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2017-08-20
2017-08-08
आज्ञाओं का पालन करना और सत्य का अभ्यास करना
व्यवहार में, आज्ञाओं को सत्य के अभ्यास से जोड़ा जाना चाहिए। आज्ञाओं का पालन करते हुए, व्यक्ति को सत्य का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। सत्य का अभ्यास करते समय, व्यक्ति को आज्ञाओं के सिद्धान्तों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए या आज्ञाओं के विपरीत नहीं जाना चाहिए। वह कीजिये जो परमेश्वर आप सबसे करने की अपेक्षा करता है। आज्ञाओं में बने रहना और सत्य का अभ्यास करना परस्पर संबद्ध हैं, परस्पर विरोधी नहीं हैं।आप जितना अधिक सत्य का अभ्यास करते हैं, उतना ही अधिक आप आज्ञाओं के सार-तत्व को बनाए रखते हैं। आप जितना अधिक सत्य का अभ्यास करेंगे, उतना ही अधिक आप परमेश्वर के वचनों को समझेंगे जैसा आज्ञाओं में अभिव्यक्त है।
वह व्यक्ति उद्धार प्राप्त करता है जो सत्य का अभ्यास करने को तैयार है
बहुत पहले ही, उपदेशों में उचित कलीसिया जीवन होने की आवश्यकता का उल्लेख किया गया था। तो ऐसा क्यों है कि कलीसिया के जीवन में अभी तक सुधार नहीं हुआ है, और अभी भी वही पुरानी बात है? क्यों जीवन का एक बिल्कुल नया और अलग तरीका नहीं है? क्या नब्बे के दशक के एक व्यक्ति का एक बीते युग के सम्राट की तरह रहना उचित होगा? यद्यपि भोजन और पेय शायद ही कभी पिछले युग में चखे गए व्यंजन होंगे, कलीसिया की स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है।
2017-08-04
एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन के सम्बन्ध में
एक विश्वासी के पास एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन होना ही चाहिए- यह परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने और वास्तविकता में प्रवेश करने का आधार है। वर्तमान समय में, सभी प्रार्थनाएं, परमेश्वर के करीब आना, गायन, स्तुति करना, ध्यान, और परमेश्वर के वचनों को समझने की कोशिश का जो अभ्यास आप लोग कर रहे हैं, क्या वह एक सामान्य आध्यात्मिक जीवन के मानकों पर खरा उतरता है? आप लोगों में से कोई भी इस बारे में बहुत स्पष्ट नहीं है।
2017-08-03
विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए
वो क्या है जो मनुष्य ने प्राप्त किया है जब उसने सर्वप्रथम परमेश्वर में विश्वास किया? आपने परमेश्वर के बारे में क्या जाना है? परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण आप कितने बदले हैं? अब आप सभी जानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास आत्मा की मुक्ति और देह के कल्याण के लिए ही नही है, और न ही यह आपके जीवन को परमेश्वर के प्रेम से सम्पन्न बनाने के लिए, इत्यादि है। जैसा यह है, यदि आप परमेश्वर को सिर्फ़ देह के कल्याण के लिए या क्षणिक आनंद के लिए प्रेम करते हैं, तो भले ही, अंत में, परमेश्वर के लिए आपका प्रेम इसके शिखर पर पहुँचता है और आप कुछ भी नहीं माँगते, यह “प्रेम” जिसे आप खोजते हैं अभी भी अशुद्ध प्रेम होता है, और परमेश्वर को भाने वाला नहीं होता।
2017-07-28
विश्वासियों को क्या दृष्टिकोण रखना चाहिए
वो क्या है जो मनुष्य ने प्राप्त किया है जब उसने सर्वप्रथम परमेश्वर में विश्वास किया? आपने परमेश्वर के बारे में क्या जाना है? परमेश्वर में अपने विश्वास के कारण आप कितने बदले हैं? अब आप सभी जानते हैं कि परमेश्वर में विश्वास आत्मा की मुक्ति और देह के कल्याण के लिए ही नही है, और न ही यह आपके जीवन को परमेश्वर के प्रेम से सम्पन्न बनाने के लिए, इत्यादि है। जैसा यह है, यदि आप परमेश्वर को सिर्फ़ देह के कल्याण के लिए या क्षणिक आनंद के लिए प्रेम करते हैं, तो भले ही, अंत में, परमेश्वर के लिए आपका प्रेम इसके शिखर पर पहुँचता है और आप कुछ भी नहीं माँगते, यह “प्रेम” जिसे आप खोजते हैं अभी भी अशुद्ध प्रेम होता है, और परमेश्वर को भाने वाला नहीं होता।
सत्य का अभ्यास कीजिए जब एक बार आप लोग उसे समझ जाते हैं
परमेश्वर के कार्य और वचन का अभिप्राय आप लोगों के स्वभाव में एक परिवर्तन लाना है; उनका उद्देश्य मात्र यह नहीं है कि आप लोग उन्हें समझें या पहचानें और उन्हें अंत तक रखे रहें। उस व्यक्ति के समान जिसके पास प्राप्त करने की योग्यता है। आप लोगों को परमेश्वर के वचन को समझने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए, क्योंकि परमेश्वर के अधिकतर वचन मानवीय भाषा में लिखे गए हैं जो समझने में बहुत आसान हैं।
2017-07-25
एक सामान्य अवस्था में प्रवेश कैसे करें
परमेश्वर के वचनों के प्रति लोग जितने अधिक ग्रहणशील होते हैं, वे उतने ही अधिक प्रबुद्ध हो जाते हैं और धार्मिकता के लिए उतनी ही अधिक भूख और प्यास के साथ वे परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। केवल उनको जो परमेश्वर के वचनों को पाते हैं, अधिक गहरे और समृद्ध अनुभव प्राप्त होते हैं; केवल वे ही हैं जिनके जीवन अधिक से अधिक फलते-फूलते हैं।
2017-07-24
एक सामान्य अवस्था में प्रवेश कैसे करें
परमेश्वर के वचनों के प्रति लोग जितने अधिक ग्रहणशील होते हैं, वे उतने ही अधिक प्रबुद्ध हो जाते हैं और धार्मिकता के लिए उतनी ही अधिक भूख और प्यास के साथ वे परमेश्वर का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। केवल उनको जो परमेश्वर के वचनों को पाते हैं, अधिक गहरे और समृद्ध अनुभव प्राप्त होते हैं; केवल वे ही हैं जिनके जीवन अधिक से अधिक फलते-फूलते हैं।
2017-07-20
परिचय
"संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन" मसीह द्वारा व्यक्त किए गए वे कथन हैं, जिसमें वे स्वयं परमेश्वर की पहचान का प्रयोग करते हैं। वे 20 फरवरी, 1992 से 1 जून 1992 तक की अवधि को आवृत करते हैं, और इसमें कुल सैंतालीस कथनों का समावेश है। "संपूर्ण ब्रह्मांड के लिए परमेश्वर के कथन" में परमेश्वर आत्मा के परिप्रेक्ष्य से अपने वचनों को व्यक्त करते हैं।
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