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2019-01-10

दसवें कथन की व्याख्या

कलीसिया के निर्माण के समय के दौरान, परमेश्वर ने मुश्किल से ही राज्य के निर्माण का उल्लेख किया। यहाँ तक ​​कि जब उसने उल्लेख किया भी, तो उसने कलीसिया के निर्माण के समय की भाषा में ऐसा किया। एक बार जब राज्य का युग आ गया, तो परमेश्वर ने कलीसिया के निर्माण के समय की कुछ विधियों और चिंताओं को एक ही झटके में छोड़ दिया और फिर कभी इसके बारे में एक वचन भी नहीं कहा। यही वास्तव में "परमेश्वर स्वयं" का मूल अर्थ है जो सदैव नया है और कभी भी पुराना नहीं पड़ता है।

2018-07-03

Hindi Gospel Movie clip "परमेश्वर में आस्था" (5) - क्या प्रभु में विश्‍वास का सच प्रभु के लिए परिश्रम पूर्वक कार्य करना है? (Hindi Dubbed)


Hindi Gospel Movie clip "परमेश्वर में आस्था" (5) - क्या प्रभु में विश्‍वास का सच प्रभु के लिए परिश्रम पूर्वक कार्य करना है? (Hindi Dubbed)

अधिकांश विश्वासियों का मानना है कि यदि हम प्रभु का नाम लेते हैं, प्रार्थना करते है, बाइबल पढ़ते हैं और बैठकों में जाते हैं, और यदि हम वस्तुओं का त्याग करते हैं, प्रभु के लिए खर्च और कष्ट उठाकर कार्य करते हैं, तो यह प्रभु में सच्चा विश्वास है, और जब प्रभु लौटेंगे तब हम स्वर्ग के राज्य में आरोहित किए जाने में सक्षम होंगे। क्या इस प्रकार का विचार सही है? प्रभु यीशु ने कहा, "उस दिन बहुत से लोग मुझ से कहेंगे, हे प्रभु, हे प्रभु क्या हम ने तेरे नाम से भविष्यद्वाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्‍टात्माओं को नहीं निकाला, और तेरे नाम से बहुत से आश्‍चर्यकर्म नहीं किए? तब मैं उनसे खुलकर कह दूँगा, 'मैंने तुम को कभी नहीं जाना: हे कुकर्म करनेवालो, मेरे पास से चले जाओ।'" (मत्ती 7: 22-23)

2017-11-26

मानव जाति के प्रबंधन का उद्देश्य



यदि लोग वास्तव में मानव जीवन के सही मार्ग को और साथ ही परमेश्वर के मानव जाति के प्रबंधन के उद्देश्य को पूरी तरह से समझ सकते हैं, तो वे अपने व्यक्तिगत भविष्य और भाग्य को अपने दिल में एक खजाने के रूप में थामे नहीं रहेंगे। वे अब और अपने माता-पिता की सेवा करना नहीं चाहेंगे, जो सूअरों और कुत्तों से भी बदतर हैं। क्या मनुष्य के भविष्य और भाग्य ठीक वर्तमान समय के पतरस के तथाकथित "माता-पिता" नहीं हैं? वे मनुष्य के अपने मांस और रक्त की तरह हैं। क्या देह का गंतव्य, उसका भविष्य, जीवित रहते हुए परमेश्वर का दर्शन करना होगा, या मौत के बाद परमेश्वर से आत्मा के मिल पाने की खातिर होगा? क्या कल देह का अंत विपत्तियों की तरह भयावह भट्ठी में होगा, या यह आग की जलन में होगा? क्या इस तरह के प्रश्न जो इससे सम्बंधित हैं कि क्या मनुष्य का देह दुर्भाग्य को या पीड़ा को सहन कर पाएगा, सबसे बड़ी खबर नहीं जिससे अभी इस धारा में रहा कोई भी जो एक दिमाग रखता है और जो अपनी सही मनःस्थिति में है, सबसे ज्यादा चिंतित है? (यहाँ, पीड़ा को सहन करने का मतलब आशीर्वाद पाने से है, पीड़ा का अर्थ है कि भविष्य के परीक्षण मनुष्य के गंतव्य के लिए लाभदायक होते हैं। दुर्भाग्य का मतलब है दृढ़ता से खड़ा नहीं रह पाना या धोखा खाना; या इसका मतलब है कि कोई घोर आपदाओं के बीच दुर्भाग्यपूर्ण संकटों से टकराता है और उसके जीवन का संरक्षित रहना मुश्किल है, और यह कि आत्मा के लिए कोई उपयुक्त गंतव्य नहीं है)।

2017-10-13

बाइबल के विषय में (4)


बहुत से लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल को समझना और उसकी व्याख्या करने में समर्थ होना सच्चे मार्ग की खोज करने के समान है—परन्तु वास्तव में, क्या ये चीज़ें इतनी सरल हैं? बाइबल की सच्चाई को कोई नहीं जानता हैः कि यह परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेख, और परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरणों की गवाही से बढ़कर और कुछ नहीं है, और तुम्हें परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों की कोई समझ नहीं देता है। जिस किसी ने भी बाइबल को पढ़ा है वह जानता है कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के दो चरणों को प्रलेखित करता है। पुराना विधान इस्राएल के इतिहास और सृष्टि के समय से लेकर व्यवस्था के अंत तक यहोवा के कार्य का कालक्रम से अभिलेखन करता है। नया विधान पृथ्वी पर यीशु के कार्य को, जो चार सुसमाचारों में है, और साथ की पौलुस के कार्य को भी अभिलिखित करता है; क्या वे ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं? आज अतीत की चीज़ों को सामने लाने से वे इतिहास बन जाती हैं, और इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी सच्ची और यथार्थ हैं, वे तब भी इतिहास होती हैं—और इतिहास वर्तमान को संबोधित नहीं कर सकता है। क्योंकि परमेश्वर पीछे मुड़कर इतिहास को नहीं देखता है! और इसलिए, यदि तुम केवल बाइबल को ही समझते हो, और उस कार्य को नहीं समझते हो जिसे परमेश्वर आज करने का इरादा करता है, और यदि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो और पवित्र आत्मा के कार्य की खोज नहीं करते हो, तो तुम यह नहीं समझते हो कि परमेश्वर को खोजने का आशय क्या है?