वर्तमान में ऐसे कई लोग हैं जो एक उलझे हुए तरीके से आस्था रखते हैं। तुम लोगों की जिज्ञासा बहुत बड़ी है, अपने आशिषों को प्राप्त करने की तुम लोगों की इच्छा बहुत बड़ी है, और जीवन को आगे बढ़ाने की तुम लोगों की इच्छा बहुत छोटी है। आजकल, यीशु के विश्वासी उत्साह से भरे हुए हैं। यीशु उनका अपने स्वर्गीय घर में स्वागत करने जा रहा है—क्या वे विश्वास नहीं कर सकते? कुछ लोग अपने पूरे जीवन में विश्वासी बने रहते हैं, कुछ लोगों का विश्वास बीस से अधिक वर्षों के लिए बना रहता है, या चालीस या पचास वर्षों के लिए बना रहता है; वे बाइबल पढ़ते हुए कभीपरमेश्वर के पीछे चल रहे हो, और अभी से संघर्ष कर रहे हो और तुम लोगों में धीरज की कमी आ गई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि आशीषें प्राप्त करने की तुम लोगों की इच्छा कुछ ज़्यादा ही मज़बूत है। तुम लोगों का इस सच्ची राह पर चलना आशीषें प्राप्त करने की तुम्हारी इच्छा और तुम्हारे जिज्ञासु दिल द्वारा संचालित है। तुम लोगों को कार्य के इस चरण की बहुत समझ नहीं है। आज जो कुछ मैं कह रहा हूं वह उन लोगों के लिए नहीं बोल रहा जो यीशु पर विश्वास करते हैं; यह केवल उनकी धारणाओं के विरुद्ध लड़ने की बात नहीं है। वास्तव में, जिन धारणाओं का खुलासा किया जा रहा है वे तुम लोगों के बीच मौजूद हैं, क्योंकि तुम लोग समझ नहीं पा रहे हो कि बाइबल क्यों ठुकरा दी गई है, मैं क्यों कहता हूं कि यहोवा का काम पुराना हो गया है और मैं क्यों कहता हूं कि यीशु का कार्य पुराना हो गया है। वास्तव में, तुम लोगों की कई धारणाएं हैं जिन्हें तुम लोगों ने अब तक आवाज़ नहीं दी है। तुम लोगों के दिल में कई विचार बंद हैं, और तुम लोग बस भीड़ के पीछे चल पड़ते हो। क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की धारणाएं कम हैं? बात बस इतनी-सी है कि तुम लोगो उनके बारे में बोलते नहीं हो, और कुछ नहीं! दरअसल, तुम लोग केवल बेमन से उसके पीछे चल रहे हो, और सही राह की खोज बिल्कुल नहीं कर रहे हो, और इरादतन जीवन को प्राप्त करने का प्रयास नहीं कर रहे हो। तुम लोगों का यही रवैया है कि तुम लोग बस चाहते हो कि देखें क्या होता है। क्योंकि तुम लोगों ने अपनी कई पुरानी धारणाओं को छोड़ा नहीं है, तुम लोगों में से ऐसा कोई भी नहीं जो स्वयं को पूरी तरह से पेश करने में सक्षम रहा है। इस बिंदु पर पहुंचने के बाद, दिन और रात सोचते हुए तुम लोग अभी भी अपनी ही नियति के बारे में चिंतित हो और कभी भी इसे भुला नहीं पाते। क्या तुम्हें लगता है कि जिन फ़रीसियों के बारे में मैं बात करता हूं, वे धर्म के "वृद्ध पुरुष" हैं? क्या तुम लोग वर्तमान युग के सबसे प्रगतिशील फ़रीसियों के प्रतिनिधि नहीं हो? क्या तुम्हें लगता है कि जिन लोगों का मैं उल्लेख कर रहा हूँ, जो मुझे बाइबिल के अनुसार जांचते हैं, वे केवल धार्मिक मंडलियों के उन बाइबिल विशेषज्ञों के ही संदर्भ का उपयोग करते हैं? क्या तुम्हें लगता है कि जब मैं उन लोगों के बारे में बात करता हूँ जिन्होंने एक बार फिर क्रूस पर परमेश्वर को चढ़ा दिया, तो मैं धार्मिक मंडलियों के नेताओं के बारे में बात कर रहा हूं? क्या तुम लोग उन सर्वश्रेष्ठ अभिनेताओं में से एक नहीं हो जो यह भूमिका निभा रहे हैं? क्या तुम्हें लगता है कि लोगों की धारणाओं के विरुद्ध मेरे कहे गए सभी वचन धर्म के पादरियों और बुज़ुर्गों का मज़ाक उड़ा रहे हैं? क्या तुम लोगों ने भी इन सभी चीज़ों में हिस्सा नहीं लिया है? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की कुछ ही धारणाएं हैं? बस इतनी-सी बात है कि अब तुम सबने चालाक बनना सीख लिया है। तुम लोग उन चीज़ों के बारे में बात नहीं करते या उनके बारे में अपनी भावनाओं को प्रकट नहीं करते जिन्हें तुम सब समझते नहीं हो, परन्तु तुम लोगों की श्रद्धा और समर्पण के दिल का बस अस्तित्व ही नहीं है। जैसा कि तुम लोग देख सकते हो, पढ़ना, देखना, और प्रतीक्षा आज तुम लोगों के लिए सर्वोत्तम अभ्यास हैं। तुम लोगों ने कुछ ज़्यादा ही चालाक होना सीख लिया है। परंतु, क्या तुम लोग जानते हो कि यह तुम लोगों का एक तरह का कुशल मनोविज्ञान है? क्या तुम लोगों को लगता है कि तुम लोगों की कुछ पल की चतुराई तुम लोगों को अनन्त ताड़ना से बचने में मदद करेगी? तुम लोगों ने कुछ ज़्यादा ही "बुद्धिमान" होना सीख लिया है! और कुछ लोग मुझसे ऐसे प्रश्न करते हैं: "एक दिन, जब धार्मिक लोग मुझसे पूछेंगे, 'क्यों तुम लोगों के परमेश्वर ने एक भी चमत्कार नहीं किया है?' मुझे उन्हें कैसे समझाना चाहिए?" अब, ऐसा नहीं है कि केवल धर्म के लोग ऐसी चीज़ें पूछेंगे। बल्कि, बात इतनी-सी है कि तुम आज के कार्य को समझते नहीं हो, और तुम्हारी कुछ ज़्यादा ही धारणाएं हैं। क्या तुम्हें अब भी नहीं पता है कि जब मैं धार्मिक अधिकारियों का उल्लेख करता हूं, तो मैं किसके बारे में बात कर रहा हूँ? क्या तुम नहीं जानते कि मैं किसके लिए बाइबल समझा रहा हूं? क्या तुम नहीं जानते कि जब मैं कार्य के तीन चरणों को स्पष्ट करता हूं, तो मैं किसके बारे में बोल रहा हूं? अगर मैं इन बातों को नहीं कहूँ, तो क्या तुम लोग इतनी आसानी से आश्वस्त होगे? क्या तुम लोग इतनी आसानी से सर झुकाओगे? क्या तुम लोगों के लिए उन पुरानी धारणाओं को छोड़ देना इतना आसान है? विशेषकर उन "वास्तविक पुरुषों" के लिए, जिन्होंने कभी भी किसी की आज्ञा का पालन नहीं किया है—क्या वे इतनी आसानी से आज्ञा का पालन करेंगे? मुझे पता है कि हालांकि तुम लोगों में निम्न-श्रेणी की मानवता है, बहुत कम योग्यता है, कम विकसित मस्तिष्क है, और परमेश्वर में विश्वास करने का लंबे इतिहास नहीं है, वास्तव में तुम लोगों की कई धारणाएं हैं, और तुम लोगों की अंतर्निहित प्रकृति यह नहीं है कि तुम किसी के समक्ष भी आसानी से झुक जाओ। परंतु, आज तुम इसलिए झुक पा रहे हो क्योंकि तुम मजबूर और असहाय हो; तुम एक लोहे के पिंजरे में बंद बाघ की तरह हो, जो अपने कौशल का स्वतंत्र रूप से उपयोग नहीं कर पा रहा है। अगर तुम लोगों के पास पंख भी होते, तो भी उड़ान भरना मुश्किल होगा। हालांकि तुम लोगों को आशीष प्राप्त नहीं हुई है, तुम लोग पीछे चलने के लिए तैयार हो। यह तुम लोगों की "अच्छे मनुष्य" वाली आत्मा नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि तुम लोगों को पूरी तरह से गिरा दिया गया है, और तुम लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा है। यह दिखाता है कि इस सारे कार्य ने तुम लोगों को गिरा दिया है। यदि कोई ऐसी चीज़ होती जिसे तुम लोग प्राप्त करने में सफल हो जाते, तो तुम लोग जितने आज्ञाकारी आज हो उतने नहीं होते, क्योंकि पहले, तुम लोग जंगल में घूमते जंगली गधों की तरह थे। इसलिए आज जो कहा जा रहा है, वह केवल विभिन्न धार्मिक गुटों की तरफ़ इशारा नहीं है, और यह उनकी धारणाओं के विरुद्ध लड़ाई नहीं है; बल्कि यह तुम लोगों की धारणाओं के विरुद्ध लड़ाई है।
थकते नहीं हैं। इसका कारण यह है कि उनका मानना है कि चाहे कुछ भी हो जाए, जब तक वे विश्वास करते रहेंगे तब तक वे स्वर्ग में जा पाएंगे। तुम लोग केवल कुछ ही सालों से इस पथ पर
धार्मिकता का न्याय शुरू हो चुका है। क्या अब भी परमेश्वर लोगों के लिए पापों की भेंट के रूप में सेवा करेगा? क्या परमेश्वर एक बार फिर लोगों के लिए एक उत्कृष्ट चिकित्सक के रूप में कार्य करेगा? क्या परमेश्वर का इससे बड़ा कोई अधिकार नहीं है? लोगों के एक समूह को पहले ही पूरा किया जा चुका है, और उन्हें सिंहासन के सामने पकड़ा जा चुका है। क्या वह अभी भी राक्षसों को निकालेगा और बीमारों के रोगों को दूर करेगा? क्या यह कुछ ज़्यादा पुराना नहीं है? क्या इस तरह से चलते हुए गवाही संभव होगी? परमेश्वर को एक बार क्रूस पर लटका दिया जा चुका है, तो क्या उसे हमेशा के लिए क्रूस पर चढ़ा दिया जाएगा? राक्षसों को एक बार बाहर निकालने के बाद, क्या वह उन्हें हमेशा के लिए निकाल देगा? क्या यह अपमान के रूप में नहीं गिना जाएगा? जब कार्य का यह चरण पहले की तुलना में बेहतर होगा, तब ही युग प्रगति की ओर आगे बढ़ता है। तब अंतिम दिन तक पहुंचा जाएगा, और ऐसा समय आएगा जब युग को समाप्त होना होगा। जो लोग सच्चाई के पीछे चलते हैं, उन्हें इसलिए दर्शन के बारे में स्पष्ट होने पर ध्यान देना चाहिए। यही नींव है। हर बार जब दर्शनों पर मेरा तुम लोगों के साथ संवाद होता है, तो मैं हमेशा देखता हूं कि कुछ लोगों की पलकें झुक जाती हैं और वे सो जाते हैं, सुनना नहीं चाहते। दूसरे लोग पूछते हैं: "यह कैसे है कि तुम सुन नहीं रहे हो?" वह कहता है, "यह मेरे जीवन या वास्तविकता में मेरे प्रवेश में मदद नहीं करता। हमें अभ्यास की राह की आवश्यकता है।" जब मैं अभ्यास की राहों की बात नहीं करता, और मैं कार्य की बात करता हूं, तो वह कहता है, "जैसे ही तुम कार्य के बारे में बात करते हो, मुझे नींद आने लगती है।" अब मैं अभ्यास की राहों के बारे में बात करना शुरू करता हूं, और वह नोट लिखने लगता है। मैं फिर से कार्य की बात करना शुरू करता हूँ, और वह वापस सुनना बंद कर देता है। क्या तुम लोगों को पता है कि तुम लोगों को किन वस्तुओं से लैस होना चाहिए? एक पहलू है कार्य के बारे में दर्शन, और दूसरा पहलू है तुम्हारा अभ्यास। तुमको दोनों पहलुओं को समझना होगा। यदि जीवन में प्रगति करने की तुम्हारी खोज में दर्शनों की कमी है, तो तुम्हारे पास कोई नींव नहीं है। यदि तुम्हारे पास केवल अभ्यास का मार्ग है और बिल्कुल भी दर्शन नहीं है, और संपूर्ण प्रबंधन योजना के कार्य की कोई भी समझ नहीं है, तो तुम बेकार हो। तुम्हें दूरदर्शी पहलू के सत्यों को समझना होगा, और जहाँ तक अभ्यास से संबंधित सत्यों का प्रश्न है, तुम्हें उन्हें समझने के बाद अभ्यास के उचित मार्गों की खोज करनी होगी; तुम्हें वचनों के अनुसार अभ्यास करने की आवश्यकता होगी, और अपनी स्थिति के अनुसार उसमें प्रवेश करना होगा। दर्शन नींव हैं, और यदि तुम इस पर ध्यान नहीं देते, तो तुम अंत तक नहीं पहुँच सकोगे। जैसे-जैसे तुम इस मार्ग का अनुभव करोगे, तो तुम या तो भटक जाओगे या नीचे गिरकर विफल हो जाओगे। सफल होने का कोई रास्ता नहीं होगा! जिन लोगों की नींव में महान दर्शन नहीं हैं, वे केवल विफल हो सकते हैं, सफल नहीं। तुम स्थिर खड़े नहीं हो सकते हो! क्या तुम जानते हो कि परमेश्वर में विश्वास का अर्थ क्या है? क्या तुम जानते हो कि परेमश्वर के पीछे चलना क्या होता है? दर्शनों के बिना, तुम किस मार्ग पर चलोगे? आज के कार्य में, यदि तुम्हारे पास दर्शन नहीं हैं तो तुम पूरे नहीं हो पाओगे। तुम किस पर विश्वास करते हो? तुम उसमें आस्था क्यों रखते हो? तुम उसके पीछे क्यों चलते हो? क्या तुम्हें यह कोई खेल लगता है? क्या तुम अपने जीवन को खेल की तरह संभाल रहे हो? आज का परमेश्वर सबसे महान दर्शन है। उसके बारे में तुम्हें कितना पता है? तुमने उसे कितना देखा है? आज के परमेश्वर को देखने के बाद क्या परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास की नींव सुरक्षित है? क्या तुम्हें लगता है कि जब तक तुम इस उलझन में चलते रहोगे, तुम्हें मुक्ति प्राप्त होगी? क्या तुम्हें लगता है कि तुम कीचड़ से भरे पानी में मछली पकड़ सकते हो? क्या यह इतना सरल है? आज का परमेश्वर क्या कह रहा है, इसके बारे में तुमने कितनी धारणाएं तय की हैं? क्या तुम्हारे पास आज के परमेश्वर का कोई दर्शन है? आज के परमेश्वर के बारे में तुम्हारी समझ क्या है? तुम हमेशा मानते हो कि साथ चलकर तुम उसे प्राप्त कर सकते हो, कि उसे देखकर तुम उसे प्राप्त कर सकते हो,[क] और कोई भी तुम्हारे कदमों को डगमगा नहीं सकता। ऐसा नहीं सोचो कि परमेश्वर के पीछे चलना इतना आसान है। मुख्य बात यह है कि तुम्हें उसे जानना चाहिए, तुम्हें उसका कार्य पता होना चाहिए, और तुम में उसके लिए कठिनाई का सामना करने की इच्छा होनी चाहिए, उसके लिए अपने जीवन का त्याग करने की इच्छा होनी चाहिए, और उसके द्वारा सिद्ध किए जाने की इच्छा होनी चाहिए। तुम्हारा यही दर्शन होना चाहिए। अगर तुम हमेशा अनुग्रह का आनंद लेने की सोच रहे हो, तो ऐसा नहीं होगा! यह मानकर न चलो कि परमेश्वर केवल लोगों के आनंद और उन पर अनुग्रह अर्पित करने के लिए है। तुमने गलत सोचा! अगर कोई अनुसरण करने के लिए अपने जीवन को जोखिम में नहीं डाल सकता, संसार की प्रत्येक संपत्ति को त्याग नहीं कर सकता, तो वह अनुसरण करते हुए अंत तक कदापि नहीं पहुँच पाएगा! तुम्हारे दर्शन तुम्हारी नींव होने चाहिएं। जब तुम्हारा आपदा से पीड़ित होने का दिन आता है, तो तुम्हें क्या करना चाहिए? क्या तुम तब भी अनुसरण कर पाओगे? तुम अंत तक अनुसरण कर पाओगे, इस बात को हल्के में न लो। बेहतर होगा कि तुम पहले अपनी आँखों को खोलो और देखो कि वर्तमान समय क्या है। हो सकता