मैं शैतान के धोखों का अनुसरण करती थी और सत्य को नकारती थी। अगर मैंने ऐसा ही करना जारी रखा होता, तो मैंने कभी भी खुद को समझना शुरू नहीं किया होता। मैं कभी भी सत्य हासिल नहीं करती और अपने स्वभाव में बदलाव नहीं लाती। अंत में, परमेश्वर द्वारा मेरा सर्वनाश कर दिया जाता, जैसा कि शैतान का भाग्य है।
परमेश्वर तेरी प्रबुद्धता और रोशनी के लिए तेरा धन्यवाद, जिससे मैं जान पाया कि शैतान की सूक्ति कि "अच्छे लोग सबसे पीछे रह जाते हैं" एक धोखे के अलावा और कुछ नहीं है, जिसका उपयोग शैतान मानवजाति पर मत-आरोपण करने और उसे भ्रष्ट करने के लिए करता है। इस वाक्यांश का उपयोग भ्रष्ट मानवजाति द्वारा एक-दूसरे से झगड़ते रहने के एक बहाने और माध्यम के रूप में किया जाता है। यह वाक्यांश सत्य के विपरीत है, और यह मानवजाति को केवल भ्रष्ट और बर्बाद ही कर सकता है। अगर मनुष्य अपना जीवनाधार शैतान के ज़हर से प्राप्त करता है, अगर वह शैतान की सूक्तियों के अनुसार कार्य करता है, तो वह केवल और अधिक भ्रष्ट और बुरा ही बनेगा। वह उत्तरोत्तर कम मानवीय रह जाएगा और परमेश्वर का उत्तरोत्तर ज्यादा विरोध करेगा, परमेश्वर से हटा दिया जाएगा। उसे कभी भी परमेश्वर का उद्धार नहीं मिलेगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैं तेरे वचनों में और सत्य की अपनी खोज में अपना पूरा प्रयास लगाने की शपथ लेती हूँ, ताकि मैं अपने अंदर शैतान के विभिन्न प्रकार के ज़हरों को पहचान सकूँ, शैतान के धोखों को पूर्णतया त्याग सकूँ, और शैतान की सूक्तियों के अनुसार अब और कार्य न करूँ। मैं सभी मामलों में तेरी इच्छा को पाने, और तेर वचन का अनुसरण करने की शपथ लेती हूँ, ताकि तेरा वचन मेरे दिल के अंदर गहराई तक जड़ जमा ले और ऐसी सूक्ति बन जाए जिससे मैं चीज़ों को करती हूँ, वे मानक बन जाएँ जिसके विरुद्ध मैं खुद का मापती हूँ। मुझे पूरी तरह से तेरे वचन के अनुरूप जीने दे।
Source From:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें