2019-01-30

तेरहवें कथन की व्याख्या

परमेश्वर बड़े लाल अजगर के सभी वंशजों से नफ़रत करता है, और वह बड़े लाल अजगर से तो और भी ज़्यादा नफ़रत करता है। यह परमेश्वर के हृदय के भीतर कोप की जड़ है। ऐसा लगता है कि परमेश्वर उन सभी चीज़ों को आग और गंधक की झील में डालकर पूरी तरह भस्म कर देना चाहता है जो बड़े लाल अजगर से संबंधित हैं।
ऐसे समय भी आते हैं जब ऐसा प्रतीत होता है कि परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से इसे मिटाने के लिए अपना हाथ बढ़ाना चाहता है—केवल यही उसके हृदय की नफ़रत को मिटा सकता है। बड़े लाल अजगर के घर में हर एक व्यक्ति जंगली जानवर है जिसमें मानवता का अभाव है, यही वजह है कि निम्नलिखित कहने के लिए परमेश्वर ने अपने गुस्से को दृढ़तापूर्वक दबा दिया: "मेरे सभी लोगों में से, और सभी पुत्रों में से, अर्थात्, उन लोगों में से जिन्हें मैंने सम्पूर्ण मानवजाति में से चुना है, तुम लोग निम्नतम समूह से संबंध रखते हो।" परमेश्वर ने बड़े लाल अजगर के साथ उसके अपने ही देश में एक निर्णायक लड़ाई शुरू कर दी है, और जब उसकी योजना सफल होने लगेगी तो वह उसे नष्ट कर देगा, उसे मनुष्य को अब और भ्रष्ट करने या उनकी आत्माओं को नष्ट करने की अनुमति नहीं देगा। एक भी दिन ऐसा नहीं बीतता है कि परमेश्वर अपने लोगों को बचाने के लिए नहीं बुलाता है जो झपकी ले रहे हैं, किन्तु वे सभी सुस्ती की स्थिति में हैं मानो कि उन्होंने नींद की गोलियाँ ले ली हों। यदि वह उन्हें एक पल के लिए उठाता नहीं है, तो वे बिना किसी होश के, अपनी नींद की अवस्था मैं लौट जाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि उसके सभी लोगों को दो तिहाई लकवा मार गया है। उन्हें अपनी आवश्यकताओं या अपनी स्वयं की कमियों का पता नहीं है, या यहाँ तक कि यह भी नहीं पता है कि उन्हें क्या पहनना चाहिए या क्या खाना चाहिए। इससे पता चलता है कि बड़े लाल अजगर ने लोगों को भ्रष्ट करने के लिए काफी प्रयास किए हैं। इसकी कुरूपता चीन के हर क्षेत्र में फैली हुई है। इसने लोगों को परेशान भी कर दिया है और उन्हें इस पतनोन्मुख, अश्लील देश में अब और ठहरने का अनिच्छुक बना दिया है। परमेश्वर जिससे सर्वाधिक नफ़रत करता है वह है बड़े लाल अजगर का सार, यही वजह है कि वह लोगों को हर दिन अपने कोप में याद दिलाता है, और लोग हर दिन उसके कोप की नज़र के नीचे रहते हैं। फिर भी, अधिकांश लोग अभी भी परमेश्वर को तलाशना नहीं जानते हैं, किन्तु वे सिर्फ वहाँ बैठे हुए देखते रहते हैं और हाथ से खिलाए जाने की प्रतीक्षा करते हैं। भले ही वे भूख से मर रहे होंगे, तब भी वे अपना स्वयं का भोजन खोजने के लिए तैयार नहीं होंगे। लोगों के विवेक को बहुत पहले ही शैतान द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया था और हृदयहीन होने के लिए सार रूप से बदल दिया गया था। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि परमेश्वर ने कहा था कि: "यदि मैंने तुम लोगों को प्रेरित नहीं किया होता तो तुम अभी भी जागृत नहीं होते, बल्कि ऐसे रहे होते मानो जमे होने की अवस्था में हो, और फिर से, मानो शीतनिद्रा में हो," यह ऐसा है मानो कि लोग शीतनिद्रा में पड़े जानवरों की तरह थे जो सर्दियाँ गुज़ार रहे थे और खाने या पीने के लिए नहीं माँगते थे; यह वास्तव में परमेश्वर के लोगों की वर्तमान स्थिति है, यही वजह है कि परमेश्वर केवल लोगों से प्रकाश में देहधारी परमेश्वर स्वयं को जानने की अपेक्षा करता है। उसकी लोगों से बहुत अधिक बदलने या उनके जीवन में बहुत अधिक बढ़ोतरी करने की अपेक्षा नहीं है। यह गंदे, कुत्सित बड़े लाल अजगर को पराजित करने, और फलस्वरूप परमेश्वर की महान सामर्थ्य को बेहतर रूप से अभिव्यक्त करने के लिए पर्याप्त होगा।
जब लोग परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं तो वे केवल शाब्दिक अर्थ समझ सकते हैं, किन्तु वे उनके आध्यात्मिक महत्व को समझने में असमर्थ हैं। "क्रुद्ध लहरों" के इन तीन शब्दों ने हर एक नायक को चकरा दिया है। जब परमेश्वर का कोप प्रदर्शित होता है, तो क्या उसके वचन, उसकी क्रियाएँ, और उसका स्वभाव क्रुद्ध लहरें नहीं हैं? जब परमेश्वर समस्त मानवजाति का न्याय करता है, तो क्या यह उसके कोप का प्रकटन नहीं है? क्या यह तब नहीं होता है जब क्रुद्ध लहरें प्रभावी होती हैं? वह कौन है जो मनुष्य की भ्रष्टता के कारण क्रुद्ध लहरों के बीच में नहीं रह रहा है? अर्थात्, कौन परमेश्वर के कोप के बीच में नहीं रहता है? जब परमेश्वर मानव जाति पर तबाही बाँटना चाहता है, तो क्या यह वही नहीं है जो लोग एक "काले बादलों के उलटते-पलटते घालमेल" को देखते हैं? मनुष्यों के बीच, कौन तबाही से भाग नहीं रहा है? परमेश्वर का कोप लोगों पर भारी वर्षा की तरह बरसता है और उन्हें इधर-उधर एक भीषण वायु की तरह उड़ा देता है। सभी लोग परमेश्वर के वचनों के माध्यम से शुद्ध हो जाते हैं मानो कि उनकी मुलाकात किसी घूमते हुए बर्फ़ीले तूफान से करवाई गई थी। ये परमेश्वर के वचन ही हैं जो मानवजाति के लिए सर्वाधिक अगम्य हैं। यह उसके वचनों के माध्यम से ही है कि उसने दुनिया को बनाया और अपने वचनों के माध्यम से ही है कि वह समस्त मानवजाति की अगुआई करता है और उसे शुद्ध करता है। और अंत में, वह अपने वचनों के माध्यम से पूरे ब्रह्मांड की पवित्रता को बहाल करेगा। यह उसके वचनों के हर हिस्से में देखा जा सकता है कि परमेश्वर के आत्मा का अस्तित्व खोखला नहीं है। यह केवल परमेश्वर के वचनों में ही है कि लोग जीवित रहने का थोड़ा सा मार्ग देख सकते हैं। सभी लोग उसके वचनों को सँजो कर रख सकते हैं क्योंकि वे जीवन के भरण-पोषण से युक्त हैं। मनुष्य जितना अधिक उसके वचनों पर ध्यान केंद्रित करेगा, उतने ही अधिक मुद्दे वह मनुष्य के सामने प्रस्तुत करेगा—यह उन्हें पूरी तरह उलझन में डाल देता है और उनके पास उत्तर देने के लिए कोई समय नहीं होता है। परमेश्वर का बार-बार पूछताछ करना ही लोगों को कुछ समय के लिए चीज़ों पर विचार करवाने के लिए पर्याप्त है, उसके बाकी वचनों की तो बात ही छोड़ो। परमेश्वर में, सब कुछ भरा हुआ है और अतिशय है और इसमें कोई अभाव नहीं है। हालाँकि, लोग इसका अधिक आनंद लेने में सक्षम नहीं हैं; वे उसके वचनों के केवल सतही पक्ष को ही जानते हैं मानो कि वे जो देख सकते थे वह मुर्गे की त्वचा थी किन्तु वे मुर्गे का माँस नहीं खा सकते थे। यह दर्शाता है कि लोगों के आशीष बहुत सीमित हैं और वे परमेश्वर का आनंद लेने में वास्तव में असमर्थ हैं। लोगों की अवधारणाओं में वे अपने हृदय में एक निश्चित परमेश्वर को रखते हैं, यही वजह है कि किसी को भी पता नहीं है कि अस्पष्ट परमेश्वर क्या है, या शैतान की छवि क्या है। इसलिए जब परमेश्वर ने कहा "क्योंकि जो कुछ तुम विश्वास करते हो वह सिर्फ़ शैतान की छवि है और परमेश्वर स्वयं से उसका कुछ लेना-देना नहीं है," तो सभी लोग अवाक् थे कि उन्होंने इतने वर्षों तक विश्वास किया था, किन्तु फिर भी यह महसूस नहीं किया कि वे जिस पर विश्वास करते थे वह शैतान था और न कि परमेश्वर स्वयं। उन्हें अचानक खालीपन महसूस हुआ किन्तु उन्हें नहीं पता था कि क्या कहना है। उस समय वे फिर से भ्रमित होना शुरू हो गए। केवल इस तरह से काम करके ही लोग नए प्रकाश को बेहतर ढंग से स्वीकार कर सकते हैं और इस तरह पुरानी चीजों से इनकार कर सकते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि वे कितना अच्छा प्रतीत होते हैं, उनसे काम नहीं चलेगा। यह लोगों के लिए व्यावहारिक परमेश्वर स्वयं को समझने और इस तरह स्वयं को उस हैसियत से छुटकारा दिलाने में समर्थ होने के लिए जो लोगों के हृदय में उनकी अवधारणाएँ रखती हैं और परमेश्वर स्वयं को लोगों को अधिकार में लेने की अनुमति देने के लिए और भी अधिक फायदेमंद है। केवल इस तरह से ही देहधारण के महत्व को प्राप्त किया जा सकता है और लोग अपनी भौतिक आँखों से व्यावहारिक परमेश्वर स्वयं को जान सकते हैं।
परमेश्वर ने लोगों को आध्यात्मिक दुनिया की स्थितियों के बारे में कई बार बताया है: "जब शैतान मेरे सामने आता है, तो मैं इसकी जंगली क्रूरता से पीछे नहीं हटता हूँ, न ही मैं इसकी भयानकता से भयभीत होता हूँ: मैं सिर्फ़ उसकी उपेक्षा करता हूँ।" लोगों ने इससे जो समझा है वह केवल वास्तविकता में स्थिति है; वे आध्यात्मिक दुनिया में सच्चाई को नहीं जानते हैं। क्योंकि परमेश्वर देह बन गया है, इसलिए शैतान, इस तरह से परमेश्वर पर हमला करना चाहते हुए, सभी तरह के आरोप लगाने के तरीकों को काम में लाया है। हालाँकि, परमेश्वर इस वजह से पीछे नहीं हटता है—वह सिर्फ बोलता है और मानवजाति के बीच कार्य करता है और अपने देहधारी देह के माध्यम लोगों को उसे जानने की अनुमति देता है। शैतान की आँखे क्रोध से लाल हैं और उसने परमेश्वर के लोगों को नकारात्मक बनाने, पीछे हटने और यहाँ तक कि अपना रास्ता भी खो देने के लिए उन पर बहुत प्रयास किया है। किन्तु परमेश्वर के वचनों के प्रभाव की वजह से शैतान विफल हो गया है, इसलिए उसकी स्वच्छन्दता और बढ़ गई है। यही कारण