है कि तुम लोग अभी मंदिर के खंभों की तरह हो, परंतु एक समय आएगा जब ये सभी खंभे कीड़ों द्वारा कुतर लिए जाएंगे, जिससे मंदिर ढह जाएगा, क्योंकि फिलहाल तुम लोगों में दर्शनों की बहुत कमी है। जिस पर तुम लोग ध्यान देते हो वह केवल तुम लोगों का ही छोटा-सा संसार है, और तुम लोगों को नहीं पता कि खोजने का सबसे विश्वसनीय, सबसे उपयुक्त तरीका क्या है। तुम लोग आज के कार्य के दर्शन पर ध्यान नहीं देते हो, और तुम लोग इन बातों को अपने दिल में नहीं रखते हो। क्या तुम लोगों ने कभी सोचा है कि एक दिन परमेश्वर तुम लोगों को एक बहुत अपरिचित जगह में रखेगा? क्या तुम लोग किसी ऐसे के दिन के बारे में सोचते हो जब मैं तुम लोगों से सब कुछ छीन लूँगा, तो तुम लोगों का क्या होगा? क्या उस दिन तुम लोगों की ऊर्जा वैसी ही होगी जैसी आज है? क्या तुम लोगों की आस्था फिर से प्रकट होगी? परमेश्वर के अनुसरण में, तुम लोगों का सबसे बड़ा दर्शन "परमेश्वर" होना चाहिए। यह सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। इसके अलावा, यह नहीं सोचो कि पवित्र होने के इरादे से संसारिक मनुष्यों से मेलजोल छोड़कर तुम लोग परमेश्वर का परिवार बन जाते हो। आज परमेश्वर स्वयं ही सृष्टि के बीच कार्य कर रहा है। परमेश्वर लोगों के बीच अपना कार्य करने के लिए आया है, न कि अपने अभियान चलाने। तुम लोगों के बीच में, बहुत ही कम हैं जो जानते हैं कि आज का कार्य स्वार्गिक परमेश्वर का कार्य है, जिसने देहधारण किया है। यह तुम लोगों को प्रतिभा से भरपूर उत्कृष्ट व्यक्ति बनाने के लिए नहीं है। बल्कि, यह मानवीय जीवन के महत्व को जानने में, मनुष्यों की मंज़िल जानने के लिए, और परमेश्वर और उसकी पूर्णता को जानने में मदद के लिए है। तुम्हें पता होना चाहिए कि तुम सृष्टिकर्ता के हाथ का सृजन हो। तुम्हें क्या समझना चाहिए, तुम्हें क्या करना चाहिए, और तुम्हें परमेश्वर का अनुसरण कैसे करना चाहिए—क्या ये वे सत्य नहीं हैं जिन्हें तुम्हें समझना चाहिए? क्या ये वे दर्शन नहीं हैं जिन्हें तुम्हें देखना चाहिए?
जब किसी व्यक्ति के पास दर्शन होते हैं तो उसके पास नींव होती है। जब तुम इस नींव के आधार पर अभ्यास करोगे, तो प्रवेश करना बहुत आसान होगा। इस तरह तुम्हें प्रवेश करने के आधार पर कोई संदेह नहीं होगा, और तुम्हारे लिए अंदर प्रवेश करना बहुत आसान होगा। दर्शनों को समझने का, कार्य को समझने का यह पहलू ही मुख्य है। यह विशेषता तुम लोगों में उपस्थित होनी चाहिए। यदि तुम सच्चाई के इस पहलू से लैस नहीं हो, और केवल अभ्यास के मार्गों के बारे में बात करते हो, तो यह एक बड़ा दोष है। मुझे पता चला है कि तुम लोगों में से कई इस पहलू पर ज़ोर नहीं डालते, और जब तुम सच्चाई के इस पहलू को सुनते हो तो यह केवल सिद्धांतात्मक वचनों को सुनने की तरह है। एक दिन तुम हार की क़ग़ार पर खड़े रहोगे। ऐसे कुछ वचन हैं जो तुम्हें समझ नहीं आते हैं और तुमने इन्हें अवशोषित नहीं किया है; इस मामले में तुम्हें धैर्यपूर्वक खोज करनी चाहिए, और वह दिन आएगा जब तुम समझ जाओगे। थोड़ा-थोड़ा करके तैयार हो। उनकी ओर ध्यान न देने से बेहतर होगा अगर तुम केवल कुछ ही आध्यात्मिक सिद्धांतों