2019-03-31

अभ्यास (7)

तुम लोगों की मानवता बहुत अभावग्रस्त है, तुम सभी की जीवनशैली बहुत निम्न और हीन है, तुम सब में कोई मानवता नहीं है, और तुम लोगों में अंतर्दृष्टि की कमी है। यही कारण है कि तुम सभी को मानवता की चीजों के साथ खुद को लैस करने की आवश्यकता है। जमीर, तर्क-संगतता और अंतर्दृष्टि रखना, चीजों को कैसे कहें और देखें इसका ज्ञान होना, स्वच्छता पर ध्यान देना, एक सामान्य मानव की तरह काम करना—ये सभी सामान्य मानवता के अनुभव हैं।
जब तुम लोग ये ठीक से करते हो, तो तुम्हारी मानवता प्रमाणिक स्तर तक पहुँचेगी। दूसरा पहलू आध्यात्मिक जीवन के लिए खुद को तैयार करना है। तुम सभी को पृथ्वी पर परमेश्वर के कार्य की सम्पूर्णता ज्ञात होनी चाहिए, और उसके वचनों की अनुभूति करनी चाहिए। तुम्हें पता होना चाहिए कि कैसे उसकी व्यवस्थाओं का पालन करना है, और एक सृष्ट जीव का कर्तव्य कैसे पूरा किया जाए। ये दो पहलू हैं जिनमें तुम्हें आज प्रवेश करना चाहिए। एक पहलू मानवता के जीवन के लिए अपने आप को लैस करना है, और दूसरा पहलू आध्यात्मिक जीवन के अभ्यास से संबंधित है—और दोनों ही अनिवार्य हैं। कुछ लोग बेतुके होते हैं, और खुद को सिर्फ उसी से लैस करना जानते हैं जो मानवता से संबंधित है। वे अच्छे कपड़े पहनते हैं और उनके बाल हमेशा साफ होते हैं; उनके दिखावे में कोई दोष नहीं पाया जा सकता है। जो बातें वे कहते हैं और उनके बोलने के लहजे उचित होते हैं, और उनकी पोशाक बहुत प्रतिष्ठित और उपयुक्त होती है। लेकिन उनके पास भीतर कुछ नहीं होता है; उनकी सामान्य मानवता केवल बाह्य है। वे केवल क्या खायें, क्या पहनें, और क्या कहें, इन्हीं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो केवल फर्श की सफ़ाई, बिछौने-चादर-तकिये, और सफाई पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वे इन सब बातों में अच्छी तरह से अभ्यस्त होते हैं, लेकिन जब तुम उन्हें परमेश्वर के आखिरी दिनों के कार्य, और ताड़ना, शुद्धिकरण, परीक्षण और न्याय के बारे में अपनी जानकारी बताने के लिए कहोगे, तो उनके पास ऐसी चीजों का थोड़ा-सा भी अनुभव नहीं होता है। तुम उनसे पूछते हो: "क्या तुम उस प्राथमिक काम को समझते हो जो कि परमेश्वर पृथ्वी पर करता है? देहधारी परमेश्वर द्वारा किया गया कार्य क्या है? यह कैसे यीशु के कार्य से अलग है? और यह यहोवा के कार्य से कैसे अलग है? क्या वे एक ही परमेश्वर हैं? क्या वह युग का अंत लाने आया है, या मानव जाति को बचाने के लिए? वह क्या कार्य करता है?" उनके पास इसके बारे में कुछ भी कहने को नहीं होगा। सतही तौर पर, वे सुंदर ढंग से सज्जित हैं: बहनों ने खुद को एक फूल की तरह सुंदर बना लिया है, और भाई राजकुमारों की तरह, या कुछ समृद्ध युवा बांके दिखते हैं। वे केवल उन चीजों की परवाह करते हैं जो वे खाते और बाहर पहनते हैं; अंदर, वे निराश्रित हैं, और उनके पास परमेश्वर की थोड़ी-सी जानकारी भी नहीं हैं। इसका क्या मतलब है? दूसरे फूहड़-से पहनावे के होते हैं, भिखारियों की तरह, और पूरबी गुलामों की तरह दिखते हैं! क्या तुम लोग सचमुच नहीं समझते कि मैं तुम सभी से क्या चाहता हूँ? आपस में वार्तालाप करो: तुम लोगों ने क्या हासिल किया है? तुम सब इतने वर्षों से अनुसरण कर रहे हो, और क्या यही सब फल तुम लोगों ने पाया है—क्या तुम लोग शर्मिंदा महसूस नहीं करते हो? लज्जा नहीं आती? तुम सभी ने इन वर्षों में एक सच्चा रास्ता अपनाया है, और आज तुम लोगों का कद एक गौरैया से भी छोटा है। तुम लोगों के बीच युवा महिलाओं को देखो, फूलों की तरह सजी-संवरी, और एक-दूसरे से अपनी तुलना करती हुईं। तुम सब एक दूसरे से तुलना करने के लिए किस का उपयोग कर रहे हो? क्या यह मौज नहीं है? और तुम्हारी क्या माँगे हैं? क्या तुम लोगों को ऐसा लगता है कि मैं मॉडल की भर्ती के लिए आया हूँ? तुम सभी को कोई शर्म नहीं है! तुम्हारी जिंदगी कहाँ है? क्या तुम लोग असंयत इच्छाओं का पीछा नहीं करते हो? तुम्हें लगता है कि तुम बहुत सुंदर हो। तुम चौंधानेवाले हो सकते हो, लेकिन क्या तुम गोबर के ढेर में पैदा होने वाला एक कीड़ा नहीं हो? आज, तुम इन स्वर्गीय आशीषों का आनंद लेने के लिए भाग्यशाली हो क्योंकि परमेश्वर तुम्हें ऊपर उठाकर एक अपवाद बना रहा है, न कि तुम्हारे सुंदर चेहरे के कारण; क्या तुम अभी भी अस्पष्ट हो कि तुम कहाँ से आए? जीवन का उल्लेख करते ही तुम अपना मुंह बंद कर देते हो और कुछ भी नहीं कहते, तुम काठ की मुर्गियों की तरह हो, फिर भी तुम्हारे पास मेकअप करने के लिए हिम्मत है? तुम अभी भी अपने चेहरे पर पाउडर लगाने की सोचते हो? और तुम लोग अपने बीच रसिकों को देखो—वे इतने मनमौजी हैं, वे पूरे दिन मंडराते रहते हैं, उनके चेहरे पर एक बेपरवाह हाव-भाव होता है। वे हर जगह बदसलूकी करते हैं, क्या उनके बारे में कुछ भी मानवीय है? तुम लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति का ध्यान, चाहे वह पुरुष या महिला हो, पूरे दिन किस बात पर होता है? क्या तुम सब जानते हैं कि तुम खाने के लिए किस पर निर्भर हो? अपने कपड़ों को देखो, तुम्हारे हाथों ने क्या फसल काटी है उसे देखो, अपने पेट को रगड़ो—खून पसीने की कीमत चुकाकर तुमने क्या हासिल किया है? तुम अभी भी दृश्यावलोकन के बारे में सोचते हो, तुम अभी भी अपने बदबूदार देह को सजाने की सोचते हो—इसका क्या मूल्य है! तुम्हें सामान्य होने के लिए कहा जाता है, लेकिन आज न केवल तुम सामान्य नहीं हो, तुम इसके विपरीत हो। ऐसे व्यक्ति को मेरे सामने आने की हिम्मत कैसे हो सकती है? इस तरह की एक मानवता के साथ, अपने शरीर को प्रदर्शित और प्रकट करते हुए, हमेशा शरीर की वासनाओं के बीच रह कर, क्या तुम गंदे राक्षसों और बुरी आत्माओं के वंशज नहीं हो? मैं ऐसे गंदे राक्षस को लंबे समय तक रहने नहीं दूँगा! और यह मत सोचो कि मुझे नहीं पता कि तुम अपने दिल में क्या सोचते हो। तुम अपनी वासना और अपने शरीर पर एक कठोर लगाम रख सकते हो, लेकिन क्या मैं तुम्हारे दिल के विचारों को और जो कुछ तुम्हारी आँखें चाहती हैं उसे नहीं जान सकता? क्या तुम सब युवा महिलाएँ अपने देह को प्रदर्शित करने के लिए उसे फूलों की तरह सुंदर नहीं बनाती हो? तुम लोगों के लिए पुरुषों के क्या लाभ हैं? क्या वे वास्तव में तुम लोगों को दुःख के सागर से बचा सकते हैं? और तुम सब रसिक जो सज्जन और प्रतिष्ठित दिखने के लिए खुद को पोशाक पहनाते हो—क्या यह तुम्हारे रूप के दिखावे के लिए नहीं है? और तुम लोग इसे किसके लिए कर रहे हो? तुम सब के लिए महिलाओं के क्या लाभ हैं? क्या वे तुम लोगों के पाप के स्रोत नहीं हैं? तुम सब पुरुष और महिलाएँ, मैंने तुमसे कई वचन कहे हैं, फिर भी तुम लोगों ने उनमें से कुछ का ही अनुपालन किया है। तुम लोगों के कान भारी हैं, आँखें मंद हो गई हैं, और तुम सब के दिल कठोर हैं, इस तरह कि तुम लोगों के देह में लालसा के अलावा और कुछ नहीं है; तुम लोग इसमें फँसे हुए हो, बचने में असमर्थ हो। गंदगी और कीचड़ में छटपटाते तुम कीड़ों के पास कौन जाना चाहता है? मत भूलो कि तुम लोग उनकी तुलना में कुछ अधिक नहीं हो जिन्हें मैंने गोबर से उठाया है, मूल रूप से, तुम सब सामान्य मानवता वाले नहीं थे। मैं तुमसे जो चाहता हूँ वह सामान्य मानवता है जो मूल रूप से तुम लोगों के पास नहीं थी; मैं नहीं चाहता कि तुम लोग अपनी वासनाओं का प्रदर्शन करो, या कि अपने सड़े हुए देह को खुली छूट दो, जिसे कई वर्षों तक शैतान ने प्रशिक्षित किया है। जब तुम लोग इस तरह खुद को तैयार करते हो, तो क्या तुम्हें डर नहीं है कि तुम सब लगातार और भी गहरे फँस जाओगे? क्या तुम सब नहीं जानते कि तुम लोग मूल रूप से पाप के थे? क्या तुम लोग नहीं जानते कि तुम्हारे देह वासना से भरे हैं? यह ऐसा है कि तुम्हारी वासना तुम सब के कपड़ों से भी रिसती है, एक असहनीय रूप से बदसूरत, गंदे राक्षस जैसी तुम सब की स्थिति को प्रकट करते हुए। क्या तुम लोगों के सामने यह सब से अधिक स्पष्ट नहीं है? तुम सभी के दिल, तुम्हारी आँखें, तुम्हारे होंठ—क्या वे गंदे राक्षसों द्वारा अशुद्ध नहीं हुए हैं? क्या वे गंदे नहीं हैं? तुम सोचते हैं कि जब तक तुम कोई अनैतिक[क] काम नहीं करते, तब तक तुम अत्यंत पवित्र हो; तुम सोचते हो कि सुंदर ढंग से कपड़े पहन कर तुम अपनी नीच आत्माओं को छिपा सकते हो—इसकी कोई संभावना नहीं है! मैं तुम सब को और अधिक यथार्थवादी होने की सलाह देता हूँ: धोखेबाज़ और नकली मत बनो, और खुद को प्रदर्शित न करो। तुम लोग अपनी वासना एक-दूसरे को दिखाते हो, परन्तु जो भी तुम लोग प्राप्त करोगे वह होगी सदा के लिए पीड़ा और बेरहम प्रताड़ना! तुम्हें एक-दूसरे के साथ इश्कबाज़ी और प्यार करने की क्या ज़रूरत है? क्या यह तुम लोगों का खरापन है? क्या यह तुम सभी को सशक्त बनाता है? मैं तुम्हारे बीच उन लोगों से घृणा करता हूँ जो जादू-टोना की दवाओं का इस्तेमाल करते हैं और इंद्रजाल में पड़ते हैं, मैं तुम लोगों के बीच उन युवा पुरुषों और महिलाओं से घृणा करता हूँ जो अपने देह से प्यार करते हैं। सबसे अच्छा होगा यदि तुम लोग खुद को नियंत्रित करोगे, क्योंकि आज मैं तुमसे चाहता हूँ कि तुम्हारे पास सामान्य मानवता हो, न कि तुम अपनी वासना का दिखावा करो। तुम लोग हमेशा कोई भी मौका ले लेते हो, क्योंकि तुम लोगों के देह बहुत भरपूर हैं, और तुम सभी की वासना बहुत बड़ी है!
बाह्य रूप से, तुमने मानवता के अपने जीवन को अच्छी तरह से व्यवस्थित किया है, लेकिन जब तुमसे जीवन के ज्ञान की बात करने के लिए कहा जाता है, तो तुम्हारे पास कहने को कुछ नहीं होता—और इसमें तुम दरिद्र हो। तुम्हें सच्चाई से खुद को लैस करना चाहिए! मानवता के तुम्हारे जीवन में बेहतर होने की दिशा में परिवर्तन आया है, और तुम्हारे भीतर के जीवन में भी बदलाव आएगा—तुम्हारे विचारों का बदलाव और परमेश्वर में विश्वास पर तुम्हारे दृष्टिकोण का बदलाव, तुम्हारे भीतर ज्ञान और सोच का बदलाव, और तुम्हारी धारणाओं के भीतर ईश्वर के बारे में ज्ञान का बदलाव। निपटने, रहस्योद्घाटन और प्रावधान के माध्यम से, तुम धीरे-धीरे स्वयं के बारे में अपने ज्ञान, अपने अस्तित्व और परमेश्वर में अपने विश्वास को बदलते हो, जिससे कि तुम्हारा ज्ञान शुद्ध हो सके। इस तरह, मनुष्यों के भीतर के विचार बदल जाएँगे, जिस तरीके से वे चीज़ों को देखते हैं वह बदलेगा, और उनके मानसिक दृष्टिकोण बदल जाएँगे। तभी उनके जीवन-स्वभाव परिवर्तित होंगे। तुम्हें पूरा दिन किताबें पढ़ने, या अपने कमरे को ठीक करने या कपड़े धोने और सफाई में व्यतीत करने के लिए नहीं कहा जाता है। स्वाभाविक है, तुम्हारी सामान्य मानवता के साथ कोई समस्या नहीं होनी चाहिए—यह वह न्यूनतम है जो ज़रूरी है। जब तुम बाहर जाते हो, तो तुम्हारे पास अभी भी कुछ अंतर्दृष्टि और तर्कसंगतता हो, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तुम जीवन की सच्चाई से लैस रहो। जब आत्मा से सम्बंधित चीज़ों की बात की जाती है, तो मुमकिन है तुम मानवता के मामलों को नजरअंदाज करो; यह गलत है। जब तुम जीवन के संबंध में अपने आप को लैस करते हो, तो तुम्हें परमेश्वर के ज्ञान, अस्तित्व के बारे में तुम्हारे विचार और विशेष रूप से, आखिरी दिनों के दौरान परमेश्वर द्वारा किए गए कार्य के बारे में अपनी जानकारी पर बात करने में सक्षम होना चाहिए। चूँकि तुम जीवन का अनुसरण करते हो, इसलिए तुम्हें इन चीज़ों से खुद को लैस करना चाहिए। जब तुम परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हो, तो तुम्हें उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति के अनुपात में तोलना चाहिए। अर्थात्, जब तुम अपने वास्तविक अनुभवों के दौरान खुद में कमियों की खोज कर चुके हो, तो तुम्हें अभ्यास करने के लिए एक रास्ता खोजने में और अपनी गलत मंशाओं और धारणाओं को पीठ दिखाने में सक्षम होना चाहिए। यदि तुम हमेशा इसमें कड़ी मेहनत करते हो, और यदि तुम्हारा दिल हमेशा इन बातों पर केंद्रित रहता है, तो तुम्हारे पास अनुसरण के लिए एक मार्ग होगा, तुम खाली महसूस नहीं करोगे, और इस प्रकार तुम एक सामान्य स्थिति बनाए रखने में सक्षम होगे। तभी तुम एक ऐसे व्यक्ति होगे, जो स्वयं अपने जीवन के दायित्व-भार को उठाता है, और तभी तुम एक ऐसे व्यक्ति होगे जो विश्वास रखता है। परमेश्वर के वचनों को पढ़ने के बाद, क्यों लोग उन्हें अभ्यास में ढालने में असमर्थ हैं? क्या यह इसलिए नहीं है कि वे कुंजी क्या है यही समझ नहीं पाते? क्या ऐसा इसलिए नहीं कि वे जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं? उनका कुंजी को समझ नहीं पाना और उनके पास अभ्यास करने का कोई रास्ता न होना इसलिए है कि वे उन्हें अपनी ही स्थिति के विरुद्ध मापने में असमर्थ हैं, और अपनी स्वयं की स्थिति पर काबू पाने में असमर्थ हैं। कुछ लोग कहते हैं: मैंने उन्हें अपनी स्थिति के विरुद्ध मापा है, मुझे पता है कि मैं भ्रष्ट हूँ और खराब क्षमता का हूँ, लेकिन मैं परमेश्वर की इच्छा को संतुष्ट नहीं कर पा रहा हूँ। इसमें, तुमने केवल सतह को देखा है; कैसे देह के सुख को अलग करना, आत्म-तुष्टि को कैसे अलग करना, स्वयं को कैसे बदलना, इन चीजों में प्रवेश कैसे करना, अपनी क्षमता को कैसे बढ़ाना, किस पहलू से शुरू करना, ये सभी वे चीज़ें हैं जो वास्तविक हैं। तुम केवल कुछ बाहरी चीजों को समझते हो, तुम केवल इतना जानते हैं कि तुम वास्तव में बहुत भ्रष्ट हो। जब तुम अपने भाइयों और बहनों से मिलते हो, तो तुम कितने भ्रष्ट हो इसकी बात करते हो, और ऐसा लगता है कि तुम इसे जानते हो, और यह कि तुम अपने जीवन का भार उठाते हो। पर वास्तव में, तुम नहीं बदले हो, जो यह साबित करता है कि तुम्हें अभ्यास करने का मार्ग नहीं मिला है। यदि तुम एक कलीसिया की अगुवाई कर रहे हो, तो जब तुम कलीसिया में भाइयों और बहनों की स्थिति के बारे में बताते हो, तो तुम कह सकते हो: "कहीं कोई इससे अधिक पिछड़ा नहीं है; तुम लोग अवज्ञाकारी हो!" जहाँ तक यह प्रश्न है कि वे किस बात में अवज्ञाकारी और पिछड़े हुए हैं, तुम्हें उनकी अभिव्यक्तियों के बारे में बात करनी चाहिए—उनकी अवज्ञाकारी स्थिति और अवज्ञाकारी व्यवहार—और उन्हें पूरी तरह से आश्वस्त करना चाहिए। तुम्हें तथ्यों की बात करनी चाहिए और इस मुद्दे को समझाने के लिए उदाहरण देने चाहिए, और तुम्हें उनको यह भी बताना चाहिए कि वास्तव में इस विद्रोही व्यवहार से कैसे खुद को अलग किया जाए, और अभ्यास के पथ को इंगित करना चाहिए। तुम तभी उन्हें जीत सकोगे! यदि तुम केवल यह कहते हो, "मैं इस जगह पर आना नहीं चाहता हूँ; कोई भी तुम लोगों से अधिक पिछड़ा नहीं है, तुम सब बहुत विद्रोही हो", जब तुम इस तरह से बोलते हो, तो सुनने के बाद उनमें से किसी के पास एक पथ नहीं होगा-और तब तुम लोगों का नेतृत्व कैसे करोगे? तुम्हें उनकी वास्तविक स्थिति और वास्तविक अभिव्यक्तियों के बारे में बात करनी चाहिए; तभी तुम्हारे पास अभ्यास करने का एक मार्ग होगा, और केवल तब ही तुम्हारे पास वास्तविकता होगी।
आज तक, कई सत्य जारी किए गए हैं। लेकिन तुम्हें इन बिन्दुओं को जोड़ना है: तुम्हें यह निष्कर्ष निकालने के काबिल होना चाहिए कि सत्य कितने हैं। हमारे पास सामान्य मानवता के कौन से पहलुओं को होना चाहिए, जीवन स्वभाव में परिवर्तनों के मुख्य पहलू, दिव्य दर्शन को गहनतर बनाना, युगों से लोगों के जानने और अनुभव करने के कौन-कौन से गलत तरीकों का तुम सामना कर सके हो—केवल जब तुम इन बातों में फर्क करने और उन्हें जानने में सक्षम होते हो, तभी तुम सही रास्ते पर प्रवेश करने में सक्षम होगे। धार्मिक लोग बाइबल की आराधना करते हैं जैसे कि वह परमेश्वर हो। विशेष रूप से, वे नए नियम के चार सुसमाचारों को यीशु के चार चेहरों के रूप में देखते हैं। और इसी तरह, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के त्रित्व की बात भी है। ये सबसे ज्यादा बेतुके हैं। तुम सभी को उनके आर-पार देखना चाहिए, और इसके अलावा, तुम लोगों को देहधारी परमेश्वर और उसके अंतिम दिनों के कार्य के सार के बारे में पता होना चाहिए। अभ्यास के वे पुराने तरीके भी हैं: आत्मा में रहना, पवित्र आत्मा से भर जाना, प्रतिकूल परिस्थितियों के सामने समर्पण कर देना, सत्ता के अधीन होना—तुम्हें अभ्यास से संबंधित इन भ्रमों और विचलनों को भी जानना चाहिए; तुम्हें पता होना चाहिए[ख] कि लोगों ने पहले कैसे अभ्यास किया, और आज उन्हें कैसे अभ्यास करना चाहिए। कैसे सेवाकर्मियों को कलीसिया में एक-दूसरे के साथ सहयोग करना चाहिए, आत्म-तुष्टता को कैसे दूर रखें और ओहदे पर भरोसा नहीं करें, भाइयों और बहनों को एक-दूसरे के साथ कैसे मिलकर रहना चाहिए, अन्य लोगों के साथ और परमेश्वर के साथ सामान्य संबंध कैसे स्थापित करें, मानव जीवन में सामान्यता कैसे प्राप्त करें, अपने आध्यात्मिक जीवन में लोगों के पास क्या होना चाहिए, परमेश्वर के वचनों को उन्हें कैसे खाना और पीना चाहिए, ज्ञान से क्या जुड़ा हुआ है, और दिव्य दर्शन का सम्बन्ध किससे है, अभ्यास करने का मार्ग क्या है—क्या इन सब बातों को नहीं बताया गया है? ये वचन उन लोगों के लिए उपलब्ध हैं जो अनुसरण करते हैं, और किसी को भी पक्षपाती बर्ताव नहीं दिया जाता है। आज, तुम सब को स्वतंत्र रूप से रहने की क्षमता का विकास करना चाहिए। यदि तुम लोग हमेशा निर्भरता की मानसिकता रखते हो, तो भविष्य में, जब कोई तुम्हारा मार्गदर्शन करने वाला नहीं होगा, तो तुम मेरे इन वचनों के बारे में सोचोगे। क्लेश के समय में, कलीसिया के जीवन को जीना संभव नहीं है: भाई और बहन एक-दूसरे के साथ मिल नहीं सकते, उनमें से ज्यादातर अपने दम पर होते हैं और केवल उसी एक जगह के लोगों के साथ ही बातचीत कर सकते हैं, और इसलिए तुम्हारा वर्तमान कद पर्याप्त नहीं है। क्लेश के बीच, कई लोगों के लिए दृढ़ता से खड़ा रह पाना मुश्किल होगा। केवल वे जो जीवन के बारे में जानते हैं और सच्चाई से लैस हैं, वे प्रगति को बनाये रखने और पवित्रता प्राप्त करते रहने में सक्षम होते हैं। तुम्हारे लिए क्लेश का अनुभव करना आसान नहीं है; अगर तुम्हें लगता है कि क्लेश के माध्यम से गुजरना केवल कुछ दिनों की बात होती है, तो तुम अपनी सोच में बहुत भोले हो! तुम सोचते हो कि परमेश्वर के शब्दों को अंधाधुंध खाने-पीने से, जब वह समय आता है, तो तुम दृढ़ खड़े रह पाओगे—पर ऐसा नहीं है! यदि तुम इन सार की बातों को नहीं जानते हो, कुंजी क्या है यह भेद समझने में असमर्थ हो, और तुम्हारे पास अभ्यास करने का कोई मार्ग नहीं है, तो जब समय आता है और तुम्हारे साथ कुछ होता है, तो तुम भौंचक्के रह जाओगे, तुम शैतान के प्रलोभन से नहीं गुजर सकोगे, न ही शुद्धिकरण की शुरुआत से। अगर तुम में कोई सच्चाई नहीं है और तुम्हारे में दिव्य दर्शन की कमी है, तो जब समय आता है, तुम अपने आप को गिरने से रोक नहीं पाओगे; उस समय तुम सभी आशाओं को छोड़ दोगे और कहोगे, "ठीक है, मैं वैसे ही मरने वाला हूँ, मुझे भले ही अंत तक प्रताड़ित किया जाए! मेरे लिए कोई फर्क नहीं पड़ता, चाहे ताड़ना मिले या आग की झील, मैं उन दोनों को स्वीकार करता हूँ—मैं चीजों को वैसे ही लूँगा जैसे वे आती हैं!" यह सेवाकर्मियों के समय जैसा हुआ उसकी तरह है: लोगों ने सोचा कि[ग] चूंकि वे सेवाकर्मी थे, उन्हें अब जीवन का अनुसरण करने की ज़रुरत नहीं थी, और धूम्रपान करना तथा शराब पीना ठीक था। टीवी देखना, फिल्में देखना—उन्होंने यह सब किया। जब परिवेश प्रतिकूल होता है, यदि तुम इसका सामना करने में असमर्थ होते हो, तो जैसे ही तुम अपने साथ कुछ ढील करोगे, तुम सारी आशाओं को खो दोगे। इस तरह, तुम्हारे जाने बिना, तुम शैतान द्वारा बंदी बना लिए जाओगे। यदि तुम शैतान के प्रभाव को दूर नहीं कर सकते हो, तो तुम्हें शैतान के द्वारा बंदी बना लिया जाएगा, और तुम्हें फिर विनाश के लिए हवाले कर दिया जाएगा। और इसलिए, आज तुम्हें अपने आप को लैस करना चाहिए, तुम्हें स्वतंत्र रूप से जीने में सक्षम होना चाहिए, और जब तुम परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हो, तो तुम्हें अभ्यास करने के लिए एक मार्ग तलाशने में सक्षम होना चाहिए। यदि कोई भी कलीसिया में काम करने के लिए नहीं आता है, तो भी अनुसरण करने के लिए तुम्हारे पास एक मार्ग होना चाहिए, तुम्हें अपनी कमियों को खोज निकालने में और उन सच्चाइयों का पता लगाने में सक्षम होना चाहिए जो तुम्हें अभ्यास में रखनी हैं और जिनसे तुम्हें खुद को लैस करना है। पृथ्वी पर आने के बाद, क्या परमेश्वर हमेशा के लिए मनुष्य के साथ होगा? कुछ लोग उनकी धारणाओं में इस तरह विश्वास करते हैं: यदि तुम कार्य में हमें एक निश्चित बिंदु तक नहीं ले जाते, तो तुम्हारा कार्य समाप्त नहीं माना जा सकता, क्योंकि शैतान तुम पर आरोप लगाता है। मैं तुम्हें बताता हूँ, जब मैंने मेरे वचनों को कहना पूरा कर लिया, तो उसके साथ ही मैंने अपना कार्य भी सफलतापूर्वक पूरा कर लिया। जब मेरे कथन समाप्त हो जाएँ, तो मेरा कार्य पूरा हो गया होगा। मेरे कार्य का अंत शैतान की हार का सबूत है, और इस तरह कहा जा सकता है कि उसे सफलतापूर्वक पूरा कर दिया गया है, शैतान के किसी भी आरोप के बगैर। लेकिन जब मेरा कार्य समाप्त हो जाता है, यदि तब भी तुम लोगों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, तो तुम सभी जैसे लोग मुक्ति के बाहर होंगे और हटा दिए जाएँगे; मैं ज़रूरत से ज़्यादा कार्य नहीं करता हूँ। यह मामला ऐसा नहीं है कि मैं पृथ्वी पर तभी मेरा कार्य समाप्त करूँगा जब तुम एक निश्चित बिंदु तक विजित हो जाओ—जब तुम्हारे पास एक स्पष्ट ज्ञान हो, तुम्हारी क्षमता में सुधार हुआ हो, और तुम अंदर और बाहर दोनों से ही गवाही दो। वह असंभव होगा! आज, मैं तुम लोगों में जो कार्य करता हूँ वह तुम्हें सामान्य जीवन में ले जाने के लिए है, और एक नए युग को लाने के लिए और नए कार्य का नेतृत्व करने के लिए है। यह कार्य, जो चरण-दर-चरण किया जाता है, तुम लोगों के बीच सीधे किया जाता है: तुम लोगों को आमने-सामने, हाथ थाम कर सिखाया जाता है; जो कुछ तुम लोग नहीं समझ पाते, मैं तुम सब को बताता हूँ, वह सब प्रदान करते हुए जिसकी तुम लोगों में कमी है। यह कहा जा सकता है कि, तुम सब के लिए, यह कार्य तुम्हारे जीवन का प्रावधान है, और तुम लोगों को सामान्य मानवता के जीवन में जाने के लिए मार्गदर्शन देता है; यह विशेष रूप से आखिरी दिनों के दौरान लोगों के एक समूह का जीवन प्रदान करने के लिए है। मेरे लिए, ये सभी कार्य युग को खत्म करने और एक नए युग को लाने के लिए है; जब शैतान की बात आती है, तो परमेश्वर उसे पराजित करने के लिए देह धारण करते हैं। जो कार्य अभी मैं तुम लोगों के बीच करता हूँ वह आज का प्रावधान और सामयिक उद्धार है, लेकिन इन कुछ ही लघु वर्षों के दौरान, मैं तुम सब को सभी सत्य, जीवन का मार्ग और भविष्य का कार्य भी बताऊंगा, और यह तुम सब के लिए भविष्य में सामान्य तौर पर अनुभव करने की खातिर पर्याप्त होगा। वे सारे वचन जो मैं कहता हूँ तुम लोगों के प्रति मेरा एकमात्र धर्मोपदेश हैं, मैं और कोई धर्मोपदेश नहीं देता; आज, जो भी वचन मैं तुम सब से कहता हूँ वह सब तुम लोगों के लिए मेरा प्रोत्साहन है, क्योंकि आज, तुम लोगों के पास बहुत से वचनों का जिन्हें मैं कहता हूँ, कोई अनुभव नहीं है, और तुम लोग इन वचनों के भीतरी अर्थ को नहीं समझते। एक दिन, तुम लोगों के अनुभव फलदायक होंगे जैसा कि मैंने आज बताया है। ये वचन आज तुम सब के दिव्य दर्शन हैं, जिन पर भविष्य में तुम सब निर्भर होगे, वे आज के जीवन का प्रावधान हैं, और भविष्य के लिए प्रोत्साहन, और इनसे बेहतर और कोई उपदेश नहीं है। इसका कारण यह है कि जब तक मुझे पृथ्वी पर कार्य करना है वह उतना लम्बा समय नहीं जितना तुम लोगों के पास अनुभव के लिए है; मैं केवल अपना कार्य पूरा करता हूँ, जबकि तुम सब जीवन का अनुसरण करते हो, जिसमें जीवन की एक लंबी यात्रा होती है। केवल कई चीजों का अनुभव करने के बाद ही तुम लोग पूरी तरह से जीवन के मार्ग को प्राप्त करने में सक्षम होगे, तभी तुम लोग आज मेरे कहे गए वचनों के भीतर के अर्थ को देख पाओगे। तुम सब के हाथों में मेरे वचन हैं, तुम लोगों ने मेरे सभी आदेशों को प्राप्त किया है, तुम लोगों को उन सभी के लिए नियुक्त किया गया है जो तुम्हें करना चाहिए। चाहे कितना महान प्रभाव प्राप्त हो, जब वचन का कार्य समाप्त हो गया है, तो परमेश्वर की इच्छा पूरी हो चुकी है। ऐसा नहीं है जैसा तुम सोचते हो कि तुम को कुछ हद तक बदलना ही होगा; परमेश्वर तुम्हारी धारणाओं के अनुसार कार्य नहीं करता है।
लोगों के जीवन सिर्फ दो दिनों में विकसित नहीं होते हैं। उनके पास हर दिन खाने और पीने की बहुत सी चीज़ें हो सकती हैं, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है—उन्हें अपने जीवन में विकास की एक अवधि का अनुभव करना चाहिए, यह एक आवश्यक प्रक्रिया है। आज लोगों की जो क्षमता है उसे देखते हुए, उनके जीवन कितने बढ़ सकते हैं? परमेश्वर लोगों की जरूरतों के हिसाब से कार्य करता है, उनकी निहित क्षमता के आधार पर उपयुक्त माँग करते हुए। मान लो कि यह काम उच्चतर क्षमता वाले लोगों के एक समूह के बीच किया किया था: तब उसके कथन तुम लोगों के बीच जो कहे गए हैं उनकी तुलना में उच्चतर होंगे, दिव्य-दर्शन उच्चतर होंगे, और सत्य और भी अधिक ऊँचे होंगे। परमेश्वर के वचनों को और भी अधिक सख्त होना होगा, और मनुष्य को मुहैय्या कराने में और रहस्यों को प्रकट करने में और भी अधिक सक्षम। उनके बीच बात करते समय, परमेश्वरउन्हें उनकी आवश्यकताओं के अनुसार प्रदान करेगा। आज, कहा जा सकता है कि तुम लोगों से की जाने वाली माँगे तुम सब से संभव सर्वोच्च माँगे हैं; अगर यह कार्य उच्चतर क्षमता वालों पर किया जाता, तो माँगे और भी अधिक ऊंची होतीं। परमेश्वर के सभी कार्य लोगों की निहित क्षमता पर आधारित कर पूरे किए जाते हैं। आज, जिस सीमा तक परमेश्वर ने लोगों को बदला है और उन पर विजय पाई है, उससे ज्यादा कुछ नहीं है। कार्य के इस चरण के प्रभावों को मापने के लिए अपनी स्वयं की धारणाओं का उपयोग न करो। तुम लोगों के पास जो स्वाभाविक रूप से है, उसके बारे में तुम्हें स्पष्ट होना चाहिए, और तुम लोगों को खुद को बहुत ऊँचा नहीं मानना चाहिए; मूल रूप से, तुम लोगों में से किसी ने भी जीवन का अनुसरण नहीं किया, तुम लोग भिखारी थे जो सड़कों पर घूमते थे। परमेश्वर के लिए उस हद तक कार्य करना जिसकी तुम कल्पना करते हो जहाँ कि तुम सभी जमीन पर दण्डवत हो जाओ, पूरी तरह से आश्वस्त होकर, जैसे कि मानो तुमने एक महान दिव्य दृश्य देखा हो—यह तो असंभव होगा! इसका कारण यह है कि जिसने कोई भी सबूत नहीं देखा है, वह मेरे वचनों पर पूरी तरह से विश्वास नहीं कर सकता है। तुम लोग उन्हें बारीकी से जाँच सकते हो, लेकिन फिर भी तुम सब उन पर पूरी तरह से विश्वास नहीं करोगे; यह मनुष्य का स्वभाव है! जो अनुसरण करते हैं, उनमें कुछ बदलाव होंगे, जबकि उन लोगों का विश्वास जो ऐसा नहीं करते, कम होगा, और गायब भी हो सकता है। तुम लोगों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि तुम सभी परमेश्वर के वचनों की पूर्ति को देखे बिना पूरी तरह विश्वास नहीं कर सकते हो, और सबूतों को देखे बिना समाधान नहीं कर सकते। ऐसी चीजों से पहले, कौन परमेश्वर के प्रति अचूक निष्ठावान रह सकता था? और इसीलिए मैं कहता हूँ कि तुम लोग परमेश्वर पर नहीं, बल्कि सबूतों पर विश्वास करते हो। आज तक, मैंने कई पहलुओं के बारे में स्पष्ट रूप से बात की है, सच्चाई के सभी पहलुओं को तैयार करते हुए, और ये सत्य एक दूसरे की सहायता करने में भी सक्षम हैं। इस प्रकार, तुम्हें अब उन्हें अभ्यास में रखना चाहिए: आज मैं तुम्हें मार्ग दिखाता हूँ, और भविष्य में तुम्हें खुद उन्हें अभ्यास में ढालना चाहिए। आज, मेरे कहे गए वचन लोगों से उनकी वास्तविक परिस्थितियों के आधार पर माँग करते हैं, और मैं उनकी जरूरतों और उनके अंदर की चीजों के आधार पर कार्य करता हूँ। व्यावहारिक परमेश्वर पृथ्वी पर व्यावहारिक कार्य करने के लिए आया है, लोगों की वास्तविक परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करने के लिए; वह अतर्कसंगत नहीं है। और जब परमेश्वर कार्य करता है, वह लोगों से जबरदस्ती नहीं करता है। उदाहरण के लिए, तुम विवाह करते हो या नहीं, यह तुम्हारी अपनी वास्तविक स्थिति के अनुसार होना चाहिए; सच तुम से स्पष्ट रूप से कहा गया है, और मैं तुम्हें रोकता नहीं। कुछ परिवार इस हद तक लोगों पर अत्याचार करते हैं कि वे तब तक परमेश्वर पर विश्वास नहीं कर पाते हैं जब तक कि वे शादी नहीं करते—तो शादी उलटे उनके हित में हो जाती है। कुछ लोगों के लिए, विवाह न केवल कोई लाभ नहीं लाता, बल्कि जो चीज़ें उनके पास मूलतः थीं, उन्हें उनको भी खोना पड़ता है। यह तुम्हारी वास्तविक परिस्थितियों और तुम्हारे अपने संकल्प पर निर्भर होना चाहिए। मैं ऐसे नियम प्रस्तुत नहीं करता जिनके अनुसार तुम लोगों से माँगें की जाएँ। बहुत से लोग हमेशा कहते हैं, "परमेश्वर वास्तविक है, उसका कार्य वास्तविकता पर आधारित है और हमारी वास्तविक परिस्थितियों के अनुसार किया जाता है"—लेकिन क्या तुम जानते हो कि इसे वास्तविक क्या बनाता है? पूरे दिन खाली शब्दों को मत बोलो! परमेश्वर का कार्य वास्तविक है, और वास्तविकता पर आधारित, इसमें कोई सिद्धांत नहीं है, इसे पूरी तरह से जारी किया जाता है, और यह पूरा खुला और स्पष्ट है। इन सिद्धांतों में क्या समाविष्ट है? क्या तुम यह कह सकते हो कि परमेश्वर के कौन से कार्य पर यह लागू होता है? तुम्हें सुनिश्चित बात करनी चाहिए, और कई पहलुओं में अनुभव प्राप्त किया होना चाहिए और गवाही दी होनी चाहिए। जब यह पहलू तुम्हारे लिए विशेष रूप से स्पष्ट हो जाता है और तुम इसे जान लेते हो, तभी तुम इन शब्दों को बोलने के योग्य होगे। अगर कोई तुमसे पूछता है: पृथ्वी पर देहधारी व्यावहारिक परमेश्वर को कौन-सा कार्य करना है? तुम लोग उसे व्यावहारिक परमेश्वर क्यों कहते हो? ‘व्यावहारिक’ में क्या शामिल है? क्या तुम उसके व्यावहारिक कार्य के बारे में बता सकते हो, इसमें विशेष रूप से क्या शामिल है? यीशु देहधारी परमेश्वर था, और व्यावहारिक परमेश्वर भी देहधारी परमेश्वर है—उनमें अंतर क्या है? और समानताएँ क्या हैं? उन्होंने क्या कार्य किया है? क्या तुम कह सकते हो? यह सब गवाही देना है! इन बातों के बारे में उलझन में मत पड़ो। ऐसे अन्य लोग हैं जो कहते हैं: "व्यावहारिक परमेश्वर का कार्य सच्चा है, वह कभी भी सबूत और चमत्कार नहीं दिखाता।" क्या वह सचमुच सबूत और चमत्कार नहीं दिखाता है? क्या तुम वास्तव में यह जानते हो? क्या तुम जानते हो कि मेरा कार्य क्या है? यह कहा गया था कि सबूत और चमत्कार दिखाए नहीं जाएँगे, लेकिन क्या वह जो काम करता है और जिन वचनों को वह कहता है, क्या वे संकेत नहीं है? ऐसा कहा गया था कि सबूत और चमत्कार दिखाए नहीं जाएँगे, लेकिन यह निर्भर करता है, यह इस पर निर्भर करता है कि ये वचन किससे कहे गये थे। कलीसिया गए बिना, उसने लोगों की स्थिति को उघाड़ दिया है, और किसी भी अन्य कार्य को किये बिना, केवल बोलने से ही, उसने लोगों को आगे बढ़ाया है—क्या ये संकेत नहीं हैं? केवल वचनों को बोल कर, उसने लोगों पर विजय प्राप्त की है, और संभावनाओं तथा उम्मीदों के बिना, लोग अभी भी खुशी से अनुसरण करते हैं—क्या ये संकेत नहीं हैं? जब वह बोलता है, तो उसके वचन लोगों को एक निश्चित मनोदशा में डाल देते हैं, जिसमें वे खुश या उदास,परिष्कृत अथवा प्रताड़ित महसूस कर सकते हैं। कुछ तीक्ष्ण वचनों से ही, वह लोगों पर ताड़ना ले आता है—क्या यह अलौकिक नहीं है? क्या कोई व्यक्ति ऐसा कर सकता है? तुमने उन सब वर्षों के लिए बाइबल पढ़ी, लेकिन तुमने कुछ भी नहीं समझा, कुछ भी नहीं देखा, और तुम विश्वास करने के उन पुराने, परंपरागत तरीकों से अपने आप को अलग करने में असमर्थ रहे, और तुम बाइबल की थाह नहीं पा सके। वह फिर भी बाइबल के आर-पार देख सकता है—क्या यह अलौकिक नहीं है? अगर परमेश्वर के बारे में, जब वह पृथ्वी पर आया, कुछ भी अलौकिक नहीं होता, तो क्या वह तुम सब को जीत पाता? बिना उसके असाधारण, दिव्य कार्य के, तुम लोगों के बीच कौन आश्वस्त होता? तुम्हारी नज़र में ऐसा प्रतीत होता है कि एक सामान्य व्यक्ति काम कर रहा है और तुम्हारे साथ रह रहा है—वह बाहर से एक साधारण और सामान्य व्यक्ति के रूप में प्रतीत होता है। तुम जो देखते हो वह सामान्य मानवता का बाहरी भाग है, लेकिन वास्तव में, जो काम करता है वह दिव्य है। जो काम करता है वह सामान्य मानवता का नहीं है, बल्कि दिव्य है; यह परमेश्वर ही है, बात सिर्फ इतनी है कि वह कार्य करने के लिए सामान्य मानवता का इस्तेमाल करता है—जिसके परिणामस्वरूप उसका काम सामान्य और अलौकिक दोनों ही है। वह जो कार्य करता है उसे मनुष्य द्वारा नहीं किया जा सकता। जो कार्य सामान्य लोगों के लिए असंभव होता है, उसे एक असाधारण सत्ता के द्वारा किया जाता है। फिर भी यह असाधारणता दिव्य है; ऐसा नहीं है कि मानवता असाधारण है, बल्कि देवत्व मानवता से अलग है। जो पवित्र आत्मा द्वारा उपयोग में लाया जाता है वह भी साधारण, सामान्य मानवता का होता है, लेकिन वह यह काम करने में असमर्थ होता है। यहीं पर भेद है। तुम कह सकते हो: "परमेश्वर एक अलौकिक परमेश्वर नहीं है, वह कुछ भी अलौकिक नहीं करता है। हमारा परमेश्वर ऐसे वचनों को कहता है जो व्यावहारिक और वास्तविक हैं, वह सचमुच, वास्तव में कलीसिया में कार्य करने के लिए गया है, हर दिन वह हमारे साथ आमने-सामने बात करता है, और आमने-सामने वह हमारी स्थितियों को दिखलाता है—हमारा परमेश्वर वास्तव में वास्तविक है! वह हमारे साथ रहता है, सब कुछ बहुत सामान्य है, ऐसा कुछ भी नहीं जिससे लगे कि वह परमेश्वर है। ऐसे समय भी होते हैं जब वह क्रोधित हो जाता है, और हम उसके क्रोध की महिमा को देखते हैं, और जब वह मुस्कुराता है, हम उसके मुस्कुराहट भरे बर्ताव को देखते हैं। वह खुद ही परमेश्वर है, जो एक मूर्त रूप लिए हुए है, जो शरीर और रक्त से बना है, जो यथार्थ और वास्तविक है।" जब तुम इस तरह से गवाही देते हो, तो तुम्हारी गवाही पूरी नहीं है। यह दूसरों को क्या सहायता करेगी? यदि तुम अंदरूनी कहानी और स्वयं परमेश्वर के कार्य के सार की गवाही नहीं दे सकते हो, तो तुम गवाही दे ही नहीं रहे हो! सबसे बढ़कर, गवाही देने के लिए यह जरूरी है कि तुम परमेश्वर के कार्य के बारे में अपने ज्ञान की बात करो कि कैसे परमेश्वर ने लोगों पर विजय प्राप्त की, कैसे वह लोगों को बचाता है, कैसे वह लोगों को बदलता है, और कैसे वह प्रवेश करने में लोगों का मार्गदर्शन करता है, ताकि वे जीते जा सकें, परिपूर्ण हो सकें एवं बचाए जा सकें। गवाही देने का मतलब है उसके कार्य की, और जो कुछ तुमने अनुभव किया है उसकी, बात करना। केवल उसका कार्य उसका प्रतिनिधित्व करता है, और केवल उसका कार्य सार्वजनिक तौर पर उसकी संपूर्णता को प्रकट कर सकता है; उसका कार्य ही उसकी गवाही देता है। उसका कार्य और उसके कथन सीधे आत्मा का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह जो कार्य करता है वह आत्मा द्वारा किया जाता है, और जिन वचनों को वह कहता है, वे आत्मा द्वारा कहे जाते हैं। ये बातें केवल देहधारी परमेश्वर के माध्यम से व्यक्त की जाती हैं; वास्तव में, वे आत्मा की ही अभिव्यक्ति हैं। वह जो कार्य करता है और जो वचन बोलता है वह उसके सार-तत्व का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर, मनुष्यों के बीच देह-रुपी वस्त्र धारण करने के बाद, परमेश्वर ने बात नहीं की होती या काम नहीं किया होता, और फिर तुम्हें उसकी वास्तविकता, उसकी सामान्यता और उसकी सर्वशक्तिमानता जानने के लिए कहा होता, तो क्या तुम सक्षम होते? क्या तुम जान पाते कि आत्मा का सार क्या है? क्या तुम यह जान पाने के लिए सक्षम होते कि उसका गुण क्या है? यह केवल इसलिए है कि तुम लोगों ने उसके कार्य के प्रत्येक चरण का अनुभव किया है, कि वह तुमसे उसकी गवाही देने के लिए कहता है, और यदि तुमने इसका अनुभव नहीं किया होता, तो वह तुमसे इस तरह की माँग नहीं करता। इस प्रकार, जब तुम परमेश्वर की गवाही देते हो, तो वह सामान्य मानवता के उसके बाह्य स्वरुप को नहीं, बल्कि वह जो कार्य करता है, और जिस मार्ग पर वह अगुआई करता है, उन्हें प्रमाणित करता है, वह यह साबित करता है कि तुम उसके द्वारा कैसे जीते गए हो, और किन पहलुओं में तुम्हें सिद्ध बनाया गया है। तुम्हें इस तरह की गवाही देनी चाहिए। यदि, चाहे तुम कहीं भी जाओ, तुम चीखते हो: हमारा परमेश्वर काम करने आया है, वह वास्तव में व्यावहारिक है! उसने हमें किसी भी अलौकिक बात या संकेत और चमत्कार के बिना प्राप्त किया है! तो अन्य लोग पूछेंगे: जब तुम कहते हो कि वह संकेत और चमत्कार नहीं दिखाता है, तो इसका क्या मतलब है? क्या वह तुम्हें सबूत और चमत्कार दिखाए बिना जीत सकता है? और तुम कहते हो: वह जो करता है वह है बोलना। उसने हमें कोई सबूत और चमत्कार दिखाए बिना जीत लिया है—उसके काम ने हमें जीत लिया है। अंततः, यदि तुम सार-गर्भित कुछ भी नहीं कह पा रहे हो, और विशेष रूप से कोई बात नहीं कर सकते, तो क्या तुम गवाही दे रहे हो? जब व्यावहारिक परमेश्वर लोगों पर विजय प्राप्त करता है, तो ये उसके दिव्य वचन ही होते हैं जो लोगों को जीत लेते हैं। मानवजाति यह नहीं कर सकती है, यह ऐसा कुछ नहीं है जिसे कोई नश्वर प्राणी प्राप्त कर सकता हो, और यहाँ तक ​​कि सामान्य लोगों के बीच में जो उच्चतम क्षमता लिए हुए हैं, वे भी इसे करने में असमर्थ हैं, क्योंकि उसका देवत्व किसी भी सृष्ट जीव से अधिक है। लोगों के लिए, यह असाधारण है; सृष्टिकर्ता, आखिर तो, किसी भी सृष्ट जीव से अधिक ही है। यह कहा गया है कि छात्र अपने शिक्षकों से अधिक नहीं हो सकते। निर्मित प्राणी निर्माता से अधिक नहीं हो सकते; यदि तुम उससे ऊपर होते, तो वह तुम्हें जीत नहीं पाता—वह तुम्हें जीत सकता है क्योंकि वह तुमसे ऊपर है। वह जो सभी मानव जाति को जीत सकता है, सृष्टिकर्ता ही है, लेकिन उसके अलावा कोई और यह काम नहीं कर सकता। यह गवाही है; यह उस तरह की गवाही है जो तुम्हें देनी चाहिए। तुमने ताड़ना, निर्णय, शुद्धिकरण, परीक्षण, झटके, और यातनाओं के प्रत्येक चरण का अनुभव किया है, और तुमने विजय हासिल की है, और तुमने शरीर की संभावनाओं को, अपनी निजी प्रेरणाओं और देह के व्यक्तिगत हितों को अलग कर दिया है—दूसरे शब्दों में कहें तो, सभी लोगों के दिल परमेश्वर के वचनों से जीते गए हैं। यद्यपि तुम्हारा जीवन उस हद तक विकसित नहीं हुआ है, जितना उसने चाहा था, तुम इन बातों को जानते हो, और वह जो भी करता है, तुम उससे पूरी तरह से आश्वस्त हो—तो यह गवाही है, और यह गवाही वास्तविक है! परमेश्वर जो कार्य करने आया है—न्याय और ताड़ना का—वह मनुष्य पर विजय प्राप्त करने के लिए है, परन्तु वह अपने काम का समापन भी करता है, युग को समाप्त करता है, अपने कार्य का अंतिम अध्याय पूरा करता है। वह पूरे युग को समाप्त करता है, पूरी मानव जाति को बचाता है, पूर्ण रूप से मानव जाति को पाप से छुड़ाता है, और पूरी तरह से मानव जाति को, जिसे उसने बनाया था, प्राप्त कर लेता है। यह सब है जिसकी तुम्हें गवाही देना चाहिए।
तुमने परमेश्वर के बहुत से कार्य का अनुभव किया है, तुमने इसे अपनी आँखों से देखा है और इसे व्यक्तिगत रूप से अनुभव किया है, इसलिए यह बात कितनी दयनीय होगी अगर तुम अंततः उस काम को नहीं कर सकते जो तुम्हें निश्चय ही करना चाहिए था। भविष्य में, जब सुसमाचार फैलाया जाता है, तो तुम्हें अपने खुद के ज्ञान की बात करने में सक्षम होना होगा, अपने दिल में अर्जित सभी चीजों का प्रमाण देना होगा, और कोई प्रयास नहीं छोड़ना होगा। यह है जो एक सृष्ट जीव के द्वारा प्राप्त किया जाना चाहिए। परमेश्वर के कार्य के इस चरण का क्या महत्व है? इसका असर क्या है? और इसका कितना भाग मनुष्य में किया जाता है? लोगों को क्या करना चाहिए? जब तुम लोग देहधारी परमेश्वर के पृथ्वी पर आने के बाद उससे किए गए सभी कार्यों के बारे में स्पष्ट रूप से बोल सकते हो, तो तुम्हारी गवाही पूर्ण होगी। जब तुम इन पाँच चीज़ों के बारे में स्पष्ट रूप से बोल सकते हो—महत्व, सामग्री, उसके काम का सार, उसका स्वभाव जिसका यह सार प्रतिनिधित्व करता है, और उसके कार्य के सिद्धांत—तब यह साबित होगा कि तुम गवाही देने में सक्षम हो, और तुम वास्तव में उस ज्ञान से संपन्न हो। जो मैं तुम लोगों से चाहता हूँ वह बहुत ज्यादा नहीं है, और उन सभी के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है जो वास्तव में अनुसरण करते हैं। यदि तुम परमेश्वर के गवाहों में से एक होने का संकल्प कर चुके हो, तो तुमको यह समझना चाहिए कि परमेश्वर को किस बात से घृणा और किस से प्रेम है। तुमने उसके कार्य में से काफी का अनुभव किया है, और इस कार्य के माध्यम से, तुम्हें उसके स्वभाव का, और जिन बातों से उसे घृणा या प्रेम है उसका, पता चलना चाहिए, और उसकी इच्छा और मानव जाति से उसकी अपेक्षाओं को तुम्हें समझना चाहिए, और इसका उपयोग उसकी गवाही देने और अपना कर्तव्य पूरा करने के लिए करना चाहिए। तुम केवल यही कह सकते हो: "हम परमेश्वर को जानते हैं, उसका न्याय और उसकी ताड़ना बहुत कठोर है, उसके वचन बहुत कड़े हैं, वे धर्मी और भव्य हैं, और वे किसी भी व्यक्ति के द्वारा दूषित नहीं किये जा सकते।" लेकिन अंततः, क्या वे मनुष्य को प्रावधान देते हैं? लोगों पर उनका क्या प्रभाव है? क्या तुम वास्तव में जानते हो कि यह कार्य अच्छा है? क्या परमेश्वर का निर्णय और उसकी ताड़ना तुम्हारे स्वभाव को उजागर करने में सक्षम है? क्या वे तुम्हारी अवज्ञा को प्रकट करने में सक्षम हैं? क्या वे तुम्हारे भीतर से उन चीजों को निष्कासित करने में सक्षम हैं? तुम परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना के बिना क्या हो जाते? क्या तुम सचमुच जानते हो कि शैतान ने तुम्हें कितना भ्रष्ट कर दिया है? यह सब है जिससे तुम लोगों को अपने आप को लैस करना चाहिए और जिसकी तुम्हें जानकारी होनी चाहिए।
अब समय तुम लोगों की कल्पना में मौजूद परमेश्वर में विश्वास करने का नहीं है: यह ऐसा नहीं है कि तुम लोगों को केवल परमेश्वर के वचनों को पढ़ना है, प्रार्थना करनी है, गायन करना, नृत्य करना, अपना कर्तव्य करना है और सामान्य मानवता का जीवन जीना है ... क्या चीजें इतनी सरल हो सकती हैं? जो कुंजी है वह है प्रभाव—तुम कितनी चीजें करते हो यह नहीं, बल्कि यह कि तुम वास्तव में सबसे अच्छा प्रभाव कैसे प्राप्त कर सकते हो। तुम किसी पुस्तक को हाथ में लेकर थोड़े ज्ञान की बात कर सकते हो, लेकिन जब तुम इसे नीचे रख देते हो, तो तुम्हें इसका कोई ज्ञान नहीं होता; तुम केवल शब्दों और सिद्धांतों को बोलने में सक्षम हो, और तुम्हें अनुभव का ज्ञान नहीं है। आज, तुम्हें समझना चाहिए कि कुंजी क्या है—यह वास्तविकता में प्रवेश का एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग है! कुछ और करने से पहले, निम्नलिखित प्रशिक्षण को लो: पहले परमेश्वर के वचनों को पढ़ो—उनमें रहे आध्यात्मिक शब्दों की पकड़ पाओ, उनके भीतर प्रमुख दर्शनों को खोजो, अभ्यास के रास्ते के हिस्सों की पहचान करो, और उन सब को एक साथ जोड़ो। उनमें से एक-एक को देखो, और अपने अनुभवों के दौरान उन में प्रवेश करो। ये आधारभूत चीजें हैं जिन्हें तुम्हें समझना चाहिए। परमेश्वर के वचनों को खाने और पीने के समय अभ्यास में एक सबसे महत्वपूर्ण बात है, परमेश्वर के किसी एक वचन को पढ़ने के बाद, दिव्य दर्शन के विषय में महत्वपूर्ण भागों का पता लगाने में सक्षम होना, और अभ्यास के संबंध में मुख्य भागों का पता लगाने में सक्षम होना, फिर अपने जीवन में दिव्य दर्शन को आधार के रूप में और अभ्यास को मार्गदर्शक के रूप में उपयोग में लाना। यह सब है जिसकी तुम सब में सबसे अधिक कमी है, और यह तुम लोगों के साथ सबसे बड़ी समस्या है—अपने दिलों में तुम शायद ही कभी इस ओर ध्यान देते हो। तुम सभी की यह स्थिति है: आलसी, अप्रेरित, कीमत चुकाने के लिए अनिच्छुक, या निष्क्रिय रूप से प्रतीक्षारत। कुछ लोग शिकायत भी करते हैं; वे परमेश्वर के काम के उद्देश्य और महत्व को नहीं समझ पाते हैं, और उनके लिए सच्चाई का अनुसरण करना कठिन है। ऐसे लोग सच्चाई से घृणा करते हैं, और अंततः हटा दिए जाएँगे। उनमें से कोई भी सिद्ध नहीं बनाया जा सकता है, और कोई भी बच नहीं पाएगा। यदि लोगों को शैतान के प्रभाव का विरोध करने का ज़रा-सा भी संकल्प नहीं है, तो उनके लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता है!
तुम लोगों की खोज प्रभावी हुई है या नहीं इसे तुम सब की आज की खोज और वर्तमान में तुम लोगों के पास क्या है, इसके आधार पर मापा जाता है। ये वो हैं जिनका इस्तेमाल तुम सभी के अंत का निर्धारण करने के लिए किया जाता है, जिसका अर्थ है कि तुम लोगों का अंत तुम्हारे द्वारा भुगतान की गई कीमत और तुम्हारे द्वारा किए गए कार्यों में दिखाया जाता है। तुम सभी का अंत तुम लोगों के अनुसरण, तुम्हारे विश्वास, और तुम सब ने जो किया है उसके द्वारा प्रकट होगा। तुम सभी के बीच, कई लोग हैं जो पहले से ही मुक्ति से बाहर हैं—क्योंकि आज लोगों का अंत प्रकट करने का समय है, और मैं मूर्खतापूर्ण ढंग से कार्य नहीं करूँगा, उन लोगों की अगुआई करते हुए जो अगले युग तक बचाए नहीं जा सकते। एक समय होगा जब मेरा कार्य खत्म हो जाएगा। मैं उन बदबूदार, आत्माहीन लाशों पर काम नहीं करूँगा जिन्हें बचाया नहीं जा सकता है; आज मनुष्य के उद्धार के आखिरी दिनों का समय है, और मैं उस काम को नहीं करूँगा जिसका कोई फायदा नहीं है। स्वर्ग और पृथ्वी के खिलाफ निंदा न करें—दुनिया का अंत आ रहा है, और यह अपरिहार्य है; चीज़ें इस बिंदु तक आ पहुंची हैं, और उसे रोकने के लिए ऐसा कुछ भी नहीं है जो तुम एक मानव होकर कर सकते हो, तुम उन्हें इच्छानुसार बदल नहीं सकते हो। कल, तुमने अनुसरण करने के लिए एक कीमत नहीं चुकाई, और तुम वफादार नहीं थे। आज, समय आ चुका है, तुम मुक्ति के बाहर हो, और कल तुम हटा दिए जाओगे। तुम्हारे बचने की कोई गुंजाइश नहीं है। भले ही मेरा दिल नरम है और मैं तुम्हें बचाने के लिए अपनी पूरी कोशिश करता हूँ, अगर तुम संघर्ष नहीं करते और अपने लिए कुछ भी नहीं सोचते, तो इसका मेरे साथ क्या सरोकार है? जो केवल अपने देह की सोचते हैं और आराम पसंद करते हैं, जिनके विश्वास संदिग्ध हैं, जो जादू-टोना की दवाओं और इंद्रजाल में शामिल होते हैं, वे जो स्वच्छंद संभोगी हैं, जो फटेहाल और चीथड़ों में हैं, जो यहोवा को दी गई बलि और उसकी संपत्ति चुराते हैं, जो रिश्वत से प्यार करते हैं, जो बैठे-ठाले स्वर्ग जाने का स्वप्न देखते हैं, जो अभिमानी और दम्भी हैं, और केवल व्यक्तिगत प्रसिद्धि और भाग्य के लिए प्रयास करते हैं, जो असंगत बातों को फैलाते हैं, जो स्वयं परमेश्वर के ही विरुद्ध निंदा करते हैं, जो स्वयं परमेश्वर के खिलाफ निर्णय और निंदा के और कुछ भी नहीं करते हैं, जो औरों के साथ गिरोह बनाने और स्वतंत्र होने की कोशिश करते हैं, जो खुद को परमेश्वर से अधिक ऊँचा उठाते हैं, वे छिछोरे युवा पुरुष और महिलाएँ, तथा मध्य-आयु के और वृद्ध पुरुष और महिलाएँ जो बुराई में फँसे हुए हैं, वे पुरुष और महिलाएँ जो व्यक्तिगत प्रसिद्धि और भाग्य का आनंद लेते हैं और दूसरों के बीच व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का पीछा करते हैं, वे पश्चाताप-रहित लोग जो पापों में फँसे हुए हैं—क्या वे सब मुक्ति से बाहर नहीं हैं? तुम सब के बीच लम्पटता, पाप, जादू-टोना की दवा, इंद्रजाल, अपवित्रता, और असंगत बातें आतंक मचाती हैं, सच्चाई और जीवन के वचन तुम लोगों के बीच कुचले जाते हैं, और पवित्र भाषा तुम्हारे बीच दूषित की जाती है। गंदगी और अवज्ञा से फूले हुए तुम विधर्मी! तुम लोगों का अंत कहाँ होगा? जो देह से प्यार करते हैं, जो देह के बुरे काम करते हैं, और जो दुराचार के ग़ुलाम बनकर फँसे हुए हैं, उनकी हिम्मत कैसे होती है कि वे जीते रहें? क्या तुम नहीं जानते कि तुम जैसे लोग वो कीड़े हो जो उद्धार से बाहर हैं? इसकी और उसकी माँग करने की योग्यता तुम लोगों को कहाँ से मिलती है? आज तक, उन लोगों में थोड़ा-सा भी बदलाव नहीं हुआ है जो सच्चाई से प्रेम नहीं करते हैं और केवल देह से प्यार करते हैं—तो ऐसे लोगों को कैसे बचाया जा सकता है? आज भी, जो लोग जीवन के मार्ग से प्रेम नहीं करते, जो परमेश्वर को ऊँचा नहीं उठाते और उनकी गवाही नहीं देते हैं, जो अपने खुद के ओहदे के लिए योजना बनाते हैं, जो खुद की प्रशंसा करते हैं—क्या वे अभी भी वैसे ही नहीं हैं? उन्हें बचाने का लाभ कहाँ है? तुम सहेजे जा सकते हो या नहीं, यह इस पर निर्भर नहीं करता है कि तुम पढाई-लिखाई से कितने सुयोग्य हो, या तुम कितने साल से काम कर रहे हो, या तुम्हारे पास कितने प्रमाण-पत्र हैं। यह तो इस बात पर निर्भर करता है कि तुम्हारे अनुसरण का कोई प्रभाव पड़ा है या नहीं। तुम्हें यह निश्चित पता होना चाहिए कि जो सहेजे जा रहे रहे हैं वे वो पेड़ हैं जो फल लाते हैं, न कि वो पेड़ जिनके कि प्रचुर मात्रा में हरे-भरे पत्ते और फूल तो हैं, लेकिन जो फल नहीं देते हैं। भले ही तुमने सड़कों पर कई साल घूम कर बिताये हों, तो उससे क्या होगा? तुम्हारी गवाही कहाँ है? तुम्हारे आत्म-प्रेम और तुम्हारी वासनाओं से परमेश्वर के लिए तुम्हारा सम्मान बहुत कम है—क्या ऐसा कोई व्यक्ति पतित नहीं है? तुम मुक्ति के उदाहरण और नमूने कैसे हो सकते हो? तुम्हारी प्रकृति अपरिवर्तनीय है, तुम बहुत अधिक विद्रोही हो, तुम्हें बचाया नहीं जा सकता है! क्या ऐसे लोगों का उन्मूलन नहीं किया जाएगा? क्या वह समय जब मेरा कार्य समाप्त हो जाएगा, तुम्हारा भी वो समय न होगा जब तुम्हारा आखिरी दिन आएगा? मैंने तुम सभी के बीच बहुत कार्य किया है और बहुत सारे वचन कहे हैं—इनमें से कितना तुम्हारे कानों के अन्दर गया है? इसमें से कितने का तुमने पालन किया है? जब मेरा कार्य समाप्त हो जाएगा तब तुम मेरा विरोध करना और मेरे खिलाफ खड़े होना भी बंद कर दोगे। मेरे कार्य करने के समय तुम लोग हमेशा मेरे खिलाफ काम करते हो, तुम मेरे वचनों का पालन नहीं करते। मैं अपना कार्य करता हूँ, और तुम अपना काम करते हो, तुम खुद अपना एक छोटा राज्य बनाते हो—तुम लोमड़ियों और कुत्तों के झुंड, तुम लोग जो भी करते हो वह मेरे खिलाफ होता है! तुम सब हमेशा उन लोगों को अपने आगोश में लाने की कोशिश करते हो जो केवल तुमसे प्यार करते हैं—तुम सब की श्रद्धा कहाँ है? तुम लोग जो कुछ भी करते हो वह धोखेबाज़ी है! तुम सभी के पास कोई आज्ञाकारिता या श्रद्धा नहीं है, तुम सब जो भी करते हो वह धोखेबाज़ी और निन्दा है! क्या ऐसे लोगों को बचाया जा सकता है? यौन में अनैतिक, कामुक पुरुष हमेशा उन नखरेबाज़ वेश्याओं को अपने स्वयं के भोग के लिए खींचना चाहते हैं। यौन में ऐसे अनैतिक राक्षसों को मैं नहीं बचाऊँगा, मैं तुम सब गंदे राक्षसों से नफरत करता हूँ, तुम लोगों की कामुकता और नखरों ने तुम सभी को नरक में गिरा दिया है—तुम सब के पास अपने लिए कहने को क्या है? तुम गंदे राक्षसों और बुरी आत्माओं, तुम बहुत घृण्य हो! तुम लोग घिनौने हो! ऐसे कचरे को कैसे बचाया जा सकता है? क्या जो पाप में फँसे हैं उन्हें फिर भी बचाया जा सकता है? इस सच्चाई, इस मार्ग, और इस जीवन के प्रति तुम लोगों का कोई आकर्षण नहीं है; तुम लोग पाप करने के प्रति, धन, ओहदे, प्रसिद्धि और लाभ, दैहिक सुख, पुरुषों की सुंदरता और महिलाओं के नखरों के प्रति आकर्षित हो रहे हो। ऐसा क्या है जो मेरे राज्य में प्रवेश के लिए तुम लोगों को योग्य बनाता है? तुम लोगों की छवि परमेश्वर से भी कहीं अधिक बड़ी है, तुम सब की प्रतिष्ठा परमेश्वर की तुलना में अधिक ऊँची है, मनुष्यों के बीच तुम सभी की प्रतिष्ठा का क्या कहना—तुम लोग एक ऐसी मूर्ति बन गए हो जिसकी लोग पूजा करते हैं। क्या तुम महादेवदूत नहीं बन गए हो? जब लोगों का अंत प्रकट किया जाता है, जो तभी होता है जब उद्धार का कार्य समाप्त होने लगता है, तुम लोगों में से कई ऐसे मुर्दे होंगे जो उद्धार से परे हैं और जिनका उन्मूलन कर दिया जाना चाहिए। मुक्ति के कार्य के दौरान, मैं सभी लोगों के प्रति दयालु और अच्छा हूँ। जब कार्य समाप्त होता है, तो विभिन्न प्रकार के लोगों का अंत प्रकट किया जाएगा, और उस समय मैं दयालु और अच्छा नहीं रहूँगा, क्योंकि लोगों के अंत के बारे में पता चल चुका होगा, प्रत्येक को उनके प्रकार के अनुसार वर्गीकृत किया जा चुका होगा, और मुक्ति के कार्य को अब और करने का कोई अर्थ न होगा। यह केवल इसीलिए है कि उद्धार का युग बीत चुका होगा; चूंकि यह बीत चुका होगा, वह फिर से वापस नहीं आएगा।
फुटनोट:
[क] मूल पाठ में "अनैतिक" नहीं है।
[ख] मूल पाठ में "आपको पता होना चाहिए" नहीं है।
[ग] मूल पाठ में "लोग ने सोचा था कि" नहीं है।

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