है कि परमेश्वर ने हर एक को याद दिलाया है कि: "तुम लोगों के जीवन में, ऐसा दिन आ सकता है जब तुम इस प्रकार की परिस्थिति का सामना करोगेः क्या तुम स्वेच्छा से स्वयं को शैतान के बंधन में पड़ने दोगे, या तुम मुझे तुम्हें प्राप्त करने दोगे?" यद्यपि लोग उन चीज़ों से अवगत नहीं हैं जो आध्यात्मिक जगत में घटती हैं, किन्तु जैसे ही वे परमेश्वर से इस प्रकार के वचनों को सुनते हैं, तो वे सतर्क और भयभीत हो जाते हैं—यह शैतान के हमलों को पीछे खदेड़ देता है, जो कि परमेश्वर की महिमा को दिखाने के लिए पर्याप्त है। यद्यपि उन्होंने बहुत समय पहले कार्य करने की एक नई पद्धति आरंभ की है, फिर भी लोगों को राज्य में जीवन पर स्पष्टता नहीं है—भले ही वे समझते हैं, किन्तु उनमें स्पष्टता का अभाव है। इसलिए जब परमेश्वर ने लोगों को चेतावनी जारी की उसके बाद, उसने उन्हें राज्य में जीवन के सार से परिचित कराया: "राज्य में जीवन लोगों और परमेश्वर स्वयं का जीवन है।" चूँकि परमेश्वर स्वयं देहधारी हुआ है, इसलिए तीसरे स्वर्ग का जीवन यहाँ पृथ्वी पर प्राप्त किया गया है। यह न केवल परमेश्वर की योजना है, बल्कि उसे परमेश्वर द्वारा पूरा भी किया जाता है। जैसे-जैसे समय गुज़रता है लोग परमेश्वर को अधिकाधिक रूप से जानने लगते हैं और इस तरह स्वर्ग के जीवन का स्वाद लेने में समर्थ हो जाते हैं, क्योंकि उन्होंने वास्तव में महसूस किया है कि परमेश्वर पृथ्वी पर है, कि वह स्वर्ग में एक अस्पष्ट परमेश्वर नहीं है। इसलिए, पृथ्वी पर जीवन स्वर्ग में जीवन के समान है। वास्तविकता यह है कि परमेश्वर देह बन जाता है और मानव दुनिया की कड़वाहट का स्वाद लेता है, और जितना अधिक वह देह में उस कड़वाहट का स्वाद लेने में समर्थ होता है, उतना ही अधिक यह साबित करता है कि वह व्यावहारिक परमेश्वर स्वयं है। यही कारण है कि आज के परमेश्वर की व्यावहारिकता को साबित करने के लिए निम्नलिखित वचन पर्याप्त हैं: "अपने निवास स्थान में, जो कि ऐसा स्थान है जहाँ पर मैं छिपा हुआ हूँ, फिर भी, अपने इस निवास स्थान में, मैंने अपने सभी शत्रुओं को हरा दिया है; अपने निवास स्थान में, मैंने पृथ्वी पर रहने का वास्तविक अनुभव प्राप्त कर लिया है; अपने निवास स्थान में, मैं मनुष्य के प्रत्येक वचन और कार्य को देख रहा हूँ, और सम्पूर्ण मानवजाति की हिफ़ाज़त कर रहा हूँ और उसे आज्ञा दे रहा हूँ।" सचमुच देह में रहना, सचमुच देह में मानव जीवन का अनुभव करना, सचमुच देह के भीतर से समस्त मानवजाति को समझना, सचमुच देह में मानवजाति को जीतना, सचमुच बड़े लाल अजगर के साथ देह में निर्णायक लड़ाई छेड़ना, और देह में परमेश्वर के समस्त कार्य को करना—क्या यह सटीक रूप से व्यावहारिक परमेश्वर स्वयं का अस्तित्व नहीं है? हालाँकि, यह बहुत दुर्लभ है कि लोग परमेश्वर के इन साधारण वचनों में दक्षता देख सकें। वे बस शीघ्रता से उनसे गुज़र जाते हैं और परमेश्वर के वचनों की बहुमूल्यता या दुर्लभता को महसूस नहीं करते हैं।
परमेश्वर के वचन भली-भाँति परिवर्तित होते हैं—"चूँकि मानवजाति निष्क्रिय पड़ी है" वाक्यांश परमेश्वर स्वयं के विवरण को समस्त मानवजाति की स्थिति के विवरण में परिवर्तित करता है। यहाँ, "ठंडी चमक के विस्फोट" पूर्व की बिजली को नहीं दर्शाते, किन्तु ये परमेश्वर का वचन हैं, अर्थात्, कार्य करने की उसकी नई पद्धति। इस प्रकार, इसमें लोगों की सभी प्रकार की गतिशीलता कोदेखा जा सकता है कि: नई पद्धति आरंभ करने के बाद, वे सभी, यह नहीं जानते हुए कि वे कहाँ से आते हैं और वे कहाँ जा रहे हैं, अपना दिशा-बोध खो देते हैं। "अधिकांश लोगों पर लेजर-जैसी किरण से प्रहार होता है" उन लोगों को संदर्भित करता है जो नई विधि के माध्यम से निकाल दिए जाते हैं, जो परीक्षणों का सामना या पीड़ाओं द्वारा शुद्धिकरण सहन नहीं कर सकते हैं और इसलिए एक बार फिर अथाह गड्ढे में फेंक दिए जाते हैं। परमेश्वर का वचन एक हद तक मानवजाति को उजागर करता है—ऐसा प्रतीत होता है कि जब लोग परमेश्वर के वचन को देखते हैं तो वे डर जाते हैं, और वे कुछ भी कहने का साहस नहीं करते हैं मानो कि उन्होंने किसी बंदूक की नली को सीधे अपने हृदय पर निशाना लगाए हुए देख लिया हो। हालाँकि, वे यह भी महसूस करते हैं कि परमेश्वर के वचनों में अच्छी बातें हैं। उनके हृदय में द्वंद्व चलता है और वे नहीं जानते हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए, किन्तु अपने विश्वास के कारण, वे बस इस भय के कारण कि परमेश्वर उन्हें त्याग देगा, स्वयं को दृढ़ बनाते हैं और उसके वचनों की गहरी खोज करते हैं। ठीक जैसे कि परमेश्वर ने कहा था: "मानवजाति के मध्य कौन इस अवस्था में विद्यमान नहीं है? कौन मेरे प्रकाश के भीतर विद्यमान नहीं है? यहाँ तक कि यदि तुम मज़बूत हो, या मानो कि तुम कमज़ोर हो, तब भी तुम मेरे प्रकाश को आने से कैसे रोक सकते हो?" यदि परमेश्वर किसी के कमजोर होने के बावजूद भी उसका उपयोग करता है, तो परमेश्वर अपनी ताड़ना में उन्हें रोशन और प्रबुद्ध करेगा, इसलिए लोग जितना अधिक परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हैं, उतना ही अधिक वे उसे समझते हैं, उतनी ही अधिक उसके लिए उनकी श्रद्धा होती है, और उतना ही कम धृष्ट होने का वे साहस करते हैं। लोग आज यहाँ तक पहुँच पाएँ हैं, यह पूरी तरह से परमेश्वर की महान सामर्थ्य की वजह से है। यह उसके वचनों के अधिकार की वजह से है, अर्थात् यह उसके वचनों में पवित्रात्मा की वजह से है कि लोगों को परमेश्वर का भय है। परमेश्वर मानवजाति के वास्तविक चेहरे को जितना अधिक प्रकट करता है, वे उतना ही अधिक विस्मय से भर जाते हैं, इस प्रकार उसके अस्तित्व की वास्तविकता के प्रति वे उतना ही अधिक निश्चित होते हैं। यह परमेश्वर को समझने के मार्ग पर मानव जाति के लिए परमेश्वर का आकाशदीप है; यह वह पगडंडी है जो परमेश्वर ने उन्हें अनुसरण करने के लिए दी है। यदि तुम लोग इसके बारे में सावधानी से सोचो, तो क्या ऐसा नहीं है?

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