को समझो। यह किसी भी सिद्धांत को न समझने से बेहतर होगा। यह सभी तुम्हारे प्रवेश के लिए सहायक हैं, और तुम्हारे उन संदेहों को दूर कर देगा। यह तुम्हारी धारणाओं से भरा होने से बेहतर है। नींव के रूप में इन दर्शनों को रखना बेहतर है। बिना किसी संदेह की उपस्थिति के, अकड़कर और सिर उठाकर प्रवेश करना संभव है। संदिग्ध तरीके से हमेशा उलझकर अनुसरण करने का क्या लाभ? क्या यह किसी घंटी को चुराते हुए अपने कान छिपाना जैसा नहीं है? अकड़कर और सिर उठाकर राज्य में प्रवेश करना कितना अच्छा लगता है! संदेह से भरे क्यों रहो? क्या यह कठिनाइयों का सामना करने जैसा नहीं होगा? जब तुम्हें यहोवा के कार्य, यीशु के कार्य और कार्य के इस चरण की समझ होगी, तो तुम्हारे पास एक नींव होगी। अब तुम्हें लग सकता है कि यह बहुत सरल है। कुछ लोग कहते हैं, "जब पवित्र आत्मा महान कार्य शुरू करेगा, तो मेरे पास सभी वचन होंगे। अभी मैं इसलिए समझ नहीं पा रहा हूं क्योंकि पवित्र आत्मा ने अभी तक मुझे बहुत प्रबुद्ध नहीं किया है।" यह इतना आसान नहीं है; यह ऐसा मामला नहीं है कि तुम फिलहाल स्वीकार करने के लिए तैयार हो, और तब जब समय आएगा, तो तुम इसका कुशलतापूर्वक उपयोग करोगे। ऐसा होगा यह आवश्यक नहीं है! तुम मानते हो कि तुम अब बहुत अच्छी तरह से तैयार हो, और अब उन धार्मिक लोगों और महानतम सिद्धांतकारों को प्रतिक्रिया देने में कोई समस्या नहीं होगी, और यहां तक कि उन्हें खारिज करने में भी कोई दिक्कत नहीं आएगी। क्या तुम वास्तव में ऐसा कर पाओगे? अपने इस सतही अनुभव के साथ तुम किस समझ की बात कर सकते हो? सत्य से लैस होकर, सच्चाई की लड़ाई लड़ते हुए, और परमेश्वर के नाम की गवाही देना वैसा नहीं है जैसा तुम सोचते हो—जब तक परमेश्वर कार्य पर है, सब कुछ पूरा हो जाएगा। उस समय शायद तुम कुछ प्रश्नों से स्तब्ध रह जाओगे, और अंचभित रह जाओगे। मुख्य बात यह है कि तुम कार्य के इस चरण के बारे में स्पष्ट हो या नहीं, और तुम वास्तव में इसे कितना समझते हो। यदि तुम शत्रु शक्तियों पर विजय नहीं पा सकते, और तुम धार्मिक शक्तियों को पराजित नहीं कर सकते, तो क्या तुम बेकार नहीं हो जाओगे? यदि तुमने आज का कार्य अनुभव किया है, इसे अपनी आंखों से देखा है और इसे अपने कानों से सुना है, लेकिन अंत में तुम गवाही नहीं दे पाते, तो क्या तुम में इतनी हिम्मत होगी कि तुम जीवित रहना जारी रख सको? तुम किसका सामना कर पाओगे? फिलहाल इसे सरल न समझो। बाद का कार्य उतना सरल नहीं होगा जितनी तुम कल्पना करते हो। सत्य के युद्ध से लड़ना इतना आसान या सरल नहीं है। अब तुम्हें तैयार होने की आवश्यकता है। यदि तुम अभी सत्य के साथ तैयार नहीं होते हो, तो जब समय आएगा और पवित्र आत्मा किसी अलौकिक तरीके से काम नहीं कर रहा होगा, तो हानि तुम्हारी होगी।
पाद टिप्पणी:
क. मूल पाठ कहता है, "तुम हमेशा मानते हो कि अनुसरण करते हुए तुम प्राप्त कर सकते हो, कि देखकर तुम प्राप्त कर सकते हो।"
read
more: सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन:
सुसमाचार को फैलाने का कार्य मनुष्यों को बचाने का कार्य भी है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें